Kahanikacarvan

एक राज़ अनसुलझी पहेली – 73

आधी रात में महल में अलग ही तांडव मचा था पर इन सबसे बेखबर महल के होटल वाले हिस्से के एक कमरे में पलक अभी भी बेसुध लेटी थी और उसके आस पास मौजूद उसके पिता और जॉन उसी पर अपनी नजर जमाए थे लेकिन दोनों पूरी तरह से आश्वस्त थे क्योंकि पलक के शरीर से लगी मशीन की रीडिंग बिलकुल संतुलित थी| तभी वहां अनिकेत का प्रवेश होता है जो सीधे पलक के पास आकर खड़ा होता है जिससे सबकी नज़र उस पर जाती है| सब हैरान थे कि उसका आना कोई समझ भी नही पाया था|

वह आते बस पलक की हथेली छूता है और वह यूँ उठकर बैठ जाती है जैसे वह कभी नींद में थी ही नही| सभी हतप्रभता से उन दोनों को देख रहे थे और पलक की निगाह अनिकेत से मिलती अब खिल उठी थी| उन दोनों को सुरक्षित देख अब एक सुकून वैभव और जॉन के चेहरे पर भी दिखने लगा था|

वैभव आगे बढ़कर दोनों को एकसाथ अपने गले से लगाते हुए कह उठते है – “चमत्कार को किसी शब्द से बयाँ नही किया जा सकता बस मन की आँखों से महसूस किया जा सकता है|”

उनकी बात पर अनिकेत अपनी भरपूर मुस्कान से कह उठता है – “ये चमत्कार नही पलक का मनोबल रहा जिससे मैं वापस आ पाया|”

“हाँ सच में – हम तो तुम्हारे गायब होने की बात पर डर ही गए थे|” जॉन आगे बढ़कर अनिकेत से कहता है| इस समय उसके चेहरे पर उसकी वापसी की ख़ुशी साफ़ देखी जा सकती थी|

वैभव अब पलक की ओर देखते हुए पूछते है – “वैसे पलक ये तुमने किया कैसे – मैं जानना चाहूँगा |”

ये सुन पलक के कहने से पहले अनिकेत कहने लगता है – “असल में जहाँ मैं फंसा था वह एक मायाजाल था जिसे पलक ने बड़ी समझदारी से तोड़ा |” अब सभी उत्सुक होकर अनिकेत को सुन रहे थे जो सविस्तार बता रहा था – “हम बहुत बहुत तीन आयाम तक देख सकते पर चौथा आयाम भी होता है इसे सिर्फ हम देख नही सकते और इसी में मैं फसा था – मैं जो टैक्सी में बैठा जा रहा था लेकिन वास्तविकता में मैं कही गया ही नहीं यही मौजूद था बस चौथे आयाम में होने से दिख नही रहा था और यहाँ समय धीमे चलने से मुझे समय का भी आभास भी नही रहा पर उसी वक़्त इस भ्रम को तोड़ने के लिए पलक ने उस समय कुछ फेककर मुझे इस भ्रम जाल से निकलने में सहायता की तभी मुझे चौथे आयाम में होना अपना पता चला – अगर पलक समय पर सहायता नही पहुंचाती तो पता नही कबतक मैं वही फंसा रहता |” अबकी अपनी बात खत्म करता हुआ वह वक्र दृष्टि से पलक की ओर देखता है जो उससे नज़रे मिलते मुस्करा दी थी|

“ये सब कुछ कितना अद्भुत है – समय यात्रा – किसी सपने जैसा ही है पर इसे  हकीकत में अपने सामने देख पाउँगा कभी सोचा ही नही था|” वैभव भी मुस्कराते हुए कह रहे थे|

“समय यात्रा से ज्यादा अद्भुत है उससे वापस आना – कई बार लोग समय के पार जाकर कभी वापस इसलिए नही आ पाते क्योंकि वह भी एक तरह की भ्रमित दुनिया होती है और वे वहां के भ्रम में फंसे रहते है – वहां न ही परछाई बनती है और न समय में गति ही होती है – बस संकेत को समझते समय को पार करके आना होता है|”

“वाकई सही में और ऐसा नायब काम सिर्फ तुम दोनों ही कर सकते हो |” जॉन भी उनके सुर में सुर मिलाता है|

