Kahanikacarvan

एक राज़ अनुगामी कथा  – 12

दरवाजे की दस्तक एकसाथ तीनों के चेहरों पर घबराहट ले आई| तीनों बारी बारी से एकदूसरे को देखती आँखों से मानों पूछ रही थी कि अब दरवाजा कौन खोलेगा ? पलक का तो डर के मारे गला ही सूख गया, उसकी बेचारी हालत देख उसे आँखों से घूरती हुई झलक अब दरवाजे की ओर बढ़ गई थी| अनामिका को तो लग रहा था कि किसी तरह से कही छुप जाए पर उस सीमित कमरे के दायरे में छुपने लायक कोई भी जगह नही थी तो आखिर अपनी जगह पर जमी तरह तरह के विचार अपने मष्तिष्क में कुरेदने लगी|

अब तक झलक दरवाजा हलके से खोलकर बाहर देखती है गलियारे की मध्यम रौशनी में सामने रश्मि को देख एक ठंडी आह छोड़ती हुई कह उठी – “तुम !!”

“हाँ मैं – अनु कहाँ है – बारह बजने जा रहे है तुमलोग अभी तक जाग रही हो – चल क्या रहा है ?” अनामिका की रूम पार्टनर झलक को किनारे करती अन्दर आती हुई कह रही थी|

रश्मि की आवाज सुन अबतक अनामिका मोबाईल धीरे से तकिया के नीचे दबा चुकी थी|

“अरे बस आने ही वाली थी – |” पीछे से झलक की बात सुन अनामिका भी हाँ में सर हिलाती किसी तरह से अपने चेहरे से घबराहट छुपाने की कोशिश कर रही थी|

“जा न अनु – कल नोट कर लेना – माना तेरा काम बहुत छूटा है पर रात भी बहुत हो गई न |” झलक के बात सँभालते अनामिका भी हाँ में सर हिलाती रश्मि को लगभग हाथ पकड़ कर घसीटती हुई साथ में बाहर ले गई| जाते समय मोबाईल सँभालने का आँखों का निवेदन झलक पढ़ चुकी थी|

“उफ़ – गई ये रश्मि जासूस |” अपनी आदत अनुसार झलक सबका कोई न कोई नामकरण कर देती थी जिसे सुन पलक को हँसी आ गई|

“चल पल्लो यार बिस्तर ठीक कर अब तो मुझे भी बहुत जोर से नींद आ रही है|”

“आज तुम्हारी बारी है |” गुस्से में कमर में हाथ रखती पलक उसे घूरती है|

पर उसके गुस्से को नज़रन्दाज करती झलक दांत दिखाती उससे मनुहार करने लगी – “प्यारी बहना कर दे न आज – देख कल से दो दिन मैं करुँगी पक्का – बहन वाला प्रोमिस |”

आँखों में जबरजस्त विश्वास दिखाती झलक देखती है तो झक मार के पलक बिस्तर ठीक करती हुई कहने लगी – “पता है तेरा प्रोमिस – तेरा वादा चाँद आधा |” बडबडाते हुए पलक मोबाईल को बेड के नीचे रखे ट्रोली बैग के ऊपर रखती बिस्तर झाड़ती हुई तकिया ठीक से लगाने लगती है| तकिया बिस्तर पर रखते ही झलक गुड नाईट बोलती बिस्तर पर लगभग कूदती हुई झट से लेट जाती है, पलक तिरछी आँखों से उसे देखती रह जाती है|

