
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 55
नंदनी बाहर निकलकर गंतव्य विहीन राह की ओर चल रही थी, उसे लगा तो था कि वह किसी का पीछा कर रही पर जब उसे कोई नजर नही आया तो सामने से आते एक सेवक को रोककर अपने बापू के बारे में पूछने लगी जो उसकी बात सुनकर चौंकता हुआ उल्टा उससे पूछता है – “कब वापस आए – म्हारे को तो न पता |”
उसकी बात पर नंदनी झींकती हुई बोली – “ओहो वापस आए है तभी तो पूछ रही हूँ – अभी यही से तो गया है मेरा बापू – किधर गया ये बताओ ?”
“कैसी बात करे है बाई सा – इधर से कैसे जा सके है ?”
अब नंदनी उसकी बातों पर झल्लाती उसे घूरती रही जो अभी भी कह रहा था – “मई साँझ में ही तो कैम्प से वापस आया तब तो वही था भुवन तो इतनी अबेर कैसे वापस आ सके है – साच्ची कहूँ हूँ – भुवन तो अभी वही पर है|”
कहकर वह उसके विपरीत रास्ते पर चला गया पर सन्न भाव से नंदनी वही खड़ी रह गई| आखिर उसका बापू नही आया तो जो अभी उससे मिला वो कौन था ? क्या उसे कोई भ्रम हुआ या जागती आँखों से उसने कोई सपना देखा? उलझी खड़ी नंदनी का मन डर और घबराहट के मिलेजुले भाव से गुजरने लगा|
रचित भागता हुआ गलियारे से गुजरता पिछली सीढियाँ उतरता महल के पिछले अँधेरे हिस्से की ओर बढ़ता जा रहा था साथ ही अपनी नज़रे इधर उधर किए झलक को खोजता रहा| वह अब काली सीढियों के पास आ चुका था| वहां आते वह तय नही कर पाया कि उन सीढ़ियों से उसे ऊपर की ओर जाना चाहिए या वही आस पास झलक को खोजना चाहिए| वह ये तय कर ही रहा था इसके विपरीत कोई साया उन सीढ़ियों से नीचे की ओर आता हुआ वह नही देख पाया| रचित परेशान होता आस पास देखता ही है कि उसके हाथ में पकड़ा मोबाईल बज उठा| तुरंत मोबाईल उठाते वह कान में लगाता है तो उस पार से उसे टेक्नीशियन की आवाज सुनाई देती है –
“कहाँ है साहब जी – कैमरा लगा दिया अब आप कनेक्ट करके कैमरा चेक कर लीजिए |”
ये सुनते रचित तुरंत ही ऑन मोबाईल में कैमरा का स्लॉट खोलता उसे वाई फाई से कनेक्ट करता एक एक करके जरुरी कैमरा देखता हुआ छह नंबर का कैमरा ऑन करता है जो मुख्य गलियारे का दृश्य दिखाता था| यही पल था कि उस कैमरा का पहला दृश्य उसे झलक को जाता हुआ दिखता है| रचित उस पल हैरान रह जाता है क्योंकि वह झलक को परेशान नही बल्कि ख़ुशी से वहां से गुजरता हुआ देखता इससे वह पल में झलक के इस मजाक को समझ गया| उस एक पल उसे झलक के इस बेहूदा मजाक पर कितना गुस्सा आया ये कोई उसके चेहरे पर तन आई मांसपेशियों को देखकर कोई भी समझ सकता था| वह तुरंत ही वहां से निकलता वापस टेक्नीशियन के पास चल देता है| उसे पता ही नही चला कि इस एक पल वह उस साए से बचकर निकल आया था|
इसके विपरीत झलक अस्तबल की ओर आ गई थी| वहां का माहौल उसे एकदम शांत लगता है, कतारबद्ध खड़े घोड़े अपना चारा जुगाली कर रहे थे|
“शौर्य जी..!!”
