
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 7
चारों ओर घना अँधेरा था, वह कोई तहखानानुमा कमरा था| उस कमरे में पड़ते नाममात्र के उजाले से मालूम पड़ रहा था कि इसकी दीवारे पत्थर से तैयार थी| रौशनी शायद छत की ओर से आ रही थी, ऊपर छत तो थी ही नही बस खुला आकाश नजर आ रहा था, तारों से भरा हुआ पर बिन चाँद का सूना काला आकाश जिसका न आदि था न अंत, दूर दूर तक बस छत पर बिछा हुआ था आकाश| उस नामालूम रौशनी के कतरे के नीचे उन पत्थरों की दीवार के बीच कोई था, कोई लहराता हुआ साया जो एक ही स्थान पर लगातार हिल डुल रहा था मानो वह वहां बंधा हो और खुद को खींचने की कोशिश कर रहा हो उसी क्रम में हिलने लगते है उसके खुले लम्बे बाल, हवा के साथ काले अँधेरे में लहराते उसके बाल किसी जाल से प्रतीत हो रहे थे, अचानक उसके पास ढेरों बेड़ियाँ नजर आने लगती है, जिससे उस साए को अपने हाथ बंधे होने का अहसास होने लगता है इस अहसास से वह और कसमसा उठती है वह लगातार खुद को खींचने का प्रयास करने लगती है पर उसके पैर कहीं धसे जा रहे थे, नीचे जमीं पर रेत ही चादर बिछी थी अब उसका शरीर उस रेत में धसने लगा वह चिल्ला उठी…तभी झटके से साथ उसे किसी के नर्म स्पर्श का अहसास होने लगता है, वह हाथ था किसी का जो उसकी बेड़ियाँ खोल रहा था जिससे उसकी कसमसाहट और बढ़ जाती है| वह अपने खुले लम्बे बालों के बीच से चमकती आँखों से उसे पहचानने की कोशिश करने लगती है पर याद नही आता वह चेहरा, वह बंधन खोलता रहा पर उसका हाथ फिर भी नही खुला, फिर भी वह बंधन खोलता रहा तभी उसे अहसास हुआ जैसे वह पूरा धंस गई अपने बंधे हाथों के साथ…उस पल बालू में धंसा उसका शरीर प्राण वायु के लिए छटपटा उठा अब न वह सांस ले पा रही थी और न मदद के लिए कोई पुकार ही उसके कंठ से फूट पा रही थी ये सोच उसका दम फूलने लगा..वह गहरी गहरी साँसे लेने लगी..उसका शरीर जोर से हिलने लगा..तेजी से लगातार…
“उठ न कितना सोएगी |”
वह झटके से ऑंखें खोलती है उस पल अपने सामने झलक को वह यूँ देखने लगी मानों उसका वहां होना उसने उम्मीद ही नही की थी|
पर वह उतनी ही लापरवाही से उसकी ओर न देखती हुई बोलती रही – “रोज तो मुझसे पहले ही उठकर बैठ जाती है आज क्या हुआ – !”
पलक अभी भी अपलक उसे देखती एक एक सांस लेती है जैसे खुद को कही से खींचकर ला रही थी|
“चल उठ न |” झलक उसे उठते हुए न देखती हुई फिर कहती है|
“झल्लो मैंने बहुत डरावना सपना देखा |” पलक चादर समेटती हलके से उठती हुई कहती है|
झलक अब उसकी ओर देखने लगी|
“कुछ ज्यादा ही डरावना था – |”
“क्यों भूत तुझे खा रहा था !!” अपनी हँसी होंठों के बीच दबाती हुई बोली|
“मजाक नही सच में – एक अजीब सा अहसास हुआ जैसे मैं कहीं बंधी हुई हूँ और खुलने के लिए तड़प रही हूँ पर बंधन खुल ही नही रहा और उसी वक़्त मैंने महसूस किया कि कोई मेरी मदद कर रहा है पर मेरी आँखों के आगे मेरे खुले बालों की वजह से मैं देख नहीं पाई वो कौन था – सच में मैं बहुत डर गई थी झल्लो – सुबह सुबह ऐसा सपना आया – पता नही क्या अर्थ है इस सपने का |” पलक उठकर अपना दिल थामे जैसे अभी भी अपनी उफनती साँसों को नियंत्रित कर रही थी|
“पर मुझे पता है इसका अर्थ |”
ये सुनते पलक हैरान आंखे फाड़े उसकी ओर देखती रह गई|
“क्या !!”
