Kahanikacarvan

एक राज़  अनुगामी कथा  – 14

कुछ दिन बस उन सबकी यही दिनचर्या रही कॉलेज जाना एग्जाम देना और बाकि के समय कमरे में बंद पढ़ती रहना| बहुत दिन से पढ़ते पढ़ते अब आखिरी पेपर आते झलक के लिए बहुत हो गया, ऊब कर वह कमरे से बाहर निकल गई| उसके पीछे पीछे पलक और अनामिका भी अन्दर बैठी न रह सकी|

गरियारे से निकलते कुछ आवाज उन सबका ध्यान मेस की ओर ले जाती है, तेज आवाज मैट्रेन मैम की थी और वे बहुत तेज किसी पर नाराज हो रही थी| तीनों चुपचाप झांककर देखती है कि मैट्रेन मैम तानिया और शर्मीला पर कसकर अपना गुस्सा निकाल रही थी और दोनों बार बार सॉरी कहती सर झुकाए खड़ी थी| पलक. झलक और अनामिका ये नज़ारा देख आपस में एकदूसरे को देख मुस्करा उठी| आपस में इशारे में एकदूसरे से क्या हुआ होगा जानने का पूछती है| बदले में क्या पता के भाव में कंधे उचकाती हुई आगे बढ़ जाती है|

कल आखिरी पेपर होगा उसके बाद सभी अपने अपने घर वापिस चले जाएँगे ये सोचकर ही रोमांचित पलक और झलक उस दिन जल्दी से सो गई| पलक पूरे दिन भर भरकोशिश बिलकुल नही लेटती ताकि रात में उसे गहरी नींद आ जाए पर हमेशा की तरह आधी रात उसकी आंख खुल गई और घबराई आँखों से वह रात के अँधेरे में नज़र घुमाकर देखने लगी, उसकी घूमती नज़र सामने की खिड़की के पास की कुर्सी पर चली जाती है, वहां उसे किसी साए के होने की अनुभूति होती है जिसके अगले ही पल उसके पूरे बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ जाती है| वह एक ही अवस्था में बैठा साया रात के अँधेरे में उसे भयावह लग रहा था, मारे डर के पलक की आवाज ही दब गई, बड़ी मुश्किल से वह चादर से हाथ निकालती झलक की ओर बढ़ाती उसे पुकारना चाहती थी कि अचानक उसे अहसास होता है कि उसके बगल की जगह तो खाली है ये महसूसते पलक की आधी जान हलक में ही अटकी रह गई वह फिर डर से उस हिलते साए को देखती है जिससे उस पल उसकी घुटी सी आवाज निकल पड़ती है| झलक कहाँ होगी ? क्या वह किसी डरावने सपने में अकेली फसी है ? तभी लगा उसका शरीर हलके हलके से कांपने लगा पर पलक की नज़र तो उसी साए पर टिकी थी तभी उसे यकीन नही आया कि वह साया अब उसकी तरफ आ रहा था और बस पलक की घुटी सी चीख उभर उठी|

साया भी डर के दो कदम पीछे हो गया|

“क्या है क्यों चिल्ला रही है ?” ये झलक थी जो खुद डरी सी पलक को अँधेरे में भी घूरने लगी थी – “फालतू में डरा रही है |”

पलक झलक की आवाज सुन झटके से उठ बैठी – “तुम – ये तुम हो झलक मेरी तो डर के जान ही निकल गई – कोई आधी रात में ऐसे बैठता है क्या !”

“तो आधी रात तुझे किसने कहा जागने को – जागकर मुझे भी डरा दिया|”

“कर क्या रही है – अँधेरे में पढ़ तो नही रही होगो ?”

“अब ज्यादा दिमाग न चला और चुपचाप सो जा – मैं आती हूँ |” जुगाली करती करती झलक बोलती हुई बिना लाइट ऑन किए दरवाजा खोलने लगती है ये देख पलक तुरंत बिस्तर से कूदती उसके पास आती बोली – “इतनी रात जा कहाँ रही है और रात में क्या खा रही हो ?”

“ओहो कितना कोशन करती है – चुपचाप यही बैठ – आती हूँ वाशरूम से |” जल्दी से उसकी तरफ पलटती दबे स्वर में कहती है जिससे पलक सहमी आँखों से उसे देखती रह जाती है और झलक बिना आवाज किए चिटकनी खोल दरवाजा खोलती पहले अपना सर बाहर करके इधर उधर देखती है फिर पूरी बाहर निकलती पलक को दरवाजा उड़का देने का इशारा करती है| पलक उसे रोकना चाहती थी पर नही रोक पाई बस उसके जाते किसी तरह से बिस्तर पर आती उकडू बैठी अँधेरे में इधर उधर देखने लगती है|

एक एक पल पलक के लिए सदियों के बराबर थे, अँधेरे की अपनी आवाज होती है जिसकी हर आहट पर पलक ऑंखें घुमाकर अपने चारोंओर देख लेती| मन ही मन झलक के जल्दी से आ जाने की प्रार्थना करती बुदबुदा रही थी| पलक की उम्मीद से कही ज्यादा ही समय लगाकर झलक आई तो पलक जल्दी से उसकी ओर देखती हुई गुस्साई – “वाशरूम में सो गई थी क्या – क्या कर रही है तू !”

