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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 56

सोन महल के होटल वाला हिस्सा जहाँ के एक रूम में जॉन टहलता हुआ किसी का इंतजार कर रहा था कि तभी दरवाजे की दस्तक से वह झट से डोर खोलता है तो सामने अनिकेत को पाते उसे अन्दर आने का रास्ता देता दरवाजा बंद कर देता है| अनिकेत ने कुछ हद तक अपना चेहरा कवर करने के लिए इस समय गोल्फ कैप पहन रखी थी| जिसे वह अन्दर आते उतारकर टेबल पर रखता हुआ जॉन की ओर देखता है|

“मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था – तुम्हारे कहेअनुसार इसी महल में रूम लेकर मैंने कुछ खोजबीन की है – तुम आराम से बैठो तो वो सब मैं तुम्हें बताता हूँ |”

अब जॉन और अनिकेत आमने सामने बैठे थे|

“अनिकेत कुछ तो बहुत बड़ी गड़बड़ है – मैंने अपने एनर्जी मीटर पर काफी हाई फिक्वेंसी की निगेटिव एनर्जी नोट की है|”

“क्या सच में !!”

अब जॉन हाँ में सर हिलाता है|

“हम्म…मुझे जो अंदेशा था वही है – और बताओ तुमने क्या पता किया ?” अनिकेत सोचते हुए पूछता है|

“यही कि पलक की शादी नवल से हो गई थी |” थोड़ा हिचकिचाते हुए जॉन कहता हुआ अनिकेत के हाव भाव पर अपनी नज़र जमा देता है|

वाकई इस बात से उसका चेहरा कुछ उदास हो चला था फिर वह धीरे से कहता है – “ये संभव कैसे है ? मैंने उसे शादी से पहले ही जहर खाते देखा तो इसका क्या मतलब हुआ…!!”

दोनों उस पल खामोश होते एक दूसरे को देखते रहे फिर अनिकेत कुछ सोचते हुए कहता है – “ये तो तय है कि नवल की शादी पलक से नही हुई तो फिर किसके साथ हुई अब तो ये राज़ और भी उलझता जा रहा है |”

अनिकेत अभी अपनी बात कह ही रहा था तब जॉन उसकी नज़रों के सामने अपने मोबाईल की स्क्रीन करता हुआ कहता है –

“ये तस्वीर है शादी की जो रिसेप्शन में लगी थी – इसे देखो नवल और शौर्य के साथ पलक और झलक के सिवा और कौन हो सकता है ?”

अनिकेत अपनी नज़रों के सामने की तस्वीर देख रहा था जिसमे दो राजसी जोड़े दिखाई दे रहे थे उन्हें वह गौर से देखता रहा हालाँकि दोनों दुलहन का चेहरा लम्बे घूँघट में छुपा था|

“दोनों दुलहन का चेहरा तो दिख ही नहीं रहा |”

“हाँ राजस्थान में ऐसा ही घूँघट होता है पर पलक झलक के सिवा और कौन होगी ? अनिकेत ये पहेली तो मुझे और भी उलझती दिखाई दे रही है – एक तरफ पलक जिन्दा नही है ये तुमने देखा तो दूसरी तरफ उसकी शादी नवल के साथ हो जाती है और इस वक़्त वह महल में भी है तो है कौन वो ?”

“वो जो भी है पलक नही है – मैं उस बारे में पूरी तरह से निश्चित हूँ और रही बात वो कौन है तो इसका पता भी जल्दी ही लगा लूँगा |” अनिकेत गहरे भाव में कहता है जिससे जॉन उलझता हुआ पूछ बैठता है –

“तो कैसे पता लगाओगे ?”

