
एक राज़ अनुगामी कथा – 16
मामी जी को दोनों ने शाम तक जाने के लिए मना लिया और अब आदर्श के संग बाहर पिज़्ज़ा खाने का प्रोग्राम बना रही थी| दोनों इस तरह पीछे पड़ी थी कि आदर्श को आखिर अपनी जान छुड़ाने के लिए उनकी बात माननी पड़ी| फिर दोनों को तैयार होने को कहकर आदर्श उनका बाहर इंतजार करने लगा| बाहर जाने के नाम पर दोनों झट से तैयार होने लगी| तभी पलक का मन किया कि तब से रखा राजस्थानी लहंगा ही पहन लेती है, झलक ने भी हामी भर दी| दोनों तैयार होकर बाहर आई, पलक को देख आदर्श हँस पड़ा जिससे चिढ़ती हुई पलक मुंह बनाती हुई बोली – “क्यों भईया – अच्छा नही लग रहा !!”
“अच्छा तो है पर कोई पार्टी में थोड़े जा रहे |”
“नया लिया था – कब से पहनने का मन था |”
“ओके ठीक है – अब चले !!”
“एक मिनट मम्मी को दिखा कर आती हूँ |” पलक लहंगे का घेर पकडे डोलती हुई बोली|
दोनों उछलती जाने लगी तो आदर्श उन्हें टोकता हुआ बोला – “अरे घर पर कोई नही है – तुम लोग जब तक तैयार हो रही थी तब तक फूफा जी मम्मी और बुआ को लेकर मंदिर गए है – आकर दिखा देना – अब चलो जल्दी – नही तो कैंसिल पिज़्ज़ा |”
“नही नही |” दोनों उसी रफ़्तार में उसके पास आ जाती है|
अपनी फेवरेट प्लेस में तीनों पिज़्ज़ा का लुफ्त उठा रहे थे| सही मौका देख झलक आदर्श का मन टटोलने लगी|
“भईया इस बार बड़ी जल्दी है आपको जाने की – हर बार की तरह कुछ दिन रूककर जाइए न – ऐसा तो नही कही कोई इंतजार कर रही है !!” भौं उचकाती झलक मुस्कराई|
“नही नही ऐसा कुछ नही है |”
“सच्ची बताओ भईया |”
“हमसे क्या छुपाना |”
अबकी पलक की सुन तुरंत चिहुंकता हुआ बोला – “तुम दोनों पिज़्ज़ा खाने आई हो या मेरा दिमाग |” कहता हुआ दोनों के सर पर एकसाथ टीप मारता हुआ बोला – “दिमाग के घोड़े मत दौडाओ – मेरे पास अभी इन सब चीजों के लिए फुर्सत नही है |”
“इसमें फुर्सत की क्या बात – हम सब तो आपकी शादी का वेट कर रहे है – खूब धूम मचानी है|”
“धूम मचानी है तो ऐसे ही मचा लो – मेरी जिंदगी क्यों खराब करनी – मुझे अभी बहुत काम करने है अपनी लाइफ में |”
दोनों अब खाना रोक आदर्श की बात सुनने लगती है|
“सब अपनी कहते रहते है पर कोई मेरी बात नही समझ रहा – मैं अभी कही इंगेज नही होना चाहता कह दूंगा तो माँ नाराज़ और जो मैं करना चाहता हूँ वो करूँ तो पापा नाराज़ –|”
“तो ऐसा क्या करना चाहते है आप ?”
