Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 63

नंदनी अपनी चीख रोके नवल को देखती रही जो अपने कक्ष का दरवाजा खोलकर उसके अन्दर प्रवेश कर गया था| चाहकर भी वह उसे रोकने की हिमाकत न कर सकी| अब नवल अन्दर पहुंचकर दरवाजा बंद कर लेता है| ये देखती नंदनी को जब कुछ समझ नही आता तो वह दौड़कर अपने बापू के पास पहुँचती है| वह कमरे के कोने में बैठा हुक्का गुडक रहा था|

“हफ हफ – बापू – हफ हफ |”

हाफ्ती हुई नंदनी को अचानक सामने देख भुवन हुक्का छोड़कर उसे देखता पूछ उठा – “काई हुआ लाडो ?”

“बापू वो – वो |” नंदनी बाहर की ओर इशारा करती जो बाहर घटा सब बता देती है| ये सुनते भुवन अपनी जगह से उछल ही पड़ता है|

“तो थारे को किया लागे है वो साया उस कक्ष में होगा ?”

“पता नही बापू पर कुछ ठीक नही हो रहा – वो जो आया था न वो भी कुंवर सा से कुछ कहने वाला था पर उन्होंने सुनी ही नही – मन्ने तो लागे है वो सब जानता है |”

“तो किया लागे है – वो हमारी मदद कर सके है ?”

ये प्रश्न दोनों की आँखों में तैर गया| कुछ पल तक वे तय नही कर पाए कि आगे करना क्या है फिर भुवन कुछ सोचते हुए कहता है – “लाडो हमारे पास अब कोणी रास्ता नही है – ऐसा करते है उस आदमी तक पहुंचकर ही कुछ पता चलेगा |”

“पण हम उस तक पहुंचेंगे कैसे बापू ?”

“वो सब म्हारे पर छोड़ दो – मिह जो कहता हूँ वो करती जा बस |” कहता हुआ भुवन नंदनी को आगे की योजना समझाता है|

रूद्र वापस महल की ओर निकल गया था जबकि दिल्ली पहुँचने की शौर्य की ओर से सारी तैयारी हो चुकी थी| चार्टेड प्लेन तैयार था| अनामिका तय स्थान पर पहुँच गई थी| वह कार से उतरते चारोंओर निगाह दौड़ा रही थी तो शौर्य उसके पास आता हुआ कहता है – “चलिए भाभी सा |”

“बन्ना सा रूद्र जी कहाँ है – हमे लगा वे आपके साथ होंगे |” उसकी नज़र अभी भी रूद्र को चारोंओर ढूंढ रही थी|

“अभी आप हमारे साथ चलिए – भाई सा बाद में आते है|” शौर्य अनामिका को चलने का इशारा करते आगे बढ़ने लगा|

“बाद में – रुकिए बन्ना सा |” अनामिका शौर्य को टोकती हुई बोल उठी – “इसका क्या मतलब हुआ – वे तो हमारे साथ ही जा रहे थे न – फिर कहाँ है अब वे – हम उनके बिना कही नही जाएँगे |”

“भाभी सा अब बेकार की जिद्द कर रही है – भाई सा ने खुद आपको हमारे साथ जाने के लिए कहा है |”

“फिर भी नही – वो यहाँ है और अभी झलक की भी हालत नही सुधरी – इस स्थिति में हम उन सबको अकेला छोड़कर कही नही जा सकते |” अनामिका की बात पर शौर्य अनमना सा उसकी ओर देखता है जिससे वह उस पर और नाराज़ होती हुई आगे कहती है – “वैसी भी हमे तो आश्चर्य होता है कि आप झलक को इस हालत में छोड़कर कैसे जा सकते है – वो आपकी पत्नी है और इस समय जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है|”

“लेकिन उनकी ये हालत हमारी वजह से नही हुई है – भाभी सा अभी आप ये सब छोड़िये – हम सिर्फ माँ सा और भाई सा के हुकुम का ही पालन कर रहे है इसलिए आप बस चलिए हमारे साथ |”

अनामिका एक नज़र शौर्य के अनमने से हाव भाव पर डालती है जहाँ सच में झलक में प्रति कोई नर्म कोना उसे नहीं दिखता| उस पल ये देख उसका मन और खिन्न हो उठा|