जॉन की बात पर कुछ पल की ख़ामोशी के बाद अनिकेत कहना शुरू करता है – “यही तो सोचना है क्योंकि मुझे सब महल में पहचानते होंगे और फिर तुम भी महल के अन्दर जा नही सकते फिर आखिर कौन हमारी मदद करेगा महल के राज़ जानने के लिए ?” अनिकेत उलझन में अपना माथा मसलते हुए भुनभुनाता है|

कुछ पल की ख़ामोशी के बाद अचानक अनिकेत के चेहरे पर कोई चमक दौड़ जाती है जिससे वह जल्दी से कहता है – “जॉन इस महल में कई जगह सीसीटीवी कैमरा लगे है अगर किसी तरह से उसका पासवर्ड पा लिया जाए तो महल में क्या हो रहा है हम जान जाएँगे |”

“ये कैसे पोसिबल है और कोई हमे पासवर्ड क्यों देगा ?”

“कोई देगा नही हम खुद लेंगे – हाँ जॉन अब ये तुम ही कर सकते हो – तुम्हें किसी भी तरह से पासवर्ड हैक करना है |”

“क्या !!!!” जॉन एकदम से हकबकाता हुआ कहता है – “मैंने ऐसा पहले कभी नही किया |”

“तो अभी करना होगा दोस्त – बस यही एक चारा है जिससे हम इस गुत्थी को सुलझा पाएँगे |”

अब अनिकेत के इसरार के बाद जॉन के पास कोई चारा नही बचता और वह धीरे से हाँ में सर हिला देता है|

रानी सा अपने कक्ष में पलक और झलक का इंतजार कर रही थी पर आई सिर्फ झलक जिससे वे उसे कुछ तीक्ष्ण नजर से ऊपर से नीचे देखती हुई शारदा की ओर नज़र कर लेती है जिससे वे उनका मौन समझती जल्दी से झलक के पास आती उसका हाथ पकडे एक किनारे लाती उसकी ओढ़नी ठीक करती हुई जबरन मुस्कराती हुई धीरे से कहती है – “बिन्दनी को ऐसा देखकर भला कौन कहेगा कि ये नई नवेली है – |” वह उसकी ओढ़नी से उसका सर ढकती हुई देखती है कि न उसने सिंदूर ही लगाया है और चुडे ही पूरे पहने है| शारदा अपनी तिरछी नज़र से रानी सा को देखती उनका गुस्सा समझ रही थी जिससे वे जल्दी से उसका हाथ पकड़े बाहर ले जाती हुई कहती है – “माना हमारी बिन्दनी इतनो फूटरी है कि साज सिंगार की जरुरत ही नही पर राणी सा अपनी बिन्दनी को वैसा ही देखना चाहे है जैसी ब्याह के वक़्त देखा था – चलो म्हारे संग |” कहती हुई शारदा झलक का हाथ पकडे उसे अपने साथ बाहर ले जाती है|

अब उन्हें पलक का इंतजार था जिससे वे दरबान को बुलाने ही वाली थी कि वह दौड़ा दौड़ा वहां आता झुककर अभिनन्दन करता हुआ कहता है – “राणी सा – बीकण की राजकुमारी पधारी है – वे अभी आप से मिलना चाहे है |”

‘वैजयंती !! वे अचानक यहाँ कैसे ?’ मन में सोचते हुए उनके होठों पर दवाब आ जाता है|

दरबान अभी भी हाथ जोड़े उनके हुकुम का इंतजार कर रहा था|

“भेज दे उन्हें |”

वे सोच में पड़ी टहलने लगी पर ज्यों आने की आहट पाई वे अपने स्थान पर जाकर बैठ गई|

अगले ही पल उनके सामने सिल्क साड़ी छरहरी काया में वैजयंती खड़ी उनका अभिवादन कर रही थी जिससे वे उसका उचित प्रतिउत्तर देती मुस्कराती हुई उसे अपने साथ बैठने का निमंत्रण देती है|

“आपके वापस आने की खबर पाते हम खुद को आने से रोक ही नही पाए – कैसे  है राजा बाबोसा ?”

