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एक राज़ अनसुलझी पहेली – 74

सभी एकदूसरे को अजनबी निगाहों से देख रहे थे पर अगले ही पल सबके होने की हकीकतन मौजूदगी से सबके चेहरे सामान्य हो पाए| तब रानी साहिबा को घायल देख रचित रिसेप्शन से फर्स्ट एड बॉक्स ले आता है| इस समय महल से सभी गेस्ट के साथ साथ कर्मचारी भी भेजे जा चुके थे इससे अब महल में उनके अलावा और कोई नही था| फर्स्ट एड बॉक्स लेकर अनामिका और पलक रानी साहिबा के बेंडेज लगा रही थी| ये बात अलग थी कि मारे शर्मिंदगी के वे नज़र उठाकर दोनों की ओर देख भी नही पा रही थी| जबकि झलक किनारे सबसे अलहदा खड़ी सबको देखती एक घूमती नज़र उठाकर एकबार रचित को देख लेती| आदर्श अपने साथ हुआ वाकया बता रहा था जिसे सुनते उदास स्वर में वैभव कहने लगे –

“शुक्र है तुम सब उस मुसीबत से बाहर निकल आए पर पता नही हम कब यहाँ से बाहर निकल पाएँगे ?”

वैभव की कमजोर आवाज से आदर्श को बहुत बुरा वाला एहसास हुआ जिससे वह जल्दी से उनसे पूछता है – “मतलब क्या है आपका ?”

“यही कि हम तब से निकलने का रास्ता खोजते रहे पर नही खोज पाए – हम सब किसी ट्रैप में फंस चुके है|” वैभव का आखिरी वाक्य वहां के माहौल में असर कर गया जिससे सभी हैरानगी से उनकी ओर देखने लगे|

रूद्र अब उनकी ओर देखता हुआ पूछता है – “ट्रैप – कैसा ट्रैप ?”

वैभव खामोश होकर जमीं को घूरने लगे तो अनिकेत आगे आता हुआ कहता है – “हम सब मायाजाल में है – ऐसा मायाजाल जिसमे जो भी सामने हो रहा है वो सत्य न होते हुए भी हमारे लिए सच बना हुआ है – इसलिए यहाँ से निकासी का रास्ता है पर हम उसे देख नही पा रहे – |”

अनिकेत की बात सुनते आदर्श जल्दी से पूछ उठा – “तो जो कुछ भी सीढियों पर हुआ वो सब आँखों का धोखा था !!”

आदर्श की बात के आगे रूद्र भी अपनी बात पूरी करता हुआ पूछता है – “और माँ सा के साथ हो हुआ – वो भी मायाजाल था क्या !!”

अनिकेत अब बारी बारी से दोनों का चेहरा देखता हुआ आगे कहता है – “हाँ सब कुछ मायाजाल ही है बिलकुल एक जादूगर के खेल की तरह बस फर्क इतना है कि ये मायाजाल हकीकत का एहसास कराता है इसलिए उससे हम आहात होते है |”

“माय गॉड – ये सब क्या हो रहा है ?” रूद्र परेशानी में अपना माथा मसलते हुए भुनभुनाता है|

“क्या से पहले हमे ये तलाशना है कि ये कौन कर रहा है और क्यों – |”

“राजगुरु – वही है इन सबके पीछे |” दांत पीसते हुए रूद्र कहता है|

“आखिर वह महामाया को दुबारा जीवित करते चाहता क्या है और ये नटनी का श्राप क्या है ?” पूछता हुआ अनिकेत बारी बारी से रानी साहिबा और रूद्र का चेहरा देखता है पर उसका प्रश्न उनके चेहरों पर निउत्तर होता प्रश्न बना था|

सभी के चेहरे हैरान बने हुए थे कि तभी कोई तेज कर्कश आवाज उस लॉबी में गूंजी तो सबकी ऑंखें सन्न रह गई|

“हम बताते है – कौन है नटनी और क्या है उसका श्राप और क्या चाहता है वह राजगुरु !!”

नवल बहुत देर से एक ही मुद्रा में बैठा कही अपने विचार में गुम था| अभी अभी उसके लिए नागेन्द्र जी जो कॉफी लाए थे वह बगल की मेज पर रखी रही पर नवल ने उसे हाथ भी नहीं लगाया| नागेन्द्र जी वापस आते फिर उसे टोकते हुए कहते है – “कुंवर सा आप किस बात की खुद को सज़ा दे रहे है – कल से आपने कुछ खाया पिया नही है इससे आपकी तबियत बिगड़ सकती है !”

उनकी बात का बेहद सपाट स्वर में नवल उत्तर देता कहता है – “शायद इससे हम अपने किए का पचश्तावा कर पाएँगे – अगर नंदनी को कुछ हो गया तो खुद से कैसे नज़र मिला पाएँगे हम !”

