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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 69

“अनिकेत सच में मुझे बहुत अच्छा लग रहा है – सब इतनी सहजता से हो जाएगा सोचा नही था |” जॉन अनिकेत की ओर देखता हुआ कहता है|

जॉन और अनिकेत होटल के अपने रूम में वापस आते अपना सामान पैक करते करते बात कर रहे थे|

“ईश्वर ने हर एक चीज के लिए समय तय कर रखा है – उस तय समय से पहले चीजे कहाँ मिलती है|” अनिकेत अपनी सहज मुस्कान से कहता है|

“हाँ वो तो है |” सहमति में जॉन हाँ में सर हिलाता है|

जॉन को देखता अनिकेत अब उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए आगे कहता है – “लेकिन ये भी सच है कि अगर कठिन वक़्त में सच्चे दोस्त का साथ मिल जाए तो रास्ता और आसान हो जाता है|”

“तुम्हारे लिए हमेशा दोस्त |” अनिकेत के हाथ पर हाथ रखता जॉन कहता है|

वे बैग पैक करके अब बैठ गए थे|

“लेकिन तुम बिलकुल सही वक़्त में आए – मैं तो एकपल को उलझ सा गया था – समझ नही आ रहा था कि पलक की ऊर्जा को महसूस करने के बाद भी मैं उस तक पहुँच क्यों नही पा रहा पर जब तुमने आते मेरा ध्यान उस बॉक्स की ओर किया तब मैं समझ गया कि महामाया आखिर क्यों उस बॉक्स को पाना चाहती थी – उसने पलक के शरीर में प्रवेश करते उसकी आत्मा को उसमे कैद कर लिया और उस पारस पत्थर के कारण आत्मा उसने बिलकुल सुरक्षित बनी रही -|”

“हाँ क्योंकि जब तुम्हे बहुत देर लगी तो मैंने सीसीटीवी ऑन करके सब देख लिया था इसलिए बिना समय गंवाए मैं तुम्हारे पास भागा चला आया|”

“हम्म |”

“लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण है तुम्हारी आतंरिक शक्ति जिसके बल पर तुमने आजाद आत्मा को उपयुक्त स्थान पर परिस्थापन कर दिया – ये सच में अमेजिंग था और तुम्हारे सिवा ये कोई नही कर सकता था|”

“दोस्त ये मेरी नही ईश्वरीय शक्ति है – जब हम ईश्वर पर आस्था रखते उसमे विश्वास करते है तब हमारी सकारात्मक ऊर्जा एकीकृत होकर एक ओजस का निर्माण करती है जो अपने आप में ईश्वर की छुपी शक्ति की भांति होता है – बस मैंने उसी छुपी शक्ति का उपयोग भर किया लेकिन वह महामाया बहुत शक्तिशाली थी – मैं बस पलक को बचा पाया पर उस महामाया का कुछ नही बिगड़ पाया और क्षण भर में पता भी नही चला कि वह कहाँ लुप्त हो गई|”

“मुझे लगता है बिना शरीर के वह स्वता नष्ट हो गई होगी |”

तभी दरवाजे पर हुई दस्तक ने उनका ध्यान बाहर की ओर खींचा जिससे जॉन आगे बढ़कर दरवाजा खोलता है| उस पार कोई कारिन्दा हाथ जोड़े कह रहा था – “बड़े कुंवर सा आपसे मिलना चाहे है हुकुम |”

“क्या रूद्र !”

इसपर वह आंख झुकाकर सहमति देता है| तो जॉन पीछे पलटकर अनिकेत की ओर देखता है जिससे अनिकेत बैठे बैठे ही बोलता है –

“ठीक है हम शाम तक निकल रहे है – उससे पहले वे मिलने आ जाए |”

अनिकेत की बात पर सर झुकाकर हामी भरता वह चला जाता है| उसके जाते जॉन दरवाजा बंद करता अनिकेत की ओर देखता हुआ पूछता है –

“रूद्र हमसे क्या चाहता है ?”

“अब वो तो मिलकर ही पता चलेगा |”

“हाँ सही कहा – अच्छा अनिकेत मैं बाहर जाकर टैक्सी का पता करता हूँ जिससे हम नजदीकी रेलवे स्टेशन तक पहुँच सके तो क्या तुम भी चलोगे साथ में ?”

