
एक राज़ अनुगामी कथा – 15
पलक झलक के आने से घर जैसे चहल पहल से भर उठा| माँ और मामी रसोईघर में लग गई तो दोनों अपना सामान अनपैक करने लगी| झलक के पास ढेरों किस्सों की पोटली थी जिसे लिए वह पड़ोस की दादी के पास दौड़ गई तो आधा काम छोड़कर भागी झलक पर गुस्साई पलक भी काम छोड़ छाड़ कर कमरे से बाहर आ गई| सभी व्यस्त दिख रहे थे पर बहुत देर से अपने पापा को न देख पाने से पलक उन्हें खोजने लगी| घर में एक कमरा था पापा का जिसमें दुनिया भर की किताबे भरी थी, झलक तो उस कमरे से कोसो दूर रहती, कहती कि कोर्स की ही पढ़ लूं यही बहुत है| पलक कभी कभार इस कमरे में आती वो भी तब जब कोई वहां मौजूद होता बाकी के वक़्त वो कमरा उसे डरावना लगता, नीरव एकांत में वह किताबे नही उसे सुप्त इन्सान नज़र आते, मानों उसकी दखल से वे कही जाग न जाए| उनके पिता उस कमरे में अक्सर ही अपना काफी वक़्त बिताते| बैंक से आने के बाद वे अक्सर वही बैठे जाने क्या क्या पढ़ते रहते| पलक पापा को खोजती वही आती है| कमरा के दरवाजे से प्रवेश करते कमरा दो हिस्सों में नज़र आता जबकि था एक ही कमरा| चूँकि दरवाजे से आते कमरे के बीचो बीच एक खम्बा था उस खम्बे के अस्तित्व के कारण ही कमरा दो हिस्सों में बटा सा महसूस होता, कमरे में ढेरों अलमारियां पास पास थी और उनसे झांकती किताबे और किसी कोने में लगी दो आराम कुर्सी और उनके मध्य में रखा एक गोल स्टूल जो दो चार किताब रखते भर से वह भरा भरा नज़र आता| अंदर आती पलक पापा को खोजती उन्ही आराम कुर्सी की ओर देखती है, जिसमे वाकई उसे पापा बैठे नज़र आते है, वह उन्हें पुकारती उनकी तरफ आने ही वाली थी कि उसे कुछ अजीब लगा| पापा एक ओर झुके बिना किताब के बैठे थे, जाने किस सोच में ! ये देखती वह उनके बहुत करीब जाती उन्हें पुकारती है, शायद इस एकांत में वे किसी की भी उपस्थिति से अनभिज्ञ थे इसलिए पलक की आवाज सुन वे एकाएक हडबडाते हुए उसकी ओर देखते है| पलक भी उनके चेहरे की ओर सीधा देखती है| उस पल उनकी नम ऑंखें उससे छुपी न रह सकी|
“पापा..!”
अपनी स्थिति का भान होते वे जल्दी से खुद को सँभालते अपने चेहरे पर जबरन एक चौड़ी मुस्कान लाते हुए चहके –“अरे पलक – आओ आओ बैठो – मैं सोच ही रहा था कि तुमसे पूछूँ कि कैसा रहा एग्जाम ?”
अचानक से उनके हाव भाव में आए बदलाब उसे हैरान कर देते है वह औचक उन्हें देखती पूछती है – “एग्जाम बहुत अच्छे हुए पर आप ऐसे अकेले क्यों बैठे है ?”
वे पलक को अपने साथ की कुर्सी में बैठने का इशारा करते उसका हाथ पकड़ते हुए कहते है – “अकेला कहाँ हूँ – किताबों के साथ भी कोई अकेला होता है |”
“पर पापा….!!”
“अरे हवन की वजह से आँखे चुन्धियाँ गई थी|” अपनी लाल हुई आँखों के कोरे पोछती हुए वे पलक से आंख बचाते हुए आँखे फेर लेते है|
पलक अजीब भाव से उनकी ओर देखती रही| इससे उसकी तरफ न देखते हुए भी वे पलक की अपनी ओर उठी सवालियां ऑंखें महसूस कर रहे थे| पलक भी अपलक उनकी ओर देखती रही|
“अरे बेटा जाकर देखो आज मम्मी ने क्या ख़ास बनाया है |” वे जानकर मुस्कराते हुए उसकी तरफ देखते हुए उसका हाथ छोड़कर उसे जाने का संकेत करते है|
“आप नही चल रहे ?”
