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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 64

रानी साहिबा हाथ में मोबाईल थामे कांपती सामने देखती रह जाती है, उस पल उनका ऐसा हाव भाव देख शारदा भी घबरा कर उनकी ओर देखती रही|

“नवल वहां नही है तो कहाँ गए ?”

“काई हुआ राणी साहिबा ?” शारदा आखिर पूछ बैठी|

“हमने नवल को मना किया था कि हमारी आज्ञा के बिना कही न जाए फिर भी वे नही माने – क्या वह वापस आ गए महल !! शारदा ये क्या हो रहा है – कोई हमारी बात सुन क्यों नही रहा ? कम से कम शारदा आप हमारी बात सुनिए और देखकर हमे बताईए क्या पूजा शुरू हो गई ?”

“जो हुकुम राणी सा |” कहती हुई शारदा तुरंत बाहर को निकल गई| तभी उनकी नजरो के सामने रूद्र आ जाता है जिसे देखते रहा सहा उनका मन भी घबराहट से भर उठता है|

“रूद्र – आप यही है – गए क्यों नही !! अनामिका और शौर्य कहाँ है ?”

रूद्र उनकी ओर बढ़ता हुआ कह रहा था – “उन्हें हमने भेज दिया है |”

“और आप – आप क्यों नही गए – हमने तो आपके लिए भी कहा था ?” कहते हुए रानी साहिबा की त्योरियां चढ़ गई|

“माँ सा कुछ था जिसे हम आपको बताना चाहते थे |”

“क्या !!”

अब वे हैरान नजरो से रूद्र को देखने लगी जो अपने होंठ को सिकोड़ता बात कहने का प्रयास करने लगता है|

“माँ सा आप तो अच्छे से जानती है कि अनामिका और हमारी शादी को सवा साल होने जा रहा है और जैसा कि उस श्राप का सच है उसका कुछ कुछ असर हमे दिखने लगा है – अनामिका के डरावने सपने जिन्हें हमने हँस कर टाल तो दिया पर उसका डर हम अपने मन से नही निकाल पाए|”

“इसीलिए तो हम चाहते थे कि वे यहाँ से सुरक्षित निकल जाए फिर आप क्यों वापस आ गए ?”

“क्योंकि एक सच और था जिसे हम अब बहुत देर आपसे छिपा कर नही रख सकते|” रूद्र सोच सोचकर अपनी बात कहता है|

लेकिन इसके विपरीत वे व्यग्र होती हुई पूछ उठी – “कैसा सच ?”

“नवल और हम नहीं चाहते थे कि हम अपने जीवन साथी को खोए इसलिए हमने आपकी जानकारी के बिना एक हवन कराया और उस बंद दरवाजे को खोलने का प्रयास किया जिसने वह चमत्कारी पत्थर है जिसमें मृत्य को जीवन देने की शक्ति विधमान है |”

“क्या….!!!!” ये सुनते रानी साहिबा का मुंह हैरानगी से खुला का खुला रह गया जबकि रूद्र अपनी बात कहता रहा|

“पर उस दरवाजे को खोलने के बाद नवल को वह पत्थर नही मिला जिससे हमारी रही सही उम्मीद भी चली गई |”

“रूद्र ये सब आपने क्यों किया |” वे बेबसी में चिल्ला पड़ी|

“क्योंकि हम किसी भी कीमत में इस श्राप से मुक्ति चाहते थे|”

“आपको पता भी है इसकी क्या कीमत देने पड़ेगी आपको – उस दरवाजे के पीछे एक साया कैद था जो अब आजाद हो चुका है ?”

माँ सा की बात पर अब रूद्र हैरानगी से देखने लगा|

“हमे ये समझ नही आता कि उस दरवाजे का राज़ जब राजा साहब ने सिर्फ हमे बताया और उसकी एकमात्र चाभी भी हमारे पास है तो आपसे वह दरवाजा खुला कैसे ?”

