
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 66
उस पल अजीब सा माहौल बन चुका था, सबके मन ढेरो उथल पुथल से गुजरते अपने में ही गडमड हुए जा रहे थे| महल भी एकाएक यूँ शांत हो गया था जैसे मरुस्थल रेतीले तूफ़ान के बाद खामोश हो जाता है| इस वक़्त रात्रि का अंतिम पहर था, जिससे अँधेरा अभी भी वहां के माहौल को अपनी गिरफ्त में लिए था पर आदर्श पलक को ले जाने को व्यग्र था जिसे टोकती रानी साहिबा की लरजती आवाज उस पल में उभरती है|
“पहले हमे सब ठीक से समझने दीजिए – आखिर ये नौजवान कौन है जिसने मसीहा की तरह आकर सारी उथल पुथल को एकदम से ठीक कर दिया |” वे पूछती हुई अनिकेत को गौर से देखने लगी|
गौरांग ऊँची कद काठी के अनिकेत को वे हैरान नजरो से देखने लगी तो पलक भी अपने प्रश्नों को सुलझाए बिना वहां से जाना नही चाहती थी|
रूद्र धीरे से कहने लगे – “ये अनिकेत है – बाराबंकी से – लखनऊ युनिवर्सिटी में ही पढने से हम इन्हें पहले से जानते है – ज्ञान सिद्धि के ज्ञाता है ये |”
“ओह – हमे लगा ही था – बहुत कम उम्र में बहुत ज्यादा ज्ञान रखते है तो क्या आप जो कुछ भी यहाँ हुआ वो हमे समझा सकते है !”
वे प्रश्नात्मक मुद्रा में अनिकेत की ओर देखने लगी तो अनिकेत ने कहना शुरू किया –
“मुझे आपसे खुद ये पूछना है कि चमत्कारी पत्थर नवल के पास कहाँ से आया क्योंकि अगर ये नही होता तो शायद मैं बहुत कुछ नही कर पाता |”
अबकी सबका ध्यान अनिकेत के हाथ की ओर जाता है जो कबसे उस बॉक्स को पकडे था|
ये सुनते वे जल्दी से उसके हाथ का बॉक्स अपने हाथ में लेकर अलट पलट कर देखने लगी – “हाँ ये हमारे परिवार की विरासत है पर इसके अन्दर का पत्थर कहाँ है – ये खाली क्यों है ?” वे कौतुहल से उस बॉक्स को देखती रही|
“वह पत्थर अपनी ऊर्जा खत्म कर अस्तित्वहीन हो गया पर मैं आपको बताता हूँ कि पत्थर क्या था और उससे कैसे पलक की जान बची |”
अनिकेत की बात सुन सभी कौतूहलवश अब उसे देखने लगे थे|
“असल में जब पलक ने अपनी जान दी तब उसकी मृत्यु का योग नहीं था और जब बिना मृत्यु योग के मनुष्य अपना जीवन त्यागता है तब उसकी आत्मा काफी समय तक अपने शरीर के आस पास ही मौजूद रहती है और यही हुआ पलक के साथ पर पत्थर जो पारस मणि है उसमे उसकी आत्मा रहने से वह इतने दिन सुरक्षित रही |”
“पर ये हुआ कैसे?” अबकी आदर्श आश्चर्य से पूछता है|
“जब पलक के शरीर से उसकी आत्मा निकली तभी शायद महामाया आजाद होती अपने लिए शरीर तलाशती उसके शरीर में प्रवेश कर गई और उसे शायद इस पत्थर का पता था और उसने पलक की आत्मा को उसी पत्थर में कैद करके रख लिया इसलिए वह नही चाहती थी कि तेरह दिन से पहले उसकी आत्मा अपने शरीर के आस पास भी मंडराए और आज तेरहवां दिन था और आज वह इस आत्मा को वायुमंडल में छोड़कर सदा के इस शरीर में रहने वाली थी पर सौभाग्य से इस पत्थर का होना जॉन से पता चलते मैंने आत्मिक ऊर्जा से आत्मा का उपयुक्त शरीर में परिस्थापन कर दिया |”
“ओह तो क्या इतने दिन से जो पलक के शरीर में थी वह पलक नही थी !!” रानी साहिबा अचरच से पलक को देखती हुई पूछ रही थी|
“नहीं वह महामाया थी और अपने भ्रम जाल से सबके सामने ऐसा भ्रम पैदा करती रही ताकि किसी को पलक का ख्याल भी न आए और उसके अस्तित्व पर वह सदा के लिए हावी रहे|”
“ओह्ह |” कुछ पल खुद में ही सोचती रानी साहिबा फिर पूछ उठी – “पर अभी तुमने कहा था कि जिसे उसने सिद्ध कर लिया उसके लिए वह सब करती है तो उसे किसने सिद्ध किया – क्या उससे ये करवा रहा था कोई ?”