“हाँ हाँ क्यों नही बहुत जोरो की भूख लगी है – आज हम सारा परिवार साथ मिलकर खाएँगे – तुम चलो मैं भी आता हूँ |”
पलक उठ जाती है, वे अपनी भरपूर मुस्कान से उसे जाने को कहते रहे| आखिर पलक उस कमरे से निकल गई|
पलक वहां से रसोईघर में गई जो वाकई अच्छीखासी चहल पहल और खुशबू से लबरेज था| मामी और मम्मी संग झलक की आवाज भी आ रही थी| झलक शायद हर चीज चख चख कर छोड़ दे रही थी इससे मम्मी उसे किचेन से भगा रही थी| ये सोच पलक के होंठों पर भी क्षणिक हँसी थिरक उठी|
सारा परिवार सब के साथ ख़ुशी से झूम उठा था| सबने साथ में खाना खाया फिर ढेर सारी गप्पो के साथ सब अपने अपने कमरे में चली गई| पलक झलक एक ही कमरा शेअर करती थी| झलक के मुंह को तो अब जाकर आराम मिला तो बिस्तर पर आती वह झट से सो गई| बहुत दिन बाद घर के सुकून से पलक भी लेटती ही सो गई| पर वही आधी रात अकस्मात् फिर उसकी आंख खुल गई और डर की जद में वह घिर गई| इस बार बेड के पास ही लाइट का स्विच होने से वह घबराती हाथ से टटोलती स्विच आन कर लेती है| स्विच आन होते अँधेरा पड़ा कमरा पल में जगमगा उठता है| कुछ पल पहले किसी साए की अनुभूति से डरा मन कुछ राहत पा गया था| अब घूमती निगाह से वह पूरा कमरा देखती है| बगल में लेती झलक गहरी नींद में थी पर पलक की आँखों से नींद गायब हो चुकी थी|
अचानक किसी आहट पर वह चौंकी, आधी रात जरा भी आहट उसके मष्तिष्क में डर की लहर दौड़ा देती| लेकिन लगातार की आवाज से उसका ध्यान कमरे के दरवाजे की ओर जाता है, ध्यान से सुनने पर उसे पता चलता है कि दरवाजे पर दस्तक हो रही थी| ये सुन पलक की रगों में जैसे खून ही जम गया, वह किसी तरह झलक को जगाने का प्रयास करती है पर गहरी नींद में होनेसे कुनमुनाती वह करवट लेती सो जाती है| अब पलक के पास खुद उठने के अलावा कोई चारा नही था| वह किसी तरह से हौसला करती उठकर दरवाजा धीरे से खोलकर बाहर झाँकने की कोशिश करती है| बाहर मामी को देख और मामी उसे देख एकाएक सकपका जाती है| जल्दी से बढ़कर घबराई पलक उनके गले लग जाती है|
“क्या हुआ – क्यों जागी – मैं तो वाशरूम के लिए उठी तो तुम्हारे कमरे की बत्ती जली देख चली आई – पल्लो बच्ची क्यों डरी हुई है – कोई डरावना सपना देखा !!”