तभी मौसम बदलने लगा, हवा कुछ तेज हो उठी| कुछ कुछ रेतीले कण हवा संग घुलते उनके शरीर पर चिपकने लगे ये देख शौर्य ऊपर आसमान की ओर फिर कुछ दूर खड़े चौपर की ओर देखता है जो उड़ान भरने को बस तैयार ही था| उसका पंखा उस वीराने में तेज आवाज के साथ घूम रहा था|

“भाभी सा जल्दी करिए – यहाँ का मौसम कभी भी बदल सकता है फिर जाना मुश्किल हो जाएगा |”

इस पर अनामिका न में सर हिलाती कह उठी – “नही हम कही नहीं जा रहे – जिसके साथ जीने मरने की कसमे खाई है उसे अकेला छोड़कर तो हम जन्नत में भी न जाए पर आश्चर्य होता है कि आप झलक के प्रति इतने रूखे क्यों है – उसे कैसे अकेला छोड़कर आप जा पा रहे है लेकिन अब हम तय कर चुके है कि न रूद्र जी को और न अपनी सखी को दोनों को अकेला छोड़कर हम कतई कही नही जा रहे – हम वापस उनके पास जा रहे है और आप हमे नही रोकेंगे |” पूर्ण दृढ़ता से कहती अनामिका तुरंत पीछे पलटकर कार की ओर बढ़ जाती है और उसमे बैठते उसे महल जाने का हुकुम देती है|

शौर्य भरे आक्रोश से अनामिका को देखता रहा जब कार वाकई उसकी नजरो से ओझल हो गई तो वह चोपर की ओर बढ़ गया|

नवल अपने कक्ष में आते दरवाजा बंद करता अब कमरे में एक सरसरी नज़र दौड़ाता है वहां अजीब सा माहौल में बोसीदा पन था, पूरा कमरा किसी अंधकार में गिरफ्त नजर आया| नवल समझ ही पा रहा था कि सारे स्विच ऑन होने पर भी वहां कोई रौशनी आखिर क्यों नही हैं|

बैठक कमरे को पार करता वह शयनकक्ष की ओर बढ़ता आवाज लगाता है – “पलक – पलक आप अँधेरे में क्यों बैठी है|” अब उसकी नज़रो के सामने झीने परदे के पार बेड पर कोई पीठ किए बैठी थी, जिसके बाल हवा में लहरा रहे थे| नवल कुछ पल ठिठका खड़ा देखता रहा| आखिर वहां कोई खिड़की न होने पर भी हवा की सरसराहट कहाँ से महसूस हो रही थी| वह फिर उसे आवाज लगाता है – “पलक – देखिए आपको हमारा इंतजार था और हम आ गए आपके पास – आप चुप क्यों है – क्या नाराज़ है हमसे ?” नवल अब हलके से हँसता उसके पास आ जाता है| वह अभी भी नवल की ओर पीठ किए थे जिससे नवल उसके कंधे को छूते उसे अपनी ओर मोड़ता है| उस एक पल अचानक वह जो देखता है उससे वह दो कदम पीछे होता हुआ चीख पड़ता है|

वह चेहरा अब ठीक उसकी नज़रो के सामने था, पलक के चेहरे पर आंखे एकदम काजल से भरी हुई होंठ एकदम सुर्ख लाल और चेहरे पर क्रोध के गहरे हाव भाव जिसे देख नवल चार कदम पीछे हो जाता है|

“प – पलक !!” वह हैरान नजरे उसके चेहरे पर गड़ा देता है|

वह अब ठीक उसके सामने खड़ी थी| उसके खड़े होते नवल की नज़रे कुछ ऊँची उठ जाती है क्योंकि वह साया नवल के सामने हवा में कुछ ऊँचा उठा हुआ था|

“तुम पलक नही हो – तुम कौन हो ?” नवल पीछे हटता हुआ चीख उठा|

“महामाया |” कोई घुटी हुई आवाज उस कमरे में कौंध जाती है और ये सुनते नवल का चेहरा डर से सफ़ेद पड़ जाता है|

हॉस्पिटल में मौजूद रचित झलक की हालत पर लगातार अपनी नज़रे जमाए था| डॉक्टर बराबर से उसे चेक कर रहे थे| तब से उपकरणों से खेलते देख रचित उबता हुआ पूछ उठा – “आप कर क्या रहे है ? ये होश में आकर फिर क्यों बेहोश हो गई?” रचित अब डॉक्टर के पास खड़ा होता अपनी नज़रे झलक के शांत चेहरे  पर जमा देता है| वह उन आँखों को लगातार देख रहा था जो अभी कुछ देर पहले कुछ खुलकर फिर बंद हो गई थी|

“ये तो तय है कि ये कोमा में नहीं गई – सब नार्मल है – कभी कभी ऐसा होता है कि एक बार होश में आने के बाद फिर कुछ समय बाद दुबारा मरीज अपनी आंख खोलता है – हो सकता है कुछ घंटो बाद इन्हें फिर होश आ जाए – |”

ये सुन रचित राहत की गहरी सांस छोड़ता हुआ फिर पूछता है – “कोई  इन्टरनल इंजरी तो नही न डॉक्टर !!”

