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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 60

शारदा अवाक् रानी साहिबा को देख रही थी उसने आज से पहले कभी उन्हें इतना टूटा हुआ नही देखा था| वह सदैव उनकी हुकुम देती गर्वीली स्वर की आदि थी पर आज का उनका स्वर वेदना युक्त मलिन लग रहा था| आखिर क्या दुःख या पश्चतावा रहा रानी साहिबा को !! शारदा मौन उनकी ओर देखती रही जो नजरे नीची किए करुण स्वर में कह रही थी –

“शारदा आप तो बचपन से हमे देखती आ रही है तो आप बेहतर हमे समझ सकती है कि हमने कुछ गलत नही किया – अगर कोई ओर भी हमारी जगह होता तो निश्चित रूप से वो भी वही करता जो हमसे हुआ |” वे आद्र स्वर में कहती रही और शारदा मूक खड़ी उन्हें सुनती रही|

“हम जुड़वाँ बहनें थी पर न हमारी शक्ल मिलती और न किस्मत – राजेश्वरी जिजो हमसे बस चार मिनट बड़ी थी और उनकी किस्मत भी हमसे चार कदम ही आगे रहती – सारा अधिकार उन्हें हमसे ज्यादा ही मिला – हम जिस दर्द के साथ बड़े हुए वे कोई नही समझ सका – जिन अधिकार को वे छोड़ देती वे हमे मिलते – यहाँ तक कि राजा साहब भी !” उनकी आवाज में अब नमी के साथ क्रोध भी उभर आया था|

“जब आप शादी करके भुवन के साथ चार साल के लिए चली गई थी तब हम मिले थे राजा साहब से – सबसे पहले और उन्हें पसंद भी करते थे लेकिन हर बार जो होता आया इस बार भी वही हुआ और राजेश्वरी जिजो का ब्याह उनसे करा दिया गया पर इस बार कुछ अलग बात भी थी – हमने ये सब ख़ुशी ख़ुशी होने दिया – पता है न क्यों – क्योंकि पहली राणी के श्राप की बात हमने उन्हे पता नही चलने दी तो क्या हम गलत थे – बोलो शारदा – क्या गलत किया हमने – ख़ामोशी से सब सहते आए थे तो एक बार और खामोश रह गए तो क्या गलत किया हमने – वो श्राप तो कोई नही झुठला सकता था इसलिए राजा साहब की कितनी ही कोशिशो के बाद भी रूद्र के जन्म के साथ वे सदा के लिए हमारी जिंदगी से चली गई |”

बेहद आक्रोश के साथ वे अपनी बात खत्म करती सिसक पड़ी थी जिससे शारदा उनके पास आती उनके हाथो पर अपना आश्वासन भरा हाथ रखती हुई कहती है –

“सब जाणू हूँ राणी सा – आप के मन का मलाल जिसने कभी आपको चैन से रहने न दिया तो क्या आपको लागे है वह आत्मा बड़ी राणी सा की है ?”

शारदा की बात सुनते रानी साहिबा अचानक सर उठाकर उसकी ओर देखती है जैसे कुछ भुला हुआ एकाएक उन्हें याद आ गया हो| वे जल्दी से शारदा का हाथ थामे थामे कहने लगी – “हम तो अपने दुःख में उस बात को भूल ही गए थे – वो जो भी है पर वो पलक पर क्यों है ? हमारी जिजो सा है तो वो साया कहाँ है जिसके बारे में राजा साहब बता रहे थे – शारदा हमारा दिल ऐसा घबरा रहा है मानो बहुत बड़ी आफत आने वाली हो – आप ऐसा करिए राज पुरोहित को बुलवाईऐ – वही कुछ करेंगे -|”

“जी राणी सा |”

शारदा हामी में सर हिलाती है पर उनका हाथ थामे बैठी रहती है जिससे राणी साहिबा उसका हाथ छोड़ती उसे उठने को कहती बोल उठी –

“आप अभी तुरंत जाए और तब तक हम क्या करे ?”

शारदा उनकी बात सुन तुरंत उठकर बाहर निकल गई तो रानी साहिबा खड़ी होती टहलती हुई मन ही मन बुदबुदा उठी –

‘जिस गुनाह को हमने नहीं किया उसका भी पश्चतावा रहा हमे कि हमने अपनी जिजो को ब्याह के लिए क्यों नही रोका – रोक लेती तो वे आज जिन्दा होती – इस एक गुनाह से उबरने के लिए हर बार हम ही है जो इस घर की नई बिन्दनी को विवाह से पूर्व फोन करके विवाह न करने का चेताते और रोकने का प्रयास करके इस गुनाह से निकलने की कोशिश करते – पर लगता है ये गुनाह अब हमे हमारे अंत तक यूँही सालता रहेगा |’ कहती हुई रानी बिफर पड़ी थी| (आपको अनुगामी का अंतिम भाग याद होगा जब अनामिका का विवाह हो रहा था तब शारदा आकर रानी साहिबा को बताती है कि कोई फोन आता है जो ये विवाह न करने को कहता है तब रानी साहिबा अनामिका का मोबाईल रखा लेती है और यही पलक झलक के विवाह से पूर्व भी हुआ तो अब आप समझ गए होंगे कि ये फोन खुद रानी साहिबा करती थी अपने को इस गुनाह से निकालने के लिए : पार्ट बहुत पिछला था इसलिए याद करा दिया वैसे किसी को याद थी ये बात ??)

