
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 6
वैभव और नीतू के लिए उस पल ये समझ से परे था कि स्वयं रानी सा ने उनकी दोनों बेटियों का हाथ उनसे माँगा था| दो पल तो वे सन्न रह गए फिर एक मुस्कान चुपके से उनके होंठों पर थिरक गई|
घर आते आते नीतू तो अपने मन की ख़ुशी बहुत देर दबाए न रह सकी वह अपनी खनकती आवाज में कह उठी – “मुझे तो अनामिका की शादी से ही लग रहा था कि रानी साहिबा कुछ ख़ास ही तवज्जो हमे दे रही है और देखो आज सामने आ ही गया सब|”
माँ घूमती नजर से पलक और झलक को देखती है जो कार की पिछली सीट पर बैठी थी| माँ झलक के चेहरे की शर्मीली मुस्कान देख मन ही मन मुस्करा उठी वही पापा व्यू मिरर से पलक के चेहरे पर अलग ही विश्रान्ति के भाव देखते है|
“अब बोलो क्या जवाब देना है उनको – मुझसे तो ख़ुशी संभाले नही संभल रही – हमारी राजकुमारी सी बेटियाँ सच की राजकुमारी बन जाएगी |” नीतू के चेहरे पर सच में ख़ुशी का सैलाब समा गया था|
“हाँ बस बात ही कही है – अब घर पहुंचकर सोचते है फिर इनकी अपनी जिंदगी है इसलिए अंतिम फैसला भी इन्ही का होगा|” वे फिर अपनी सरसरी निगाह सड़क पर से पलक की ओर दौड़ाते है| पलक अभी भी मूक खिड़की से बाहर देख रही थी मानों किसी भी बात का उसपर कोई असर ही नही हो रहा था|
“सोचना क्या – मुझे तो इससे बड़ी कोई बात ही नही लगती – खुद इतना बड़ा रिश्ता चलकर हमारे पास आया है|”
“हाँ तभी तो सोचने वाली बात है – वो राज घराना है और हम साधारण लोग |” वैभव धीरे से कहते है|
अपने माता पिता की बात सुनते हुए झलक के चेहरे पर के भाव बदलते रहे|
“अरे तो कौन सा हम उनके द्वार गए थे – वही तो रिश्ता लेकर आए है और ऐसा कभी सुना है कि राज घराने के लोग खुद हम जैसे साधारण लोग से रिश्ता मांगे !”
“सही कहा इसीलिए तो सोचने का समय चाहिए |”
“लो अभी तो कह रहे थे कि बेटियां सोचेंगी अब आपको सोचने का समय चाहिए |” नीतू लगातार वैभव की विरोधी बातोंसे से चिढ़ रही थी|
“ओहो ये हमारी बेटियों की पूरी जिन्दगी का सवाल है – यूँही कैसे हाँ कर दे |”
“क्यों राह चलते लोग है क्या !!”
अब मोड़ आते कार तेजी से घर की ओर मुड़ गई जिससे सभी एक ओर को झुक गए वैसे वैभव बहुत ही सेफ ड्राइविंग करते थे पर इस जल्दबाजी की ड्राइविंग उनके मन की उथल पुथल साफ़ बता रही थी|
“अच्छा तो ये जान लीजिए ये इन्ही की मर्जी है – क्या बेटियों का चेहरा नही पढ़ सकते – क्यों झलक ?” अबकी माँ थोड़ा मुड़कर झलक की ओर देखती है जो कुछ ज्यादा ही शरमा गई थी| वैभव भी आँखों के कोरों से उसके चेहरे की मुस्कान देखते है|
कार अब ब्रेक लगते रुक गई जिससे झलक झट से पहले उतरकर मुख्य गेट खोलकर कार को अन्दर आने का रास्ता देती है| कार को पर्किंग की जगह खड़ा करके वे सभी एक एक करके कार से उतर आते है|
पलक भी तेज क़दमों से उनकी पहुँच से दूर चली गई तो झलक फुदकती हुई चली गई| माता पिता उनके देह के भाषा को अपनी अपनी समझ से देखते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ गए|
“देखा नही झलक खुश है |” नीतू कमरे में आती साड़ी से पिन हटाती हुई अपनी दृष्टि पति की ओर किए रहती है|
“और पलक !!” वैभव धीरे से पूछते है|
“पता नही किस सोच में है शायद हमसे दूर होने की कसक हो !” वे पल्ले से पिन खोलती खोलती वही ठहर गई मानों पलक अभी भी उनके सामने खामोश खड़ी हो|
“वो झलक से स्वभाव में बिलकुल अलग है – वह खुलकर अपनी बात नही कहती पर उसके मन को हमी को समझना होगा|”
वैभव की बात सुन नीतू पति के पास आकर उनके कंधे पर अपने हाथो का भार देती हुई कहती है – “तभी तो कह रही हूँ कि वो अब हमारी चिंता कर रही होगी कि कैसे हम दोनों अकेले रह जाएँगे पर ये तो समाज का सच है और कब तक हम इससे बचकर रहेंगे – ये बेटियां है इसलिए प्यार से भरी हुई है इन्हें हमारी चिंता है पर हमारे कुछ सामजिक रिवाज है जो किसी के लिए भी नही बदल सकते और फिर ये रिश्ता देखा जाए तो पहले उनकी पसंद का ही है – वे दोनों राजकुमारों से हमसे पहले से ही मिल चुकी थी – फिर अब क्या सोचना ?”