“तो होटल मेनेजमेंट मजाक के लिए थोड़े किया था|”
आदर्श की बात सुन पलक झलक एकदूसरे का चेहरा देखती हुई याद करती है कि अभी हाल में ही आदर्श ने आगरा में अपना होटल मेनेजेंट का कोर्स पूरा किया था और इस कोर्स के लिए उसके घर पार कितना बवाल मचा था, सबने अपनी अपनी तरह से समझया लेकिन अपने इकलौते बेटे आदर्श की जिद्द के आगे किसी की नही चली| आदर्श की अभी भी अपनी बात कह रहा था –
“तुमने जितने भी पोपलर शेफ सुने होंगे सब मेल ही है न और आज तक हलवाई को काम करते देखा कभी हलवाईन को देखा|” आदर्श की सहमति पर न में सर हिला देती है दोनों|
“फिर मेरे पीछे सब क्यों पड़े है – मुझे पसंद है अपना काम हाँ थोडा वक़्त लगेगा पर उम्मीद है मैं जो करना चाहता हूँ मैं उसे करके ही खुश रहूँगा |”
आदर्श जिस जोश में अपनी बात खत्म करता है उससे दोनों सहमत होती उसका हाथ पकडती हुई कहती है – “डोंट वरी भईया हम दोनों हमेशा आपके सपोर्ट में है और देखियेगा बहुत जल्दी सब भी आपकी बात समझ जाएँगे – हूँ |”
दोनों की विश्वस्त मुस्कान से आदर्श भी मुस्करा उठा|
“चलो इस मोमेन्ट को ख़ास बनाने एक सेल्फी लेते है|” फिर खटा खट कैमरा में वे अपनी मुस्कराती तस्वीर कैद कर वापस घर चल देते है|
कार में बैठते ही झलक अचानक चिल्ला पड़ी जिससे दोनों एकसाथ चौंकते हुए उससे पूछ उठे – “क्या हुआ !!”
“कुछ भूल गई |” झलक भोला सा चेहरा बनाए बारी बारी आदर्श और पलक का चेहरा देख रही थी, वे भी न समझ पाने से औचक उसकी ओर देखते रहे|
“भूल क्या गई – क्या मोबाईल !!”
“आइसक्रीम – बिना आइसक्रीम पिज़्ज़ा गले में ही अटका रहेगा तो फिर अपने प्यारे भईया के लिए सपोर्ट कैसे करुँगी !!”
झलक के चेहरे पर आई शरारती मुस्कान को समझते आदर्श उसके कान पकड़ते हुए बोला – “सीधे बोल न कि अब आइसक्रीम भी खानी है – पूरी अच्छे से चपत लगाए बगैर मन थोड़े ही भरेगा – लाता हूँ |”
कहकर आदर्श वापस मुड़कर जाने लगा तो पीछे से दोनों बारी बारी से बोल उठी|
“मुझे ब्लैक बेरी विथ वनिला वाला चाहिए |”
“मुझे स्ट्राबेरी विथ कस्टड फेलेवर |”
“हाँ हाँ लाता हूँ – |” दोनों की समवेत हँसी की आवाज सुनता आदर्श आइसक्रीम पार्लर की ओर बढ़ जाता है|
घर पहुँचते उन्हें बाहर से ही पता चल जाता है कि सभी मंदिर से वापस आ चुके है, उन सबकी हँसी की आवाज बाहर तक आ रही थी| पलक झलक भी दौड़ती हुई घर में प्रवेश करती है|
जब तक आदर्श घर के अन्दर प्रवेश करता है अचानक घर का बदला हुआ माहौल उसे महसूस होता है, उसे बाहर गेट पर ही फूफा जी की चीखती आवाज सुनाईपड़ती है जिससे उसके तेज होते कदम लगभग दौड़ते हुए बैठक वाले कमरे तक जाकर ही रुकते है| वह अवाक् अपने सामने के दृश्य को देखता रह गया| पलक घबराई सी अपने में सिमटी खड़ी थी और फूफा जी गुस्से में कांपते हुए उस पर चीख रहे थे| बाकि सभी भी आदर्श की तरह सकपकाए बस अपनी अपनी जगह जमे रह गए|
“क्यों पहना तुमने ये ड्रेस – कहाँ से लाई और क्यों लाई जबकि बार बार मैं कह चुका हूँ कि राजस्थान से जुडी कोई भी चीज मुंझे इस घर में नहीं चाहिए – तो क्यों लिया तुमने ये ?”
