Kahanikacarvan

एक राज़ अनुगामी कथा सीरीज – 2

कोई टेढ़ा प्रोग्राम बनाना हो तो झलक से बेहतर कोई नही सोच सकता ये सबको पता था, मौका देख कब तीनों सुबह से होस्टल से बाहर फुर्र हो गई किसी आँख को पता न चला| पूरा दिन मस्ती कर देर शाम तीनों हंसती हुई वापस आ रही थी|

“हाय इस सावारियां ने तो मार ही डाला – अब से न ये मेरा वाला फेवरेट हीरो हो गया |”

मचलती हुई झलक की आवाज सुन दोनों उसे घूरती हुई बोली – “यही तूने पिछली मूवी में भी कहा था किसी दूसरे हीरो के लिए – तेरा न हर बार का यही चक्कर है |”

अचानक आगे बढ़ते बढ़ते तीनों की निगाह कुछ अलग दृश्य देख जल्दी से शांत होती धीरे से एक दूसरे के कानों में फुसफुसाई – “ये शर्मीला – तानिया का दुश्मन ग्रुप हमें क्यों घूर रहा है ?”

“पता नही |” अनामिका ने भी फुसफुसाकर जवाब दिया|

“मेरा तो सिक्स सेन्स कह रहा है कि हमारे साथ कुछ तो बुरा होने वाला है |” पलक दबी आवाज में बोल पड़ी|

तीनों संतुलित क़दमों से आती बस उन लड़कियों के ग्रुप को पार करने ही वाली थी कि उनकी छाया के पीछे मेट्रन मैम और हॉस्टल की हेड मैम को देख तीनों के होश ही उड़ जाते है, अब तीनों मरमरी हालत से उन्हें देख रही थी तो बाकी के चेहरों पर चोर को पकड़ लेने की तिरछी हंसी तैर गई थी| तीनों के पैर उनके सामने आते जैसे बर्फ से जम गए|

“हाँ तो तीनों की सवारी कहाँ से आ रही है ?’

हेड मैम के पूछने पर तीनों के मुंह से कोई बोल नही निकला वे मूक ऑंखें झुकाए खड़ी रही|

“तुम्हें पता नही क्या कि सन्डे के दिन किसी को हॉस्टल से बाहर जाने की परमिशन नही मिलती – बस जब आज गार्जियन मिलने आते है तो उन्ही के साथ बाहर जाने की परमिशन मिलती है – तो तुम लोग किसकी परमिशन से बाहर गई – बोलो – जवाब दो कि एक्स्प्लेंशन तुम लोगों के पेरेंट्स से मांगू मैं !!” वह तेज स्वर में अपनी बात खत्म करती एकटक उनका चेहरा घूरती रही|

“आई वांट टू एक्स्प्लेंशन राईट नाओ |” वे चीखी तो तीनों के चेहरों का रंग ही उड़ गया तो बाकि मौजूद लड़कियां बिन आवाज़ के मुस्करा दी|

उनकी ऑंखें घूर ही रही थी तभी झलक झट से आगे आती अपनी आँखों से मोटे मोटे आंसू झलकाती कह रही थी – “मैम – मैं पहले ही इनसे कह रही थी कि मैम को बता देते है पर किसी ने मेरी सुनी ही नही |”

झलक की बात सुन अब सब ऑंखें फाड़े उसी को देख रही थी तो पलक और अनामिका के काटो तो खून नही जैसे हालात हो गई| वे मन ही मन कसमसाई कि ये झलक की बच्ची जाने क्या गुल खिलाने वाली है|

“मैम मैं तो जाना भी नही चाहती थी पर क्या करूँ खुद को रोक भी नहीं पाई – अनु अपनी लोकल गार्जियन आंटी का इंतजार ही कर रही थी तभी उनके पड़ोस की आंटी का फोन आ गया कि आंटी अपने घर में बेहोश पड़ी है -|” सब हैरान झलक की कहानी सुन रहे थे और वह भी पूरे हाव भाव से कहानी सुना रही थी – “हमे ज्यादा कुछ सोचने का समय ही नही मिला – हम तो बस झट से रजिस्टर में नाम लिखती निकल गई – और अच्छा ही किया – जब वहां पहुंचे तो देखा आंटी तो घर में अकेली थी – फिर तो पूछिए मत उनको लेकर हॉस्पिटल पहुंचे और वहां ..|” कहते कहते रूककर वह कुछ सुबकने लगी तो हैरान मैम झट से उसके नजदीक आती धीरे से पूछ बैठी – “वहां !!! – फिर क्या हुआ वहां ??”