रचित बहुत भी उदास भाव से बैठा डेस्कटॉप पर यंत्रवत काम कर रहा था फिर कुछ याद आते वह तुरंत उठकर अपने कमरे से बाहर आता साथ वाले कमरे की ओर बढ़ जाता है जो दिग्विजय जी का कमरा था| रचित उन्हें पूर्णतया आराम करने  को कहकर गया था और दवाई का समय होते उन्हें दवाई देने आया था पर उसके निर्देश के विपरीत वे आराम कुर्सी पर बैठे कोई फ़ाइल अलट पलट रहे थे| ये देख रचित तुरंत उनके पास आता फ़ाइल उनके हाथो के बीच से लेता नाराज हो उठा –

“ये क्या काका सा – आप बिस्तर से क्यों उठे और ऊपर से ये आप क्या कर रहे है – अभी सिर्फ आपको आराम करना चाहिए – चलिए उठिए |” रचित जबरन उन्हें उठने को कहता बिस्तर में आराम करने को सहारा देता है|

“रचित अब मैं बेहतर महसूस कर रहा हूँ – अगर ऐसे ही मुझे कुछ नही करने दोगे तो पक्का आराम करने से मैं बीमार पड़ जाऊंगा |” कहते हुए वे हौले से हँस पड़े थे|

रचित अब उनकी ओर दवाई बढ़ाकर पानी का गिलास उन्हें थमा देता है, वे भी चुपचाप आज्ञाकारी बच्चे की तरह दवा लेकर बिस्तर पर टेक लगाकर बैठ गए थे| रचित उन्हें आराम करता देख जाने लगा तो वे उसे पुकारते हुए कहने लगे –

“रचित कुछ देर मेरे पास बैठो |”

रचित उनकी बात पर चुपचाप उनके सिरहाने आकर बैठ जाता है|

वे अब उसका हाथ थामे उसके चेहरे की ओर ध्यान से देखते हुए कहने लगे – “हॉस्पिटल में शारदा जी मिलने आई थी – वे चाहती है कि नंदनी और तुम्हारा विवाह अब हो जाना चाहिए और यही मेरी भी इच्छा है |”

वे अपनी बात कहकर कुछ पल के मौन में रचित के चेहरे के भाव पढने का प्रयास करने लगे पर उसके भाव सपाट ही बने रहे|

“ये जीवन अकेला नही कटता – जीवन में सही समय पर सही साथी का साथ मिल जाए तो ये सफ़र सफल हो जाता है – विवाह भी ऐसा ही बंधन है जिसे समयानुकूल करने से आगे का जीवन भी सुलभ हो जाता है फिर जीवन के हर उतार चढ़ाव में हर कदम पर वो साथी ही तुम्हारे साथ होगा इसलिए रचित अब इसे और न टालते हुए मैं जल्द से जल्द तुम्हारी शादी होते देखना चाहता हूँ |” वे अभी भी उसके हाथ पर हाथ रखे उसके हाव भाव पर नज़र गढ़ाए थे|

वे रचित का जवाब सुनने के लिए कुछ पल का मौन छोड़ देते है तो रचित धीरे से  कहता है –

“अब ये मुमकिन नही |”

रचित की बात सुन दिग्विजय जी चौंकते हुए उसके हाथ से अपना हाथ हटा लेते है|

“काका सा आजतक मैंने आपकी किसी भी बात से कोई इनकार नही किया क्योंकि आपके कहे हर वाक्य को मैंने आज्ञा ही माना पर ये किसी के जीवन के साथ गलत होगा |”

“गलत !! कैसा गलत -?” वे हतप्रभ देखते रहे|

“मुझे माफ़ करिए काका सा इस बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं कह सकता लेकिन अगर आपके मन में मेरे लिए जरा भी विश्वास है तो उस विश्वास के खातिर आप मुझसे इस बारे में और कुछ मत पूछिए – बस इस विवाह की बात यही रोक दीजिए इसी में सभी की भलाई होगी |”

रचित की बात पर दिग्विजय जी हैरान उसे देखते रहे पर कह कुछ न सके क्योंकि वाकई उन्हें रचित पर आंख मूंदकर भरोसा था|

रचित जो कह नही पाया क्या उसे सब जान सकेंगे जानने के लिए बस करे थोड़ा इंतजार –

–क्रमशः…………..

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