पत्नी की बात सुन वैभव एक गहरा श्वांस छोड़ते एक नज़र पत्नी की आँखों में देखते है जो विश्वास से लबरेज नजर आ रही थी|
मन की स्थिति यही होती है एक पल जिस चीज से भागता है दूसरे पल उसी चीज के पास आ खड़ा होता है| पलक भी जैसे खुद से भागती भागती फिर से खुद के साथ हतप्रभ खड़ी थी| खुद के मन के प्रश्न तक नही सुलझा पाई थी और सभी उससे जवाब की उम्मीद कर रहे थे| बार बार उसके मन को लगता कि वह कही आधी छूटती जा रही है पर कहाँ !!! कहाँ उसका मन बंटा जा रहा है !!! परेशानी में उलझी वह बिस्तर के पैताने बैठकर खुले दरवाजे से अब बाहर का देखने लगती है जहाँ से अभी अभी उसकी माँ वापस गई थी| पहली बार उसकी ओर से इतनी आशंकित हुई थी और ये सब तभी शुरू हुआ जब से वे अनामिका की पार्टी से वापस आए थे| वे सभी कुछ उम्मीद से उसकी ओर देख रहे थे| झलक जिस बात पर खुश थी वही बात पलक को परेशान कर गई थी| वह कुछ पल अपने एकांत में रहना चाहती थी शायद इसमें घुमड़ते वह खुद से सामना कर सके| वह अभी मानसिक रूप से शादी के लिए बिलकुल तैयार नही थी इसके लिए अपनी पढाई का बहाना भी माँ के सामने रख दिया पर माँ तो जैसे उसके हर सवाल का तोड़ लाई थी|
“तो उन्होंने कौनसा तुमसे पढाई छोड़ने को कहा है – हम पहले ही ये बात कर लेंगे |”
“आप झलक की कर दीजिए – मैं अभी नही करना चाहती शादी|” किसी तरह से पलक ने अपने मन का उद्गार प्रकट किया|
“क्या कह रही हो – तुम बड़ी हो और तुम्हें छोड़कर छोटी की कर दे पहले ये कैसे हो सकता है – यही बात राजकुमार नवल की भी है – रानी साहिबा ने बातों बातों में कहा भी था इसीलिए वे दोनों शादियाँ एकसाथ कर देना चाहती है – बात क्या है – क्या कुछ और बात है ?”
अबकी माँ रूककर उसका चेहरा गौर से देखती रही पर जब बहुत देर पलक इसके आगे कुछ नही बोली तो वे उसे सोचकर शाम तक बताने का कहकर चली गई|
पलक अपने एकांत में गुमडती खुद से ही बातें करने लगी, खुद से ही सवाल करती खुद को ही निरुत्तर करती रही..क्या चाहती है वह खुद से !! क्यों नही खुलकर कहती !! कौन सी उलझन है उसके मन में !! कही वह अनिकेत के बारे में तो नही सोच रही !! अचानक वह यूँ चौंकी जैसे खुद की चोरी उसने पकड ली हो !
पर उसी पल उसका मन खुद से पूछ बैठा कि अगर ऐसा है तो भी वह क्या कर सकती है क्योंकि उसे तो पता ही नही कि अनिकेत के मन में क्या है !! कही ये एकतरफा पसंद न बनकर रह जाए क्योंकि अनिकेत का तो अभी कुछ अता पता भी नही है फिर आखिर किसका वह इंतज़ार करे !! उसकी वजह से झलक की शादी नही हो पाएगी और उनकी शादी का सपना पूरा न होने से माँ दुखी हो जाएगी फिर !!! खुद में ही उलझी पलक की आँखों के कोरे नम हो उठे, वह कुछ पल रूककर बिताया समय याद करने लगी कि किस तरह अनिकेत ने हर पल उसकी मदद की तो क्या सिर्फ दोस्त के नाते या उसके मन के किसी कोने में उसके लिए कुछ था अगर होता तो क्या कभी कहते नही और न ही उसकी जिन्दगी से इस तरह अचानक लापता हो जाते !! शायद ये सिर्फ उसके मन का भ्रम भर है| उसकी ना से कितने दिल दुखी हो जाएगे और उसकी एक हाँ से सिर्फ उसका ही दिल दुखेगा तो क्या किसी को तो उसका प्यार मिलना चाहिए चाहे वो मैं ना हूँ !! एक गहरा उच्छवास खींचती सारे नम भाव वह अपने मन में दबा लेती है|
क्रमशः………………..
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