
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 57
झलक के आंसू जैसे सैलाब बन चुके थे, ठगी सी वह शौर्य को देखती रही पर उसमे तो जैसे कोई बात का लेशमात्र फर्क ही नही पड़ा| लेकिन उसके कानो में बार बार वैजयंती के कहे शब्द गर्म शीशे से उतरते रहे….’कही वह दूसरी आप तो नहीं..!!’ उस पल झलक की आँखों में ऐसा समंदर उमड़ आया जिसे इस वक़्त न देखने वाला था कोई और न कोई समझने वाला| आखिर इस बात पर किसके आगे वह अपना मन हल्का करती| पलक की तो खैर उसे सुध ही नही थी, महल में फैले मायाजाल से किसी को पलक का ख्याल ही नही आता| झलक मन ही मन सुबकती आंख बंद किए लेटी रही पर दर्द से जलती आँखों में नींद का कतरा भी नही समाया !! शौर्य भी अपनी गहरी नींद में जा चुका था, उसी वक़्त करवट लेती झलक उसे देखती है| वह बेखबर चैन से सोया था ये देख झलक के दिमाग में कुछ आता है जिससे वह चुपचाप उठकर शौर्य की ओर झुककर गौर से उसे सोते देख तस्सली होते साइड टेबल से उसका मोबाईल उठा लेती है| मोबाईल लॉक था पर वह निश्चित थी कि फेस लॉक या फिंगर लॉक कुछ तो होगा ये सोचती उसके चेहरे के आगे घुमाते जब मोबाईल नही खुला तो धीरे से उसकी उंगली से वह लॉक खोल लेती है| फिर वह मोबाईल की फोटो गैलरी छानने लगी| वह वैजयंती और शौर्य की पहचान को समझना चाहती थी पर ज्यों ज्यों वह तस्वीरे देखती रही उसे वह पहचान से कुछ ज्यादा ही लगा|
शारदा के साथ चलती चलती पलक के कक्ष की ओर तक जाती रानी साहिबा की आँखों ने जो देखा उससे अब उनका होश ही फ़ाक्ता हो गए, वे जल्दी से शारदा को पुकारती कह रही थी – “ये दरवाजो से रक्षासूत्र किसने अलग किया ?”
वह भी जैसे अभी इस बात पर ध्यान दे पाई जिससे हैरान होती उन दरवाजो को देखने लगी |
वे मन ही मन बुदबुदा उठी – ‘ये सही नही है – अब सब कुछ वही हो रहा है जो राजा साहब ने कहा – |’
“राणी साहिबा !”
शारदा घबरा कर उन्हें पुकारती है इससे उनकी तन्द्रा भंग होते वह तेजी से उसकी ओर मुड़ती हुई कहती है –
“शारदा आप मंदिर से रक्षासूत्र लेकर फिर से सभी दरवाजो में बांध दे तब तक हम पलक को देखकर आते है|”
शारदा उनकी बात सुनते तुरंत ही पलटकर चल दी|
रानी साहिबा पलक के कक्ष के बाहर कबसे खड़ी जैसे तय ही नही कर पा रही थी कि उन्हें अन्दर जाना चाहिए या नहीं| उसी पल दरवाजा खुलते वे उसमे समा जाती है|
झलक पिछले दिनों महीनो और सालों की तस्वीर देखती रह गई| वैजयंती संग शौर्य की तस्वीर उनके गहरे ताल्लुक को अच्छे से दर्शा रही थी| हर एक तस्वीर उसके अन्तरंग पलों को बयाँ करती हुई थी| कही तस्वीर तो कही उनकी हँसी से गुंजायमान वीडियो सब एक एक करके देखते झलक अब गुस्से में होंठ चबाने लगी कि तभी उसके हाथों के बीच से फोन खींच लिया जाता है|
गुस्से से अंगारा होता शौर्य अब अपना मोबाईल उससे छीनता हुआ चीख उठा था – “ये क्या बतमीजी है !”
“ओह ये बतमीजी है तो वो क्या था जो मेरे संग हुआ – !!”
दोनों एकदूसरे को जलजली आँखों से घूर रहे थे|
“मैं सब चुपचाप तमाशा देखती आ रही हूँ पर अब मैं चुप नहीं रहूंगी और मुझे अब इस बात का जवाब चाहिए कि अगर तुम्हारा अफेअर उस सो कॉल राजकुमारी से था तो क्यों की तुमने मुझसे शादी – बताओ क्यों की…!!”