“उनके साथ कुछ बुरा नही होगा – वही खबर देने तो हम आए है – उनको होश आ गया है – आप चाहे तो मिल….|”

नागेन्द्र जी अपना कहा पूरा भी नही कर पाए थे उससे पहले ही नवल एकदम से खड़ा होता उनका बाजु पकड़े पकड़े पूछता है – “क्या नंदनी को होश आ गया – हम अभी उससे मिलेंगे |”

“तो चलिए अभी |” नागेन्द्र जी भी उसी मुस्कान से कहते नवल के आगे आगे चलते उसका मार्ग प्रशस्त करते है|

नवल लगभग दौड़ता हुआ वार्ड तक पहुंचा पर देहरी तक आते वह अपने कदम धीमे कर लेता है| नागेन्द्र जी वार्ड के बाहर रुक जाते है| उस प्राइवेट वार्ड में मशीनों से बिंधी नंदनी लेटी थी| ये देख नवल अब अहिस्ते से अन्दर आता नंदनी के पास आकर खड़ा हो जाता है| नवल के आने का आभास पाती नंदनी बिना उसकी ओर देखे नज़रे नीची किए रहती है| नवल अब सीने में हाथ बांधे उसकी ओर गौर से देख रहा था| उसके सर पर अभी भी पट्टी बंधी थी और चेहरे पर गहरी वितृष्णा दिखाई दे रही थी| कुछ पल तक उनके बीच गहरी ख़ामोशी छाई रही| नवल उसके चेहरे की ओर देख रहा था जहाँ गहरा कशमकश दिख रहा था| आखिर देर की ख़ामोशी तोड़ती हुई नंदनी नज़रे नीची किए किए कहती है – “क्यों बचा लिया मुझे – अब कैसे आपकी नज़रों का सामना करुँगी मैं ?”

“तब नही सोचा था जब दुल्हन बदलते तुमने हमसे शादी की !” नवल सख्त तेवर में बोलता है तो नंदनी होंठ भींचे चुप रह जाती है|

“कुंवर सा – मुझसे जो गलती हुई उसके लिए मैं खुद को सजा दूंगी – आप चिंता न करे – मैं आपकी दुनिया से हमेशा के लिए दूर चली जाउंगी – कभी आपको नज़र नही आउंगी |” बड़ी मुश्किल से अपनी नज़रे नवल की ओर करती भीगी पलकों को झुकाती हुई कहती है|

“शादी तुम्हारे लिए कोई मजाक है क्या – मन के समर्पण से ये रिश्ता बनता है और वो सब कुछ तुम हमे दे चुकी थी फिर ये सवाल तुमने क्यों नही किया हमसे – शादी करके भी क्यों खामोश बनी रही ?” अचानक नवल की गरजती आवाज नर्म हो उठी तो नंदनी अवाक् उसकी ओर देखती रही|

“हाँ – ये सवाल तुम्हे हमसे पूछना था – तुमने अपनी जान हमारे लिए दाँव लगा दी और इससे बढ़कर क्या सबूत दोगी अपने समर्पण का !”

नवल के शब्द नंदनी के मन में क्या असर कर रहे थे ये उसकी लगातार बहती ऑंखें बयां कर रही थी| अब नवल अपने सीने का बंधन खोलते नंदनी की हथेली पकड़ लेता है| उस पल जैसे अस्फ़ुटित नदी की धार उसकी आँखों से बह चली थी|

नवल नंदनी का हाथ थामे वही थके मुसाफिर सा बैठ गया था| नंदनी की तो रुलाई नही रुक रही थी|

“नहीं पहचान पाया प्यार की सही कीमत पर सच कहता हूँ जब तुम्हे खुद से दूर जाता देखा तब तुम्हारे होने की कीमत का अहसास हुआ – लगा सच में अब सब कुछ खो दूंगा – तब हर वो क्षण याद आया जब तुम हमारे इर्द गिर्द मौजूद रहकर हमारे लिए बेहद ख़ामोशी से करती रही और हम तुमसे उतने ही अनजान बने रहे – क्या तुम्हारे इस अनमोल प्यार के काबिल भी हूँ मैं ?”

अबकी नंदनी नवल को कसकर पकड़ती सुबुकती कह उठी – “आप तो हमारे सब कुछ है – सब कुछ – |”

नवल अब एक हाथ से उसका चेहरा पोछता हुआ कहता है – 

“आपको अपनी गलती की सजा चाहिए थी न तो इस सजा के लिए ठीक हो जाइए क्योंकि ये सजा सात जन्म चलने वाली है हमारे साथ |” कहता हुआ वह उसकी हथेली चूम लेता है जिससे नंदनी के सुन्न जिस्म में भी अजीब सी झनझनाहट दौड़ जाती है|

“आपकी हर सजा सर आँखों पर – हमारी सौ जाने आप पर कुर्बान है|” नंदनी के कांपते होंठ बस इतना ही कह पाए|

अब कुछ पल तक उनके बीच की ख़ामोशी में बस दिलों की धड़कने हौले हौले धड़क रही थी|

“अभी रुको |”

“मेरे को मरीज की ड्रेसिंग करने जाना है |”

