
एक राज़ अनुगामी कथा – 2
कोई टेढ़ा प्रोग्राम बनाना हो तो झलक से बेहतर कोई नही सोच सकता ये सबको पता था, मौका देख कब तीनों सुबह से होस्टल से बाहर फुर्र हो गई किसी आँख को पता न चला| पूरा दिन मस्ती कर देर शाम तीनों हंसती हुई वापस आ रही थी|
“हाय इस सावारियां ने तो मार ही डाला – अब से न ये मेरा वाला फेवरेट हीरो हो गया |”
मचलती हुई झलक की आवाज सुन दोनों उसे घूरती हुई बोली – “यही तूने पिछली मूवी में भी कहा था किसी दूसरे हीरो के लिए – तेरा न हर बार का यही चक्कर है |”
अचानक आगे बढ़ते बढ़ते तीनों की निगाह कुछ अलग दृश्य देख जल्दी से शांत होती धीरे से एक दूसरे के कानों में फुसफुसाई – “ये शर्मीला – तानिया का दुश्मन ग्रुप हमें क्यों घूर रहा है ?”
“पता नही |” अनामिका ने भी फुसफुसाकर जवाब दिया|
“मेरा तो सिक्स सेन्स कह रहा है कि हमारे साथ कुछ तो बुरा होने वाला है |” पलक दबी आवाज में बोल पड़ी|
तीनों संतुलित क़दमों से आती बस उन लड़कियों के ग्रुप को पार करने ही वाली थी कि उनकी छाया के पीछे मेट्रन मैम और हॉस्टल की हेड मैम को देख तीनों के होश ही उड़ जाते है, अब तीनों मरमरी हालत से उन्हें देख रही थी तो बाकी के चेहरों पर चोर को पकड़ लेने की तिरछी हंसी तैर गई थी| तीनों के पैर उनके सामने आते जैसे बर्फ से जम गए|
“हाँ तो तीनों की सवारी कहाँ से आ रही है ?’
हेड मैम के पूछने पर तीनों के मुंह से कोई बोल नही निकला वे मूक ऑंखें झुकाए खड़ी रही|
“तुम्हें पता नही क्या कि सन्डे के दिन किसी को हॉस्टल से बाहर जाने की परमिशन नही मिलती – बस जब आज गार्जियन मिलने आते है तो उन्ही के साथ बाहर जाने की परमिशन मिलती है – तो तुम लोग किसकी परमिशन से बाहर गई – बोलो – जवाब दो कि एक्स्प्लेंशन तुम लोगों के पेरेंट्स से मांगू मैं !!” वह तेज स्वर में अपनी बात खत्म करती एकटक उनका चेहरा घूरती रही|
“आई वांट टू एक्स्प्लेंशन राईट नाओ |” वे चीखी तो तीनों के चेहरों का रंग ही उड़ गया तो बाकि मौजूद लड़कियां बिन आवाज़ के मुस्करा दी|
उनकी ऑंखें घूर ही रही थी तभी झलक झट से आगे आती अपनी आँखों से मोटे मोटे आंसू झलकाती कह रही थी – “मैम – मैं पहले ही इनसे कह रही थी कि मैम को बता देते है पर किसी ने मेरी सुनी ही नही |”
झलक की बात सुन अब सब ऑंखें फाड़े उसी को देख रही थी तो पलक और अनामिका के काटो तो खून नही जैसे हालात हो गई| वे मन ही मन कसमसाई कि ये झलक की बच्ची जाने क्या गुल खिलाने वाली है|
“मैम मैं तो जाना भी नही चाहती थी पर क्या करूँ खुद को रोक भी नहीं पाई – अनु अपनी लोकल गार्जियन आंटी का इंतजार ही कर रही थी तभी उनके पड़ोस की आंटी का फोन आ गया कि आंटी अपने घर में बेहोश पड़ी है -|” सब हैरान झलक की कहानी सुन रहे थे और वह भी पूरे हाव भाव से कहानी सुना रही थी – “हमे ज्यादा कुछ सोचने का समय ही नही मिला – हम तो बस झट से रजिस्टर में नाम लिखती निकल गई – और अच्छा ही किया – जब वहां पहुंचे तो देखा आंटी तो घर में अकेली थी – फिर तो पूछिए मत उनको लेकर हॉस्पिटल पहुंचे और वहां ..|” कहते कहते रूककर वह कुछ सुबकने लगी तो हैरान मैम झट से उसके नजदीक आती धीरे से पूछ बैठी – “वहां !!! – फिर क्या हुआ वहां ??”
