
एक राज़ अनुगामी कथा – 19
पलक के बारे में ये सब सुनकर उनके लिए किसी हादसे से गुजरने से कम नही लगा| आखिर अगले ही दिन दोनों सुबह से ही मंदिर के पुजारी से मिलने उनकी कोठरी के लिए निकल पड़े, जाते जाते पलक और झलक को साथ में रहने का निर्देश भी दे दिया| पर झलक कहाँ किसी की सुनने वाली थी दोनों के निकलते तुरंत छत पर ईशा से गप्पे लगाने पहुँच गई|
मंदिर के ठीक बगल में पंडित जी की कोठरी थी जहाँ वे दोनों पहुँच चुके थे| कोठरी कम छोटा सा आश्रम था| अपना आना वे पंडित जी को बता चुके थे जिससे उनका बेटा आगे आकर उनका अभिवादन करता है| एक शांत व साफ़ कक्ष में धरती पर बीचों बीच रखी चौकी के दोनों ओर आसनी बिछी थी| बाकि कमरे में कोई सामान इत्यादि नही था| पुजारी के बेटा चौकी के दूसरी ओर पहुंचकर अपनी दूसरी ओर उन्हें बैठने का आदरपूर्वक निवेदन करता है| वैभव और नीतू पंडित जी को न पाकर थोड़ा अचकचाते हुए उस आसन पर बैठ जाते है| वह भी बैठ जाता है| उनके बैठते वह कुछ पत्रिका आदि खोलते उस चौकी पर जमाते हुए कहना प्रारंभ करता है|
“ये आपकी बेटी की जन्मकुंडली है – मैंने इसका अध्यन कर….|” उसकी बात अधूरी रह गई वैभव उसकी बात बीच में काटते हुए इधर उधर देखते हुए पूछ उठे – “क्या आपके पिता जी मतलब कि पंडित जी नही है क्या ?”
वह युवा पंडित वैभव का कहना समझ जाता है जिससे हौले से मुस्कराते हुए उनके सामने की पत्रिका समेटते हुए कहता है – “जी – वे आ रहे है|”
तभी पंडित जी आते दिखते है जिससे उनका बेटा अपने स्थान से उठने लगता है तो उसे वही बैठे रहने का इशारा करते हुए वही आ जाते है| उनके उसके बगल में बैठते अब वैभव के चेहरे पर कुछ ज्यादा ही सुकून देखते है वे|
“सब कुशल मंगल है – अब बिटिया ठीक है – कोई भयभीत सपने तो नही आते या डर कर आधी रात उठ तो नही जाती ?”
“न नही – सब ठीक है |”अचानक से पंडित जी के प्रश्न से वे अचकचा जाते है फिर जल्दी ही संभलते हुए कहते है – “पर आपको कैसे पता?”
“आपकी बेटी की कुंडली का पूरा अध्ययन किया है – कुंडली से जातक के वर्तमान के साथ उसका भूत भविष्य दोनों का पता चलता है – सताईसा नक्षत्र में जन्म के कारण से उसके गुण धर्म सबका प्रभाव जातक पर पड़ता है – बिटिया सुन्दर सुशील और बहुत ही बड़े घर की स्वामिनी होने का प्रबल योग है पर जन्म के पूर्व कर्म के कारण कष्ट भी है – पिता के लिए ज्यादा कष्ट है ईश्वर आपको सदा स्वस्थ रखे लेकिन विधाता का लिखा…|”
“हम पलक के जन्मदात्री माता पिता नही है और अब वे इस दुनिया में भी नही है |” वैभव बहुत ही धीमे स्वर में कहते है|
“ओह तभी मैं ये आपसे कह नही पा रहा था क्योंकि योग ऐसा ही बन रहा था |” पंडित जी चौकी पर रखी पत्रिका पलटते हुए दबे स्वर में कहते है |
“जी पलक मेरे बड़े भाई की बेटी है अब आपसे क्या कहू कि किन हालातों में उनकी मृत्यु हुई बस उसका प्रभाव पलक के जीवन पर न पड़े इसलिए पलक को भी ये कभी नही बताया – बस कुछ भी उपाय करिए मैं अपने भाई की आखिरी निशानी को किसी भी हालत में नही खो सकता |” वैभव अपना जब्त दर्द बयां कर बैठे|
“क्या जन्म के समय आपने मूल शांति की पूजा कराई थी ?”
“जी नही – ऐसा तो कुछ नही पता –|”
“क्या कुंडली नही दिखवाई थी आपने ?”