“इसे सिद्ध तो किया गया है और किसने ये आप पता कीजिए क्योंकि ये बिना सिद्ध किए ये नही आती – |” सभी हतप्रभता से अनिकेत को सुन रहे थे जो हर बात का स्पष्टीकरण स्वैक्षा से दे रहा था – “वैसे तो महामाया योगिनी का वह रूप है जो उत्पन्न होते साधक की सारी उम्मीदे पूरी करती है और इसी लालच में कई बार लोग इसे सिद्ध कर लेते है पर कहते है न हर चीज की कीमत अदा करनी होती है और यही से शुरू होता है महामयाका खेल – वह साधक को एक हाथ से उसकी इच्छा देती है तो दुसरे हाथ से उसका सबसे अमूल्य का ग्रास करती है और धीरे धीरे वह उस साधक से हटकर अपना स्वयं का अस्तित्व बनाती है और ऐसा करती वह अपने आस पास ऐसा मायाजाल रचती है कि सभी की कमजोरी को वह उजागर करती उन्हें अवसाद में डाल देती है – |”
“अवसाद में !!”अबूझता से रानी साहिबा पूछ उठी|
इस पर अनिकेत होंठों पर हलके से विस्तार लाता हुआ कहता है – “हर इंसान की अपनी कमजोरी होती है और जब उसे उसके सामने लाया जाता है तो इन्सान अवसाद में आ जाता है और यही उस महामाया का मायावनी हथियार था – हो सकता है उसने ऐसा किया हो पर आपको कुछ पता ही नही चला हो |”
अनिकेत की बात से रानी साहिबा को तुरंत अपनी बड़ी बहन का होना अचानक याद आया तो क्या वह उसका मायाजाल था जिससे हमे अपने अतीत के प्रति ग्लानी हुई| उनके लिए अब बहुत कुछ सुलझ चुका था और जो उलझा था उसे शायद राजा साहब ही बतला सकते थे पर इस एक पल में वक़्त ने ऐसी करवट ले ली कि उनके जीवन का दृष्टिकोण ही बदल चुका था, उन्हें अपनी गलतियों का अहसास हो गया था लेकिन इसकी कीमत उन्हें अभी अपने रिश्तों में चुकानी बाकी थी| अनामिका का जाना, तो वही पलक के बजाये नंदनी का नवल की बिन्दनी के रूप में पता चलना और शौर्य जिसके रिश्ते के बारे में तो वह झलक से शादी से पहले जानती थी पर अब क्या करेंगी !! कैसे अपनों के बिखरे रिश्ते समेट पाएंगी वे !! जिस चमत्कारी पत्थर को पाकर वे प्रबलशाली बनने चली थी आज वही उनका खुदका अस्तित्व अस्तित्वहीन हो चला है|
तभी एक ठंडी आवाज उन्हें उनकी सोच की दुनिया से वापस ले आई|
“ये सब तो पता नही पर अनिकेत तुम नही होते तो शायद हम हमेशा के लिए पलक को खो देते |”
आदर्श की बात पर अनिकेत कुछ नही कहता बस एक संकोच की हलकी लाली उसके चेहरे पर उभर आती|
“चलो पलक |” आदर्श पलक को लिए वहां से निकल रहा होता है तो अनिकेत जॉन के साथ बाहर निकल रहा था| पर रानी साहिबा आज किसी को रोक न सकी| रूद्र भी बुत बना वही खड़ा रह गया| एक ही पल में उसकी सारी दुनिया लुट चुकी थी|
निकलते निकलते आदर्श पलक को हलके से क्रोध मिश्रित स्वर में कहता है – “पलक मुझे तुमसे ये उम्मीद नही थी कि तुम ऐसा कुछ करोगी – ऐसा कदम उठाने से पहले तुमने सोचा कि उसके बाद बुआ फूफा जी का क्या हाल होता !”
