Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 54

झलक जिस अनमने ढंग से लेटी थी कि देर शाम ही उसकी आंख खुली| वह आंख खुलते ही कमरे के एकांत को सरसरी दृष्टि से देखती है तो पाती है इस वक़्त वह कमरे में अकेली है| इसी ख्याल से उसे शौर्य का पिछला सब व्यवहार याद आया तो दुबारा उसका मन कसैला हो उठा| उस पल उसे इतना बुरा लगा कि अभी वह मिल जाता तो वह अपने प्रति इस व्यव्हार पर उसे खरी खोटी ही सुना देती| मन में उठे इस बुरे अहसास के साथ अब उसकी आंख नम हो आई थी कि तभी दरवाजे पर दस्तख हुई| कोई बाहर था ये देखने झलक उठकर दरवाजे तक आई| दरवाजे पर कोई कुण्डी नही थी इससे वह निश्चित हो गई कि शौर्य तो नही है जरुर कोई और होगा| वह झटके से दरवाजा खोलती है उस पार वाकई कोई सेविका थी जो सर झुकाए कह रही थी –

“हुकुम कोई आया है – कुंवर सा से मिलना चाहता है |”

ये सुनते झलक का उखड़ा मूड और बिगड़ जाता है जिससे वह और चिढ़ती हुई बोलती है – “तो मैं क्या करूँ – यहाँ नही है तुम्हारे कुंवर सा |”

पर सेविका यूँही हाथ जोड़े कहती रही – “वह कोई सामान लाया है जो कुंवर सा के हाथों में देना है – हुकुम उन्होंने मिलने की बहुत गुजारिश की है|”

“ओहो तो मैं क्या करूँ |” झलक उबती हुई वापस आने लगी ये देख सेविका भी वापस जाने लगी| अभी दो कदम झलक अंदर कमरे में आई ही थी कि कुछ सोचती हुई तुरंत जाती हुई सेविका की ओर लपकी|

“अरे सुनो – अच्छा चलो मैं ही चलती हूँ |”

इतना कह झलक अब उस सेविका के बताए रास्ते पर चलने लगी| अगले ही पल वे किसी अन्यत्र बड़े कमरे में थे जो बैठक की भांति करीने से सजा था| वहां झलक किसी व्यक्ति को पाती है जो उलझा सा वही खड़ा था| सेविका आगे बढ़कर उस शख्स से झलक का शौर्य की बिन्दनी होने का परिचय कराती है जिससे उसके उदास भाव तुरंत ही खिल उठते है और वह जल्दी से अपने हाथ में पकड़ा कोई पैकेट उसकी ओर बढ़ाता हुआ कहता है –

“हुकुम थोड़ा फिनिशिंग में देर हो गई इसलिए जैसे ही तैयार हुआ हार मई खुद लिए चला आया |”

“हार !!!”

झलक अब उलझी हुई उसकी ओर देख रही थी जो कोई पैक पैकेट उसकी ओर बढ़ाते हुए कह रहा था|

“जी मुझे आज सुबह देना था पर देर हो गई – लीजिए अब ये पूरी तरह से आपके मनमुताबिक तैयार है ये हार|”

झलक ये तो समझ गई कि ये कोई सुनार होगा और ऑडर पर हार लेकर आया है पर शौर्य ने किसके लिए ये हार मंगाया होगा !! फिर अचानक ये सोचते उसके हाव भाव खिल उठे कि जरुर ये हार उसके लिए ही शौर्य ने बनवाया होगा| इस एक ख्याल भर से उसका मन खिल उठा जिससे वह उस पैकेट को उसके हाथ से लेती उलट पलट कर देखती हुई पूछती है – “क्या वाकई ये कोई हार है !!”

