
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 67
ये दिन का पहला पहर था, लाल आकाश में चमकते गोले को छूने कई पखेरू अनंत गगन की ओर उड़ चले थे लेकिन वातावरण में सुबह की सुगबुगाहट भी मानो दबे पैर आई हो जिससे माहौल में अजीब सी ख़ामोशी पसरी हुई थी| जैसलमेर की खुली सड़कों पर इक्का दुक्का ही वाहन नज़र आ रहे थे इसलिए बिना रुकावट आदर्श हॉस्पिटल पहुँच रहा था वही हॉस्पिटल में झलक खुली आँखों से छत निहारती पड़ी थी| माँ वही बैठी बैठी सो गई थी तो वैभव बेचैनी में गलियारा नापते घूम रहे थे| पूरी रात उनकी सिर्फ इंतजार में कटी थी| एक तरफ न आदर्श से पलक की कोई खबर मिल पाई थी और न ही रचित ही इंजेक्शन लेकर लौटा था लेकिन रचित सेवको को उनकी सेवा का हुकुम देकर गया था जिससे वे कुछ कुछ देर में आकर जल – चाय पूछ जाते पर चिंतालू मन कहाँ कुछ भी गले उतार पाता| आगे क्या होगा या आगे क्या करना है इसी कशमकश में उलझे थे तभी पलक को एकाएक सामने देख एक पल को उनके मन को विश्वास नही आया| पलक भी अपने पिता को सामने देख छोटी बच्ची सी दौड़ती उनके अंक में समा गई| पलक को समेटे वैभव उस पल ऐसे भावुक हो उठे मानो सदियों बाद मिले हो यूँ तो ये तेरह दिन उनके लिए सदियों जैसे ही बीते थे पर अभी वे कहाँ जानते थे कि ये सदियों की नहीं बल्कि सात आसमानों की दूरी थी| वह तो अकाल मृत्यु से निशंक लौटी थी| वे निशब्द उस पल के अहसास में इतना ख़ोए रहे कि आदर्श और अनामिका का आना देख नही पाए| पिता के अहसास में जो अपनापन था उस अपनत्व की तुलना किसी रिश्ते से नही की जा सकती और ये बात किसी बेटी से बेहतर और कौन समझ सकता था| पिता से मिलकर वह वार्ड में अन्दर माँ और झलक को देखने बढ़ गई साथ ही अनामिका भी उसके साथ चल देती है| दोनों को अन्दर जाता देख आदर्श अपने फूफा जी को वही रोके उस एकांत में सारी गुजरी घटना सविस्तार बताने लगता है| अन्दर पहुँच पलक ज्योंही माँ को आवाज देती है वे चौंकती दो पल को उसे देखती रह जाती है| पलक को देख माँ भी अपने भावुक मन का नियंत्रण खोती आँखों से गंगा जमुना बहने से न रोक पाई| माँ से मिलकर पलक तुरंत ही झलक के पास आती है जो अचरच भरे हाव भाव से उन सबको देख रही थी| पलक झट से झलक के गले लग हौले से उसका सर सहलाती रही| अनामिका भी साथ ही दोनों के गले लग गई| उस पल माँ तीनो को साथ देख आद्र मन से उस पल को देखने लगी जैसे गुजरा वक़्त फिर से उन तीनो सखियों को कई कदम पीछे ले गया था| वही लगाव वही एकदूसरे के प्रति गहरा जुडाव जो हमेशा से उन्हें आपस में यूँही बांधे रहा था| यही पल था जब रचित वार्ड में प्रवेश करता उन सबको देखता है| वह सारे परिवार को एकसाथ देख चुपचाप नर्स के हाथ में इंजेक्शन देकर लौट जाना चाहता था पर क्षण भर को दरवाजे की ओर चेहरा करे झलक से उनकी निगाह मिलती है जिससे तुरंत ही अपना ध्यान हटाता वह वापस मुड़ जाता है इसलिए उसकी आंख से बहे अश्क की धार वह नही देख पाता|