पलक की घबराई आवाज के विपरीत झलक होठों के अन्दर में मुस्कराती धम से आती बिस्तर पर कूद जाती है| पलक उसका चेहरा देखती रह गई, अंधेरे में भी उसके मुस्कराते होंठ देख पलक की ऑंखें हैरानगी से फैली रह गई और झलक आराम से चादर ओढ़कर लेट गई| ये देख आखिर पलक भी हार के लेट गई|

सुबह आँख खुलते सब एग्जाम देने भागी और वापसी में तो सबके पैरों तले जैसे बादल आ गया हो और मन आकाश को छूने चला हो| घर जाने की ख़ुशी सबके चेहरों पर झलक रही थी|

“चल जल्दी से पापा को फोन लगाते है – आज ही मुझे घर जाना है|” झलक झूमती हुई पलक के कंधे पकड़कर बोली तो बैग में सामान रखती रखती पलक उसकी तरफ बिना मुड़े कहती है –

“पापा का फोन ऑफिस में आ चुका है – उन्होंने मेसेज दिया है कि वे कल आएँगे लेने |”

“कल !! नही नही मुझे तो आज ही जाना है – अनु भी तो आज ही जा रही है |”

“अरे बोला है न पापा ने कल के लिए |” पलक अब उसकी तरफ मुड़ती हुई कहती है लेकिन झलक के हर हाव भाव से जिद्द झलक रही थी|

तभी उनका ध्यान दरवाजे से हडबडाती हुई अनामिका पर जाता है|

“हफ हफ – जल्दी – जल्दी चलो |” वह आती दोनों को बाहर ले जाने को लगभग घसीटती हुई ले जाने लगती है|

“अरे हुआ क्या – बता तो !”

दोनों की बात को अनसुना करती अनामिका उनका हाथ पकडे अब गलियारे के उस कोने में खड़ी थी जहाँ पहले से ही और भी लड़कियां खड़ी हुई थी| सब एक साथ जिस दिशा की ओर देख रही थी वहां हेड मैम के साथ मैट्रेन मैम खड़ी जोर जोर से चिल्ला रही थी, अब वे देखती है कि उनके सामने खड़ी तानिया और शर्मीला की तो सिट्टी पिट्टी गुम थी|

“तुम लोग इस हद तक भी जा सकती हो – कल जरा सी बात पर डांट क्या दिया तुम लोग बदला लेने पर उतारू हो आई – आई कान्ट बिलीव कि तुम दोनों ऐसा करोगी !” वे गुस्से में आग बबूला होती रही तो अभी अभी आई हेड मैम बात को और समझने पूछने लगी – “क्या किया है इन दोनों ने ?”

“पूछिए मत मैडम – सुबह उठी तो देखा मेरे तार पर के कपडे कैंची से कटे थे और तो और मेरी तौलिए में चबाया हुआ च्युम्गम चिपका था अगर मैं देख न लेती तो मेरे बालों में चिपक जाता |”

ये सुन हेड मैम का मुंह हैरानगी में खुला का खुला रह गया और तानिया अपनी सफाई में बोल उठी –  “मैम सच में मैंने ऐसा कुछ नही किया – मैं रात में इधर आई ही नही और आप कैसे कह सकती है कि च्युम्गम मैंने ही चिपकाया है |”

उसकी बात से मैडम और नाराज हो उठी – “मुझे पता था कि तुम लोग ऐसा ही कहोगी पर मेरे पास भी सबूत है – तुम्हारे कमरे के बाहर रखी डस्टबिन में च्युम्गम के रैपर मिले है – ये कोई संयोग तो नही हो सकता |”

ये सुन तानिया और शर्मीला एकदूसरे को तीखी नज़रों से देखती हुई अपने होंठ भींच लेती है|

“ओ माय गॉड ये लड़कियां इतना नीचे गिर सकती है|”

अब शर्मीला अपनी सफाई पेश करती हुई बोली – “मैं तो पक्की तरह से कह सकती हूँ कि मैंने कुछ नही क्या मैम |”

“ओ तो क्या मैंने किया है |”

अब दोनों एकदूसरे को खा जाने वाली नज़रों से देखने लगी|

“चुप हो जाओ तुम दोनों – तुम दोनों इसी वक़्त मेरे ऑफिस में आओ और नेक्स्ट सेक्शन के लिए दूसरा हॉस्टल देखना शुरू कर दो |” गुस्से में चीखती हेड मैम वापसी को मुड़ गई और पीछे दोनों उन्हें रोकती रह गई|