अपने मगरमच्छ के आंसू पोछती हुई वह बोलने लगी – “वहां मालूम पड़ा आंटी को कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज वाला |” मुंह गोल गोल कर वह बोली|

ये सुनते सभी के चेहरों में अव्यक्त हमदर्दी मिश्रित डर दिखने लगा|

“हम सारा दिन उनकी सेवा में लगी रही आखिर एक कवयित्री को बचाना जो था |”

“कवयित्री !!!” कहानी का नया ट्विस्ट सबकी जुबान पर एक साथ तैर गया|

झलक जानती थी कि हेड मैम खुद कवयित्री है और जहाँ साहित्य की बात हो उनको अपने मोहपाश में घेरना आसान हो जाता है|

“यस मैम – कवयित्री – ये जानते तो मेरा मन और द्रवित हो गया – आखिर हमारे समाज में कितनी कवयित्रियाँ है – समाज को उनकी जरूरत है – मैंने भगवान् से प्रार्थना की – गिडगिडाती रही भगवान के  सामने और फिर से उनका टेस्ट कराया तो पता है फिर क्या हुआ मैम…??”

सभी अपनी साँस रोके एकटक उसको सुन रहे थे|

“उनका टेस्ट निगेटिव आया – उनकी रिपोर्ट किसी से बदल गई थी लेकिन ये चमत्कार था भगवान का, दुआओं का  – उन्होंने खुद आकर सिर्फ उनको नहीं बचाया – पूरे साहित्य समाज को बचाया|” झलक इस तरह से हाथ घुमा घुमाकर कह रही थी मानों किसी आन्दोलन के लिए स्टेज पर बात रख रही हो, सब हतप्रभ उसकी बात सुनते रहे – “हमारे समाज को ऐसी साहित्य सेवियों की कितनी जरुरत है – बस मैम इसी कारण पूरा दिन इसी में निकल गया|” अब अपना स्वर धीमा करती कहती है – “पर सारी मेरी ही गलती है – मुझे इन्हें समझाना चाहिए था – सजा आप मुझे दीजिए – कसूर सिर्फ मेरा है और हमारे परेंट्स को भी बता दीजिए कि समाज साहित्य सब भाड़ में जाए हमे तो बस नियमों का पालन करना चाहिए |” अपना आखिरी शब्द कह आँखों पर हाथ रखे झलक सुबकने की आवाज निकालने लगी, ये देख जल्दी से हेड मैम उसके पास आती उसे अपने से चिमटाती हुई बोली – “नहीं नहीं – तुमने कोई गलती नही की |”

सब एकदम से मैडम की आवाज़ सुन अवाक् उनका चेहरा देखती रह गई|

“तुमने तो मिसाल कायम की है |”

झलक चुपके से हलकी आँख खोल उनकी तरफ देखती है|

“कोई तुम्हें कुछ नही कहेगा – पता नही बच्चों ने कुछ खाया पिया कि नही – इनको मैम आप कुछ खाने को दीजिए|”

हेड मैम मेट्रन मैम की ओर देखती हुई बोली तो झलक धीरे से कह उठी – “मैम अभी तो मन इतना दुखी है कि कुछ खाया भी नही जाएगा |”

“अरे नहीं नहीं ऐसे दुखी मत हो – तुमने तो इनाम पाने वाला काम किया है |” ये सुन पलक और अनामिका के गले में जैसे हंसी का कोई गोला सा अटक गया वही बाकि मौजूद लड़कियां आखें फाड़े झलक की ओर देखती रह गई|

“ऐसा करिए आज रात का खाना झलक की पसंद का बनवा दीजिए – बाकि तो हम ज्यादा कुछ कर नही सकते – जाओ बच्चों तुम तीनों अपने कमरों में आराम करो जाके – और तुम सबने भीड़ क्यों लगा रखी है – गो – गो टू योर रूम इमेजेट्ली |” कहती हुई वे धीरे से अपनी ऑंखें भी पोछती हुई विपरीत दिशा की ओर बढ़ जाती है तो झलक और पलक अपने कमरे की ओर बढती हुई अनामिका की ओर एक छुपी दृष्टि डाल चुपचाप सर झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है|

कमरे में पहुँचते ही पलक और झलक बिस्तर पर बिन आवाज के हंसती हंसती दोहरी होती गिर पड़ती है|