अपनी तरफ का बिस्तर ठीक कर तकिया लगाती जब पलक लेटने आई तब तक झलक सच में सो चुकी थी, उस पल अचानक घड़ी में बारह बजने के ख्याल के साथ पलक के चेहरे पर डर उतर आया| उस पल डर के मारे नींद आने पर भी वह ऑंखें बंद नहीं कर पाई लेकिन झलक को नींद से जगाने की हिम्मत भी नही हो रही थी| चाहकर भी कमरे की लाइट भी खुली नही छोड़ सकती थी क्योंकि रात में बत्ती जलाकर सोना मना था हाँ अगर किसी को पढ़ना है तो लैम्प का प्रयोग करना होता था| ये सोच कमरे की हलकी रौशनी में वह बड़ी मुश्किल से नज़रे घुमाकर देखती है तो कमरे का प्रत्येक सामान काले साए की भांति लग रहा था| सामने की स्टडी टेबल के कोने में रखा ढोलामारू भी उस वक़्त उसे काले साए की तरह दिख रहा था| पलक को नींद भी आई थी पर बेचारी डर से आँख भी बंद नही कर पा रही थी तो बगल में लेती झलक का हाथ धीरे से हिलाती हुई उसे पुकारने लगी पर झलक तो घोड़े गधे बेच सो रही थी कुछ देर लगातार हिलाने के फलस्वरूप एक बार को वह पलक का हाथ झटक देती है तो पलक किसी तरह से खुद को सयंत करती चादर सर से ओढ़कर लेट जाती है| जल्दी जल्दी अपने शरीर के आस पास की चादर भी दबा लेती है तब जाकर वह किसी तरह से आंख बंद कर पाती है|

धीरे धीरे रात गहराती जाती है| कमरे में रात का सन्नाटा पसरा पड़ा था कि सहसा पलक चौंककर जाग जाती है| एकदम से आँख खोले पलक की नज़र सीधी टेबल क्लॉक पर जाती है तो डर की परत उसके चेहरे पर और भी गाढ़ी हो उठती है| रात का एक बजने ही वाला था ये देख घड़ी पर टिकी सुई की तरह हलक में उसकी सांस अटकी रह गई| चादर से सर निकाले पलक की हिम्मत नही हो रही थी कि हाथ बढ़ाकर झलक को जगा दे, रात के नीरव सन्नाटे में झिंगुर की आवाज में चलते पंखे की आवाज भी किसी तीक्ष्ण शोर की भांति लग रही थी| जिससे उसकी आँखों की नींद जाने कहाँ फुर्र हो गई थी| उस पल का सन्नाटा उसके मन को और डरावना लग रहा था तो धीरे से अपनी तकिया के बगल में हाथ डालकर रखा रेडियो निकाल लेती| अँधेरे में अपने अध्यस्त हाथों से स्टेशन लगाकर अपने कानों के बहुत पास रखती सर्च कर स्टेशन लगाते फिर कोई अनजाना गीत चलने लगता है जिसे सुनते सुनते पलक की पलके भारी होने लगी, उसे पता ही नही चलता कब नींद उसपर हावी हो गई|

सुबह झंझोड़कर झलक उसे उठाती हुई उसे जल्दी से तैयार होने का बोलकर बाहर की ओर निकल गई| पलक को सुबह उठकर भी भारी थकान का अनुभव हो रहा था फिर भी किसी तरह से उठकर वह भी वाशरूम के लिए बाहर चल देती है|

कॉलेज के लिए तैयार होती झलक तब से कमरे में सारे कपड़े उथल पुथल कर चुकी थी पर जो ढूंढ रही थी वो उसे अभी तक नही मिला था इससे तैयार होती होती पलक झुंझला कर पूछ बैठी – “ढूंढ क्या रही है तब से ?”