पलक इतना डरी थी कि बस हाँ में सर हिला पाई|
“ओहो सपना तो सपना ही होता है न और इस झलक को जगाया – उफ़ ये तो गधे घोड़े बेचकर सो रही है – और इसे देखकर लगता है तुम्हारे हिलाने से क्या ये तो भूकंप में भी नही उठने वाली|”
“अच्छा चलो मेरे साथ लेट जाना|”
ये सुन पलक ने सुकून का एक गहरा श्वांस खींचा और चुपचाप उनके साथ चल दी|
स्नेह और सानिध्य की छाव में पलक चैन की नींद सो गई तो मामी जी भी उसके बालों में उंगलियाँ फेरती फेरती सो चुकी थी|
सुबह देर तक भी पलक की और न झलक की नींद टूटी थी, मामी जी पलक का देर से सोने का कारण बताती हुई बेहद चिंतालू हो उठी थी|
“भाभी ये सुनकर तो मुझे पलक को लेकर बहुत घबराहट होने लगी |” रसोई में खड़ी खड़ी माँ परेशान हो उठी थी|
“नही नीतू परेशान मत हो – बस उसका थोडा ज्यादा ख्याल रहो और कुछ नही – और हाँ वैभव को अभी कुछ मत कहता वर्ना वे और परेशान हो उठेंगे |”
“उनको क्या कहूँ – वे तो अपनी ग्लानी से आज तक बाहर नही निकल पाए – कभी कभी देख लगता है जैसे वे आज भी बीस साल पहले की स्थिति पर खड़े है – कुछ भी कहना समझाना सब निर्थक जाता है|”
अब कुछ पल दोनों खामोश होती गैस पर चढ़ी चाय की उबलती गुड गुड चुपचाप सुनती रही| मानों कुछ पल को अपने अपने एकांत में दोनों ने छलांग लगा दी थी| उस पल उनके चेहरे पर कोई रहस्य सा गहरा गया था|
आखिर जागते पलक को ढूंढती झलक उसके पास आती उसे झंझोड़कर उठा रही थी पर गहरी नींद में खोई पलक उसका हाथ झटक देती| अब माँ और मामी जी भी उसी कमरे में आ जाती है|
“ये क्या आज झलक पहले उठ गई – लगता है सूरज पश्चिम से निकला है आज |”
उनकी हँसी की आवाज पर चिढ़कर बिस्तर पर उकडू बैठती मुंह बनाती हुई बोली – “ये यहाँ सोई तो कल रात मैं अकेली सोती रही !”
“पलक डर गई थी इसलिए अपने पास सुला लिया|” मामी जी बैठती पलक के बालों पर उंगलियाँ फेरती फेरती बोली|
“अरे ये तो डरपोक्की है – हर बात पर डर जाती है |”
“झलक ये क्या बात करने का तरीका है |” माँ आँखों से नाराज़ होती हुई कह रही थी – “कोई अपनी बड़ी बहन को ऐसे बोलता है – हॉस्टल जाकर जबान खराब हो गई|”
“बस एक साल दो दिन बड़ी है पर पढ़ती तो मेरे क्लास में है न लेकिन सबको तो बस पलक ही नज़र आती है और डांटते को मैं मिलती हूँ – कोई मुझे प्यार नही करता |” रूठी हुई झलक सबकी ओर से मुंह फेर लेती है पर उसकी हालत पर माँ और मामी जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी|
“क्योंकि तुझे मंदिर से डिस्काउंट में लाए थे |”
अचानक कमरे में गूंजी अन्यत्र आवाज पर सबका ध्यान दरवाजे की ओर जाता है और पल में एक साथ सबके चेहरे खिल उठते है| देहरी पर आदर्श खड़ा अपनी भौंह उचकाता उनकी ओर देख रहा था|
“आदर्श — कब आए ?” नीतू ख़ुशी से अपनी बांहे फैला लेती है तो आदर्श आता झट से उनके साथ साथ अपनी माँ का भी चरण स्पर्श करता हुआ फुर्ती से झलक के बाल खींच लेता है|
“हाँ हाँ मुझे तो मंदिर से लाए थे और आपको तो किसी रेस्टोरेंट से लाए होंगे |” दांत दिखाती हुई झलक अपने होठ फैला लेती है|
आदर्श के होटल मेनेजमेंट के शौक को लेकर सब अच्छे से वाकिफ थे|
“अच्छा अब बोलियों कि ये बना कर खिलाओ भईया तब कद्दू बनाऊंगा तुम्हारे लिए |”
इस पर खीजती हुई झलक उसके हाथ में पकडे किसी पैकेट की ओर उछली –“ये क्या है – मेरे लिए !!”