“कसम से झलक तेरा जवाब नही – एक पल तो मैं डर गई कि तू हमे फंसा कर खुद निकलने वाली तो नहीं पर तू भी न बड़ी ऊँची चीज है – पता नहीं किसके हाथ लगेगी तू|”

झलक आंख मारती बस हंसी जा रही थी|

“तूने तो झूठी फिल्म की रेखा का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया – |”

दोनों का हंस हंस कर अब पेट दर्द हो चला था|

रात का खाना चुपचाप खा कर वे फिर अपने कमरे में सिमट गई जहाँ सबसे आंख बचा कर अनामिका भी उनसे आ मिली थी|

“झलक की बच्ची – तुझे मेरी आंटी के अलावा कोई नहीं मिला जो तूने उन्हें कैंसर का पेशंट बना दिया|”

“अरे दूसरे मिनट में ठीक भी तो कर दिया |” दबी आवाज़ में हंसती हुई बोली |

“और तुझे कैंसर से भयानक कोई बीमारी नहीं मिली !!”

“अरे यार आज कल ट्रेंड में है न ये बीमारी – |”

“तू भी न |” कह कर एक तकिया उसकी तरफ मारती है तो झलक भी एक तकिया उसकी तरफ फेंकती है| अगले ही पल तीनों एक दूसरे पर तकिया मारती खिलखिलाती वही लेट जाती है|

लखनऊ विश्विद्यालय में पढ़ती हुई पलक और झलक जिस प्राइवेट हॉस्टल में रहती थी वहां परिवार से मिलने का समय सिर्फ रविवार का था इसलिए उनके पापा उनसे मिलने कॉलेज के बाहर उनका इंतजार कर रहे थे|

“पापा ..|” दोनों लगभग दौड़ती हुई आती उनके गले लग जाती है|

वे भी दोनों को अपनी बाजुओं में भरते जैसे पर्वत समान अपनी नदियों को समेटते हुए तृप्त हो उठे|

“परसों क्यों नही आए पापा और क्या लाए हमारे लिए आप ?” झलक रूठती हुई बोली तो वे मुस्कराते हुए अपने पीछे देखते है तो दोनों की निगाहें उनकी निगाह के स्थान पर साथ में जाती जैसे उछल ही पड़ी|

“आदर्श भईया..|” वे उछलती हुई अब पापा के पीछे खड़े एक हष्ट पुष्ट नौजवान की ओर बढती हुई उसके दोनों हाथों में पकड़े गिफ्ट को लगभग उसके हाथों की गिरफ्त से खींचती हुई नाच उठी|

“ये पलक झलक भी न..!”

“क्या भईया आप भी पलक झलक बोलते है कोई झलक पलक क्यों नही बोलता !!” अपने नयन थोड़ा तिरछा करती झलक मुंह बनाती है तो पलक चिढ़ाती हुई बोल पड़ी – “क्योंकि तुम मेरे बाद आई तो पीछे रहोगी न |”

“हाँ बस एक साल दो दिन बस इतना ही फर्क है |”

“तब भी बड़ी हूँ न तुमसे मैं |”

दोनों जैसे लड़ ही पड़ी ये देख आदर्श दोनों के बीच बचाव करता जल्दी से उनके बीच खड़ा होता हुआ बोला – “अरे अरे दोनों लड़ोगी तो मैं चला जाऊंगा |”

“दोनों लड़ती भी है और एक दूसरे के बिना रह भी नही सकती |” पापा दोनों के कान पकड़ते हुए बोले तो दोनों खिलखिला पड़ी|                                                                                                                                                                                                      

काफी देर बात करके पापा ज्योंही जाने लगे दोनों आदर्श को दोनों तरफ से पकड़ती हुई बोली – “भईया एक बार कॉलेज का राउंड लगाओगे हमारे साथ |”

आदर्श क्यों पूछता रह गया और दोनों उसको पकड़े पकड़े बारादरी की ओर घूम गई तो आदर्श औचक उन्हें देखता रह गया लेकिन इसके विपरीत दोनों के चेहरों पर एक शरारती मुस्कान खिली थी| आदर्श हैरान अपने आस पास देखने लगा कि वहां मौजूद लड़के लड़कियां कैसे उसी को घूर रहे है तब उसे समझते देर नहीं लगी और झट से उन दोनों का कान खींचते हुए बोला – “मैं कोई शो पीस हूँ जो मेरा प्रदर्शन कॉलेज में करती फिर रही हो |”