“राजगुरु जी की मदद से |”

इस एक बात से रानी साहिबा अपनी जगह जैसे जम सी गई| उस पल उनके लिए ये सब अविश्वसनीय लगा|

“क्या इन सबमे राजगुरु ने आपकी मदद की – आखिर क्यों ?” वे सोचती हुई अब खामोश हो गई|

तब रूद्र आगे बढ़कर माँ सा के पास झुकता हुआ उनका हाथ थामता हुआ कहता रहा – “उस वक़्त हमे जो ठीक लगा हमने किया पर उसका क्या आगे परिणाम होगा हमे ये कतई नही पता था – हम तो हर हाल में बस अनामिका को बचाना चाहते है – |”

“एक मिनट – अगर ये बात सही है तो जब हमने आज राजगुरु को बुला कर पूजा की बात कही तो वे इतने अनजान क्यों बने रहे और इस दरवाजे का भेद उन्हें कैसे मालूम पड़ा – कही ये कोई बहुत बड़ी साजिश तो नही !!”

अब दोनों एकदूसरे को हैरानगी से देखते रहे और तभी रूद्र का मोबाईल बज उठा| शायद कोई सन्देश आया था| रूद्र मोबाईल पॉकेट से आजाद कर अपनी नज़रो के सामने रखकर पढ़ते बुरी तरह उछल पड़े|

“ये क्या – अनामिका वापस आ गई – उफ़ वो ये कैसे कर सकती है ?”

“क्या हुआ रूद्र ?” माँ सा तुरंत रूद्र का कन्धा पकड़कर हिलाते पूछ उठी |

“माँ सा शौर्य के साथ अनामिका नही गई –|”

उस पल वे अपने मुंह पर हाथ रखे अवाक् रूद्र को देखती रह गई|

“पूजा शुरू हो चुकी है राणी सा |” अचानक कमरे में प्रवेश करती शारदा की आवाज से दोनों की तन्द्रा भंग होती है और वे दोनों एकसाथ दरवाजे की ओर देखते है|

अनामिका महल की ओर वापस आ रही थी तभी उसे मोबाईल से जो सूचना मिलती है उससे वह ड्राईवर को महल के बजाये हॉस्पिटल चलने का हुकुम देती है| अब उसकी कार हॉस्पिटल की ओर चल दी थी|

नवल के सामने जो दृश्य था उससे उसके पूरे होश उड़ चुके थे| उस पल उसे लगा जैसे वह कोई डरवाने सपने से गुजर रहा हो पर वह सपना नही हकीकत था जिसका उसे अगले ही पल अहसास हो गया| वह नवल को बिना छुए पीछे की ओर तेजी से धकेल देती है| नवल भी किसी कागज की तरह उससे दूर घिसटता हुआ एकदम से दीवार से जा लड़ता है इससे उसके एक ओर के कंधे पर बड़े जोर का झटका लगा फिर भी वह सहारा लेता खड़ा होता हुआ उसकी ओर देखता है| वह भी भरे गुस्से में उसे घूर रही थी| नवल अपनी जगह खड़ा खड़ा ही जोर से आवाज लगाकर बोलता है –

“तुम जो भी हो पर तुम पलक के शरीर में क्या कर रही हो – आखिर तुमने उसके शरीर पर कब्ज़ा क्यों किया है ?”

नवल आक्रोश से खड़ा उसे देखता रहा और इसके अगले ही पल उसके चेहरे के हाव भाव बदल गए| वह होंठो के किनारे फैलाती अपना घाघरा समेटती उसकी ओर देखती अब दरवाजे की ओर बढ़ने लगी| ये देख नवल का कुछ और हौसला बना जिससे वह तेजी से दरवाजे और उसके बीच आता हुआ चिल्ला पड़ा –

“तुम जो भी हो – मैं तुम्हें पलक के शरीर के साथ नही जाने दूंगा |”

इस पर वह उसे अनसुना करती आगे बढ़ती रही| वह पूरे लाल लिबास में थी| उसके सर से ढलकी चुन्नी अब हवा में पतंग सी लहरा रही थी जो बार बार उसके शरीर की लचक से लिपट जाती| वह सधे कदमो से दरवाजे की ओर बढ़ती रही पर जब वह नवल से कुछ कदम दूर रह गई तो उसके सामने खड़ी अपनी बड़ी बड़ी आँखों से उसे घूरती हुई कहने लगी –