“न —|” आदर्श अपनी उचाई से उस पैकेट को उसकी पकड से ऊपर उठा लेता है तभी पीछे से उसके हाथ से पैकेट लेती कोई हँसी की आवाज सुन आदर्श अपना खाली हाथ देखता रह जाता है| ये पलक थी जो उठकर कब उसके पीछे आ गई कोई देख भी न पाया| अब उस पैकेट को पकडे दोनों सर घुसाए देखती उछल ही पड़ी – “वाओ स्प्रिंग रोल वो भी सुबह सुबह – मजा आ गया दिन का |” दोनों अपने अपने स्थान पर खड़ी ख़ुशी से उछल पड़ी थी|
“एक पल में गुस्सा होती है अगले ही पल दोनों मिल जाती है |”
“एकदूसरे के बिना कभी रह पाई है !” मम्मी और मामी जी एकदूसरे की ओर देखती मुस्करा उठी|
“अपने मतलब की चीज मिलते अब मुझसे कोई मतलब नही है |” आदर्श यूँ मुंह सिकोड़कर कहता है जिससे खिलखिलाती दोनों उसके पास आती उसके गले लग जाती है|
अगले ही पल घर फिर खिलखिलाहट से भर उठा था|
अब मामी जी के जाने की तैयारी शुरू हो जाती है, नीतू मंदिर से रक्षा सूत्र लेकर बारी बारी तीनों के बाँधती हुई कहती है – “ये रक्षा करेगा तुम्हारी – आदर्श जाओ फूफा जी से मिल आओ |”
“जी बुआ जी |” सुनकर आदर्श चला गया|
अब मामी जी भी चलने को उठने लगी तो झलक अपनी कलाई के सूत्र को उल्ट पलट कर देखती हुई उसका अतिरिक्त निकला धागा खींचकर तोडती हुई बोली – “एक कच्चा धागा जो खुद कमजोर है क्या रक्षा करेगा हमारी |”
झलक की बात सुन सभी चलते चलते रूककर उसे देखते लगे तो नीतू उसके पास आती उसकी कलाई का धागा और कसती हुई बोली – “बंधन कमजोर ही होते है विश्वास उन्हें मजबूत बनाता है |” माँ की इतनी गूढ़ बात पर अनभिग्यज्ञ सी उन्हें देखती रही तो वे उसके सर पर टीप मारती आगे बोल उठी – “सीता ने रावण से खुद की एक अदने से तिनके से रक्षा की क्योंकि वह मात्र तिनका नही आत्मविश्वास था इसलिए जब तुम्हें इसपर विश्वास होगा तो ये भी तुम्हारी रक्षा करेगा समझी तुम |”
“हाँ समझ गई माते श्री |” उनकी तरफ देखती हाथ जोडती हुई झलक झुकी तो बाकि सब उसकी स्थिति पर हँस पड़े|
“चलो अब मैं भी चलती हूँ – तुम सब अपना ख्याल रखना |” मामी जी बारी बारी से पलक झलक का माथा चूमती हुई बोली|
“मामी जी एक दिन और रुक जाइए न आप |” पलक उनके कंधो पर झूलती हुई बोली|
“रुक तो जाती पर क्या करूँ – आजकल आदर्श के लिए रिश्ते आ रहे है – जब देखो कोई न कोई घर आ जाता है|”
“वाओ जल्दी से भईया की शादी कीजिए हम तो धमाल मचाने तैयार बैठे है|” पलक झलक साथ में एकदूसरे का हाथ पकडती खिलखिला उठी|
“हाँ उस दिन का इंतजार तो मैं भी कर रही हूँ पर ये हाँ ही नही करता – जाने क्या है इसके मन में – न हाँ बोलता है और न ना |”
“कुछ तो रहस्य होगा उसके मन में |” नीतू आगे आगे आती कह उठी|
“क्या पता – क्या है उसके मन में |” मामी जी कंधे उचकाती हुई बोली|
“अरे आप लोग क्यों परेशान है – कोई भी रहस्य और राज़ हो उसके लिए आप मुझसे यानि झलक से संपर्क करिए – यूँ चुटकियों में पता लगा लूंगी |” चुटकी बजाती झलक बोली|
“क्या सच में !”
“हाँ पर फीस लगेगी |”
“ओहो तो क्या फीस होगी आपकी जासूस मैडम ?”
“एक अनारकली सूट विथ पिज़्ज़ा पार्टी से काम चला लूंगी |”
झलक की तिरछी मुस्कान देख सब उसकी ओर देखते रह गए|
“झलक…!!”
माँ टोकना चाहती थी पर उसे रोकती मामी जी कह उठी – “एक नही दो दिलाऊगी – पहले पता तो करो |”
“वो सब आप मुझपर छोड़ दीजिए – आप आम खाइए पेड़ मत गिनिए |”
“ये भला कौन सी कहावत है – |”
“ये मेरी पर्सनल वाली झलक मेड है आम और गुठली वाली तो पुरानी हो गई |”
झलक अपनी गर्दन उचकाती बोली तो सब कसकर हँस पड़े|
“अच्छा….!” ———————क्रमशः —-