“वे अब बेहतर महसूस कर रहे है इसलिए बहुत जरुरी काम से हम यहाँ चले आए – वैसे आप कब वापस आई – क्या आपकी पढाई पूरी हो गई ?”

“जी डिगरी मिलते हम वापस आ गए -|”

दोनों एकदूसरे के सामने बैठी औपचारिक बात करती एकदूसरे का हाल ले रही थी| कुछ पल बाद वहां शारदा झलक को लिए वापस आती है| अब झलक जैसे बदल सी गई थी, पूरे साज सिंगार के साथ वह राजस्थानी आवरण में आती हैरान उस सुन्दर चेहरे को देखती है|

“आओ बिन्दनी – इनसे मिलो ये है बीकण की राजकुमारी वैजयंती – आओ बैठो |” वे झलक को अपने दूसरे तरफ बैठने का इशारा करती है|

झलक आँखों से उसका अभिनन्दन करना चाहती थी पर वैजयंती ने एक बार भी ठीक से उसकी तरफ नही देखा तो झलक भी उसकी ओर से अनमनी होती रानी सा के बगल में बैठ जाती है|

उसके बैठते ही वैजयंती तुरंत खड़ी होती हुई कहती है – “राणी माँ सा अब हम आपसे आज्ञा चाहेंगे – राजा बाबोसा के आने पर फिर हम उनका हाल लेने खुद आएँगे – |”

वे भी उसे नही रोकती तो वैजयंती भी औपचारिक विदा लेती तुरंत ही वहां से बाहर निकल जाती है|

“झलक अब आप इस राजमहल की शोभा है तो शोभनियता संवरती हुई ही भली लगती है – आप समझ रही है न हमारी बात |”

झलक औचक उनका बदला हुआ भाव देखती बस अनमने ढंग से हाँ में सर हिला देती है|

“आपकी बहन कहाँ है ? वो क्यों नही आई ?”

“नही पता |”

झलक की बात सुन वे पहले तो उसका चेहरा आश्चर्य से देखती रही फिर कुछ संभलती मुस्कराती हुई कहती है – “ठीक है आप जाए – हम खुद उनसे मिल लेंगे |”

अब झलक के लिए वहां और रुकने का कोई औचित्य नही बचा तो वह भी बाहर निकल गई| राणी सा झलक के जाते शारदा को कहने लगी – “आप कुछ दिन दोनों बिन्दनी का ख़ास ख्याल रखे क्योंकि दुबारा हम ऐसी गलती न होते देखे – उनके लिए राजमहल का तौर तरीका सीखना बेहद जरुरी है |”

“जो हुकुम राणी सा |”

“ठीक है अब….|” वे अपनी बात पूरी भी नही कर पाई और उनकी दृष्टि सामने से आती अनामिका और रूद्र पर गई|

वे उन्हें खुशखबरी देने आए थे पर पल को खुशखबरी सुनते रानी साहिबा का चेहरा कुछ अवाक् रह गया फिर जल्दी से खुद को सामान्य बनाती वे अनामिका को बड़े प्यार से अपने पास बुलाकर बैठाती है|

जो कुछ माँ सा ने उससे कहा उससे झलक का मन और उदास हो उठा| उसी उदासी में वह चली जा रही थी कि तभी उसे लगा उसने शौर्य के साथ किसी को देखा जिससे वह अपनी आंख नही हटा पाई| वह नीचे के खुले गलियारे से शौर्य के साथ वैजयंती को कही जाता हुआ देख रही थी जिससे वह उनका पीछा करने से खुद को नहीं रोक पाई| उसे इस तरह उनका साथ साथ जाना बड़ा अजीब लगा था|

झलक जल्दी से सीढियाँ उतरती उसी गलियारे को पार करती देखती है कि वह हिस्सा कुछ ज्यादा ही सजा हुआ लग रहा था और जो कही जा रहा था| झलक भी बिना विचारे बस उस ओर चल दी| अगले ही पल उसकी आँखों के सामने महल का बार क्षेत्र था जहाँ बार चेअर पर शौर्य और वैजयंती बैठे कसकर मुस्करा रहे थे| उसकी आँखों के सामने वे एकदूसरे की बाँहों को लपेटे अपने अपने गिलास से एकदूसरे को जाम पिलाते खिलखिला उठे थे| उस पल झलक के लिए ये दृश्य असहनीय हो गया| उसे लगा जैसे कोई उस पर हँस रहा है| वह तुरंत ही उस बार की ओर चल देती है|

“शौर्य जी…!!”