जहाँ झलक का चेहरा अंगारा हो उठा था वही शौर्य अब अपने हाव भाव को सामान्य बनाते हुए उल्टा उससे पूछता है – “ये सवाल पहले खुद से पूछो – क्यों की हमसे शादी तुमने ?” शौर्य तीखी नज़रो से उसे घूर रहा था वही अब उसके सवाल से झलक के चेहरे का रंग उड़ गया|
“एक राजघराने में आने के लिए या प्रेम था हमसे तुम्हे !! बताओ क्यों की शादी – अब जवाब नही मिल रहा होगा – क्यों !!”
“जिस भी वज़ह से हुई हो शादी पर निभा रही थी न मैं फिर ये धोखा किस लिए मेरे साथ किया ?” वह बिलख उठी थी|
“इस शादी से जो आप चाहती थी वो सब आपको मिला तो और क्या चाहिए था – हम तो दैहिक सुख भी दे रहे थे पर क्या करे आपने इंकार कर दिया |”
कहते हुए शौर्य के चेहरे पर अजीब भाव उमड़ आए जिसे देखते झलक जैसे अपने स्थान पर से बिदक उठी|
“छी…तुम्हारे जैसा इन्सान बस यही सोच सकता है जिसके लिए ये रिश्ता गिव एंड टेक हो – पर मिस्टर शौर्य अच्छे से जान लो ये मेरे साथ नही चलेगा – मैं तुम्हारे कमरे का कोई सजावटी सामान नही जिसे तुम जब चाहे यूज करो और जब चाहे छोड़ दो – मैं – मैं इसके लिए तुम्हे कभी माफ़ नही करुँगी |” झलक दांत पीसती हुई चींखी|
“वाह – क्या बात कही है – |” शौर्य मजाक उड़ाने के अंदाज में ताली पीटता हुआ बोल रहा था – “जिस रिश्ते के बारे में बात कर रही हो वो शुरुआत से ही गिव एंड टेक पर ही बेस्ड था – नही तो क्या तुम्हें कोई मुझसे प्यार था – नहीं – प्यार किस चिड़ियाँ का नाम है तुम्हे पता ही कहाँ है पर हम तुम्हारे सामने खुलकर कहते है कि हमे वैजयंती से प्यार है, था और रहेगा और उनके लिए हम कुछ भी कर सकते है जो हमने किया भी है|”
झलक भरी आँखों से शौर्य को देखती रही जो अपनी भड़ास निकालकर अब वहां से उठकर बैठक की ओर बढ़ गया था| झलक गुस्से में शौर्य को जाता हुआ घूरती बिफरती हुई अब अपने शरीर से एक एक करके सब जेवर उतारकर फेकने लगी| ये सारे जेवर किसी कांटे से उसे अपनी देह में चुभते हुए मालूम पड़ रहे थे| वह बिलखती हुई अब सामने की ओर देखती है जहाँ उस झीने परदे के पार उसे अब शौर्य नही बल्कि अपने जीवन के कुछ हिस्से चलचित्र से चलते दिखाई दे रहे थे| उस पल लगा आँखों के बीच कोई सूखी नदी है जिसके दोनों पाटों पर वही अकेली खड़ी है| आखिर क्या था इस रिश्ते का सच !! क्या वही वो अभी अभी शौर्य ने कहा !! आखिर ये वही थी जो प्यार को किसी केमिकल चेंज ही मानती थी…फिर किसी रिश्ते की आखिर क्या बुनियाद होती है…अब न रिश्ते में प्यार की कोई गुंजाईश है और न विश्वास की तो क्या करेगी वह यहाँ रहकर और क्या बताएगी अपने माता पिता को !! आखिर ये सम्बन्ध उसी की रजामंदी पर तो तय हुआ था फिर किसे दोष दे और किसपर आरोप मढे !! उस पल वह खुद को इतना नीचा समझने लगी कि लगा अब कल सुबह आंख खोलकर वह किसी से नज़र भी नहीं मिला पाएगी !!मन में दर्द की अनंत सुरंगे जैसे मुंह खोले दर्द उड़ेलने लगी, जब दर्द सहना असहनीय हो गया तो झलक उठकर बाहर जाने लगी| उसने न एकबार भी शौर्य की ओर देखा और न शौर्य ने ही उसकी कोई खबर रखी|
रानी साहिबा उस कमरे में बुत सी खड़ी थी और उनकी आँखों के सामने कोई साया लहरा रहा था| वे न इस दृश्य पर आंख ही झपका रही थी और न कोई प्रतिक्रिया ही कर रही थी बस किसी बुत की तरह सामने की ओर देखती खड़ी थी|
वह साया अब उनके चारोंओर घूमता उनकी आँखों के सामने किसी काली गहरी परछाई सा लहरा रहा था| उसी पल जैसे कोई चुटकी बजाता है तो वे एकदम से अपनी तन्द्रा से बाहर आती चौंक जाती है| उनकी आँखों के सामने वह साया अभी भी हवा में लहरा रहा था पर अब उसे देखते रानी साहिबा का चेहरा डर से सफ़ेद पड़ गया था|
“क कौन – कौन हो तुम ??”