“और बाकी सब कहाँ है ?” अचानक अनिकेत वहां नजर दौड़ाते हुए पूछता है|

“उन्हें मैंने उदयपुर भेज दिया और मुझे लगता है हमे भी यहाँ से अब निकल जाना चाहिए |”

वैभव की बात सुन अनिकेत कहता है – “पर रूद्र से एक बार मिल लेना चाहता हूँ – वह मिलना चाहता था |”

“जैसा तुम चाहो – वैसे भी दिन होने ही वाला है – अभी खबर भेज देते है और मिलकर तुरंत ही यहाँ से चले जाएँगे क्योंकि अब मैं तुम सबको और खतरे में नही पड़ने दूंगा |” वैभव अपनी बात कहते बाहर की ओर निकलने लगते है तो उनके साथ अनिकेत, जॉन और पलक भी चल देते है|

रानी सा कराहट के साथ उठने की कोशिश करती फिर थोड़ा और नीचे लुढ़क आती है पर इस बार कोई हाथ उनको बचा लेता है| वह घबराहट के साथ उन हाथ को थामे खुद को सँभालने की कोई कोशिश करती देखती है वह रूद्र था जो उनको अपनी दोनों बाँहों से संभाले संभाले पूछ रहा था –

“आपको क्या हुआ माँ सा – इतनी चोट आपको कैसे लगी – आप गिर कैसे गई ?” रूद्र घबराता उनका चेहरा देखता है जहाँ चोट के काफी निशाँ मौजूद थे| रानी सा रूद्र का हाथ कसकर पकड़े अपने नीचे यूँ देखती है मानो वहां नीचे हजारों सीढियाँ मौजूद थी जबकि वह निचली पांचवी सीढ़ी पर ही बैठी थी|

“आप यहाँ अकेली क्यों आई – चलिए हमारे साथ |” रूद्र अपना सहारा देता माँ सा को उठा देता है|

वे भी डरती डरती खड़ी होती अगली सीढ़ी की ओर पैर बढ़ाती हुई कहती है – “संभाल कर रूद्र – यहाँ की ऊंचाई से गिर कर ही हमे चोट लगी – अब आप संभल कर चलिए – कही आप भी इन लम्बी सीढ़ियों से नीचे ना गिर पड़े !” वह अपने में ही बुदबुदाते बोले चली जा रही थी और रूद्र हतप्रभ उनका ये व्यवहार देखता रहा| उसे समझ नही आ रहा था कि आखिर कोई दो चार सीढ़ियों से नीचे गिरकर इतना चोटिल कैसे हो सकता है !! पर कहता कुछ नही क्योंकि महामाया के भ्रम जाल से वह अनजान भी नही रह गया था| रूद्र माँ सा को ध्यान से पकड़े लिए मंदिर से बाहर निकलता है|