तब से उन दोनों की हालत देखती सभी लड़कियां अंतरस खुश हो गई थी क्योंकि जाने अनजाने अक्सर ही वे सभी उन दोनों की दादागिरी का शिकार होती ही रहती थी अब उनके हॉस्टल से रुक्सती सुन सभी के चेहरे खिल उठे थे|

“तुम सब यहाँ क्या कर रही हो – यहाँ कोई तमाशा हो रहा है – जाओ अपने अपने रूम में |”

अनामिका पलक झलक का हाथ पकडे सीधे उनके रूम में आकर ही दम लेती है|

“जो हुआ अच्छा हुआ – बड़ी चंट है यार – क्या क्या कर गुजरती है|” अनामिका बिस्तर पर फैलती हुई पलक की ओर देखती है जो तब से मुस्कराती हुई झलक को ही देख रही थी|

“असली चंट तो कोई और ही है |”

पलक की बात सुन अचानक चौंकती हुई अनामिका बिस्तर से उठ बैठी|

“मतलब !!”

“शक तो रात में ही था आखिर वो झलक ही क्या तो आसानी से किसी को छोड़ दे |” पलक अब झलक की नज़रों की सीध में आकर सीधे उसके चेहरे की ओर देखने लगी तो अनामिका मामला समझने अपना सर खुजाने लगी|

बाद में आराम से झलक ने अपने दिमाग की सारी खुड्पेंच आखिर अनामिका को सुना दी कि कल जब मैम को डांटते देखा तभी कुछ करने का प्लान सोच लिया अब सांप भी मर गया और लाठी भी नही टूटी पर गया लहंगे का अफ़सोस बस झलक की आँखों में हलके से रह गया|

ये सुन अनामिका पहले हैरान हुई फिर उसका हँसते हँसते पेट दर्द हो गया| अनामिका के जाते झलक आज ही निकलने की जिद्द फिर करने लगी तो पलक को उसकी बात माननी ही पड़ी और दोनों सामान पैक करके बस से निकल गई पापा को सरप्राइज करने…

सरप्राइज करने तो वे गई थी पर हो खुद गई| घर पहुँचते उन्हें घर के बाहर से अहसास हो गया कि घर पर कुछ तो कार्यक्रम चल रहा है| तुरंत घर के अन्दर आते उन्हें पता चला कि घर के सभी लोग एक कमरे में मौजूद किसी पूजा कार्यक्रम में व्यस्त है| वे चौंक उठी क्योंकि उन्हें ऐसे कुछ कार्यक्रम के बारे में कुछ नही बताया गया था| जिस घर में उनके बिना कुछ न होता हो वहां पूजा के बारे में कुछ नही बताया जबकि उस पूजा के लिए मामी जी को भी बुलाया गया था|

अब कमरे में बुला भी नही रहे, इससे मुंह फुलाए झलक जाकर अपने कमरे में बैठ गई| माँ भी तब आई जब पूजा खत्म हो गई और आते ही प्रसाद पहले पलक की ओर बढ़ाती हुई झलक की ओर मुडती है जिससे वह तुनकती हुई हाथ सिकोड़ती बोल उठी – “बहुत बुरी हो आप पहले तो पूजा के बारे में नही बताया और प्रसाद भी पहले पल्लो को दिया – मुझे तो कोई प्यार ही नही करता |”

उसका बना मुंह देख पलक के साथ साथ माँ को भी हँसी आ गई|

“और क्या हर चीज में पलक पहले जैसे मैं तो कुछ हूँ ही नही |”

“ओहो गुस्सा बस नाक पर चढ़ा रहता है – पूजा अचानक से रख ली इसीलिए नही बता पाए वैसे भी पापा कल आ रहे थे न लेने फिर परेशान होती बस से क्यों आई !”

“नहीं आती तो पता कैसे चलता कि आप लोगों को मेरी कोई फ़िक्र ही नही है – जाओ मैं किसी से बात नही करती|”

झलक बिस्तर पर रूठी हुई उकडू बैठ गई तो पलक और माँ की शरारत भरी नज़रे आपस में मिली तो वे कहने लगी – “ओहो पलक फिर जो मैंने दही बड़े बनाए है वो तुम्हे ही निपटाने पड़ेंगे आखिर गुस्से में झलक से खाया ही कहाँ जाएगा |”

“दही बड़े !!” झलक की ऑंखें चार गुना फैलती हुई उनसे टकराई तो सबकी समवेत हँसी कमरे में गूंज उठी|

“हाँ दही बड़े – और जलेबी भी मँगाने वाली हूँ – राजमा चावल भी बेकार चला जाएगा |”

“बेकार क्यों जाएगा – मैं हूँ न माते श्री – सबका कल्याण करने |”

हँसती हुई माँ के कंधो से झूल गई|

पूजा का प्रसाद देकर वे पापा के पास आती उनके गले लग गई| मामी भी अपनी बांहे फैलाए उनका स्वागत करती है| ————क्रमशः

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