“तेरी गुलाबी चुन्नी |” फटाक से कहती फिर ढूंढने का उपक्रम करने लगती है|

“तो कहाँ गई ?” अगले ही पल पलक परेशान हो उठी|

“वही तो ढूंढ रही हूँ मैडम और क्या बंगाली बोली क्या मैं !” चिढ़ी सी आवाज में झलक बोलती हुई पहले से देख चुके बैग को दुबारा बिस्तर पर उल्टा पलटती हुई बोली|

पर अब तक की बात समझती पलक झलक का कन्धा पकड़कर अपनी तरफ करती हुई बोली – “वो मेरा सबसे फेवरेट वाला दुपट्टा है समझी – कहाँ जाएगा – तू ही कही रखकर भूल गई होगी – अनु की इंगेजमेंट में ही तो लहंगे के साथ लिया था मैंने – कहाँ है !” फिर पलक भी फैले कपड़ों को हाथ से इधर उधर करती हुई देखने लगी|

“सच्ची मैंने कहीं नहीं रखा और जयपुर से लौटकर मैंने खुद अपने हाथ से उसे निकाला था |” झल्लाती हुई झलक बोली तो पलक जयपुर का नाम सुन झट से पहले कमरे का खुला दरवाजा देखती है फिर झलक के मुंह पर हाथ रखती हुई उसे ऑंखें से घूरती हुई धीरे से फुसफुसाई – “धीरे बोल जयपुर – पागल है क्या ?”

अपनी गलती का अहसास होते झलक दांतों तले अपनी जबान दबा लेती है|

“बुद्धू कहीं की – अब ढूंढ मेरा दुपट्टा |” पलक उसके सर पर एक टीप मारती हुई कहती है|

“जल्दी चलो ब्रेकफास्ट के लिए |” आवाज सुन दोनों की नज़रे अब खुले दरवाजे के पार खड़ी अनामिका की ओर जाती है जो जाने को बस तैयार खड़ी थी|

ये सुन झलक फट से पलक को बाय कहती बाहर की ओर भागी, पलक पल भर देखती रह गई कि झलक अनामिका के साथ जाती बस ‘बाद में ढूंढउंगी’ कहकर चली गई और पलक अपना सा मुंह लेकर रह गई|

रात की अधूरी नींद और अपने प्यारे दुपट्टे के खोने से उदास सी पलक भी अब बाहर की ओर निकल जाती है|

पहले लेक्चर के बाद अगला अभी कोई लेक्चर नहीं था तो तीनों कैंटीन में जड़ी कोल्डड्रिंक लेती लेती गप्पे मारती अपना समय पार कर रही थी| तभी बिल देकर वापस आती अनामिका के हाथ में कोई पैम्पलेट था जिसे तल्लीनता से पढ़ती हुई पलक झलक के बीच में आकर बैठ जाती है| झलक उसे ऐसा करते घूरती हुई बस पूछने ही वाली थी कि अनामिका पहले से ही बोल उठी –

“वाह देख यूपी हाट लगा है – चले ?” पूछती हुई सर उठाकर वह बारी बारी से दोनों का चेहरा देखती है|

“आज !” दोनों अनामिका को भौचक देखती है|

“आज क्या अभी चलते है – |” अनामिका ख़ुशी से उछलती हुई बोलती रही – “अरे बड़ा मजा आएगा – अलग अलग स्टेट के स्टॉल भी लगते है – मैंने पिछली बार….|”

“और अगला लेक्चर – विक्की सर का है |” पलक बीच में ही उसे टोकती हुई बोली|

ये सुन अनामिका कुछ कहती उससे पहले झलक मचलती हुई चहकी – “हाय एक फेयर के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी |” दोनों उसके चेहरे पर आई शैतानी चमक देखती रह गई और वह अपने अंदाज में चहकती रही – “पर आज के लिए चलेगा – चल अभी निकलते है |”

झलक की सहमति मिलते अनामिका भी ख़ुशी से उछल पड़ी अब वे किसकी सुनने वाली थी दोनों आगे आगे और पलक उनके पीछे पीछे चल दी|

