Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 65

उसी वक़्त अप्रत्याशित तौर पर जॉन के आते सब कुछ इस तरह होता है कि किसी का ध्यान इस बात पर नही गया कि वह बॉक्स अब नवल के हाथों से होता अनिकेत के पास खुला पड़ा था| पर अब उसमे कोई चमक नही थी, उस अँधेरे में उसका अस्तित्व जैसे लुप्त हो चुका था| सभी का ध्यान तो सिर्फ अनिकेत की ओर था जिसके आस पास अद्भुत ओजस्वता की आभा देखी जा सकती थी| अगले ही पल पलक का बेजान शरीर हरकत में आता उठकर बैठ जाता है| इसी के साथ अनिकेत भी अपनी आंखे खोलता अब उसकी ओर देखता है| उनके हाथ अभी भी रुद्राक्ष के बंधन में बंधे थे| पलक दृष्टि उठाकर अनिकेत की ओर देखती है जिससे  उनकी ऑंखें आपस में मिलती अब उन आँखों में सिर्फ कोमलता का अहसास था, मृदुलता और अपनेपन की चाहत थी वह धीरे से बुदबुदाई – ‘अनिकेत….!’ जिसके प्रतिउत्तर में अनिकेत के होंठों के किनारे विस्तार से मुस्करा पड़े, वह जीत गया था उसने पलक को बचा लिया था| वह धीरे से रुद्राक्ष का बंधन ढीला कर देता है| अभी अभी यहाँ आई अनामिका पलक को देख कसकर दौड़ाती उसके गले लग गई| उस पल वे सखियाँ एकदूसरे से यूँ गले लगकर बिलख पड़ी मानो सदियों बाद एकदूसरे को सामने देखा हो| आदर्श भी पलक के पास आता उसके सर पर हाथ फिराता उसकी उपस्थिति पर भावुक हो उठता है|

“नंदनी …!” उस पल अँधेरे में गूंजी चीख से सबका ध्यान अब नवल और नंदनी की ओर चला जाता है|

नवल नंदनी को थामे उसे उठाने का प्रयास कर रहा था पर हर पल उसकी सांस जैसे उसके हाथों से फिसली जा रही थी|

शारदा, रानी साहिबा और भुवन उन्हें घेरे खड़े थे|

“ये.. ये क्यों किया – तुमने हमारी मौत अपने हिस्से क्यों ली नंदनी !” नवल बिफरता उसे कसकर थामे था – “बहुत खून बह रहा है –|”

नवल के कहते रानी साहिबा तुरंत अपने कंधे के पटके को नवल की ओर बढ़ा देती है जिसे उसके सर के आस पास वह कसकर बांधता हुआ कहता है – “हम तुम्हे हॉस्पिटल ले जाते है – तुम्हें कुछ नही होगा नंदनी |”

नवल उठने को ही था पर नंदनी उसे हाथ से रोकती हुई कहती है – “रुकिए – कु कुंवर – सा – मेरे पास वक़्त बहुत कम है – आज हमे अपने दिल की बात कह – लेने – दीजिए – हम इसे दिल में बोझ की तरह – लेकर नही जाना – चाहते |”

“पागल मत बनो – अभी चलो बस |” नवल उसे उठाना चाहता था पर नंदनी न में सर हिलाती उसे रोकती हुई कहने लगी – “आपको हमारे जीवन की कसम – हमे अपने मन की कह – लेने दीजिए क्योंकि आप ही तो हमारे पहले, आखिरी और – हमेशा का प्यार है – तभी तो एक सपना देखा था आपका होने का – हमे बस यही सुकून है कि ईश्वर ने आपकी बिन्दनी होने का – इस जन्म में सुख दिया – हम बस इसी के खुश थे – हमे तो हर हाल में आपकी ख़ुशी मंजूर थी इसलिए कभी – हम आपकी ख़ुशी – के – रास्ते का रोड़ा नही बने – पलक से शादी करके आप – खुश रहते तो बस हम आपको दूर से देखकर ही – अपनी जिंदगी सुकून से काट लेते पर – पर पलक ने शादी से पहले जहर खाकर अपनी जान दे दी – उस वक़्त उसको मरा देख हम बहुत घबरा गए थे – तब शायद हमारी दबी तमन्नाओ के चलते उस वक़्त हमने घूँघट के पीछे आपके संग शादी की – वो – वो हमारे जीवन का सबसे खूबसूरत पल था |” नंदनी की आवाज अब और बोझिल होती जा रही थी जिससे नवल अब उसका चेहरा अपनी हथेली के बीच ले लेता है|

“सब कुछ किसी सपने की तरह था – आखिर – हमारे बचपन के – प्यार का  सपना जो – पूरा हुआ – कुंवर – सा – लेकिन कुंवर सा जब हम – शादी करके वापस – उस कक्ष में – आए तब पलक के मृत शरीर में जान वापस देख – हम डर गए – और पलक को जिन्दा देख – किसी को ये – ये सच नही बता सके – पर – मन से – हम – सदा आपके रहेंगे….और इस – बात के एकमात्र गवाह – मेरे बापू…|” कहते नंदनी की गर्दन एक ओर को लुढ़क गई जिससे नवल के हलक से दबी चीख उभर आई, अब बिना समय गंवाए वह नंदनी की देह अपनी बांह में उठाए तेजी से वहां से निकलता है| तब से अपनी बेटी को मरता देख उसका आखिरी शब्द सुनती शारदा अब गुस्से में भुवन की ओर पलटती उसपर बुरी तरह बिफर पड़ी थी – “क्या तू जाणे थे ये बात – ये काई किया तूने – पता है हर पल उसे कुंवर सा से दूर करती रही मैं और तुमने उसकी शादी उनसे होने दी – अरे श्राप है इस महल में कि यहाँ के कुंवर की पहली पत्नी का साल भीतर मरना तय है – तो क्यों बलि चढ़ा दी म्हारी लाडो की |” अपना आपा खोती बिलख उठी थी शारदा|