वहां की हलकी रौशनी में आगे बढ़ती वह शौर्य को आवाज लगाती अस्तबल के अन्दर आती है| चारोंओर देखती जब वह सुनिश्चित हो जाती है कि वहां शौर्य नही है तो थकी हारी वह वही बैंच पर बैठती खुद में ही बडबडा उठी – ‘ओह तो यहाँ है ही नहीं पर है कहाँ !! कितना अजीब है उनका व्यवहार कुछ बताते ही नही कि जाते कहाँ है ? चल भई झल्लो कुछ देर ताज़ी हवा खा कर वापस चलते है|’ कहती हुई वह बांह फैलाकर आंख बंद किए एक एक सांस इत्मीनान के खींचकर छोड़ती वहां की ताजगी को महसूस करने लगी| इसके विपरीत घोड़े अब चारा खाना बंद करते स्तब्ध खड़े हो कर सामने की ओर गर्दन उठाए थे| इससे बेखबर झलक अपने में ही मस्त थी कि एकाएक घोड़ों में अजीब सी उछल कूद होने लगी| अब अँधेरे में उनकी तेज पदचापों की आवाज सुनाई देने लगी जिससे झलक का ध्यान तुरंत उस ओर जाता है| वह उस पल घोड़ो का अजीब व्यवहार देखती हुई कारण समझने लगी कि क्यों घोड़े अपनी जगह खड़े खड़े बेचैन नज़र आने लगे| वह साया अब वहां प्रवेश कर चुका था जिसे देखते वे घोड़े बेचैन हो उठे थे| बंधे होने की वजह से वे सभी अपनी अपनी जगह तेजी से हिलने लगे| कोई पदचाप करने लगा तो कोई गर्दन खींचता रस्सी से अपना बंधन खोलने की चेष्टा करने लगा| झलक उनके इस अजीब व्यवहार को हतप्रभता से देख ही रही थी कि एकाएक सभी घोड़े बंधन मुक्त होते हवा के झोके की तरह उसकी ओर लपके| इससे पहले कि झलक खुद को उनसे बचा पाती सभी उसको धक्का देते उसके आस पास से तेजी से गुजरने लगे| इस पल के डरावने अनुभव से झलक की चीख ही निकल गई| वह अब जमीं पर से लुढ़कती झाड़ियों की ओट में फंस चुकी थी जिससे उसे बेहद दर्द का अनुभव हो रहा था| वह झाड़ियों से सरकती हुई देखती है कि घोड़े उसकी नज़रों से नदारत हो चुके थे और अस्तबल में अजीब भयावह सा धुँआ उठ रहा था| झलक को ये सब देखकर कुछ समझ नही आ रहा था वह तो बस यहाँ से दूर भाग जाना चाहती थी लेकिन उसके पैर जैसे उसी स्थान पर जम से गए थे| तभी उसकी नज़र घास पर गिरे अपने मोबाईल पर जाती है उसे जल्दी से उठाकर वह सबसे पहले शौर्य को फोन लगाती है पर एक बार दो बार पूरी पूरी रिंग जाने के बाद भी फोन नहीं उठता जिससे उसकी रुलाई ही फूट जाती है| अब एक नज़र फिर अस्तबल की ओर डालती है जहाँ का धुँआ बढ़ता ही जा रहा था वही उसका पैर उसी स्थान पर ऐसा जमा था कि जरा भी नही हिल रहा था| वह अपनी हालत पर परेशान होती जाने क्या सोच झट से रचित को फोन लगा लेती है जो तुरंत ही उठा लिया जाता है| फोन उठते ही झलक अपनी घबराई आवाज में कहती है – “मुझे बचाओ – मैं अस्तबल में बुरी तरह से फंस गई हूँ…|”
और उस पार से उसकी बात सुनते तुरंत ही फोन काट दिया जाता है|
काटों तो खून नही उसे इस वक़्त जिस शख्स से एक मात्र मदद की उम्मीद थी उससे ऐसी प्रतिक्रिया पाते वह फूट कर रो पड़ी| अपनी हालत पर उसे दर्द से ज्यादा अकेले फंस जाने का भय ज्यादा था| वह अब जोर जोर से आवाज लगाकर मदद के लिए पुकारने लगी पर बदले में कोई उस ओर आता नही दिखा| उसका मन ये सोचकर घबरा गया कि क्या उस स्थान पर उसके अलावा कोई नही है क्या !! धुँआ अब उसके नज़दीक पहुँचने वाला था ये देख वह फिर से बार बार रिडायल बटन दबा दबाकर उसे कॉल करने लगी पर दूसरी ओर से फोन नहीं उठाया गया| अब धुँआ उसे अपनी गिरफ्त में लेने लगा था जिससे घबराकर वह हवा में इधर उधर हाथ मारने लगी इससे उसके हाथ से मोबाईल छिटककर दूर जा गिरा| वह लगातार पागलों की तरह चिल्लाती हवा में हाथ मार रही थी कि तभी उसे लगा जैसे किसी अज्ञात पंजे ने उसके पैर पकड लिए अब तो उसकी सांस जैसे हलक में अटक गई| वह हाथ उसका पैर जमी के अन्दर ले जाने खींच रहे थे| उस खुरदरे हाथों को महसूसते उसका पूरा जिस्म काँप गया| वह खुरदरे पंजे उसके पैरों पर अब रेंगने लगे थे जिससे झलक झटके से पैर मारती अचानक से खड़ी हो जाती है| वह उस बंधन