“अभी तक की रिपोर्ट में तो नही है – पर होश में आने के बाद पता चलेगा कि इनकी यादाश्त गई या है – डोंट वरी हम बराबर इन्हें ओबर्जर्वेशन में रखे है – आप रानी साहिबा को खबर कर सकते है |” कहता हुआ डॉक्टर दुबारा मशीन पर की रिपोर्ट लेने लगता है|

रचित एक नज़र झलक के शांत भाव हीन चेहरे पर डालते हुए अब बाहर निकलकर रानी साहिबा को फोन लगाने लगता है|

नंदनी के कहेअनुसार अनिकेत को नीचे के तहखाने में रखा गया था पर वहां जरुर नवल के अपने लोग मौजूद होने ये जानते हुए भुवन मन ही मन कुछ योजना बनाता वहां चल दिया था| नंदनी डरती हुई एक बार अपने बापू का हाथ पकड़कर रोकती हुई बोली – “बापू म्हारे को डर लग रहा है – मेह किसा सामना करेंगे उन आदमी का ?”

नंदनी की डरी आवाज पर भुवन उसकी ओर मुड़ता हलके से अपनी मुछों को ताव देता मुस्कराते हुए कहता है – “डरना कैसा लाडो – थारे बापू ने कभी जैसल को अपनी करामाती उँगलियों में घुमाया था और अब भी इन उँगलियों का जस कम न हुआ है – |”

“फिर भी उनके पास कोई हथियार हुए तो !!”

भुवन अब भी मुस्कराता कह रहा था – “गुड़ देता मरे बिन झैर क्यूं देणूं गुड़ देता मरे बिन झैर क्यूं देणूं मतबल कि अगर कार्य मीठी बातों से ही हो जाए तो कड़वी बातें और झगड़ा नहीं करना चाहिए – समझी न लाडो |”

कहता वह आगे बढ़ गया अब नंदनी क्या करती चुपचाप उसके पीछे छिपती हुई चलने लगी जबकि भुवन अपनी रौ में गुनगुनाते हुए चला जा रहा था|

“ए भुवन – कट्ठे ?” दो हट्ठे कट्ठे आदमी हाथ में लट्ठ लिए बैठे बतिया रहे थे पर भुवन को एकाएक वहां देख चौंकते हुए पूछते है – “थे काई कररिया हो ?”