अनिकेत एक बड़ी अंगड़ाई लेता हुआ कहता है – “जॉन मैं थोड़ी देर आराम करना चाहता हूँ – मैं बड़ा थका हुआ महसूस कर रहा हूँ – |”

“ठीक है – तुम आराम करो – मैं बाहर तक होकर आता हूँ |”

कहता हुआ जॉन तुरंत ही बाहर चला जाता है तो अनिकेत डोर बंद करके सोने के लिए बिस्तर पर आने से पहले अपनी आदतानुसार गले में पड़ी रुद्राक्ष की माला को समुचित स्थान पर टांगकर लेट जाता है|

आदर्श ने हॉस्पिटल के बिलकुल पास वाला कोई होटल का रूम बुक करा रखा था पर अभी तक कोई भी वहां गया नही था| असल में कोई भी झलक को छोड़कर जाना भी नही चाहता था| झलक जब से होश में आई थी तभी से ख़ामोशी से आंख खोले पड़ी थी| सभी कितना भी उससे बात करने की कोशिश करते पर वह कुछ भी जवाब नही देती थी यही बात उनका अंतर्मन डुबोए दे रही थी| अनामिका अभी अभी अपना चेकअप करा कर आई थी| अब उसका हाल लेती नीतू उससे पूछ रही थी –

“सब ठीक तो है न ?”

एक दर्दीली आह में वह बस हौले से हामी भरती है – “हूँ |”

अनामिका की चुप्पी भी नीतू को बहुत कुछ बता गई थी, वे उसकी मनस्थिति भली भांति समझ रही थी इसलिए वे उसे ढाढस देती हुई कहती है –

“परेशान मन हो – अपने मन को तनाव रहित करो और तब निर्णय लो कि आगे क्या करना है ?”

पत्नी की बात को आगे पूरा करते हुए वैभव कहते है – “हम कल सुबह ही उदयपुर के लिए निकल चलेंगे |”

इसपर वे चौंकती हुई पूछती है – “क्या डॉक्टर झलक को डिस्चार्ज दे देंगे ?”

“हाँ कल सुबह दे देंगे तो सोचा कि कुछ दिन उदयपुर रुकने के बाद लखनऊ निकल चलेंगे -|”

“अनु तुमभी चाहो तो हमारे साथ चल सकती हो – कुछ दिन अपनी माँ के पास रहोगी तो मन संयंत हो जाएगा |”

नीतू की बात पर अनामिका इससे पहले कि कोई प्रतिक्रिया करती अचानक उसकी नज़र वार्ड की देहरी तक जाकर थम सी गई| उसकी रुकी नज़र से अब सभी का ध्यान भी वही तक जाता है जहाँ अभी अभी आया रूद्र क्लांत खड़ा अनु को निहार  रहा था| लेकिन जैसे ही वैभव की नज़र रूद्र पर जाती है उनके चेहरे के हाव भाव में तनाव आ जाता है और वे तेजी से उसकी ओर आते चींखने लगते है –

“अब क्या लेने आए हो यहाँ – सब कुछ बर्बाद करके अब क्या ये देखने आए हो कि मेरी बच्ची जिन्दा भी है या नही |” वे बुरी तरह चींखे जिससे सभी उन्हें  सँभालने उनकी ओर लपकते है|

पर इसके विपरीत रूद्र हाथ जोड़ता हुआ कहता है – “माँ सा को अपनी गलती पर बहुत दुःख है |”

“गलती – इसे गलती कहते हो – ये तो गुनाह है और माफ़ी गलती की होती है गुनाह की नही |”

“हम अच्छे से समझ रहे है आपकी स्थिति पर आप हमारी मनस्थिति भी समझिए – हम माँ सा की ओर से सन्देश लाए थे कि आप जो चाहते है वे वही करेंगी और अगर आप चाहे तो झलक का यहाँ बड़े से बड़े डॉक्टर से वे इलाज..|”

रूद्र अपनी बात पूरी भी नही कर पाए थे कि वैभव बीच में ही बुरी तरह गरज पड़े – “अभी उसके बाप में इतना दम है कि अपनी बेटी का अच्छे से अच्छा इलाज करा सकता है – समझे तो हम पर और अहसान करना बंद करे – वैसे भी वक़्त ने खुद ही उसकी सारी पुरानी बुरी याद उसकी जिंदगी से हटा दी – और रहा ये नाममात्र का रिश्ता तो उसे भी मैं जल्दी ही हटवा दूंगा |”

“ठीक है जैसा आप चाहे – शौर्य के वापस आते डाइवोर्स पेपर साइन कराकर तुरंत भेज देंगे |”

“साथ में हमारा भी |” अचानक बीच में आती इस आवाज पर सबका ध्यान अनामिका की ओर गया तो रूद्र का जैसे जी हलक तक निकल आया| वह बड़ी बेचारगी से उसकी ओर देखता विरोध कर बैठा –

“नही अनु |”

इस पल दो जोड़े निगाह आपस में मिलकर अंतरस बिलख उठे थे|

एक तरफ उनके जीवन का इतना बड़ा पल था तो वही मन का ऐसा अलगाव| वे दोनों भरे मन से एकदूसरे को यूँ देखने लगे जैसे दो विपरीत स्थिति में चलती नदी बार बार अपने गंतव्य को लौट आती हो|

रूद्र बेचैनी से अनामिका की ओर आता बिफर पड़ा – “ऐसा कभी नहीं होगा अनु |”