अब उससे वहां न रुका गया वह भी तेजी से नवल के पीछे दौड़ लगा देती है और उसके पीछे पीछे भुवन भी|

पर शारदा का कहा वाक्य तब तक अपना असर यहाँ दिखा चुका था| अनामिका हैरान नज़रो से रूद्र की ओर देखती है जो अब उससे नज़रे बचाते अन्यत्र देख रहा था| वह उसके पास आती उसके सामने खड़ी होती हुई पूछती है – “क्या ये जो नंदनी ने कहा वो सच है रूद्र जी !!”

अनामिका के प्रश्न पर रूद्र कुछ नही कहता बस ख़ामोशी से अन्यत्र देखता उससे नज़रे बचाए रहा| पर अनामिका के चेहरे पर ढेर परेशानी उभर आई जिससे अब वह रानी साहिबा की ओर पलटती हुई उनसे पूछती है – “आप बताईए माँ सा – क्या ये जो नंदनी ने कहा ये सच है कि पहली बिन्दनी का मरना तय है और क्या इसीलिए पहली राणी साहिबा नही रही – बोलिए क्या ये सच है -!”

अनामिका बिलखती उनकी ओर देखती रही जबकि वे पहली बार नज़रे नीची किए मौन रह गई|

“समझ गई – आपकी ख़ामोशी ही अपने आप में इसका जवाब है – यही वजह है कि इतना बड़ा घराना मामूली घर से अपनी पत्नी चुनता है क्योंकि वहां कोई सवाल ही नही करता उनसे – बस आपका बड़ा दिल दिखता है सबको – इतना फरेब – इतना धोखा – ठीक है तो आज से आप हमे मरा ही समझ लीजिए |”

“अनु…!!” रूद्र के कंठ से दर्दीला स्वर उभर आया पर जाती हुई अनामिका को रोकने की उस पल वह हिम्मत नही कर सका|

“आपको सौगंध है होने वाले बच्चे की जो आपने हमे आज जाने से रोका |” रूद्र का बढ़ा हाथ झटकती अनामिका बिना रुके अब वहां से चली गई|

तभी जॉन की आवाज से सबका ध्यान उस दिशा की ओर जाता है जो नवल के कक्ष के बगल का बरामदा था और उनकी जगह से कुछ छुपा हुआ हिस्सा था|

“अनिकेत – जल्दी आओ इधर |”

जॉन वहां खड़ा हाथ से उस ओर इशारा करते हुए कह रहा था – “ये सब क्या है – देखो !!”

सभी उस ओर आते है पर अनिकेत आगे बढ़कर उस जगह को देखता है| वहां किसी पूजा किए जाने का निशान था पर वहां था कोई नही| अनिकेत गौर से उन सामानों को देखता हुआ कहता है –

“ये सब तो योगिनी सिद्धि का सामान है – ये पूजा किसने की यहाँ ?”

अनिकेत अचरच से अब बारी बारी से रानी साहिबा और रूद्र को देखता है|

ये सुनते रानी साहिबा के चेहरे पर भी ढेर परेशानी उभर आई थी| वे आगे बढ़ती उस जगह को देखती हुई धीरे से कहती है – “राजगुरु – उन्होंने किया ये !”

रूद्र भी उस जगह को देखता हुआ परेशान होता हुआ कहता है – “हमे भी यही लगता है माँ सा |”

“रूद्र आप कैसे भी उसे ढूंढें – कुछ भी करिए इसके लिए |” वे रूद्र की ओर देखती हुई कहती है|

“जिसने भी ये किया है – ये सही नही है – ये योगिनी का वीभत्स रूप है जिसका नाम योगमाया है – जिसने पलक के शरीर पर कब्ज़ा किया था – वह सदा मृत शरीर पर वास करती है – अगर उसे किसी का मरा शरीर मिल गया तो वह फिर से अपने रूप में आ जाएगी |” अनिकेत चिंतित स्वर में बोला|

“और फिर ..!!” रूद्र हतप्रभता से पूछता है|

“बहुत बुरा होगा लेकिन अगर मृत शरीर नही मिला तो वह ज्यादा देर मुक्त नही रहती वापस चली जाती है – उसे शरीर भी सुरक्षित चाहिए – वह खराब हुए शरीर में वास नही करती और सबसे बड़ी बात अगर किसी ने इसे सिद्ध कर लिया तो वह उसके लिए सब कुछ करती है |”

अनिकेत की बात पर जॉन कुछ सोचते हुए कहता है – “शायद हमे चिंता करने की जरुरत नही होनी चाहिए – हो सकता है वह अब वापस चली जाए !”

जॉन की बात पर सभी मौन रहते चेहरे पर गंभीर भाव लिए रहते है| शायद आने वाले वक़्त के प्रति मौन रहकर अपना संदेह प्रकट कर रहे थे|

तभी उस मौन को तोड़ती आदर्श की आवाज पर सबका ध्यान जाता है जो रानी साहिबा की ओर मुखातिब होता कह रहा था –

“तो अब जब सब साफ़ हो चुका है कि पलक की शादी नवल से नही हुई तो मैं अपनी बहन को यहाँ से ले जा रहा हूँ |”

उस वक़्त बीतती रात के अँधेरे में आदर्श का क्रोधित स्वर कौंध उठा….

क्रमशः………………………………………..

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