“तूने मुझे आजाद कराया है इसलिए जा तेरी जान बक्श दी मैंने |” उसके कहते एक बार फिर नवल तेज हवा के झोंके से साथ उसके सामने से हटता बगल की दीवार से जोर से टकरा जाता है| इस बार भी नवल बुरी तरह से चोटिल हो गया था फिर भी वह अपने को घसीटकर उठाता हुआ दुबारा चीखा – “सुन महामाया – तू जो भी है – तू पलक को लेकर कही नही जा सकती |”

“तू जिस शरीर का मोह कर रहा है वो तो तेरा होने से पहले ही खत्म हो गया और मैं जिन्दा शरीरो में वास नही करती |”

“खत्म हो गया – मतलब !!”

“मैं महामाया हूँ – अपनी मायावनी दुनिया रचने के लिए मुझे शरीर की जरुरत होती है और मुझे मिला – ये शरीर – अब मैं इसे नही छोड़ने वाली – वैसे भी कुछ दिन में तुम सब इस शरीर को भूल जाओगे – इसका अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा – तब सिर्फ मैं होंगी |” उसकी घुटी हुई आवाज एकबार फिर कमरे में गूंज उठी – “हट जा मेरे रास्ते से – मुझे कोई कैद नही कर सकता |”

कहती वह फिर दरवाजे की ओर बढ़ने लगी| नवल अभी नीचे गिरा उसकी ओर देख रहा था तभी एकाएक उसकी नज़र उसके हाथ की ओर जाती है जिसकी पकड़ में वह कुछ देखता है और बहुत ध्यान से देखने के बाद उसे अहसास होता है कि वह वही डिब्बा था जिसमे चमत्कारी पत्थर मिलने की उम्मीद थी| ‘आखिर वह इस डिब्बे को लेकर क्यों जा रही है|’ सोचता हुआ नवल अब फिर से तेजी से खुद को खड़ा करता उसकी ओर बढ़ता है| उसका ध्यान अब नवल से हट चुका था क्योंकि उसकी ऑंखें हवा में उडी उडी जैसे कुछ और महसूस कर रही थी| मंत्रो की आवाज को सुनते उसके हाव भाव और तीक्ष्ण होने लगे थे वह दरवाजे की ओर पहुँचने ही वाली थी कि नवल उसके हाथ से वह डिब्बा छीन लेता है| इस एक पल ले अप्रत्याशित व्यवहार से वह बिफर उठी ये उसके बदले हुए हाव भाव बता रहे थे| वह तेजी से नवल की ओर देखती अब अपना शरीर हवा में कुछ और ऊपर इतना उठा लेती है कि ऊँची छत के फानूस तक उसका सर पहुँच गया था| अब उसका पूरा शरीर हवा में लहरा रहा था जो अपने आप में बेहद भयावह दृश्य था जिसे देखते नवल डरकर दीवार से जा चिपका था|

महल के बाहर का मौसम भी अब बदल चुका था,रेतीले समंदर में अब खूब तेज तेज हवा चल रही थी| रहे सहे पेड़ किसी विशालकाय दैत्य की भांति हवा में डोलने लगी थे जिससे आपस में टकराते उनके कटीले पत्ते रात में बेहद डरावनी आवाज पैदा कर रहे थे| पूरे जैसल में रेतीला तूफान धीरे धीरे मंडरा रहा था| ऐसे में आदर्श कार चलाता हुआ ठीक हॉस्पिटल के सामने कार रोकता है जिसमे से वैभव और नीतू तेजी से बाहर निकलते अन्दर की ओर भागते है|