पूरी रात जो हालत आदर्श की थी वही बाकियों की भी थी| नीतू अँधेरे और अपने पैरों के दर्द के कारण सीढ़ी चढ़ने से पहले ही झलक का हाथ पकडे थी इसलिए उनके बिछड़ते वे साथ में थी तो अनामिका और आदर्श अकेले फंसे हुए थे| वे सभी बुरी तरह से उस मायाजाल में फंस चुके थे| आगे का और न पीछे का कोई रास्ता उन्हें नही सूझ रहा था| वे सभी कभी डरकर चीखते नीचे भागते तो कभी ऊपर पर कोई रास्ता उन्हें नही सूझता| उस पल उन्हें लगा जैसे वे किसी भूल भुलैया में फंस गए हो| अनामिका अकेली थी इससे उसका रो रोकर बुरा हाल बना था| कई बार तो उसका शरीर यूँ निस्तेज हो जाता लगता कि वह सीढियों पर गिर ही पड़ेगी |झलक और नीतू आपस में हाथ पकड़े ऊपर नीचे करती अब बुरी तरह से हांफ रही थी| कभी एकदूसरे को पकड़े बिलखकर वे रो लेती| कोई अब तक किसी के पास नही पहुँच पाया था| आदर्श ऊपर नीचे करते अचानक ध्यान देता है कि आगे सीढियाँ पतली होती जा रही है| इतनी संकरी कि बस वहां से एक आदमी ही एक बार में गुजर सकता है| अगले ही पल उसे अहसास हुआ कि सीढ़ियों का रास्ता संकरा नही हो रहा बल्कि वह रास्ता सिकुड़ता जा रहा है और अगर ऐसा होता रहा तो वह इसके बीच दबकर रह जाएगा| ये खून जमा देने वाला दृश्य था| अब आदर्श बाकियों के बारे में सोचकर और भी परेशान हो उठा| यही हालत बाकी ओरों की भी थी| सभी ये समझ चुके थे कि अगले किसी भी पल वे सभी इन दीवारों के बीच दब जाएँगे| ये समझते सभी की रुलाई फूट पड़ी लेकिन आदर्श अभी भी हौसला नही खोना चाहता था इससे वह दीवारों पर हाथ मारता जोर जोर से चीखने लगा| वह अपने शरीर से धक्का देता चिल्ला रहा था इससे उसका शरीर बुरी तरह से थककर पस्त होता गया| झलक, अनामिका और नीतू का भी यही हाल था, रो रोकर उनके आंसू भी जैसे चेहरे पर जमा हो गए| अब रास्ता इतना सिकुड़ चुका था कि उनके शरीर को छूने लगा| ये देखते उनका रहा सहा हौसला भी खोने लगा और निराशा से वे सभी सीढ़ियों पर बैठते अपनी जीवंत मौत का दर्दनाक नज़ारा देखने को खुद को तैयार करने लगे| रास्ता सिकुड़ता रहा…और और और…अब उनकी देह उनके बीच दबती हुई कराह उठी| ये मौत का सबसे विभस्य नज़ारा था अब मौत उनकी ओर बढ़ रही थी और वे बेबसी में उससे बचने कोई आखिरी कोशिश भी नही कर पा रहे थे| बस अपने आखिरी पल वे अपने अपने प्यार को आखिरी बार याद करते बस विदा हो जाना चाहते थे कि तेज आवाज उनके आसा पास उभरती है और क्षण भर में कोई हलकी रौशनी उनके आस पास फ़ैल जाती है| आदर्श आवाज की ओर निगाह उठाकर देखता है सीढ़ी के ऊपरी हिस्से पर रचित खड़ा उसे आवाज लगाता हुआ पूछ रहा था –

“आप यहाँ कैसे आ गए -?”

रचित की आवाज से अब आदर्श जैसे होश में आता अपने आस पास देखता हैरान रह जाता है| पल भर में सारा नज़ारा बदल चुका था| सीढियाँ वैसे ही स्वता हो चुकी थी और ऊपरी हिस्से में रचित खड़ा उसे आशचर्य से देख रहा था|

“मैंने सीसीटीवी में आप लोगों को महल में आता हुआ देख लिया था इसलिए आपको देखने चला आया लेकिन आप सभी पिछले रास्ते से क्यों आए – ?” रचित प्रश्न पर प्रश्न जड़ता आदर्श को देख रहा था वही आदर्श कुछ कहने की हालत में खुद को लाने की भरसक कोशिश कर रहा था कि तभी उसे अपने पीछे से आवाज आती लगी तो वह पलटकर पीछे देखता है| वहां से झलक, नीतू और अनामिका भी हांफते हुए भागते चले आ रहे थे| आदर्श को समझते देर न लगी कि बाकियों की भी उसी की तरह हालत हुई होगी| वह अब बिना समय गंवाए झलक का तो नीतू अनामिका का हाथ पकडे ऊपर रचित की ओर तेजी से सीढ़ी चढ़ने लगते है| वे समझ चुके थे कि ये जरुर कोई मायाजाल था पर पल भर में मौत के साक्षात् दर्शन से उनके चेहरों पर अभी भी हवाइयां उड़ने के साफ़ साफ चिन्ह मौजूद थे|

अब सुबह हो चुकी थी| ये भोर का पहला उदय था| आकाश में निश्चल नर्म सूर्य पूरे शांत भाव से पूरब से उग रहा था जबकि महल में इसके उलट मौत का मातम पसरा था| रात की बेबसी सबके हाव भाव में हलक रही थी|

रचित सबको लिए अब महल के होटल वाले हिस्से की ओर ले जाता लॉबी में रुका था| तो दूसरी ओर से रूद्र माँ सा को लिए वही आ रहा था| रचित आगे बढ़कर सबको डिस्पेंसर से पानी देने लगा तभी उनकी नज़र अपनी ओर आते पलक, अनिकेत, वैभव और जॉन पर पड़ी| अब सभी लॉबी में मौजूद अजीब निगाह से एकदूसरे को देख रहे थे मानों सामने सच नही कोई मिराज हो…!!

क्रमशः………

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