उनको देख भुवन अपने सर पर बंधे साफे पर हाथ फिराता है और दो तीन बड़े नीबू उसके हाथ में आ जाते है ये देख वे अपनी नज़रे उसी पर जमा देते है| भुवन भी बिना कुछ बोले भांड सा लचकता उन नीबू को अपने दोनों हाथो से हवा में गोल गोल घुमाने लगता है, एक एक नीबू उसके हाथ में होता तो तीसरा हवा में फिर उसी बीच फिर भुवन अपने साफे में से एक नीबू और निकाल कर उसे भी हवा में नचाने लगता है ये देख दोनों आदमी ठहाका मार के हँस पड़ते है| भुवन अब और कलाबाजी दिखाता अपने साफे में से एक और नीबू निकालता बड़ी सफाई से उस चक्कर में घुमाने लगता है| ऐसी कलाबाजी देखने में वे आदमी कुछ ज्यादा ही मग्न हो जाते है और इसी बीच मौका देख नंदनी झट से उनके बगल से कब निकल जाती है वे देख ही नही पाते| नंदनी एक बार डरकर पलटकर पीछे देखती है वे आदमी अभी भी उसके बापू की कलाबाजी में मग्न थे अब उसका बापू मुंह से कुछ आवाज भी निकालता उसने रोचकता भर रहा था| यही मौका था नंदनी के पास वह उस गलियारे से होती पीछे के अँधेरे तहखाने की ओर बढ़ रही थी| उसके हाथ में रौशनी के लिए अपने बापू का दिया मोबाईल था जिसे जलाकर आगे बढ़ती वह देखती है कि अनिकेत जमीं पर अभी भी बेहोश पड़ा था| ये देख नंदनी झट से उसके पास आती उसे हिलाकर उठाने का प्रयास करने लगी| फिर अपने दुप्पटे के आंचल से हवा करती उसे उठाने का प्रयास करने लगी| बेहद गर्मी से कुछ राहत की हवा पाते अनिकेत होश में आ जाता है| आंख खुलते एकाएक एक अनजान चेहरे को देख वह सकपका गया| वह कुछ बोलने ही वाला था उससे पहले नंदनी अपने होठ पर उंगली रखकर उसे न बोलने का इशारा करती है| अनिकेत अब उस मध्यम रौशनी में उसके चेहरे को गौर से देखने लगा, वह पहचान गया कि वह शारदा की बेटी ही लग रही थी पर वह उसके पास किस मकसद से आई| अनिकेत संदेह से उसे देख रहा था पर नंदनी अब उसके आगे हाथ जोड़े उसे चुपचाप अपने पीछे आने का इशारा करती है| उस पल अनिकेत इस व्यवहार को समझ नही पाता पर उस वक़्त इसके अलावा उसके पास कोई चारा भी नही था इसलिए वह भी चुपचाप उसके पीछे पीछे चल देता है| भुवन अब ठुमके लगाते उन नीबू को हवा में और ऊँचा घुमा रहा था जिसमे उन आदमियों की सारी की सारी रोचकता समा गई थी| उनका ध्यान भी नही गया कि कब उनके पास से नंदनी अनिकेत को लिए वहां से बाहर निकल गई|

आगे किसी उपयुक्त स्थान पर पहुँचते अनिकेत नंदनी को टोकता हुआ पूछता है – “तुम क्यों मेरी मदद कर रही हो ?”

आवाज सुन नंदनी पीछे पलटकर उसकी ओर देखती हुई कहती है – “क्योंकि मुझे लगता है कि आप मेरी मदद कर सकते है |”

इस पर अनिकेत अजीब निगाह से उसे देखता रहा जिससे नंदनी आगे कहती है – “मैंने आपको कुंवर सा से कहते सुना था तो जरुर आप जानते होंगे कि वह पलक नही है लेकिन कुंवर सा ने आपकी बात नही सुनी पर मुझे आपकी बात पर पूरा यकीन है |”

“और क्यों ?”

अनिकेत के क्यों पर हिचकिचाती हुई वह धीरे से कहती है – “मैंने भी महसूस किया कि वह कोई और ही है पर कौन मैं नही जानती –|”

“नही जानती फिर भी यकीन है !” वह नंदनी के चेहरे पर अपनी नज़रे गड़ा देता है|

“आपने ही तो कहा था कि आप कुंवर सा की मदद करना चाहते है और अगर नही की तो वे बहुत कुछ खो सकते है तो मैं आपके सामने हाथ जोडू हूँ आप म्हारी मदद कीजिए –|”

अनिकेत आश्चर्य से उसके हाव भाव देखता रहा| नंदनी अभी भी उसके आगे हाथ जोड़े कह रही थी – “मुझे न पता आपकी कुंवर सा से क्या दुश्मनी है पर फिर भी आप उनकी मदद करना चाहते थे तो अब भी कर दीजिए न – उनकी ओर से मैं आपके आगे हाथ जोड़ू हूँ आपके पैर पडू हूँ |” कहती हुई नंदनी उसके पैरो की ओर झुकने लगी तो अनिकेत बुरी तरह पीछे की ओर उछल गया|

“ये क्या करती हो ?”

“आपसे गुजारिश करूँ हूँ – आप जो सजा कुंवर सा को देना चाहते हो वो म्हारे को दे दो पर उनकी ओर से मन साफ़ करके उनकी जान बचा लो – मैं उनकी जान की आपसे भीख मांगू हूँ |”

“ऐसे पैर पड़कर मुझे पाप का भागी न बनाओ – मैं किसी के प्रति मन में कोई द्वेष भाव नही रखता – मुझे बस तुम उसी जगह फिर से पहुंचा दो जहाँ पलक है |”

“ठीक है – चलिए आप |”

अब अनिकेत फिर से नंदनी के पीछे पीछे चलने लगा|

……………क्रमशः……………..

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