चलते चलते पलक ठहरकर एक बार पीछे देखती है जहाँ अनिकेत को जॉन से बातें करते आते देखती उसकी आँखों में एक गहरी नमी उतर जाती है| वह बड़े आद्र स्वर में कहती है – “आज सोचती हूँ तो सच में बहुत बुरा लगता है भईया पर क्या कहूँ उस पल मुझपर जो बीत रही थी उसे न मैं कह पाई और न कोई समझ पाया|”
पलक के शब्द आदर्श को झंझोड़ देते है उस एक पल में पलक के साथ उदयपुर वाला वक़्त उसे स्मरण हो आया, तब उसके चेहरे की उदासी सभी अपने अपने तरह से समझ रहे थे लेकिन पलक के अंतर्मन में किसी ने झाँकने की कोशिश नही की|
“अरे आप यहाँ क्यों रुक गए ?” अनिकेत आदर्श की ओर देखता पूछ रहा था पर उसकी उडती निगाह बार बार पलक से जा टकराती थी|
“नही बस ऐसे ही |”
वे सभी आगे बढ़ने को ही हुए तभी पलक टोकती हुई पूछ उठी – “झलक कहाँ है भईया ?”
“हॉस्पिटल में |” आदर्श एक टूक उत्तर देता है|
“हॉस्पिटल – क्यों – क्या हुआ है ?” पलक परेशान होती पूछती हडबडा गई|
आदर्श जवाब में एक गहरा उच्छ्वास खींचता है|
“क्या हुआ है झलक को ?” अबकी अनिकेत और जॉन हैरानगी से आदर्श को देखने एकसाथ पूछते है|
“क्या कहूँ इस महल के छलावे ने मेरी दोनों बहनों की जिंदगी खराब कर दी – चल के खुद ही देखिए तो मालूम पड़ जाएगा |”
“किस हॉस्पिटल में है बता दीजिए हम भी वही पहुँचते है |”
अनिकेत की बात पर आदर्श हॉस्पिटल का नाम बताता अब पलक के साथ बाहर निकल आया था जबकि अनिकेत महल के अन्दर से उसके होटल वाले हिस्से की ओर बढ़ गए थे|
“अनु…!” पलक की आवाज पर आदर्श का ध्यान एक खड़ी कार की स्टेरिंग पर झुकी अनामिका की ओर जाता है जिसके पास पलक पहुँच चुकी थी|
अनामिका जिस उतेजना से बाहर आई थी उसी स्ट्रेस से शायद वह कार की ड्राइविंग सीट पर बैठते बेहोश हो गई| आदर्श जल्दी से अपनी कार से पानी निकालकर उसके चेहरे पर छिड़कता उसे होश में लाता है| होश में आते पलक उसे अपनी पनाह में लिए प्यार से उसका सर सहलाती हुई कह रही थी – “ऐसी हालत में कोई इतना स्ट्रेस लेता है – चलो अब हमारे साथ चलो |”
अनामिका भी आखिर कहाँ तय कर पाई थी कि कहाँ जाना है, भीगे मन के साथ सहमति देती वह आदर्श और पलक के साथ चल देती है|
अब काफी राज़ खुल चुका है और आपके कई अनबुझे प्रश्न सुलझ चुके होंगे…..अब आगे देखते है कौन क्या खोता है और क्या पाता है…..
…..क्रमशः
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