“क्यों – हमारी मौत का इंतजार करेंगे क्या ?” रूद्र पर कटाक्ष करती वह जबरन अपने मनोभाव ह्रदय के अतल में दबाती हुई बोली|

“अगर ऐसा वक़्त आया भी तो कसम से हमारी मौत के बाद ही आएगा |” कहता हुआ रूद्र तुरंत वापस मुड़ता हुआ बाहर निकल जाता है| अनामिका भरे मन से बस देखती रह जाती है|

अनिकेत की अभी नींद लगी ही थी कि कमरे के दरवाजे पर फिर तेजी से दस्तक होती है जिससे गहरी नींद से जगता अनिकेत तुरंत उठ बैठता है| दस्तक बहुत  तेज थी इतनी कि अनिकेत को तुरंत दरवाजा खोलना पड़ा| दरवाजा खोलते उस पार हडबडाता हुआ जॉन खड़ा जल्दी जल्दी बोल रहा था – “अनिकेत तुम्हारे घर से किसी पडोसी ने फोन किया है कि तुम्हारे पिता के अचानक बीमार होने से वे हॉस्पिटल में एड्मिड है – |”

“क्या !!!” अनिकेत की ऑंखें घबराहट में फ़ैल जाती है|

“हाँ अब सोचने का बिलकुल समय नही है – तुम तुरंत बाहर निकलो – मैंने टैक्सी तय कर ली है वह तुम्हे ले जाएगी और मैं पीछे से सब समेटता बाद में आता हूँ |”

ये सुनते अनिकेत कुछ सोचने लगता है तो जॉन जल्दी से उसे हिलाता हुआ कमरे से बाहर लाता हुआ कहता है – “अभी सोचने का वक़्त नही है – चलो जल्दी – वहां तुम्हारी जरुरत है – तुम बाहर निकलो मैं सामान लाता हूँ |”

जॉन की हडबडाहट से सच में अनिकेत कुछ नही सोच पाया और तुरंत ही बाहर निकल गया और उसके अगले ही पल जॉन उसका सामान लिए उसके पीछे पीछे चल देता है|

एक पल में धुए का गुबार उड़ाती टैक्सी अनिकेत को लिए निकल जाती है| कमरे का दरवाजा खुला था जिसे देखता जॉन आश्चर्य से अंदर आता हुआ इधर उधर नज़र दौड़ाता हुआ खुद से कहता है –

“बड़ी अजीब बात है – कमरे में अनिकेत भी नही है और न उसका सामान – कमरा भी ऐसे ही खुला पड़ा है – आखिर कहाँ गया अनिकेत ?” जॉन कुछ पल तक वही खड़ा इधर उधर देखता हुआ अचानक चौंक जाता है| अब उसकी नजर के सामने खिड़की पर टंगी रुद्राक्ष की माला थी|

“ये क्या ये माला तो हमेशा अनिकेत के गले में रहती है तो इसे बिना पहने वह कहाँ जा सकता है |”

“जॉन |”

आवाज से जॉन की तन्द्रा टूटती है तो वह पलटकर देखता है| अब देहरी पर खड़ा रूद्र उसी की ओर देख रहा था|

“अनिकेत कहाँ गया है – हमने अभी उसे सामान के साथ जाते देखा – हमने उन्हें आवाज भी दी पर उसने कुछ सुना ही नहीं – कोई विशेष कारण है जॉन – कोई परेशानी ?”

ये सुनते जॉन का रहा सहा होश भी उड़ गया जिससे वह तुरंत कुछ पल सोचता हुआ अपने बैग पैक से लैपटॉप निकालता हुआ उसे अपने मोबाईल से कनेक्ट करता हुआ कुछ सर्च करने लगता है| रूद्र उस के इस अजीब व्यवहार से चौंक जाता है पर कहता कुछ नही| अगले ही पल वह देखता है कि जॉन अपने सर पर हाथ मारते हुए बौखला उठा था|

“हुआ क्या जॉन ?”

“बहुत बुरा – ये सही संकेत नही है – अनिकेत खतरे में है |” जॉन अपने में ही बुदबुदाया|

“क्या !!” अब रूद्र उसकी ओर आता उसके लैपटॉप में गौर से देखता हुआ पूछता है – “ये क्या है ?”

“ये मैंने आपके महल के कुछ सीसीटीवी कैमरा पलक तक पहुँचने के लिए हैक किए थे – उसे अभी फिर से कनेक्ट करके जो मैंने देखा वो बहुत भयानक सच है |”

“कैसा भयानक सच ?” अबकी रूद्र भी बौखला उठा था|

“ये देखिए – एक तरफ मैं बाहर की ओर जा रहा हूँ तो दूसरी तरफ से मैं ही यहाँ कमरे तक आ रहा हूँ |”

रूद्र वाकई ऐसा हैरान कर देने वाला दृश्य देखता बुरी तरह से घबरा गया| अब दोनों के चेहरे पर डर का पसीना चमक रहा था|

…..क्रमशः……

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