रात जिस तूफानी हालात में महल की गुजरी थी उससे सुबह उतनी ही शांत भाव से महल में आई थी| रानी साहिबा और रूद्र कबसे एकसाथ गुमसुम बैठे थे जैसे आगे क्या करना है कुछ तय नही कर पा रहे हो|
“रूद्र आप महल के वारिस को यूँही नही छोड़ सकते – कैसे भी अनामिका को वापस लाइए |”
माँ सा की बात पर रूद्र सिर्फ आँखों से हामी भरते है, शब्द जैसे उनसे चुक चुके थे|
“हमारी तो वो हालत है कि शर्मिंदगी के बोझ से हमारा मन दबा जा रहा है जिससे हम चाहकर भी किसी के सामने नही आ सकते – अब इस वक़्त आप ही को सब संभालना है – अभी तक नवल की भी कोई खबर नही मिली – जाने नंदनी की क्या हालत होगी इस समय|”
वे भीगे मन से अपना दर्द प्रकट करती रही जिसपर रुद धीरे से बुदबुदा उठे –
“हमे कुछ करना ही होगा – हम यूँही हाथ पर हाथ धरे नही बैठे रह सकते |”
“क्या करेंगे आप ?”
“पता नही माँ सा लेकिन सबसे पहले राजगुरु को ढूंढना होगा हमे – उसने हमे मोहरा बना कर अपनी मंशा पूरी करने की कोशिश की है और ये बात हमे चैन से बैठने नहीं दे रही |” गुस्से में मुट्ठी भींचते हुए रूद्र तुरंत उठ जाते है तो माँ सा अवाक् उसे देखती रह जाती है|
एक अलग हॉस्पिटल में नंदनी का इलाज हो रहा था| वह ऑपरेशन थेयटर में थी तो भुवन और शारदा अपने अपने आंसू थामे बाहर खड़े थे| एक एक पल उनपर मनो टन भारी गुजर रहा था| तभी बाहर निकलते डॉक्टर को देख वे दोनों तुरंत ही डॉक्टर की ओर लपकते है| उनकी बेचैन नज़र नंदनी का हाल जानने को बेकल हुई जा रही थी| उन दोनों से नज़रे मिलते डॉक्टर हलके से न में सर हिला देते है| जिससे पल भर में सारा खून निचुड़ते उनका चेहरा सफ़ेद पड़ जाता है|
“काई कहे डागडर साहब |” भुवन हक्बकाता उनकी ओर बढ़ता है|
“हमने पूरी कोशिश की पर मरीज की हालत काफी नाजुक है – बहुत ही कम समय है उसके पास – आप चाहे तो देख सकते है |”
“नहीं…- |” ये खबर सुन सकते में आई शारदा के हलक से चीख उभर आती है|
तभी बगल के वार्ड से नवल बाहर आता उनकी ओर बढ़ता है| उसके एक हाथ में बैंडेज बंधा था जिससे नागेन्द्र जी बिलकुल उसके साथ साथ चल रहे थे| नवल डॉक्टर की ओर बढ़ता हुआ पूछता है –
“कैसी है नंदनी डॉक्टर ?”
अब नवल की ओर देखते डॉक्टर गंभीर स्वर में कहते है – “बहुत क्रिटिकल स्थिति है – इन्टरनल ब्लीडिंग और हेड इंजरी हुई है – |”
सुनते ही नवल बुरी तरह से गरजा – “तो कुछ करो डॉक्टर – बचाओ उसे किसी भी तरह से – आखिर तुम हो किसलिए ?”