“यही कि तेरे बाल सच में बहुत बड़े हो गए है – |”पलक जितनी हैरान थी झलक उतने ही हलके लहजे में उसके पास आती उसके कंधे पर के बिखरे बाल हटाती हुई बोलती है – “तेरे बाल बहुत बड़े हो गए है इनकी कब से ट्रिमिंग नही हुई – चल आज न इसी बहाने पार्लर चलते है और कोई नया वाला कट ले लेगे – फ्लावर कट कैसा रहेगा !!”
पलक अपनी गंभीर बात पर उसे चुहुल करती देख मुंह सिकोड़ती हुई बस देखती रह गई| झलक अब बिस्तर पर खड़ी होती जोश में कह रही थी – “क्या मजा आएगा – हम दोनों अपने बालों में एक जैसा स्टाइल करा लेंगे – फिर मैनीक्योर…पैडीक्योर..|”
“और बिल भी बनेगा हजारों में श्योर |” जल्दी से पलक बीच में बोल उठी – “तू भी न हमेशा बस पैसे खर्च करने के बहाने ढूंढती रहती है |”
पलक गुस्से में उसे देख रही थी पर इसके विपरीत झलक कुछ सोचती मुस्करा रही थी मानों इस बात पर उसके मन में हजारों लड्डू फूटने लगे कि आने वाले वक़्त में उसके आस पास दासियाँ होंगी और तब उसे खर्च करने के लिए पर्स की जगह सामान ढूंढना पड़ेगा..रानियों वाला मखमली एहसास उसके जहन में तरंग सा दौड़ गया|
झलक को वही छोड़कर पलक घडी में समय देखती कमरे से बाहर आ जाती है| उस पल उसके मन में अजीब सी बेचैनी मची हुई थी ऐसी बेचैनी जिसे वह शब्दों में बयाँ नही कर सकती थी| वह कमरे से बाहर निकलकर कुछ आवाज सुनती है शायद उसके माता पिता कुछ तेज स्वर में बात कर रहे थे, उस आवाज को सुनती अब वह मुख्य हॉल से निकलती बाहर गार्डन की ओर आती है| वहां आते आते वे आवाजे और स्पष्ट होने लगती है जिससे उसे मालूम होता है कि माँ बेदह उत्साह में बता रही कि उनकी सगाई के लिए उन्हें बहुत जल्दी है जिसके लिए रानी सा भी बहुत ही जल्दी में है|
“इतनी जल्दी भी क्या है – |” वैभव सोचते हुए पूछते है|
“अभी तो मंगनी करने की ही बात कर रहे है – अच्छा है न रिश्ता पक्का होते एक रस्म तो हो ही जानी चाहिए – शाम को उनके मेनेजर का फोन आने वाला है – तभी आप बात कर लीजिएगा |”
पलक अपनी ओर से हाँ कह चुकी थी पर उसे नही पता था कि उसके बाद की रस्म इतनी जल्दी होने लगेगी, माँ की बात सुनते उसके कदम जैसे वही जड़ हो गए, वह जान रही थी कि उसने अपना फैसला सुनाया या सभी की हाँ में हाँ मिला दी दोनों बातें उसके लिए तो एक समान ही रही|
“ठीक है हम भी अपनी सहूलियत से मंगनी की तारिख निकलवा लेंगे |”
पति की बात सुनते वे और खुश होती कहती है – “हाँ ये ठीक रहेगा – मैं दोनों राजकुमारों की कुंडली मंगवा लेती हूँ|” माँ चली गई पर उनकी ओर आती पलक एक जगह ठगी सी खड़ी रह गई| पलक जिस ओर से आई थी माँ उसके विपरीत दिशा में गई जिससे उनका ध्यान उसकी ओर नहीं गया पर उनको जाता देख वैभव नज़र उठाकर देखते है तो उनकी घूमती नज़र पलक पर टिक जाती है|
“अरे पलक – आओ |”
वैभव सुबह सुबह गार्डन के गमले ठीक कर रहे थे| घर के सामने के आस पास के थोड़े हिस्से में गमले और जमीन में कुछ पौधे लगा रखे थे| जिसमे अभी गुल्द्वारी और सदाबहार फूलों से लदे हुए थे| कही कही पूजा के पड़े गेंदे के फूलों से पौधे निकल आए थे, जिन्हें बड़ी सावधानी से निकालते हुए वैभव उन्हें कुछ गमलों में लगा रहे थे| पलक अब अपने मन के भावों को अंतरस दबाती वही चली आई|
“देखो कितने सारे पौधे निकल आए – अच्छा हुआ तुम आई गई अब साथ में पौधे लगाते है|” कहते हुए वैभव खुरपी से उन पौधों को अतिरिक्त मिटटी से उठाकर अपनी ओर रखते कहते है – “पलक तुम मुझे पौधे पकड़ाओ मैं उन्हें लगाता जाता हूँ |”
ये सुन पलक उन पौधों को मिटटी सहित अलग अलग करके पिता की ओर बढ़ाती है |
“अरे अरे सभी नहीं – सिर्फ वही दो जो मजबूत हो मतलब जिनकी जड़े मिटटी को अच्छे से पकडे हो ताकि वे गमलों में लगते खुद को संभाल पाए |”
वे कुछ इस तरह अपनी बात कहते है कि उन पौधों को पकडे पकडे पलक वही थमी पिता की ओर देखती रही|
“हाँ बिलकुल रिश्तों की तरह – आखिर बेटियां भी तो ऐसी ही होती है न – जड़ सहित अपने मूल स्थान से हटाकर अन्यत्र जगह रोप दी जाती है लेकिन तब अगर वे मजबूत न हुई तो नए परिवेश में खुद को कैसे संभाल पाएंगी – हु !”