हॉस्पिटल में झलक के पास अभी भी रचित बना हुआ था, वह खुद को वहां से चाहकर भी हटा नही पा रहा था| झलक अब तक दो बार आंख खोल चुकी थी पर इसके अलावा उसकी सभी प्रतिक्रिया शून्य थी इससे ये तो तय हो गया कि वह कोमा में नही गई पर ठीक से होश में क्यों नही आई ये बात रचित को परेशान किए थी| वह उसके सिरहाने बैठा उसके चेहरे पर अपनी नज़रे जमाए था| उस ख़ामोशी में भी अनन्त भावोद्गार बिन शब्द के उगे हुए थे जिसमे झलक के जिस्म में लगी ड्रिप के दर्द के चिन्ह उसकी नसों से दौड़ते मानो रचित की आँखों में उतरते चले आ रहे थे| वह अब उसके ड्रिप वाली बांह को हौले हौले सहलाता उसके दर्द को बाँटने की कोशिश कर रहा था| उस वार्ड में उसके अलावा एक नर्स भी मौजूद थी जो उससे कुछ दूर बैठी अगली ड्रिप की तैयारी कर रही थी| तभी किसी हलके शोर ने उसकी तन्द्रा भंग की जिससे वह तेजी से उठता वार्ड के बाहर निकलकर देखता है|

“वाह अब अपनी बेटी से मिलने के लिए भी रानी साहिबा की हमे इजाजत लेनी होगी – हटो सामने से मैं झलक का बाप हूँ और उससे मिलने के लिए कोई मुझे नही रोक सकता |” वैभव गलियारे के मोड़ पर खड़े दो सेवकों से उलझ रहे थे जो सुरक्षा के तौर पर उस गलियारे से राज परिवार और डॉक्टर के अलावा किसी को गुजरने नही दे रहे थे| रचित ये दृश्य वार्ड की देहरी पर खड़ा देखता अब उन सेवको को हटने का इशारा करता है|

“आने दो |” एक सपाट आवाज के साथ सेवक वैभव के सामने से सर झुकाते हट जाते है जिससे वैभव तुरंत वार्ड की ओर भागते हुए अन्दर प्रवेश करते है| उनके अन्दर आते रचित अब चुपचाप सीने पर हाथ बांधे अन्दर का दृश्य देख रहा था| वे विलाप करते झलक के आस पास मौजूद थे|

माँ की आँखों से बांध तोड़ती नदी सी बह निकली, कभी अपनी फूल सी बेटी को इतनी बुरी हालत में देखेंगे उन्होंने कल्पना भी नही की थी| उसके सर पर भारी पट्टी बंधी थी तो भौं से लेकर होंठ तक कई बैंडेज लगे थे| एक पल को उसका चेहरा देख वे उसे छूने की भी हिम्मत नही कर पाए डर था कि कही छूने भर से उसके जख्म दुःख न जाए| उस पल माँ तो विलाप करती अपना दर्द बयाँ कर रही थी पर पिता के आंसू मानो ह्रदय की अतल गहराइयों में फूट रहे थे जो सिर्फ महसूस किए जा सकते थे देखे नही| एक पिता के लिए अपनी बेटी को इस हाल में देखना कितना दुष्कर था इसे शायद कोई देवता भी अपनी कलम से नही उतार सकता था|

“ये सब क्या हो गया – मेरी बच्ची का ये क्या हाल बना दिया इन राजमहल वालों ने !” नीतू के हर शब्द से अनंत दर्द फूट पड़ा था|

उनकी हालत पर रचित का मन भी कांप उठा पर अपनी सीमा के चलते वह उन्हें दिलासा का दो बोल भी नही बोल पा रहा था पर उसकी हालत देखती नर्स अब उनके पास आती हुई कह रही थी –

“आपकी बेटी अब खतरे से बाहर है -|”

“तो होश में क्यों नही आई ?” नीतू भीगे चेहरे से नर्स की ओर देखती हुई पूछती है|

“आई थी होश में पर अभी फिर से बेहोश है पर आप फ़िक्र न करे वे अब खतरे से बाहर है |”

“हाँ मेरी बच्ची को कुछ नही होगा – झलक – मेरी बच्ची होश में आ – देखो मम्मी और तुम्हारे पापा भी आए है – उठ न – तुझसे तो एक पल भी चुप नही रहा जाता तो आज क्यों ऐसी चुप पड़ी है |” नीतू बिफरती हुई झलक के बालों पर हाथ फेरती बिलखती रही|