ये सुन दोनों अपनी अपनी चोरी पकड़े जाने पर दांतों तले जीभ दबाती चिहुंक पड़ी|

“दोनों अपनी शैतानी से बाज नही आओगी – माना मैं बहुत डैशिंग हूँ पर यहाँ मेरे लायक कोई नही |”

दोनों अब अपनी कमर में हाथ रखी भाई को घूर रही थी जो आँखों में काला चश्मा चढ़ाए खुद इधर उधर देख रहा था|

“अच्छा – अब कौन इधर उधर देख रहा है |” सुनते आदर्श के साथ साथ दोनों हंस पड़ती है|

“आदर्श – चलो – |”

“जी आया फूफा जी |” कहता हुआ आदर्श उन दोनों के सर पर टीप मारता हुआ आवाज की दिशा की ओर भागता हुआ चला जाता है|

उनके जाते दोनों साथ में चलती बाहर से अन्दर आती हुई अनामिका को देख वही ठिठक जाती है|

“कहाँ से आ रही है मैडम ?”

उसके चेहरे की शर्मोहया देख दोनों समझती हुई खनक पड़ी – “ओहोह अभी मंगनी हुई नही और मैडम फोन करने चली गई – बता न क्या क्या बात हुई ?”

“क्या यार इस थोड़े समय में क्या बात करुँगी – एक तो ये अपना बेकार के नियमों वाला हॉस्टल है – आजकल के मोबाईल वाले ज़माने में हॉस्टल में किसी को मोबाईल रखने ही नहीं देते है|”

“तब तो पूरा दिन मोबाईल से चिपकी रहती तू |” पलक की बात सुन तीनों के चेहरों पर शैतानी भरी हंसी खिल गई|

“अच्छा सुन कुछ जाने के बारे में पापा से पूछा ?” अनामिका थोड़ा गंभीर होती हुई बोली|

इस पर हैरत से उछलती हुई झलक बोली – “पागल है क्या – उनके सामने तो राजस्थान का नाम भी नही ले सकते – और जाने देना तो बहुत दूर की बात है|”

अब तीनों के चेहरें गंभीर हो चले|

“देख मंगनी में तो तुम दोनों को चलना ही है – तेरे बिना कुछ मज़ा नही आएगा – पता है जयपुर की ग्रैंड हवेली में है प्रोग्राम – किसी तरह से कुछ तो सोच झलक – मुझे कुछ नही पता बस तुम लोगों को आना ही है |”

अब बारी बारी से तीनों एक दूसरे का चेहरा देखती रही – “पर कैसे ??”

रात के खाने तक भी तीनों इसी प्रश्न पर अपना अपना दिमाग मथती रही|

“मैं तो कल जा रही हूँ – अब तुम दोनों कैसे आओगी ?” साथ साथ खाना खत्म करती बाहर निकलती हुई अनामिका कहती है|

“लगता है नही आ पाएंगी अनु |’ तीनों एक दूसरे की आँखों में देख दुखी हो उठी|

“देख एक पहला और आखिरी उपाय है |” अनामिका की बात सुन दोनों ऑंखें फाड़े उसे देखती रही|

“देख फोर की शाम को है इन्गेजमेंट – अगर फोर को तुम पहुँच जाती हो तो अगली सुबह तक वापस हॉस्टल पहुँचाने की मेरी जिम्मेदारी|”

“पागल है क्या – हम आएंगी कैसे ?”

“यार झल्लो कुछ तो सोच न यार |” अनामिका अपनी आँखों में ढेर निवेदन लेकर उनके सामने खड़ी थी|

अब तो तय था कि दोनों को जयपुर जाना ही है बस कैसे यही तोड़ निकलना था| आखिर झलक ने इसका तोड़ निकाल ही लिया, वे किसी को कुछ न बताती हुई लोकल गार्जियन के यहाँ जाने का बोलकर ट्रेन से निकल जाएंगी और रात में अनामिका उन्हें किसी तरह से वापस हॉस्टल पहुंचा देगी| पलक इस डेअरिंग काम के लिए डर गई तो झलक उसे समझाती हुई बोली – “पल्लो चल न कुछ नहीं होगा – कसम से – तू जानती है न – मेरा बनाया प्लान कभी फेल नही होता – बस तू अब कुछ सोच मत बल्कि ये सोच अगर हम हमारी इकलौती बेस्ट फ्रेंड अनु की मंगनी में नहीं गए तो !!”