अगले ही पल लगा वह साया धीरे से हँसा|
रानी साहिबा डरकर अब अपने कदम पीछे लेती हुई फिर पूछती है – “क्या तुम पलक हो ?”
“पहचान राणी मई तेरा अतीत हूँ |” उसी पल हवा में कोई गहरी मोटी आवाज कौंधी|
रानी साहिबा की तो आवाज ही गुम हो गई थी क्योंकि उस वातावरण में वह घुटी हुई मोटी आवाज अभी भी गूंज रही थी|
“मई तेरा वो अतीत हूँ जिसे तू भूल जाना चाहती थी पर भूलेगी कैसे ?” अभी उसकी डरावनी हँसी वहां गूंज उठी जिससे रानी का कंठ ही सूख गया|
वह साया अभी भी हवा में किसी मानवीय आकार सा रानी की आँखों के सामने घूमता बोल रहा था|
“शुभांगी पहचान मुझे…!” अबकी उस साए का आखिरी शब्द हवा में यूँ गूंजा मानों खाली कुँए से आवाज लौटकर वापस आई हो|
रानी भी उस आवाज पर अपना ध्यान क्रेंदित करती सोचती हुई धीरे से बुदबुदाती है – “राजेश्वरी जिजो !!” उस पल ये नाम लेते राजमाता की आँखों के सामने अपनी बड़ी बहन और राजा साहब की पहली पत्नी का चेहरा घूम जाता है जिसपर वे सहज विश्वास भी नही कर पा रही थी|
अबकी प्रतिक्रिया पर वह अट्टहास बंद होता किसी गुर्राहट में बदल जाता है|
“तुम हमारी राजेश्वरी जिजो कैसे हो सकती हो वो तो कई साल पहले मर चुकी है !”
“अतीत का कोई नाम या चेहरा नही होता वो डर होता है और मई तुम्हारा वही डर हूँ जिसे सालों से तू बिसराई बैठी है – |” वह साया अब भी हवा में डोलता बोल रहा था जिसकी गहरी भारी आवाज वातावरण में गूंज रही थी – “तेरा लालच अब तुझसे कीमत मांग रहा है – चल दे उसकी कीमत – दे न या मई खुद ले लूँ – |” एक बार फिर उसकी आवाज वातावरण में भयावह अट्टहास सी गूंज रही थी जिसका साफ़ साफ़ डर रानी के चेहरे पर दिखाई पड़ रहा था जिससे वह लगातार अपने कदम पीछे की ओर करती रही और अगला क्षण ऐसा आया कि वह दरवाजे के बहुत पास थी| रानी झट से पलटकर दरवाजा खोलकर बाहर निकल जाती है| इस एक पल के व्यवहार से शायद उस साए को रानी ने और नाराज़ कर दिया और वह तुरंत ही उसके पीछे हवा में उड़ने लगी| रानी डर और घबराहट में दो कदम चलते ही जमी पर गिर पड़ी और खुले दरवाजे की देहरी पर वह साया हवा में टंगा उन्हें अपनी अग्निय नेत्रों से देख रहा था जबकि रानी जमी पर पड़ी अपनी कांपती हालत में उसे देख रही थी|
“तू अच्छे से जानती थी कि इस घराने में पहली रानी सवा साल में ही किसी न किसी हादसे का शिकार होती मर जाती है – बहुत चालाक समझती थी न खुद को इसलिए तू सब चाहती थी वो भी बिना घाटे के – इसलिए तूने अपनी ही बड़ी बहन का रिश्ता चुपचाप इस घराने में होने दिया – तुझे सब चाहिए था अपने पीहर का पूर्ण अधिकार और यहाँ का पूर्ण अधिकार भी – आखिर वो दिन आया जब पहली रानी के मरते तुझे सब कुछ आसानी से मिल गया लेकिन तेरा लालच कभी खत्म हुआ अब तुझे वो चमत्कारी पत्थर भी चाहिए था जिसे बरसो से इस घराने ने छिपाकर रखा था – आ – आकर ले न – वो पत्थर तुझे मिलेगा पर बदले में अब क्या होम करेगी तू – बता – किसकी लाश पर पहले रोएगी तू – बता..!” अपने आखिरी शब्द के साथ वह हवा में तेज अट्टहास करती है जिससे एक पल उस साए का ध्यान रानी से हट जाता है और दो प्रतिक्रिया एक साथ होती है एक कि शारदा जल्दी से दरवाजा बंद करती उस साए को पीछे धकेलती है तो दूसरे हाथ से मंदिर से लाई मटके की मिट्टी उस दरवाजे के बाहर बिखेर देती है| उस पल के इस डरावने अहसास से रानी साहिबा जैसे उबर ही नही पाई थी वे अभी भी जमी में पड़ी पड़ी उस दरवाजे की ओर देख रही थी| शारदा उन्हें उठाती हुई कह रही थी – “ये क्या हुआ राणी सा – मंदिर में आग लगने से सारे रक्षासूत्र जल गए पर आपकी रखाई कुल देवी की माटी लाई थी पर क्या पता था वो इस तरह काम आएगी !”