अचानक इस आवाज की बाधा से नवल का ध्यान अपने पीछे जाता है तो वह  मुड़ता हुआ देखता है कि कोई नर्स हाथ में ट्रे लिए अन्दर आने को बेकल थी तो नागेन्द्र जी उसके आगे अपने हाथ की बाधा किए उसे देहरी पर ही रोके थे| ये देख नवल उठता हुआ उसे अंदर आने देने का इशारा करता है| नर्स के लिए ये बड़ा अटपटा था कि कोई उसे इस तरह भी रोक सकता है| वह बस मुंह बनाए हुए अंदर आती हुई नंदनी के पास आकर खड़ी होती ड्रेसिंग की तैयारी करने लगती है| तब तक नवल नंदनी को आँखों से रुकने को कहता बाहर आ आता है|

“बड़े कुंवर सा का सन्देश आया है |”

नवल अभी वार्ड से निकला भी नही था कि हडबडाते हुए नागेन्द्र जी कहते है – “उन्होंने कहलवाया है कि आप जहाँ है अभी वही रहे और राजमहल कतई न आए |”

“क्यों?” नवल के प्रश्न पर वे ख़ामोशी से बस सर झुका लेते है|

“बात क्या है !! हमे सच जानना है |” नवल सख्त आवाज में कहता है|

“कुंवर सा वहां का माहौल ठीक नही है – रानी सा भी सीढियों से गिर गई इसलिए आपको अभी महल से दूर रहने को कहा है|”

ये सुनते नवल परेशान होता हुआ कहता है – “इतना सब हो गया और हमे अब बताया जा रहा है और हमसे उम्मीद की जा रही है कि मुसीबत के वक़्त हम अपने परिवार से किनारा कर लेंगे – पर ये हमसे नही होगा – हम आज ही जैसल के लिए निकलेंगे – आप उसकी तैयारी करे |”

“जो हुकुम सा |” नागेन्द्र जी दबे मन से बस सर झुका लेते है|

“लेकिन आपको यही रहना होगा – नंदनी की ढाल बनकर – आप से बढकर हम किसी पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी नही छोड़ सकते – हम जानते है आपने हमेशा हर अच्छे बुरे सब काम में आंख मूंदकर हमारा साथ दिया है पर आज अपनी अमानत छोड़कर जा रहे है आपके पास – संभालिएगा |” कहते हुए नवल उनके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है तो वे हाथ जोड़े जोड़े कहते है – “आपकी हर इच्छा म्हारे लिए हुकुम है सा – आप बेफिक्र रहिए |”

नवल समर्थन में सर हिलाता है|

तभी नर्स अपना काम करके उनके बगल से निकल गई| ये देख नवल फिर अन्दर आता हुआ नंदनी को देखता है तो हतप्रभता से बोल उठता है – “ये क्या कर रही है नंदनी – आपको किसने उठने को कहा ?”

नंदनी कराहते हुए खुद को जबरन उठाने की कोशिश करती एक ओर को लुढ़क जाती है तो नवल जल्दी से आगे बढाकर उसकी देह को अपनी पनाह में समेटता हुआ उसपर नाराज होता हुआ कहता है – “ये कर क्या रही हो नंदनी – अभी तुम्हे खुद से नही उठना चाहिए |”

नंदनी अब खुद को ठीक से बैठाती हुई नवल का हाथ पकड़ती हुई कहती है – “मैं भी आपके साथ चलूंगी – |”

“कहाँ – हम महल जा रहे नंदनी और अभी तुम्हारी ऐसी हालत नही है कि वहां जा सको – पहले ठीक तो हो जाओ तब हम बहुत नाज़ से तुम्हें वहां ले जाएँगे |” वह उसका हाथ पकड़े पकड़े कहता है|

“हम वैसे भी आपके बिना मर जाएँगे – महल हम आपको अकेले नही जाने देंगे – हम भी चलेंगे आपके साथ |”

अब तक नागेन्द्र जी भी आते हाथ बांधे वही खड़े नवल को नंदनी की जिद्द से हलकान होते देख रहे थे|

“नंदनी …!!” नवल होंठ दाबे कुछ पल सोच में पड़ जाता है और नंदनी उसका हाथ कसकर थामे हुए थी| इससे उसकी हट का उसे अंदाजा हो गया था| अब नवल नागेन्द्र जी की ओर देखता है जिससे उसका समुचित इशारा समझते हुए वे कहते है – “आप फ़िक्र न करे कुंवर सा – सारी व्यवस्था हो जाएगी – |”

“पर हॉस्पिटल वाले अभी डिस्चार्ज नही देंगे |” नवल सोचते हुए कहता है|

जिसपर नागेन्द्र जी हलकी मुस्कान के साथ कहते है – “वो सब आप मुझपर छोड़ दीजिए – आपका हुकुम हर हाल में पूरा होगा |”

अब नंदनी के त्रस्त चेहरे पर भी हलकी मुस्कान खिल गई थी| वह अभी भी नवल का हाथ कसकर पकडे थे|

आज ये पार्ट उनकी इच्छा पर जो नंदनी को मरता नही देखना चाहते थे इसलिए लो मिला दी ये जोड़ी पर आगे होगा क्या !! कौन सा खतरा उनका वहां इंतजार कर रहा है जानने के लिए बस थोड़ा इंतजार….क्रमशः…..

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