“अगर किसी को पता चल गया तो !!”

“अरे कुछ नही पता चलेगा – बस एक दिन की ही बात है न |”

“सच्ची न !!”

“मुच्ची |”

झलक आँखों से सहमति देती है तो बड़ी मुश्किल से अपना डरा मन पलक संभाल पाती है|

कभी वे ऐसा करेंगी ये उन दोनों को भी नही पता था पर दोस्ती के खातिर मन ही मन पापा को सॉरी बोल वे कॉलेज के बाद नेट से ट्रेन का टिकट बुक कर चार की दोपहर को बैग के साथ रेलवे स्टेशन पहुँच जाती है|

ट्रेन में अपनी जगह सुनिश्चित कर वे थैर्ड एसी के कम्पार्टमेंट में अपनी सीट पाती झट से खिड़की के पास सिमट कर बैठ जाती है| झलक ट्रेन के चलते खिड़की के बाहर के दृश्य पर अपनी नज़र जमा कर बैठ जाती है तो पलक धीरे से उसके कानों के पास आती हुई कहती है – “झल्लो ट्रेन तो आधी रात को पहुंचेगी तो तूने अनु को बोल दिया न आने को !!”

“हाँ बोल दिया – तू चिंता न कर बस बाहर देख कितना सुन्दर नज़ारा है न – हम पता नही कब पिछली बार ट्रेन में बैठी थी पता नहीं |”

पलक हाँ बोलकर भी परेशान सी बाहर की ओर देखने लगती है जबकि झलक बेफिक्री से बाहर के नज़ारों को देखने में मग्न थी|

दिन भर उंघते लेटते ट्रेन का लम्बा वक़्त वे किसी तरह से काटती काटती रात के आठ बजे मथुरा के  आते झलक झट से प्लेटफार्म में कुछ लेने को उतरने लगती है तो पलक उसको रोकती हुई बोल पड़ती है – “मत जा झलक रात हो गई न – जो भी ट्रेन में मिलेगा ले लेंगे |”

“कितनी डरपोक्की है तू – मैं आती हूँ – तू बैठ आराम से और अगर ट्रेन छूट भी गई न तो ये झलक है उड़ती हुई पहुँच जाएगी |” हवा में हाथ तैराती झलक हंसती हुई झट से ट्रेन से उतर जाती है और पलक मन मसोसे खड़ी उसे जाता हुआ देखती रह जाती है|

“एस्क्युज मी |”

पलक का सारा ध्यान तो झलक की ओर लगा था वह अपने सामने की आवाज को न सुनती हुई गेट पर दोनों हाथों से रास्ता रोके खड़ी थी|

“एस्क्युज मी – क्या हम आपकी ट्रेन के अन्दर आ सकते है ??”

अबकी झट से उसका ध्यान झलक से भागता अपने सामने की ओर जाता है जहाँ कोई एक जोड़ी आंख उसकी हालत पर धीरे धीरे मुस्करा रही थी| अपनी स्थिति को समझती पलक तुरंत किनारे होती अपनी छुपी नज़रों से देखती है उस नौजवान को जो अभी भी मुस्कराते हुए उसी को देख रहा था इससे झेंपती हुई पलक अपनी सीट की ओर चल देती है|

अपनी सीट पर आती जब उसे सुकून हो जाता है कि वह उसकी नज़रों से दूर हो गया होगा तो एक बार फिर झलक के लिए वह अपनी नज़र घुमा कर उसे देखने लगती है तो ये क्या साथ के ज्वाइन कम्पार्टमेंट के सेकण्ड एसी में उसकी तरफ देखती अभी भी वही ऑंखें देख वह एकदम से घबरा जाती है|

“पलक – पकड़ न जल्दी |”

आवाज सुन पलक अब अपने सामने झलक को देखती है जो अपने हाथों के घेराव से कुछ ज्यादा ही सामान को लिए उसके सामने खड़ी थी| वह जल्दी से उसके हाथों से सामान लेती उसे अपनी तरफ खींच कर साथ में बैठा लेती है|

तभी ट्रेन चल दी तो पलक फिर चुपके से उस नौजवान की ओर देखने लगती है कि सकपका जाती है कि वे नज़रे अभी भी उसी की ओर जमी थी ये देख उसके बदन में झुरझुरी दौड़ती एक घबराहट सी उसके चेहरे पर पसर जाती है, ये देख झलक उसको हिलाती हुई पूछती है – “अब क्यों चेहरे पर बारह बजा रखे है – आ तो गई मैं !!”

