Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 53

“आखिर क्या हुआ था दरवाजा खुलने के बाद ?”

रानी साहिबा राजा साहब का चेहरा यूँ देखती रही मानो आज वह सिर्फ सुनना चाहती थी|

“नटनी का खेल तो आपने देखा है न !” राजा साहब गंभीर स्वर में पूछते है तो हैरान रानी बस हाँ में सर हिला देती है|

“जब नटनी अपना करतब दिखा कर सबको खुश कर देती है तब उसे बदले में कुछ चाहिए होता है बस यही है उस साए के साथ जुड़ा हमारा डर – |” कहकर राजा साहब चुप हो जाते है पर इसके विपरीत रानी साहिबा के चेहरे पर डर और घबराहट के भाव साफ़ साफ़ नज़र आने लगते है|

“जैसे ही वो साया आजाद होगी पहले अपनी मौजूदगी की दहशत फैलाएगी फिर उसके बाद सबको खुश करने भ्रम का जाल फैलाएगी जिससे सबके लिए सच और भ्रम का फर्क करना मुश्किल हो जाएगा और यही वक़्त होगा जब उसे बदले में अपने लिए जो चाहिए होगा वो ले लेगी |” वह सदमे भरी आवाज में अपनी बात खत्म करते है|

“अ और क्या चाहिए होगा – उसे बदले में ?” वे कांपती आवाज में पूछती है|

“जिसे ख़ुशी देगी बदले में उसी से उसका सबसे अजीज़ भी लेगी पर आप फ़िक्र मत करिए जब तक हमारे महल में वे रक्षासूत्र है – वो साया महल में प्रवेश भी नही कर सकेगा और सबसे बड़ी बात – वो चाभी – उसे आप संभाल कर रखिए – अरे आपके चेहरे का रंग क्यों उड़ गया – आप तो सुनकर डर गई हमने तो अपनी पंद्रह साल की उम्र में वो डरावना हादसा देखा था|”

रानी अब हैरान होती उनकी तरफ देखती रही|

“पंद्रह के थे हम – जब गलती से वो दरवाजा खुला था और…|” राजा साहब की बात अधूरी रह गई और उसी वक़्त उनके वार्ड का दरवाजा खुल जाता है जिससे दो जोड़ी निगाहे एकसाथ उस ओर के लिए उठ जाती है| 

झलक अपनी ही मस्ती में लहकती हुई कक्ष में आते ही देखती है कि शौर्य आई पैड पर किसी से शायद चैटिंग में मशगूल था| वह उसके सामने से जानकर गुजरी पर उसने एकबार भी उसकी तरफ ध्यान नही दिया इससे झलक मुंह बनाती वहां से गुजर गई| अगले ही पल दरवाजे से दस्तक देता एक अर्दली शाम की चाय लिए प्रवेश करता है| उसे देख झलक झट से उसके हाथ से चाय का ट्रे लेकर उसे भेजती चाय खुद बनाने लगती है| वह इस रिश्ते को यूँही कड़वाहट के साथ नही रखना चाहती थी बल्कि चाहती थी कि शौर्य उसे समझे इसलिए वह उसके लिए खुद चाय बनाती है|

शौर्य फोन पर व्यस्त था इसलिए अपने हिसाब से चीनी डालकर वह बड़े प्यार से कप उसकी ओर बढ़ाती है| उसे लगा था अब शायद शौर्य उसकी ओर ध्यान देगा पर उसकी ओर बिना देखे वह कप ले लेता है| झलक उसकी ओर देखती रही तभी कप की एक चुस्की लेता वह अजीब सा मुंह बनाता हुआ चीखता है जिससे बाहर खड़ा सेवक दौड़ता हुआ अन्दर आता है| शौर्य कप एक ओर फेंकता हुआ जोर से बोल रहा था – “क्या अब चाय हमे कैसी पसंद है वो भी बतानी होगी !”

“मई दुबारा लाता हूँ हुकुम |” जल्दी जल्दी वह ट्रे कप समेटता हुआ उलटे पैर भाग लेता है|

झलक जो ये तमाशा देख रही थी उसके तो होश ही उड़ गए थे| वह रुआंसी शौर्य की ओर देखती रही जो झलक को कसे तेवर में देखता हुआ कह रहा था – “हमे दूसरों को बुरा फील कराना बिलकुल अच्छा नही लगता पर क्या करे कुछ चीजो में एक आध बार छोड़कर बार बार टेस्ट चेंज करना हमे बिलकुल नही पसंद |” गहरी मुस्कान छोड़ता शौर्य आई पैड पर फिर से लग जाता है| शौर्य की बात झलक को समझ तो नही आई पर बस अंतरस बुरी लग गई जिससे एक क्षण भी उससे वहां बैठा न गया और वह उठकर शयनकक्ष तक चली गई| वह पल उसपर इतना बुरा गुजरा कि उसकी आंख भर आई जिससे तकिया से लिपटी वह अकेली पड़ी सुबकती रही|

वार्ड का दरवाजा खुलते सामने नवल को देखते जहाँ राजा साहब के चेहरे पर मुस्कान आ गई तो वही रानी साहिबा के चेहरे के हाव भाव यूँही बने रहे| नवल के साथ साथ डॉक्टर भी अन्दर आता है जिसका सीधा अर्थ था कि अब राजा साहब के चेकअप का समय था इसलिए उन्हें छोड़कर रानी साहिबा और नवल बाहर आ गए| बाहर निकलते नवल को रोकती हुई वे कहती है – “नवल आप हमारे संग आइए – कुछ बात करनी है आपसे |”

नवल हाँ में सर हिलाता उनके साथ वेटिंग रूम की लॉबी के एकांत में आते है|

“कहिए माँ सा !”

