
एक राज़ अनसुलझी पहेली – 9
सब कुछ इतना जल्दी जल्दी होगा पलक सोच भी नही पाई| जैसे ही हयात होटल के कार्यक्रम के बारे में उसे पता चला उसकी धड़कने बढ़ गई| उसे लगने लगा जैसे वह खुद से ही एक एक पल दूर होती जा रही है| वह खुद से कुछ और चाहती थी पर वक़्त और हालात उससे कुछ और ही करा रहे थे| जाने क्या सोच आज वह बिन विचारे जॉन के घर चल दी अभी भी उसका मन उम्मीद का कोना छोड़ना नही चाहता था जिसमे अनिकेत से एक मुलाकात की तीव्र उत्कंठा थी पर जॉन के घर पहुचते उसकी ये उम्मीद भी क्षण में टूट जाएगी उसके मन को अंदाजा भी नही था, उसके घर के इंट्रेंस पर लगे लोहे के छोटे गेट पर ताला लटक रहा था, अब जॉन नही मिला तो अनिकेत तक पहुँचने का मार्ग भी बंद हो गया| उस घर के आस पास मिले हुए घर भी नही थे जहाँ उसे उम्मीद होती कि जॉन के बारे में कोई उसके बारे में जानता होता| वह थके क़दमों से वापस आ गई|
जब वक़्त को थामना चाहो तभी वक़्त रेत सा हाथों से सरक जाता है और बिलकुल यही पलक के साथ भी हुआ, अगले ही क्षण वह परिवार सहित होटल हयात के शानदार बैन्क्युट हॉल में थी जहाँ उनकी और नवल की ओर का सारा परिवार मौजूद था| न चाहते हुए भी उसे मुस्कराना पड़ा और न चाहते हुए भी नवल के परिवार से मिलना पड़ा, शारदा आगे बढ़कर उनका परिचय पूरे परिवार से करा रही थी जिसमे नवल की नानी सा व्हीलचेअर पर थी पर उसके ढलके चेहरे में अलग ही राजसी ठाठ की चमक साफ़ नजर आ रही थी| साथ ही बताया गया कि नवल के ननिहाल में बस नानी सा ही है इससे उनकी बेटी यानि राजनंदा देवी दोनों तरफ के घरानों की देखरेख करती थी| फिर उनके कुछ और रिश्तेदारों से मिलने के बाद राजा साहब का इंतजार हो रहा था वे अभी तक आए नही थे| तब तक अनामिका का परिवार भी उनसे मिला जो सभी काफी खुश और संतुष्ट दिखे ये देख पलक के परिवार के मन भी संतुष्ट हो उठे| महफिल अपनी रौनक में थी| रूद्र, नवल और शौर्य के दमकते चेहरों के साथ अनामिका और झलक का चेहरा भी दमक रहा था वही पलक के चेहरे के भाव तठस्थ बने रहे, इसका कोई ठीक ठीक अनुमान नही लगा पाया सबने इसे पलक का स्वभाव मान सहजता से स्वीकार कर लिया| नवल अपनी भरसक कोशिशों में पलक को उसके आस पास ही बनाए रखे रहा यहाँ तक कि अब उनसे सबने शायरी की डिमांड की तो पलक की ओर अशिकाने ढंग से देखते कोई फ़िल्मी चेपी हुई शायरी सुना डाली और सबकी वाह वाह लूट ली|
“ये मुलाकात एक बहाना है..प्यार का सिलसिला पुराना है…धड़कने धड़कनों में खो जाए…दिल को दिल के करीब लाना है..|”
सब कुछ सौहार्द्र पूर्ण वातावरण में संपन्न होता रहा| फिर राजा साहब के आते सारी महफ़िल का ध्यान उनकी ओर चला गया| गौर्णवर्ण चेहरे पर अलग की दर्प नज़र आया, बस दो पल वैभव से बात करके वे जल्दी ही चले गए, ये वैभव को बहुत ही अजीब लगा पर रानी सा ने मुस्करा कर सब सहज कर लिया| आखिर आदर्श की जमाई महफ़िल संपन्न हुई और कामयाब भी क्योंकि वाकई उसने वहां किसी भी तरह की कोई कसर नही छोड़ी थी| पलक के लिए तो खैर एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा था और घर वापिस आते ही उसने चैन की सांस ली| पर मन की उधेड़बुन बनी ही रही आखिर कब तक अपने मन को जब्त करती उसे लगा कि शायद अपने मन की बात अपने पापा से उसे कह ही देनी चाहिए| वह सुबह उठते ही तेजी से मुख्य कमरे की ओर चल दी पता था इस वक़्त वे वहां बैठे अख़बार के साथ सुबह की चाय ले रहे होंगे| वह शब्दों की भारी गठरी लिए वहां तेजी से आई ही थी कि कोई आवाज से वह कमरे में आती ठिठक कर रह गई| पापा उसकी ओर देखने लगे|
“पलक – आओ – |”
पलक ठिठकी उनकी ओर देखती रह गई|
वैभव पलक का सपाट चेहरा देखते हुए कहने लगे – “अरे पहचाना नही क्या – काली मंदिर के पंडित जी है – आओ आशीर्वाद लो इनका |”
वैभव समझ नही पाए कि पलक अचानक क्यों ठहर गई उन्हें लगा शायद उनके सामने बैठे पंडित जी को वह पहचान नही पाई| पापा के टोकने पर जल्दी ही खुद को सहज करती पलक आगे बढ़कर उनके चरण स्पर्श करती है जिससे वे आशीष देते कह उठते है –
“सदा खुश रहो बिटिया -|”
पलक अब किनारे खड़ी रही|
“मैंने तो पहले ही कुंडली देखकर कह दिया था कि बिटिया की कुंडली में राजयोग है फिर कैसे नही राजघराने में रिश्ता होता -|” वे अतिरेक मुस्कान से अपनी बात कह रहे थे पर इसके विपरीत पलक का मन छलनी हुआ जा रहा था|
“हाँ बस आपका आशीर्वाद है |” वैभव पंडित की ओर देखते हुए भी आभास करते करते है कि पलक उनकी ओर ही देख रही है जिससे वे उसकी ओर देखते पूछने लगे – “पलक क्या हुआ – कुछ कहना है !”