“मैंने अपनी पूरी कोशिश की कुंवर सा लेकिन स्थिति हमारे हाथ से बाहर निकल चुकी है – |”
डॉक्टर की बात जैसे पल में सबको बुत बना गई| लगा धरती का कण कण शांत होता अनंत ब्लैक होल में चुपचाप समाहित हो गया हो| शारदा और भुवन तो हाथ जोड़े बस खड़े रह गए| नवल भी अवाक् डॉक्टर को देख रहा था|
डॉक्टर फिर धीरे से आगे कहते है –
“एक आखिरी कोशिश आप कर सकते है – अगर आप दिल्ली एम्स ले जाए तो शायद ईश्वर आपकी सुन ले |”
ये सुनते भुवन और शारदा की आँखों से जल धार बह निकलती है, वे जानते थे डॉक्टर जब ईश्वर की बात करते है तो वह उनका आखिरी कृत्य होता है जब वे सबसे बेबस होते है| तब जीवन और मृत्यु के बीच झूलता मरीज अपनी मृत्यु के सबसे करीब होता है|
पर नवल ये सुनता तुरंत तत्परता से नागेन्द्र की ओर देखता हुआ कहता है –
“डॉक्टर आप तुरंत डिस्चार्ज के जरुरी पेपर तैयार करिए और नागेन्द्र जी आप तुरंत चोपर तैयार करने को बोलिए – हम नंदनी को इसी वक़्त दिल्ली ले जाएँगे – |” कहता नवल तुरंत विपरीत दिशा की ओर तेजी से चल देता है पर जाते हुए शारदा की तीखी स्वर उसके कानो में पड़ते है जिससे उसके कदम कांप उठते है, वह दर्दीली स्वर में खड़ी चीख रही थी –
“कहाँ ले जाएँगे कुंवर सा – अब ण बचा सकेंगे उसे – वो न छोड़ेगी उसे – ये नटनी का शराप है वो खून का कतरा कतरा चूस ले जाएगी – इससे पहले राजा साहब ने बड़ी राणी की जान बचाने के खातिर डागडर की फ़ौज खड़ी कर दी पण न बचा पाए अपनी राणी को तो थे किया करा पाएगा सा !!” उस पल शारदा का डर सबके चेहरों पर आवंटित हो गया| सब अपनी अपनी जगह यूँ खड़े रह गए जैसे आगामी जलजले को सोचते उनकी रूह कांप गई हो|
महल का ऐसा हिस्सा जो महल का हिस्सा होकर भी अब सबकी नजरो से छुपा था वहां राजगुरु ऊपर बैठे थे तो उनके पैरो के पास कोई सर झुकाए बैठी चुपचाप उन्हें सुन रही थी|
वह उसके सर पर हाथ फिराते यूँ कह रहे थे मानो धीरे धीरे बुदबुदा रहे हो – “महामाया तूने अब मेरी बेटी का रूप धरा है तो जैसे बच्चे अपने माता पिता की हर बात मानते है उसी तरह अब तू सब मेरा कहा पूरा करेगी – करेगी न !”
दो पल रूककर वे उसकी ओर अपनी नज़रे गड़ाते देखते है कि वह मौन ही अपना सर हाँ में हिला रही थी|
“हाँ – अब आज रात से तुम्हें एक नया अध्याय लिखना है इस राजमहल का – अब एक एक करके इस राजवंश को समूल खत्म करना है वो भी इस तरह जैसे इनका अस्तित्व यहाँ था ही नहीं – कुछ दिन में सब इसे गुजरी घटना जान सिरे से भूल जाएँगे तब उन्हें बस मेरा राजा होना याद रहेगा – मेरा – हाँ सब मेरा होगा – जो बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था अगर बड़े राजा साहब एक गलत निर्णय नही लेते |” राजगुरु दांत भींचते हुए एक एक शब्द हलक से उगलता है तो उस पल वहां के माहौल में और बोसिदापन गहरा जाता है|
क्या बच पाएगा राजवंश राजगुरु की मंशा से !! जानने के लिए जुड़े रहे कहानी से..
…..क्रमशः
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