पलक अभी भी डरी काँप रही थी, उससे कुछ कहते नही बन रहा था|
“राजस्थान और राजस्थानी चीजों से नफ़रत है मुझे – जाओ अभी बदल कर कर दो मुझे ये ड्रेस – इसे मैं अभी जड़ से खत्म कर दूंगा |”
आदर्श अवाक् खड़ा कुछ समझ नही पा रहा था, बल्कि उसने इससे पहले कभी उन्हें इतना गुस्से में नही देखा था| वह देख रहा था कि बुआ जी और माँ कैसे फूफा के गुस्से को सँभालने की कोशिश कर रही थी| पर वे सबको अनदेखा करते वहां से चले गए| पलक भी रोती हुई कमरे की ओर भाग गई, पीछे पीछे झलक भी|
“क्या हुआ माँ ?” अब वहां रुआंसी सी खड़ी बुआ और माँ को देखता आदर्श उनके पास आता हुआ पूछता है|
“कुछ नही – आदर्श तुम फूफा जी के पास जाओ मैं पलक को देखती हूँ |” कहती हुई वे जाने लगी तो नीतू आदर्श को टोकती हुई कह रही थी – “रुको आदर्श मैं जाती हूँ उनके पास |”
कहकर वे अपनी ऑंखें पोछती वैभव के पीछे चल देती है|
मामी जी जब तक पलक के पास आई वह कपडे बदल चुकी थी और लहंगा अपने हाथों में समेटी आदर्श की ओर बढाती हुई सिसकती हुई बोल रही थी – “दे दीजिए पापा को |” आदर्श के हाथों के बीच रखती पलक फिर कमरे में आती घुटनों में मुंह छिपाए सिसकने लगी| आदर्श को समझ नही आ रहा था कि क्या कहे और क्या करे पर माँ की आँखों का इशारा पाते आखिर वह लहंगा लिए चला गया| पल में घर का माहौल बदल गया था| झलक कोने में बैठी सन्न सब देखती रह गई, मामी जी अब पलक के पास बैठती उसका सर सहलाती उसे चुप करा रही थी|
रोती रोती पलक उनके गले से लिपट गई|
“मुझसे क्या गलती हुई – जो – पापा ने मुझे डांटा |”
“न बेटा – रोते नही – चुप हो जाओ – बताओ तुम्हें ऐसे रोता छोड़कर क्या मैं जा पाऊँगी – चुप हो जाओ |” पलक के रोते चेहरे को अपनी हथेली में भरती हुई वे कह रही थी – “तुम्हारे पापा तुमपर नहीं बल्कि…..|” वे हिचकिचाती बात अधूरी छोड़ती पलक की ऑंखें पोछने लगती है|
“मामी जी आखिर पापा को राजस्थान से इतनी क्या प्रॉब्लम है कि पलक वहां का ड्रेस भी नही पहन सकती |” अबकी झलक उनके बीच आती हुई कहने लगी|
वे अब उन दो जोड़ी आँखों के प्रश्न से अचकचा गई थी, पर आज उन बच्चों को कुछ तो कहना होगा…बार बार जो प्रश्न उनके बीच एक अनदेखी दीवार खड़ी कर दे रही थे उन प्रश्नों का कुछ तो उत्तर देना ही होगा| वे झलक और पलक के हाथों को अपनी हथेली के बीच समेटती हुई उनकी आँखों में देखती हुई कहने लगी –
“मैं ज्यादा कुछ तो नही कह सकती पर इतना ही कहूँगी कि कभी कभी बड़ों की बात बिना किसी तर्क वितर्क के मान भी लेनी चाहिए – हो सकता है उस बात की गहराई तुम्हे आज समझ नहीं आ रही पर आने वाला वक़्त अपने अन्दर बहुत कुछ छुपाए हो |”
वे खामोश उनकी बात सुनती रही, पलक की आँखों के कोरे अभी तक भीगे थे पर झलक संदेहास्पद नज़रों से उन्हें देखती रही|
क्रमशः……………………..