“हुकुम हार ही है – मैं आपको मोबाईल में इसकी तस्वीर दिखाता हूँ बिलकुल उनके कहेमुताबिक तैयार कराया है|”

पैकेट पैक था इसलिए सुनार अपने मोबाईल में उसकी इमेज खोजता हुआ उसे झलक की आँखों के सामने करता है| झलक उस पल उस इमेज को देखती रह जाती है आखिर हीरो का दमकता हुआ वह हार सच में अनोखा दिखलाई पड़ रहा था| उस हार को देखते झलक एकदम में ये सोचकर खुश हो गई कि जरुर ये उसके लिए शौर्य की ओर से कोई सरप्राइज होगा फिर किसी तरह अपने हाव भाव दबाती वह हार लिए वापस अपने कमरे में चल दी|

महल में फिर से शाम के धुंधलके के बाद एक और रात खिंच आई थी| धीरे धीरे घिरती रात में महल में एक अजीब सी नीरवता छाने लगी थी जैसे रात का अँधेरा महल को धीरे धीरे अपने कब्जे में ले रहा था जिससे महल में मौजूदा लोगों के मन अजीब से होने लगे|

नंदनी जैसे आधी नींद से जागी और अपने बापू को न पाती हुई सोचने लगी कि वह अपने बापू के संग बैठी थी फिर अचानक वे कहाँ गया ? ये सोच वह कमरे में  इधर उधर नज़र दौड़ाती हुई उसे खोजने लगी कि तभी उसे लगा कमरे से कोई बाहर की ओर गया| उसका बापू होगा ये सोच वह उसके पीछे दौड़ लेती है|

झलक की आँखों की नींद तो उस हार की दमक से उड़ गई थी| उसे लगा शायद शौर्य को अपनी गलती का अहसास हुआ होगा ये सोचती मन ही मन मुस्कराती वह तय करती है कि वह उसका सरप्राइज खोलेगी नही बल्कि चुपचाप रख देगी जैसे उसने देखा ही नही हो| अब उसे लगा कि जरुर शौर्य घुड़सवारी के लिए गया होगा| अक्सर शाम को उसे वही जाते देखती ये सोचती वह अब बाहर उसे खोजने निकल पड़ती है|

इस महल में कोई और भी था इसकी आँखों में नींद के बजाये क्रूरता स्पष्ट हो रही थी| महल का एक कोना जहाँ राजगुरु का कक्ष था जिसमे वह कोई हवन करता करता मन ही मन कोई मन्त्र बुदबुदा लेता| अगले ही पल आखिरी आहुति देते उसके हाव भाव तीखे और क्रूर हो जाते है| वह हवन के चारोंओर कोई घेरा बनाता हुआ क्रोधित स्वर में बडबडाता है – “तू कहाँ है महामाया – जल्दी आ – वरना तुझे फिर से मैं कैद कर दूंगा – जल्दी आ|” कहता हुआ वह कुमकुम से फर्श पर कोई आड़ी तिरछी लकीरे बनाता हुआ फिर बडबडाता है – “मेरी इतने वर्षो की तपस्या पल भर में व्यर्थ नही हो सकती – तुझे मेरे पास आना होगा – मैंने तेरे लिए इस शरीर को सुरक्षित रखा था फिर तूने ये शरीर क्यों नही धारण किया – तू आजाद होकर बिना शरीर के नहीं रह सकती फिर तूने किसका शरीर लिया – कहाँ है तू सामने आ वरना मैं तुझे फिर उसी जगह कैद कर दूंगा जहाँ तू पिछले सत्ताईस वर्षो से कैद थी – मैंने मैंने तुझे आजाद कराया – आ तू मेरे पास आ – मैं तुझे वो सब कुछ दूंगा जो तुझे खुश रखेगी और बदले में तू भी मेरी समस्त इच्छाओ को पूरा करेगी – हाँ यही तो करती है तू लेकिन तेरी आजादी मेरे नियंत्रण में होगी|” राजगुरु आन्तरिक अट्टहास करता मन्त्र बुदबुदाता रहता है साथ ही बीच बीच में कुंड में कुछ आहुत करता रहता है जिससे बार बार जलती अग्नि प्रबल हो जाती और उसकी रौशनी में बिस्तर पर पड़ी वह काया और स्पष्ट हो जाती|

गलियारे में किसी टेक्नीशियन के साथ खड़ा रचित अब उस हिस्से का कैमरा चेक कर रहा था जिसका नंबर छह था और वह ख़ास महल से निकलने वाले शक्स पर सीधा फोकस करता था|

“साहब कई बार चेक कर चुका हूँ – कैमरे में कोई गड़बड़ नही है फिर पता नही क्यों ये काम नही करता |” टेक्नीशियन कैमरे का आखिरी पेंच कसता हुआ कहता है|

“वही तो मैं भी जानना चाहता हूँ कि गड़बड़ नही है तो इमेज क्यों शो नही करता – |” रचित उस कैमरे को घूरते हुए कहता है|