“अपने हिस्से का सलीब खुद ही ढोना पड़ता है – शारदा चलो हमारे साथ |” अब होश में लाती खुदको रानी साहिबा उठती हुई कहती है|
शारदा उनके साथ अवाक् चलती रही| रानी साहिबा मन ही मन बुदबुदाती अपने कक्ष की ओर बढ़ रही थी – ‘ये नवल आपने क्या कर दिया – अब हम उन्हें यहाँ नहीं आने देंगे लेकिन पहले उसका पता लगाना है जिसने नवल से ये कराया क्योंकि वे खुद से ऐसा नही करने वाले – लगता है अब हमे राजा साहब को सब सच बताना पड़ेगा नही तो कही हम अपने परिवार को खो न दे |’
झलक अनमनी सी कक्ष से बाहर निकलती गलियारे से जाती महल के ऊपरी हिस्से की ओर जा रही थी| जब वह गलियारे से गुजरी तो उसी वक़्त रचित भी हमेशा की तरह कैमरा चेक करता वही खड़ा था लेकिन झलक ने एक बार भी उसकी तरफ नही देखा| रचित को कुछ अजीब लगा| उसने अपनी ओर से कुछ आहट भी की फिर भी झलक उसकी ओर बिना देखे ऊपरी हिस्से की ओर के लिए सीढियों की ओर बढ़ गई थी| रचित को लगा फिर रात में वह उसके साथ कोई प्रैंक करने वाली है ये सोच रचित पहले से ही उसकी राह के सारे कैमरा खंगालता उसकी गतिविधि देखने लगा| वह मोबाईल में देखता है कि झलक ऊपरी मजिल में जा चुकी थी जहाँ कैमरा भी नहीं था| वहां क्यों गई इतनी रात !! पता नही कुछ अनहोनी का आभास उसे होने लगा जिससे रचित तेजी से उसके पीछे दौड़ा| अगले ही पल ऊपर आता वह चारोंओर देखने लगा तभी उसे किसी के सुबकने की आवाज सुनाई पड़ती है| रचित हैरान महल के अँधेरे हिस्से की ओर देख रहा था जहाँ से वह आवाज आई थी|
ये सुनने के बाद भी उसके हाव भाव सख्त बने रहे जैसे उसे यकीन था कि झलक का फिर से ये कोई नया झूठ होगा| मुंह सिकोड़ता वह वापस हो लेता है उसे लग रहा था अभी फिर से वह फोन करके उसे बुलाएगी| ये सोचते मन ही मन भुनभुनाते वह सीढियाँ उतरने लगा कि तभी उसके कानो ने कुछ ऐसा सुना कि उसके कदम तेजी से ऊपर की ओर भागे जहाँ झलक खड़ी थी| अगला दृश्य जो उसकी आँखों ने देखा उस पर सहज ही उसे विश्वास नही आया| झलक अब निचली मंजिल के खुले बरामदे पर अचेत पड़ी थी| ये देखते रचित भागता हुआ नीचे गया| उसे समझ नही आ रहा था कि झलक वहां से गिर कैसे गई? अगर वह बरामदा नही होता जो अँधेरे में छुपा था तो वहां से वह नीचे सीधी तीस फुट नीचे गिरती| तब क्या होता ?? सोचते उसके रौंगटे खड़े हो गए| बिना समय गंवाए वह झलक के पास पहुँचता है| उसके सर से निरंतर खून बह रहा था ये देख जब रचित को कुछ समझ नही आता तो वह अपनी शर्ट उतारकर कसकर उसके माथे के चारों ओर बांध कर उसे अपनी बाँहों में उठाए तेजी से वहां से भागता है|
क्रमशः…………………..
Very very👍👍🤔🤔🤔🤔👍👍😊