झलक की बात का जवाब न देकर वह धीरे से उस नौजवान की सीट की ओर इशारा करती है तो चिप्स खाती खाती झलक अपनी सीधी नज़रों से उस ओर देखती हुई एक दम से खाती खाती रूकती उसकी ओर झुकती हुई पूछती है – “ये हमे क्यों घूर रहा है ?”

“वही तो जब से आया है तब से घूर रहा है |” पलक भी धीरे से उसके कानों में फुसफुसाती है|

“लगता है भूखा है – ऐसा करते है एक चिप्स का टुकड़ा नीचे गिरा कर खाते है नहीं तो हमे भी खाना हज़म नही होगा |”

ये सुनते दोनों अपना मुंह दाबे खिलखिला कर हंस पड़ती है|

कुछ कुछ पल बाद जब भी पलक उस नौजवान की ओर देखने का प्रयास करती तो हर बार उसकी चोरी पकड़ ली जाती उसकी नज़रो से और पलक सकपका कर रह जाती| रात दस बजते बजते भरतपुर आते काफी लोग उतर चुके थे, अब कम्पार्टमेंट में चुनिन्दा लोग ही थे| दोनों अपना अपना बेडिंग लगाती सोने का उपक्रम करने लगती है तो पलक बैग में से पॉकेट रेडिओ ढूंढने में लगभग सारा सामान ही बाहर निकालती झलक पर झुंझला पड़ती है – “झलक तू कैसे सामन रखती है – कभी कुछ मिलता ही नहीं |’

“तू ही नही ढूंढती ठीक से – ला मुझे |” अब झलक खोजने हुई कहती है – “मैंने पहले ही कहा था कि दो बैग रख ले – हमेशा तेरा ये रेडिओ चूहे सा छुप जाता है कहीं |”

इस बीच पलक फिर उस नौजवान की ओर चुपके से देखती है तो चौंक ही जाती है वे नज़रे अभी भी उसी की ओर मुड़ी थी |

“बाप रे ये भूत है क्या जो अभी भी हमारी ओर ताके जा रहा है !!” पलक धीरे से मन ही मन बडबडाती है|

“ये ले – तेरी आफ़त – अब सारा सामान तू ही सेट करेगी |” कहती हुई झलक उसके हाथ में पॉकेट रेडिओ थमा कर तुरंत लेट जाती है|

पलक भी धीरे से रेडिओ को ऑटो सर्च में लगाकर बैग में सामान लगाने लगती है|

‘खूबसूरत है आँखें तेरी, रात को जागना छोड़ दे…..खुद बखुद नींद आ जाएगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे….|’ अचानक स्टेशन पकड़ते ग़ज़ल शुरू हो जाती है तो पलक हडबडाहट में सामान गिरा देती है, जिससे झलक चादर ओढ़े ओढ़े ही उसे सो जाने को डांटती है|

सामान उठाते वक़्त फिर पलक उस नौजवान की ओर देखती है, वह आँखें अब उसकी हालत पर हंसती हुई दिख रही थी जिससे झेंपती हुई पलक रेडिओ बंद करती जल्दी से चादर सर से ओढ़कर लेट जाती है|

धीर धीरे गहराती रात में ट्रेन अपनी ही रफ़्तार में आगे बढ़ी जा रही थी, रात के सन्नाटे में किसी धड़कन सी ट्रेन की आवाज़ उस वातावरण में गूंज रही थी कि एक गहरी चीख उस कम्पार्टमेंट में गूंज जाती है, जिससे हडबडाहट के साथ झलक उठती हुई उचककर झट से लाइट जला देती है| अब उस रौशनी के पसार में वह अपने साथ की सीट पर सहमी हुई पलक को देख दौड़कर उसके पास आती हुई उसे संभालती हुई पूछती है – “तू चीखी थी पलक – हे भगवान कितना पसीने पसीने हो – क्या हुआ – बोल न !!”

पलक आंखे फाड़े अपनी गहरी गहरी साँस के साथ झलक को देखती रही जो अभी भी उसका हाथ थामे उसे प्रश्नात्मक नज़रो से देख रही थी| पलक घबरा कर अपने आस पास देखती है कि अब वहां उनके सिवा कोई नहीं था और ट्रेन के शीशे के बाहर दौसा नाम का स्टेशन आकर गुजर रहा था|

क्रमशः………….कहानी जारी रहेगी……

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