तभी झलक की आंख खुलती है और सभी की आंखे बस उसी की ओर दौड़ जाती है|

“झलक…!!” वैभव अब उसका हाथ पकडे हौले हौले सहला रहे थे|

रचित जो बस इसी एक पल के लिए वहां ठहरा था कि झलक को होश में आता देखे| वह अब वहां से जाने ही वाला था कि झलक की आवाज से उसके पैर अपनी जगह ही जम से गए|

“मैं कहाँ हूँ – कौन है आप ?” झलक आंख खोले अपने माता पिता के चेहरे को देखती हलके से बुदबुदाई पर उसकी हलकी सरगोशी वहां मौजूद हर शख्स के दिमाग में तूफान मचा देती है|

रचित भी खुद को उसके पास आने से नही रोक पाता और नर्स को हुकुम देता चिल्ला पड़ता है –

“सिस्टर डॉक्टर को बुलाओ |”

तब तक वैभव और नीतू अपना अपना होश संभाले किसी तरह से झलक से इतना ही बोल पाए – “अपने माँ पापा को कैसे नही पहचानती ?”

जब तक डॉक्टर आते है तब तक आदर्श और अनामिका भी उस रूम में लगभग तेजी से वहां प्रवेश करते है| अनामिका को देखते नीतू तेजी से उसका हाथ थामती  बिफरती हुई बोली –

“अनु तुमने जैसे फोन किया हम चले आए – हमने तो सुकून से तुम्हारे भरोसे छोड़ा था न फिर तुमने अपनी सहेली को कैसे अकेला छोड़ दिया – क्या हो गया मेरी झल्लो को |”वे  आपस में लिपट कर बिखरती रो पड़ी थी| झलक अभी भी सभी को अजनबी की तरह देख रही थी जिससे वहां मौजूद हर शख्स अपनी रुलाई किसी तरह से काबू में कर पाए| अब रूम में डॉक्टर आ चुके थे|

वे तेजी से आते आंख खोले लेटी झलक का चेकअप करते हुए उससे पूछते है – “आप का नाम झलक है – क्या आपको याद नहीं – आप धीरे से याद करने की कोशिश करिए कि आपको चोट कैसे लगी ?”

कहते हुए डॉक्टर झलक की प्रतिक्रिया पर अपनी नज़र गड़ाए था पर झलक अनबुझी सी न में सर हिलाती फिर ऑंखें बंद कर लेती है|

“डॉक्टर साहब क्या हुआ इसे ?” एक साथ कई आवाजो में एक ही प्रश्न था|

“मुझे लगता है सर में अंदरूनी चोट की वजह से ये अपनी यादाश्त खो चुकी है पर प्लीज़ आप होपलेस मत होहिए – हो सकता है कुछ समय तक के लिए ऐसा हो –  आगे के ट्रीटमेंट के बाद उन्हें सब याद आ जाए – थोड़ा सब्र से काम लीजिए |” कहता हुआ डॉक्टर झलक से जुडी मशीने देखने लगा तो नर्स आकर एक कागज उसकी ओर बढ़ा देती है जिसे देखता हुआ डॉक्टर सबकी ओर सरसरी नज़र दौड़ते हुए कहता है –

“ये एक इंजेक्शन है जिसे देना बहुत जरुरी है – मैंने आस पास से पता कर लिया है कही मिल नही रहा ये |”

ये सुनते आदर्श उस कागज को लेने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहता है – “लाइए – मैं लाता हूँ |”

तब से जैसे झलक की हालत देख अपनी तन्द्रा खो चुका रचित इंजेक्शन की बात सुन होश में आता अब बिना हिचके उस कागज को आदर्श के लेने से पहले डॉक्टर के हाथ से लेता हुआ कहता है – “मुझे पता है ये कहाँ मिलेगा – |” कहता रचित तुरंत वहां से बाहर चला जाता है और इस एक पल से सबका ध्यान उसकी ओर जाता है|

वैभव अब दरवाजे की ओर देखते जहाँ से रचित गया था अनामिका से पूछ उठे – “ये कौन है और शौर्य क्यों नही यहाँ ?”