नवल संशय भरी नज़र से अपनी माँ सा को देख रहा था तो वही माँ सा के हाव भाव बेहद उखड़े हुए थे जैसे कहने को बहुत कुछ है पर सब मन में जब्त था|

“हाँ कहिए माँ सा !” उन्हें पल भर तक शांत देख नवल पुनः पूछता है|

“क्या कुछ ऐसा है जो आपको हमसे कहना है ?”

“हमे !! नही |” नवल हतप्रभता से देखता है|

“ठीक है हम जैसल लौट रहे है |”

माँ सा की बात पर नवल यूँ उनकी तरफ देखता है जैसे पूछ रहा हो कि क्या हम भी !!

उसके मौन प्रश्न को समझती वे आगे कहती है – “आप अभी यही रुकिए जब तक रूद्र और शौर्य नही आ जाते |”

कहकर तुरंत वे उसके विपरीत चल दी और नवल मन मसोजे खड़ा देखता रहा|

नंदनी के मन की बेचैनी उससे बेहतर और कौन समझ सकता था| न आगे की वह सुध ले पा रही थी और न पिछला कुछ समझ पा रही थी| सब कुछ जैसे गडमड हुआ जा रहा था| इस वक़्त उसे अपने बापू की बहुत जरुरत थी जिससे वह अपने मन की कह पाती| नंदनी अभी सोच ही रही थी कि कमरे के कोने में उसे अपना बापू बैठा दिखा जिसे देखते नंदनी झट से उसकी ओर भागती हुई पहुंची|

“बापू..!!”

वह सर पर हाथ धरे बैठा था|

“बापू – !” नंदनी अपनी बापू को पकड़े बिलखकर रो पड़ी| उसे अपनी मनोदशा पर नियंत्रण ही नहीं रहा उसका बापू भी तथास्त बना वैसा ही बैठा रहा|

अनिकेत ने शाम तक बहुत कोशिश की कि कोई अवसर मिले जब वह अपने मन के भाव अपने पिता के सामने व्यक्त कर सके पर संकोच की सीमा को पार करने वाला कोई शब्द उसे समझ नही आया|जॉन भी तब से बेचैन था कि आखिर कब अनिकेत आगे का कुछ तय करेगा ? जब उससे नही रहा गया तो संध्या को जब पंडित जी मंदिर चले जाते है तब वह अनिकेत के घर आया| अनिकेत घर पर ही था| जॉन उसके घर पहुँचते दस्तक देता है और दरवाजा तुरंत ही खुल जाता है| वह इतना व्यग्र था कि दरवाजे पर ही अनिकेत को देखता तुरंत पूछ उठा – “अनिकेत मैं तुम्हारा पूरे दिन से इंतजार कर रहा था – बताओ कब चलाना है – पलक को जरुरत है तुम्हारी और हर पल देर ही हो रही है उसके लिए….|”

अनिकेत खामोश बना दरवाजे के एक ओर हो जाता है जिससे जॉन का ध्यान उसके पीछे जाता है जहाँ बाहर निकलने को उसके पिता तैयार ही खड़े थे| वे सभी अपने अपने स्थान पर जैसे मूर्ति बने रह गए| वह नही चाहता था कि पलक और उसके बारे में उसके पिता को अचानक से पता चले इससे वह संकुचाता हुआ उनकी तरफ देखता है| अब वे सभी घर के अन्दर आते मौन ही एकदूसरे की ओर देख रहे थे| अनिकेत अगले कुछ पल खुद में साहस भरता उनकी ओर देखता हिचकिचाता हुआ कहता है – “पिता जी मैं आपसे इसी बारे में कुछ कहना चाहता था पर साहस ही नही कर पाया |”

इस पर वे अपने हाव भाव में सौम्य भाव लाते उसकी ओर बढ़ते हुए कहने लगे – “बेटा – मनुष्य दो अवसर में अपनी बात कहने से हिचकिचाता है एक या दो उसके मन में चोर है और दूसरा जब उसे कहने का सुअवसर नही दिखता और मुझे अपनी परवरिश पर इतना तो भरोसा है कि तुम सदैव दूसरे वाले हो |”

अपने पिता का विश्वास पाते जैसे अनिकेत के चेहरे पर की धुंध हट्ते चेहरे पर चमक सी आ गई| वह झट से उनका हाथ थामता हुआ कहने लगा – “पिता जी मुझपर यूँही विश्वास रखिए – मैं अभी आपसे कुछ कह नही पा रहा पर बहत जल्दी मैं आपको हर एक बात बताऊंगा – मुझे बस कुछ वक़्त चाहिए |”

“मेरा पूरा विश्वास है तुम्हारे साथ कि तुम जो कुछ भी सोच रहे है वह किसी न किसी के भले का ही होगा – गीता भी यही कहती है कि जब खुद पर विश्वास है तो आगे बढ़ो और जीत हासिल करो – |”

उनकी बात पर जॉन और अनिकेत का चेहरा खिल उठा था|   

“बिलकुल पिता जी मैं किसी का भी यकीन टूटने नही दूंगा और बहुत जल्दी अपने सभी प्रश्न सुलझाकर आपके समक्ष पूर्ण विश्वास से खड़ा होऊगा – मुझे आपके आशीष और आज्ञा दोनों की आवश्कता है|”

वे बड़े प्यार से उसके झुक सर को सहलाते हुए मुस्करा देते है|

उनकी आज्ञा के साथ ही अनिकेत की जैसलमेर जाने की यात्रा सुनिश्चित हो गई| अब आगे क्या होगा जब टूटेगा ये भ्रम जाल….या होगा नया कोई कांड…अपना साथ बनाए रखे जिससे आपको सरप्राइज देने को मैं भी प्रेरित रहूँ….

.क्रमशः…

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