पापा पलक की ओर देखते रहे जैसे उसका चेहरा पढ़ रहे थे, उस पल पलक को लगा कि वाकई वह सारी दुनिया से अपने मन की बात छुपा सकती है पर अपने पापा से नही, कोई बूंद उसकी आँखों में झलक आई जिसे छुपाने वह नजरे नीची किए फिर पौधे छांटने लगी|
“इन पौधों को खुद को सिर्फ जिन्दा नही रखना है बल्कि अच्छे से खिलना भी है इनको – पलक तुम खुश तो हो न अपने फैसले से !” वे अब पलक के हाथ से पौधे लेने लगते है पर पलक खामोश बनी रही|
“पलक मेरी बच्ची – तुम्हारे मन में क्या है पर जो भी है तुम मुझसे कभी भी कह सकती हो – मेरे बच्चों की ख़ुशी मेरे लिए सबसे अहम् है क्योंकि मैं बस तुम्हे खुश देखना चाहता हूँ – बोलो |” अब उन्हें लगता है कि पलक कुछ को उनकी बात की प्रतिक्रिया दे|
“पापा मैंने अच्छे पौधे छांट दिए है पर बचे हुए पौधे मत फेकिएगा – उन्हें एकसाथ लगा दीजिए शायद वे जी जाए |” कहती हुई वह दो पौधों के बण्डल उनकी ओर बढ़ा कर उनके विपरीत देखने लगती है|
लेकिन उनकी नज़र बेटी की ओर टिकी रही तभी माँ की आवाज ने उनकी तन्द्रा भंग की|
“सुनिए सोचती हूँ तब तक पलक झलक की कुंडली ही दिखवा लेती हूँ पर किसे दिखवाऊ !” अपनी बात पर वह खुद ही प्रश्न करती हुई पूछ उठी|
पत्नी की आवाज पर वे सोचते हुए खड़े हो जाते है पर उसी वक़्त पलक बोल पड़ती है जिससे दोनों का ध्यान उसकी ओर चला जाता है|
“काली मंदिर वाले पंडित जी को दिखवा लीजिए |”
“हाँ सही याद दिलाया – उन्ही पंडित जी को बुलाती हूँ आखिर पलक की मूल शांति पूजा भी तो उन्होंने कराई थी|”
माँ अपनी बात कहती कहती पापा के पास आ गई जिससे पलक चुपचाप वहां से चली गई|
“हाँ सुनिए – आपके पास तो नंबर होगा न – अच्छा उनको बुलाना ठीक रहेगा या हम खुद ही मंदिर चले जाए !”
माँ का ध्यान नहीं गया पर पापा पलक को जाता हुआ चुपचाप देखते रहे|
पलक अपने घुमड़ते मन के साथ चली गई, उस पल उसे भी आश्चर्य हुआ कि आखिर कैसे वह उनके बीच में बोल गई कहीं उसका बेचैन मन अनिकेत तक कोई खबर तो नही पहुँचाना चाहता !! पर उसी पल उसका मन खिन्नता से भर उठा कि आखिर अनिकेत ने उसकी कोई खोज खबर क्यों नही ली !! कैसी अजीब दुविधा में उसका मन फसा था जो उसका मन चाहता वो वह कर नही सकती और जो सबका मन चाहता वो वह करना नहीं चाहती आखिर कैसे अपने मन की उधेड़बुन से वह निकलेगी !! क्या उसके सपने की जंजीर यही प्रश्न तो नही !! तो बचाने वाला कौन था !! एक गहरा श्वांस छोड़ती वह घर के किसी एकांत कोने में जाकर बैठ जाती है ताकि कुछ पल वह सबकी सवालियां नज़रों से खुद को बचा सके |
क्रमशः………………..
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