“मैं आपके कहने पर इसे दूसरे कैमरे से बदल भी चुका हूँ ये बस यही काम नही करता – हो सकता है कनेक्टिविटी में प्रॉब्लम हो |”

“क्या बात करते हो – कनेक्टिविटी में प्रॉब्लम होती तो सबमे होती सिर्फ इसी में क्यों हो जाती है – तुम बस नया कैमरा लगाओ |”

“पिछली बार भी तो नया ही था साहब |” वह सीढ़ी से उतरता पसीना पोछते हुए कहता है|

“यहाँ का कैमरा बहुत जरुरी है – इस बार दूसरी कंपनी का लगाओ जो मैं दे रहा हूँ वो लगाओ |”

अब रचित की बात सुन सर हाँ में हिलाता वह अपने बैग से स्क्रू खोजने लगता है|

“मैं तब तक सारे कैमरा ऑफ़ कर देता हूँ जब ये लग जाएगा तब फिर से कनेक्ट करूँगा |”

“ठीक है साहब – |” कहता हुआ वह एक सरसरी निगाह रचित पर डालता है जो बार बार गहरी जम्हाई लेता आंख झपकाते जैसे खुद को जबरन खड़ा किए था| उसकी हालत काफी थकी हुई थी जैसे कब से वह सोया नही हो| टेक्नीशियन कैमरा लगाते लगाते उसकी ओर देखता हुआ पूछता है – “साहब आज आप बहुत थके लग रहे है जैसे पूरी रात के जगे हो – |”

उसके प्रश्न पर रचित अंगड़ाई लेता उंगलियाँ चटकाते हुए कहता है – “हाँ पिछली पूरी रात हॉस्पिटल में बीती और अभी तुम्हारा काम हो जाए तो फिर से हॉस्पिटल जाना है |”

“हाँ आपके काका साहब तो हॉस्पिटल में है – अबी कैसे है वो ?” वह अब सीढ़ी पर खड़ा पुराना कैमरा खोलता हुआ कहता है|

“अभी ठीक है – तुम जरा जल्दी से ये काम निपटाओ |” रचित ऊबता हुआ इधर उधर देखता अब दीवार का टेक लगा लेता है|

यही पल था जब झलक यहाँ से गुजर रही थी क्योंकि ये ऐसा गलियारा था जहाँ से सभी गुजर कर जाते थे| झलक को भी यही से उतरते बाहर के लॉन की ओर जाना था जिसके आगे के हिस्से पर वह अस्तबल देख चुकी थी पर रचित को देख जैसे उसका शैतानी दिमाग फिर चल पड़ा और वह वहां से न गुजरकर किसी खम्बे के पीछे से छिपकर उसे कॉल लगाती है|

नम्बर सेव न होने पर भी रचित उसे उठा लेता है|

“रचित जी मैं झलक बोल रही हूँ – प्लीज आप मेरे हेल्प कर सकते है – मैं महल के जाने कौन से हिस्से में आ गई – यहाँ तो कोई दिख भी नही रहा और कहाँ जाना है कुछ समझ नही आ रहा|” झलक भरसक रुआंसी आवाज में कहती है|

“आप कुछ तो बताईऐ कि कहाँ पर है ?” रचित के हाव भाव में परेशानी आ गई थी|

“पता नही – यहाँ तो बहुत अँधेरा है – यहाँ तो काली सीढ़ी के अलावा और कुछ नही दिख रहा – |”

“क्या आप महल के पिछले हिस्से में चली गई !!” रचित इधर उधर देखता अब गलियारे में दौड़ लगाता उससे पूछता है – “अच्छा आप कुछ और भी निशानी बताईऐ|”

“हेलो हेलो ..लगता है नेटवर्क चला गया|” किसी तरह अपनी हँसी दबाती वह मोबाईल को खुद से दूर करती बोलने का अभिनय करती फोन काट देती है|

रचित को सच में लगा कि झलक कही फंस गई है ये सोच वह तुरंत महल के पिछले हिस्से की ओर दौड़ लगा देता है| झलक उसे जाता हुआ चुपचाप देख रही थी जिससे उसे कसकर हँसी आ गई| वह अपनी हँसी दबाती रचित के जाते उस गलियारे से गुजर कर बाहर की ओर जाने लगती है|

क्रमशः…………

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