“ये महल के मेनेजर है रचित – इन्होने ही समय पर हमारी झल्लो को हॉस्पिटल पहुंचाकर बचाया –|” इतना कह अनामिका शौर्य की बात छुपा ले गई आखिर कहती भी तो क्या !!

“और पलक कहाँ है अनु ?” एकदम से जैसे नीतू जी के प्रश्न से सभी के दिमाग में पलक को लेकर प्रश्न कौंध गया|

अनामिका भी यूँ चौंकी मानो अनोखा प्रश्न उससे पूछ लिया गया हो, वह दिमाग में जोर देकर पलक को याद करती हुई कहती है जिसका कोई चित्र उसके दिमाग में नही बनता तो वह बस ये कहकर चुप हो जाती है – “शायद बाहर गई होगी – मुझे पता नही है |”

“क्यों नही पता – क्या वह महल में नही है – वह नवल के साथ कही गई है – ?” वैभव के लगातार के प्रश्न पर अनामिका बस होंठ चबाती खुद से जूझती गई पर उससे कोई जवाब देते नही बना|

“अनु – तुम शायद खुद भी बाहर से आ रही हो – हो सकता है पलक महल में हो और तुम्हे नही पता हो – |” आदर्श जल्दी से पूछता है|

“हाँ हो सकता है भईया – वैसे नवल कुंवर सा बाबोसा के पास गए हुए है !”

“ठीक है आप लोग यही झलक के पास रुकिए मैं पलक को देखने जाता हूँ |” कहता हुआ आदर्श वार्ड से बाहर निकलने लगता है|

“रुकिए भईया – मैं भी चलती हूँ आपके साथ |” अनामिका तुरंत आदर्श को टोकती हुई अपनी जगह से उठ जाती है|

अब वे दोनों एकसाथ महल के लिए निकल पड़े थे|

अनिकेत अब तक नंदनी के साथ उस गलियारे तक आ पहुंचा था जहाँ से बस कुछ दूर ही नवल का कक्ष था| चलते चलते अनिकेत नंदनी से पूछता है –

“कही कुछ पूजा हो रही है – ये सुगंध हवन की है – |”