से छूट गई थी| खुद को आजाद पाते वह बिना पीछे पलते दमभर तेजी से उसके विपरीत भागती है| वह बेदम भाग रही थी| बहुत तेज जैसे हवा की रफ़्तार पकड ली हो उसने तब एक बार पीछे पलटती है तो उसकी ऑंखें जैसे बाहर ही निकल आई| इतना भागने के बाद भी वह अभी भी उस धुए से तनिक भी दूर नही हुई थी, ये देखते उसके हलक से तेज चीख उभर आई और वह लहराती हवा में डोल गई पर जमी में नही गिरी क्योंकि किसी मजबूत बाँहों से उसे थाम लिया जो उसे सीधा खड़ा करने हलके से झंझोड़ रहे थे| झलक भी अब आँख खोले उस मददगार को देखती है जो उसके सीधा खड़ा होते उससे कुछ दूरी बनाए हुए कह रहा था –
“मजाक की भी हद होती है – छोटी बच्ची हो क्या – कभी दूसरों की परेशानी समझ नही आती क्या !! लगता है जीवन में सब आसानी से मिल गया इसलिए किसी भी चीज की कोई कीमत नही समझती – जब जीवन में कुछ खो दोगी तब उसकी कीमत का अहसास होगा |”
झलक अपने सामने खड़े रचित को उसे झिड़कता हुआ चुपचाप सुन रही थी| वह बुरी तरह से उखड़ा हुआ दिख रहा था और उसके आगे आगे चलता जैसे उसे साथ में अपने पीछे आने को निशब्द ही कह रहा था| रचित के पीछे चलती एक बार वह सहस करती अपने पीछे पलटकर देखती है तो उसकी आँखे हैरान रह जाती है| उसके पीछे अस्तबल का दृश्य अब बिलकुल वैसा ही दिख रहा था जैसा उसने पहले देखा था जबकि उसे अच्छे से याद था कि उसने घोड़ो को भागते हुए देखा था तो फिर वो सब क्या था !! बल्कि अपने से कुछ दूरी पर गार्डन में कुसियों को साफ़ करते वह सेवकों को देखती रही| उसकी समझ में अब कुछ नही आ रहा था| क्या उसने जागती आँखों से कोई डरावना सपना देखा था क्या !! वह मौन रचित के पीछे चलती पिछला सब याद करती दिमाग मथती रही पर जवाब में उसे कुछ समझ नही आया| अब वह अपने कक्ष तक वापस आ गई जिससे रचित उसे वहां छोड़ता गुस्से में त्योरियां चढ़ाए अब वापसी की ओर मुड़ा ही था कि झलक धीरे से उसे पुकारती हुई कहने लगी – “मुझे अपनी पिछली बातों के लिए माफ़ कर दीजिए पर आज सचमुच मैं मुसीबत में थी |” रचित तक उसकी दबी भीगी आवाज ज्योंही पहुंची वह पलटकर उसकी ओर देखता है यही एक पल जब वह भी उसकी ओर देखती वही देहरी पर ठहरी रह गई| दोनों की आँखों के मिलते वे कुछ क्षण तो जैसे जड़वत हो गए अपने स्थान पर| जहाँ झलक की आँखों में अधूरे प्रेम की चाहत के सूनेपन की तल्खी साफ साफ़ नज़र आ रही थी तो वही रचित की आँखों का अकेलापन भी जैसे उसकी आँखों के डोरों को छोड़कर आगे नही बढ़ पाया| वो पल मौन ही उनके अंतरस गहरे से उतरता चला गया कि तभी रचित के मोबाईल की मेसेज टोन से जैसे उनकी तन्द्रा टूटी और झट से खुद को समेटते वे दोनों विपरीत दिशा की ओर बढ़ गए| विपरीत जाते हुए सहसा रचित का ध्यान झलक के लडखडाते हुए जाते देख उसकी एड़ी की ओर जाता है जो कुछ चोटिल दिखलाई पड़ रही थी पर संकोच वश वह उसे न टोकता हुआ वापसी की ओर चला जाता है| अन्दर आती झलक देखती है कि शौर्य आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपने फोन पर किसी से बातों में मशगूल था| उसने झलक की ओर एक बार भी नहीं देखा जिससे वह अपने आंसू हथेली से पोछती वह दूसरे किनारे पर लेट जाती है|
डरावनी रात जैसे तैसे गुजर गई जिसकी सुबह भी जैसे उस महल में सहमे कदमो से आई| सभी को राजमाता के आने का इंतजार था| वे सुबह किसी भी वक़्त आ सकती थी| उनके आगमन की तैयारी थी और निश्चित समय पर उनकी कार आकर पोर्च पर रूकती है जिसके सामने नागेन्द्र जी, रूद्र और शौर्य के पीछे सेवकों की एक छोटी भीड़ खड़ी थी| वह तुरंत ही सबसे औपचारिकता से मिलती झलक और पलक को अपने कक्ष में बुलाने को कहकर अपने कक्ष की ओर चल देती है| आखिर दिन में क्या होगा पलक का रूप !! क्या धरेगी वह मायाजाल !! वही झलक में क्या बदल रहा है !! और उसकी खिलंदड जिंदगी में कभी आएगा कोई गंभीर पल !!
क्रमशः………
Very very🤔🤔👍👍👍🤔🤔🤔