उन दोनों को बातों में मशगूल देख उन्हें टोकती है|

वे दोनों यूँ अवाक् झलक की ओर देखते है जैसे उसका वहां होना उनके लिए सबसे बड़ा आश्चर्य हो| वे अब सीधे होकर बैठ गए थे|

झलक अब उन दोनों को तीखी नज़रो से देख रही थी तो शौर्य मौन बना रहा| जिससे वैजयंती जबरन हंसती हुई कहती है – “ओह आए आप – इस सेलिब्रेशन में आप भी शरीक हो सकती है |”

वैजयंती झलक को खाली बार चेअर की ओर इशारा करती हुई कहती है जिससे झलक भी अपने हाव भाव में कृत्रिम मुस्कान लाती हुई उस बार चेअर की ओर बढ़ जाती है| शौर्य अभी भी उन दोनों को आश्चर्य से देख रहा था पर कहा कुछ नही|

“हाँ मुझे लगा ही कि मैं बिलकुल सही वक़्त में आई हूँ |” कहती हुई झलक भी उसे साथ वाली बार चेअर पर बैठ गई|

“हमे तो पता नही आपका वक़्त सही है या गलत पर आज हमारे ऑनर को आप सेलिब्रेट जरुर कर सकती है|” कहती हुई वैजयंती के होंठो के किनारे कुछ विस्तार हो उठे|

“वैसे मुझे अपने पति के साथ रहते किसी दूसरी के साथ सेलिब्रेशन करने का कोई शौक नही |” झलक बेबाक होती होंठो को कसती हुई बोली|

पर झलक की बात से शौर्य के चेहरे पर तेज शिकन उभर आई जिससे वह कुछ बोलने ही वाला था पर उसके हाथ पर हाथ रखती वैजयंती जैसे शौर्य को रोक देती है फिर उसी नरमी से झलक से कह उठी – “सोच ले ये कहने से पहले – कही वह दूसरी आप तो नही !” कहती हुई वैजयंती अब तुरंत खड़ी हो जाती है|

पर झलक अजीब भाव से कभी मुस्कराती वैजयंती को तो कभी तने भाव लिए शौर्य को देखती रही| उसे उस पल लगा जैसे किसी बड़ी इमारत से उसे झटके से किसी ने नीचे धकेल दिया हो| उसका मन पल भर को रुआंसा हो उठा लेकिन इसके विपरीत दोनों बिना उसकी ओर देखे बाहर को निकल गए| अबकी वैजन्ती जाते हुए शौर्य का हाथ पकडे थी तो शौर्य ने भी इसका तनिक भी विरोध नही किया|

उस पल जो कुछ भी झलक में मन पर गुजरा उसे वह कोई शब्द ही नहीं दे पाई बस वह खुद को बंधा हुआ महसूस करने लगी थी जैसे कोई जबरन का बंधन उसके इर्दगिर्द बांध दिया गया हो| कही ये रिश्ता तो नही !! जिसके लिए वह बेकार ही कोई कोशिश कर रही है !!

यूँही सबसे मिलते कभी रचित से खबर लेते रानी साहिबा के दिमाग से पलक की बात पूरी तरह से निकल गई|

फिर शाम होते होते वे पलक का ध्यान याद आते अब उसके कक्ष तक जाने को बढ़ गई थी|

क्रमशः………

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