तभी पंडित जी का मोबाईल बज उठा और सबका ध्यान उनकी ओर चला गया, वे रिंग सुनकर अपनी झोलानुमा पॉकेट से बटन वाला छुटकू मोबाईल निकालकर तुरंत ही कहने लगे जैसे जान रहे थे कि उस पार कौन है – “हाँ जी बस बस आता हूँ जजमान – |”
तुरंत ही फोन कट गया तब तक न वैभव पलक की सुन पाए न वह ही कुछ कह पाई लेकिन पंडित जी तुरंत ही कह उठे – “किसी जजमान के घर गृहप्रवेश की पूजा के लिए जाना है – आप चिंता न करे – मैं पूजन की सारी तैयारी करा लूँगा |”
तैयारीयों के साथ ही शायद वैभव को अनिकेत की याद हो आई क्योंकि उसके यहाँ की पूजा में भी अनिकेत ने ही तैयारी की थी जिससे वे जल्दी से पूछ उठे – “जी आपकी उसकी ओर से तो मैं निश्चिन्त हूँ – अच्छा अनिकेत कहाँ है आजकल – मंगनी के लिए उसे भी साथ में जरुर लाइएगा |”
पलक की धड़कन जैसे थम सी गई, आज पहली बार उस नाम का अपने मन में असर होते उसने महसूस किया पर उसमे जरा भी हिम्मत नही रही कि कुछ कह सके या वापस ही मुड़ जाए|
“बात हुई तो जरुर बता दूंगा और बुलवा भी लूँगा |” पंडित जी सोचते हुए कहने लगे|
“बात होगी – क्या मतलब !” वैभव पूछ उठे|
“मतलब ये कि वो बाहर गया है न पढ़ने तो कभी कभार ही बात करता है – बहुत पढाई का बोझा रहता है |”
“ओह – कहाँ गया है ?”
वैभव के इस बार के प्रश्न पर पंडित जी थोड़ा सोच में पड़ गए फिर याद करते हुए कहने लगे – “अब नाम तो मुझे स्मरण नही पर विदेश गया है वो भी स्कोलरशिप पर |”
ये सुनते वैभव एकदम से खुश होते हुए बोले – “अरे वाह – ये तो बड़ी अच्छी बात है – वैसे ये बात तो है कि आपका बेटा बहुत ही लायक है – उसमे कुछ विशिष्ट है ये तो मैंने खुद भी महसूस किया और देखिए स्कोलरशिप पर बाहर भी पढने चला गया|”
वैभव की बात पर पंडित जी के होंठ कुछ विस्तारित हो उठे, ये अपने पुत्र के लिए गर्वीली मुस्कान थी|
तभी फोन फिर बज उठा जिसने एकसाथ सभी की तन्द्रा भंग की और सभी ने अपने अपने तरह से रियक्ट किया| पलक अब वहां से चली गई तो पंडित जी हाथ जोड़कर उठते हुए बोले – “जजमान का फोन है – मुझे अब निकलना चाहिए – जय राम जी की|”
“जी जरुर पर अनिकेत को मेरी ओर से सन्देश जरुर दे दीजिएगा मंगनी के लिए जयपुर आने का – जय राम जी की |” वैभव ने अपना आखिरी शब्द थोड़ा तेज स्वर में कहा क्योंकि पंडित जी जल्दी से वहां से निकलने लगे थे| और ये आखिरी शब्द पलक के कानों से भी किसी तीर सा गुजर गया जिसकी परणीती आसुओं के रूप में उसने देर तक अपनी आँखों में महसूस की| जिसे एकांत में बहाते वह अपना मन खाली कर देना चाहती थी| जिस इंसान से वह अन्यास ही इतना जुड़ाव महसूस कर रही थी उसे उसकी हालत की जरा भी भनक नही है, काश अब तो उस तक उसकी खबर पहुँच जाए| फिर एक हलकी पर निर्जीव सी आस के साथ उसने गहरी श्वांस खींचकर खुद को संभाला| फिर वैभव उसके पास आकर उससे आने का कारण पूछने लगे लेकिन अब फिर से गहरे मौन के साथ पलक सब अपने मन में छुपा ले गई कि अब उसके हर सवाल का जवाब वक़्त ही देगा|
क्रमशः…………………….
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