“असल में उस वक़्त हम सब बहुत ही परेशान चल रहे थे तो इस तरफ ध्यान ही नही गया और कुछ विशेष कभी हुआ भी नही – हाँ बचपन में जब बीमार पड़ती थी तो बहुत ज्यादा ही बीमार हो जाती थी बस तब पर भी उस वक़्त कुंडली का ख्याल नही आया |”
ये सुन पंडित जी पत्रिका को अपने साथ बैठे बेटे की ओर बढ़ाते है|
“अभी पिछले दस वर्ष पूर्व ही हम यहाँ बसे है – आपके बारे में बहुत सुना था और इस बीच कुछ स्थितियां भी ऐसी बनने लगी कि आपसे मदद की जरुरत आन पड़ी|” अबकी नीतू हाथ जोड़ते हुए अपना दर्द बयाँ कर बैठी|
“देखिए सब तो ऊपर वाले के हाथ में है – यही कर्ता, भर्ता और रचियता है – कष्ट भी देंगे तो रास्ता भी सुझाएँगे – अब थोडा हौसला करके आप सुनिए – मंगल और राहु की स्थिति वक्राकर होने से आने वाले कुछ बारह से चौदह महीने जब तक लग्न में ये स्थिति बनी रहेगी बेटी को कुछ शारीरिक और मानसिक कष्ट होंगे |”
ये सुन नीतू और वैभव की आँखों में अनजाना भय उभर आया जिसे भांपते हुए पंडित जी कहते है –
“आपको कुछ विशेष पूजा करानी होगी |”
“कैसी पूजा – आप बताईए तो |”
अबकी पंडित जी न बोलकर उनका बेटा बोलता है –
“ग्रह दोष के निवारण हेतु कुछ पूजा अनुष्ठान और दर्शन करने होंगे आपको – हर अमावस्या से पहले आपको उस पूजा को संम्पन करना होगा |”
“क्या इससे कुछ होगा !!”
पंडित जी नोटिस करते है कि वे दोनों उनके कम उम्र बेटे की बात को उतना गंभीरता से नही ले रहे थे जिसे समझते हुए वे हौले से मुस्कराते हुए कहते है – “मैं समझ सकता हूँ कि ज्योतिष ज्ञान को आप कैसा समझ रहे होंगे – आप भी सही है असल में कुछ लम्पट लोगों ने इस वैज्ञानिक ज्ञान को पूरी तरह से अन्धविश्वास बना दिया है पर ये पूरी तरह से वैज्ञानिक है – अगर ऐसा नही होता तो विश्वविद्यालय इसे विज्ञान की तरह नही पढ़ा रहा होता – कुंडली ज्ञान पूरी तरह से ग्रहों की स्थितियों पर आधारित है जिसे समझने वाला हर ज्ञानीजन ज्योतिष एक सा कहेगा – ये देश या भेष बदलने से नही बदलेगा बाकि हमारा विश्वास ही किसी भी नियति को पुख्ता रूप से तय करेगा|”
“जी मैं विश्वास करता हूँ तभी मैं आपके सामने बैठा हूँ बस आप बता दीजिए कि करना क्या है |”
“आने वाली अमावस्या से ठीक तीन दिन पहले हम पहली पूजा की तैयारी करेंगे – तब तक बस आप शाम होते बेटी के माथे पर भभूत जरुर लगा दीजिएगा |”
ये सुन नीतू और वैभव एकदूसरे की ओर देखते है पर कुछ कहते नहीं फिर औपचारिका निभाकर उठ जाते है|
इधर झलक किसी तरह से पलक को मना कर अपनी दोस्त ईशा के साथ मार्किट चली गई जबकि उसे पलक के साथ रहने को कहकर गए थे पर उसके मन के लिए पलक ने उसे जाने दिया और साथ ही जल्दी घर आने ही हिदायत भी दे दी|
शाम होते होते कुछ बाहर के काम निपटाते हुए उनके मम्मी पापा घर वापस आ गए, पलक समय काटने किताबे सही से लगाती रही साथ ही झलक के वापस न आने की चिंता भी होने लगी और गुस्सा भी आ रहा था उसपर|
वे अन्दर आ ही रहे थे कि पड़ोस का कोई उन्हें रोके बात करने लगा तभी झलक दौड़ती हुई छत से नीचे आती है| पलक धूप से कपडे उतारकर लाती उसे सामने देख चौंक जाती है और आँखों से गुस्सा करती उसे इशारे से बताती है कि आज तो उसकी खैर नही क्योंकि उनकी नज़रों के सामने कुछ दूर पर ही पापा मम्मी खड़े थे जो आपस में बात करते करते उनकी ओर ही आ रहे थे| पलक होंठ तिरछे कर मुस्कराई कि आज उसकी बात न मानने की सजा मिलने वाली है अब उसे बाहर के कपड़ों में देख झलक अपने बचाव में क्या कहेगी !!
“अरे – तुम दोनों यही खड़ी हो !”
“हाँ पापा |” झलक जल्दी से बोली|
पलक देखती रह गई कि बालकनी के फिश पॉट से कब झलक ने पानी लेकर अपने चेहरे पर छिडक लिया और कमर में दुपट्टा बाँधती हुई पलक के हाथों से कपडे लेती हुई बोल रही थी – “ओहो कितनी देर लगा दी कपडे लाने में – आज तो कमरा ठीक करने में मेरे तो पसीने छूट गए – आइए पापा मैं अभी झट से आप लोगों के लिए चाय बनाकर लाती हूँ|” कहती हुई पलक के हाथ में दुबारा कपडे थमाती हुई रसोई की ओर चल दी| पलक बस मुंह खोले झलक को देखती रह गई|
……………………………क्रमशः