तीनों खूब हाट में घूमती रही खाती पीती मस्ती करती रही| वहां लगभग स्टेट के स्टॉल लगे थे जहाँ पश्चिम बंगाल के स्टॉल से अनामिका ने तांत के दो कुर्ते लिए तो राजस्थानी स्टॉल देखते पलक और झलक देर की मन में दबी आस और न दबाए रह सकी और दोनों ने अपने अपने लिए राजस्थानी लहंगा चोली ले लिया| पलक तो उसे कई कई बार खुद में लगाकर झूम ही उठी| वह उस लहंगा चोली से इतनी खुश थी कि उसके साथ का दुपट्टा उसे अपने लिए नावाकिफ लगा वह ढाई मीटर का कॉटन का दुपट्टा लेकर रंगाई की दुकान में लहंगे के रंग का उसे रंगाने पहुँच गई|

“जल्दी कर अब हॉस्टल भी पहुंचना है |”

“रुक न मेरा काम आते तुझे जल्दी जाना होता है |” झलक की बात पर पलक उसे झिड़कती हुई उसे वही छोड़ दुकान के अन्दर चली गई|

जब कुछ देर वापिस आई तो उसे खाली हाथ देख अनामिका झट से पूछ बैठी – “तेरा पैकेट कहाँ है ?”

“कलर डिसमैच न हो तो पूरी ड्रेस ही छोड़ दी – अरे दो दिन बाद ही दे देंगे |”

“चल अब |” अब तीनों एकदूसरे का हाथ पकड़े ऑटो की ओर बढ़ जाती है|

रास्ते भर तीनों की बातें ही खत्म नही हो रही थी| झलक बता रही थी कि एग्जाम के बाद वे घर चली जाएंगी तो अनामिका कह उठी – “एग्जाम के बाद ही शादी की तारिख निकाल रहे है – मैं तो उसी की तैयारियों में लग जाउंगी – झल्लो अगर अगले साल मैं लखनऊ नही आ पाई तो क्या होगा ?” अचानक शादी के बाद का ख्याल कर अनामिका परेशान हो उठी|

“तो तू थैर्ड ईयर यहाँ से नही करेगी !” झलक भी हैरान पूछ बैठी|

“पता नही – |” अचानक उदास होते होते कुछ सोचकर खुश होती चहक पड़ी – “ऐसा करो तुम दोनों भी राजस्थान में शादी कर लो – इवन दोनों राजकुमार खाली ही है |”

“तुम्हारे इन सो कॉल राजकुमार की तो मैं आँख फोड़ दूँ अगर ऐसा कुछ सोचते हुए मुझे दिखा भी तो |”

“अरे बाप रे कभी सर फोडती है तो कभी आंख – फिर तुझे देखेगा कैसे ?” हौले से कंधे से धक्का देती अनामिका झलक की चिढ़ी भंगिमा पर कसकर हँसती है|

“ओए तू कहाँ खोई है ?” तभी उन दोनों का ध्यान पलक की ओर जाता है जो ऑटो में उनके साथ होकर भी उनके साथ नही थी, हर रात के डरावने अहसास और दुपट्टा खोने से आज उसका मन कुछ ज्यादा ही उदास हो उठा था लेकिन उनकी हँसी फुहार के बीच अपनी बात मन में छुपाती हुई बस न में सर हिला बैठी जिसपर अनामिका उसकी चुटकी लेती खिलखिलाई –

“कहीं राजकुमार सपनों में तो नही आने लागे – क्या करे है ही ऐसे |”

“कैसे !! लंगूर टाइप |”

झलक की सुन अनामिका उसे टोकती हुई कहने लगी – “अरे तुझे पता नही नवल सा क्या है – तुम तो सही से मिली ही नही पहले ही झगड़ा मोल ले बैठी –|”

“तो तू ही बता तुम्हारे सो कॉल राजकुमार कौन सी तोप है ?”