“पूजा !!” नंदनी खुद भी अचरच में पड़ी इधर उधर देखती है तो नवल के कक्ष के आगे के खुले बरामदे के हिस्से पर नजर जाती है जहाँ के अँधेरे में अग्नि की कुछ रौशनी बार बार उभर रही थी| वह चुपचाप उसी ओर इशारा करती है| अब अनिकेत और उस बरामदे के बीच में वह कक्ष था जहाँ इस वक़्त नवल मौजूद था और वह किस मुश्किल था ये किसी को खबर भी नहीं थी| धीरे धीरे अग्नि और प्रचंड हो चली थी| जब तक अनिकेत कुछ समझता वह कक्ष का दरवाजा तेज आवाज के साथ खुल जाता है जैसे अचानक कोई विस्फोट हुआ हो| और उसी के साथ घायल नवल दरवाजे के बाहर घिसटता हुआ बाहर नज़र आता है| ये देखते नंदनी बदहवास दौड़ती हुई नवल के पास पहुँचती उसका घायल शरीर खुद में समेटने लगती है| नवल बुरी तरह चोटिल था पर अभी भी उसके हाथ में वह बाक्स था| नंदनी नवल का सर अपनी गोद में लिए बिलख उठी थी| यही पल था जब दूसरी ओर से भागते हुए रूद्र और उसके पीछे पीछे रानी साहिबा और शारदा भी वही चली आई| दूसरी ओर से भुवन भी वही चला आया था| सबकी निगाह भी जैसे उस दरवाजे के पार अंदर की ओर थी जहाँ से कोई साया पायल की झंकार के साथ बाहर आ रहा था| वह साया हवा में कुछ ऊपर उठा ऊँचा दिखता अब बाहर दरवाजे की देहरी पर खड़ा था| सभी हैरान उसे देखते रहे| लाल लिबास में सर में लहरिया चुन्नी लिए वह शक्ल जरुर पलक की थी पर रूप भयावह था| आँखें खून के लाल डोरों से उभरी हुई तो वही सुर्ख होंठ आपस में भिंचे हुए क्रोध प्रकट करते हुए दिखाई दे रहे थे| उसी पल इतनी तेज हवा चली कि सामान हवा में उड़ता हुआ दिखाई देने लगा जिसकी चोट से बचने सभी इधर उधर हो गए| अब वातावरण में हवा की आवाज के साथ हवन की लकड़ी के चटकने की आवाज साफ़ साफ़ सुनी जा सकती थी| एक ही पल में वहां चीख पुकार मच गई| रूद्र, रानी साहिबा, शारदा, भुवन, नंदनी, नवल और अनिकेत खुद को बचाने अपने अपने स्थान की ओट ले लेते है| पर हवा शांत होने के बजाये जैसे और प्रबल हो उठी| अब वह साया नवल की ओर बढ़ता उसके हाथ से वह बॉक्स लेने बढ़ा जिससे नवल तेजी से हवा के विपरीत भागने का प्रयास करने लगा और इसी वक़्त अनिकेत ने नवल को बचाने के लिए अपने हाथ में पकड़ी रुद्राक्ष की माला उस साए की कलाई के चारो ओर लपेट कर उसे अपनी ओर खींच लिया| माला उसकी कलाई से लगते तेज जलन से वह साया चीत्कार कर उठी| उस पल उसकी चीत्कार इतनी भयावह थी कि महल की हर दरोदीवार जैसे अपनी नींव से हिल गई | महल के अन्दर प्रवेश करते आदर्श और अनामिका भी अपनी अपनी जगह रुकते सहम जाते है| नवल पलट कर देखता है कि अनिकेत ने उसे बचाने के लिए उस मुसीबत का रुख अपनी ओर कर लिया था| अब माला का एक छोर उस साए की कलाई पर था तो दूसरा अनिकेत के हाथ में था| इससे वह साया अपनी भरसक कोशिश से उस माला से खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था| ऐसा करते हवा का रूप और तेज हो उठा जिसे आस पास का सामान हवा में उड़ता हुआ सबकी ओर किसी हथियार की तरह आने लगा| रूद्र अपनी माँ सा को बचाने उन्हें पीछे की ओर खींच लेता है तो भुवन भी तत्परता दिखाते शारदा और नंदनी को ओर बढ़ता है पर उसी वक़्त नंदनी अपने बापू से दूर होती नवल की ओर भागती है| क्योंकि छत के प्लास्टर की मोटी परत को वह नवल पर गिरता हुआ देख चुकी थी जिससे नवल बेखबर था और उसी पल वह उसे धक्का देती उस प्लास्टर को अपने ऊपर लेलेती है जिससे बुरी तरह घायल होती वह फर्श पर बेजान होती लुढ़क जाती है| उस एक पल एक गहरी चीत्कार के साथ वह साया जमीं पर गिरा था जिसकी कलाई अब अनिकेत ने कसकर थाम रखी थी| इसके अकेले ही पल हवा यूँ थम गई मानो कुछ हुआ ही नहीं हो| हवा के थमते सभी अपनी अपनी जगह से उठते देखते है| रूद्र, रानी साहिबा, भुवन और शारदा अचरच से अनिकेत को देख रहे थे जो आंख बंद किए जमी पर साधना की मुद्रा में बैठा पलक की कलाई अपनी हथेली में कसकर पकडे था| उस वक़्त दोनों के हाथ रुद्राक्ष से बिंधे हुए हुए थे|

“नंदनी !!” नवल दौड़ता हुआ नंदनी की ओर आता उसका सर अपनी गोद में लिए चीख पड़ा – “ये क्या किया तुमने !”

इसी पल अनामिका और आदर्श भी वही आ जाते है| वे एक पल घायल नंदनी को लिए नवल को देखते है तो दूसरे ही पल अनिकेत और जमी पर पड़ी पलक को……

“अपने बींद के लिए ज – जान दे – दी |” नंदनी अपनी लड़खड़ाती आवाज में कहती है और वहां खड़े सभी सकपकाए ये दृश्य देखते रह जाते है|

……………………आई होप आज के पार्ट से आपके लिए कहानी का काफी रहस्य खुल गया होगा…..

.क्रमशः………….

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