“नवल सा हिंदी साहित्य के बड़े जानकार है – दुनिया जहाँ की जानकारी रखते है – समझो चलते फिरते इंसाईकोपीडिया है – कविता लिखते है शायरिया करते है – तुमने सुना नही उन्हें – बड़ी अच्छी कविता सुनाते है |”

“अच्छा है बच गई नहीं अच्छा हुआ जो तेरे उन सो कॉल राजकुमार के साथ लखनऊ वापस नही आई वरना रस्ते भर दोनों कविता सुना डालते |” झलक कहकर कसकर खिलखिला पड़ी|

“अरे दोनों नही – शौर्य सा तो उनसे बिलकुल अलग है – दोनों ट्विन्स होते हुए भी शौर्य सा स्पॉट्सी पर्सन है – जहाँ अपने एकांत में नवल सा किताबे पढ़ते है वही शौर्य सा घुड़सवारी करना पसंद करते है – उनका अपना रेसकोर्स भी है – मैंने देखा है क्या शानदार एक से बढ़कर एक घोड़े है |”

अब रस्ते भर पलक अपने में खोई बैठी रही तो झलक इधर उधर देखती रही जबकी अनामिका एक बार अपने ससुरालवालों की गाथा शुरू हुई तो चुप ही नही हुई बारी बारी से सभी के बारे में कुछ न कुछ बताती रही |

“नवल सा एक अनोखा शौक है जब भी मौका मिलता है अक्सर घूमने निकल जाते है – जाने कहाँ कहाँ जाते है – कई जगह के तो मैंने नाम तक नही सुने – |”

वे तीनों हॉस्टल पहुँच गई, ऑटो के रुकते उनकी बाते रुकी और तीनों झटपट अपने रूम की तरफ भागी| पलक ने ज्यों ही कमरे का लॉक खोला अनामिका हाथ का पकड़ा पैकेट एक ओर फेकती मोबाईल ढूंढने लगी| ये देख झलक दरवाजा बंद कर उसके पास ही आ गई|

“क्या हुआ ?” झलक उसे परेशान देखती हुई पूछ रही थी तो अनामिका मोबाईल ढूंढने में लगी थी|

“कहाँ रखा है ?”

“नीचे के ट्रोली बैग के ऊपर तो रखा है |”

“नही है तभी तो पूछ रही हूँ |” अनामिका की बेचैनी भरी आवाज सुन पानी पीती पीती पलक उसके पास चली आई| अब तीनों मिलकर मोबाईल को ढूंढने लगे|

“कही मेरे दुपट्टे की तरह तेरा मोबाईल तो नही खो गया ?”

पलक के ये कहते अब दोनों ऑंखें फाडे उसे देखती वही बेड पर बैठ गई, अनामिका की तो बस रुलाई ही फूटने वाली थी|

“सोचा था बात करुँगी – दिनभर कितना इंतजार किया |”

अब तीनों बारी बारी एकदूसरे को देख रही थी कि दरवाजा किसी ने नॉक किया तो झलक उठकर दरवाजा खोलने गई|

पलक अनामिका को सांत्वना देती अब उसके पास आकर बैठ गई थी|

झलक दरवाजा खोलकर उस पार जिसे देखती है उससे उसकी ऑंखें हैरान रह जाती है, उस पार तानिया को देख झलक का मुंह हैरानगी में खुला रह गया, आखिर वह क्यों आई उसके पास | अब दोनों आमने सामने खड़ी एकदूसरे को आँखों से घूरने लगी| देर से झलक को दरवाजे के सामने खड़ा देख अनामिका और पलक भी वही चली आई|

“क्या है ?’”चिढ़ी हुई आवाज में झलक पूछती है|

इसके विपरीत तनिया मुस्कराती हुई कहने लगी – “कुछ मिल नही रहा है – खो गया है तुम्हारा !!”

“कहीं ये तो नही !!” तानिया के पीछे से शर्मिला नज़र आई जिसकी छुपी हथेली के बीच अनामिका का मोबाईल था | मोबाईल देख तीनों का मुंह खुला का खुला रह गया| उनकी हालत देख तानिया और शर्मीला के चेहरे पर शातिर मुस्कान छा गई थी| ———–क्रमशः..

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