अपने मगरमच्छ के आंसू पोछती हुई वह बोलने लगी – “वहां मालूम पड़ा आंटी को कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज वाला |” मुंह गोल गोल कर वह बोली|
ये सुनते सभी के चेहरों में अव्यक्त हमदर्दी मिश्रित डर दिखने लगा|
“हम सारा दिन उनकी सेवा में लगी रही आखिर एक कवयित्री को बचाना जो था |”
“कवयित्री !!!” कहानी का नया ट्विस्ट सबकी जुबान पर एक साथ तैर गया|
झलक जानती थी कि हेड मैम खुद कवयित्री है और जहाँ साहित्य की बात हो उनको अपने मोहपाश में घेरना आसान हो जाता है|
“यस मैम – कवयित्री – ये जानते तो मेरा मन और द्रवित हो गया – आखिर हमारे समाज में कितनी कवयित्रियाँ है – समाज को उनकी जरूरत है – मैंने भगवान् से प्रार्थना की – गिडगिडाती रही भगवान के सामने और फिर से उनका टेस्ट कराया तो पता है फिर क्या हुआ मैम…??”
सभी अपनी साँस रोके एकटक उसको सुन रहे थे|
“उनका टेस्ट निगेटिव आया – उनकी रिपोर्ट किसी से बदल गई थी लेकिन ये चमत्कार था भगवान का, दुआओं का – उन्होंने खुद आकर सिर्फ उनको नहीं बचाया – पूरे साहित्य समाज को बचाया|” झलक इस तरह से हाथ घुमा घुमाकर कह रही थी मानों किसी आन्दोलन के लिए स्टेज पर बात रख रही हो, सब हतप्रभ उसकी बात सुनते रहे – “हमारे समाज को ऐसी साहित्य सेवियों की कितनी जरुरत है – बस मैम इसी कारण पूरा दिन इसी में निकल गया|” अब अपना स्वर धीमा करती कहती है – “पर सारी मेरी ही गलती है – मुझे इन्हें समझाना चाहिए था – सजा आप मुझे दीजिए – कसूर सिर्फ मेरा है और हमारे परेंट्स को भी बता दीजिए कि समाज साहित्य सब भाड़ में जाए हमे तो बस नियमों का पालन करना चाहिए |” अपना आखिरी शब्द कह आँखों पर हाथ रखे झलक सुबकने की आवाज निकालने लगी, ये देख जल्दी से हेड मैम उसके पास आती उसे अपने से चिमटाती हुई बोली – “नहीं नहीं – तुमने कोई गलती नही की |”
सब एकदम से मैडम की आवाज़ सुन अवाक् उनका चेहरा देखती रह गई|
“तुमने तो मिसाल कायम की है |”
झलक चुपके से हलकी आँख खोल उनकी तरफ देखती है|
“कोई तुम्हें कुछ नही कहेगा – पता नही बच्चों ने कुछ खाया पिया कि नही – इनको मैम आप कुछ खाने को दीजिए|”
हेड मैम मेट्रन मैम की ओर देखती हुई बोली तो झलक धीरे से कह उठी – “मैम अभी तो मन इतना दुखी है कि कुछ खाया भी नही जाएगा |”
“अरे नहीं नहीं ऐसे दुखी मत हो – तुमने तो इनाम पाने वाला काम किया है |” ये सुन पलक और अनामिका के गले में जैसे हंसी का कोई गोला सा अटक गया वही बाकि मौजूद लड़कियां आखें फाड़े झलक की ओर देखती रह गई|
“ऐसा करिए आज रात का खाना झलक की पसंद का बनवा दीजिए – बाकि तो हम ज्यादा कुछ कर नही सकते – जाओ बच्चों तुम तीनों अपने कमरों में आराम करो जाके – और तुम सबने भीड़ क्यों लगा रखी है – गो – गो टू योर रूम इमेजेट्ली |” कहती हुई वे धीरे से अपनी ऑंखें भी पोछती हुई विपरीत दिशा की ओर बढ़ जाती है तो झलक और पलक अपने कमरे की ओर बढती हुई अनामिका की ओर एक छुपी दृष्टि डाल चुपचाप सर झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है|
कमरे में पहुँचते ही पलक और झलक बिस्तर पर बिन आवाज के हंसती हंसती दोहरी होती गिर पड़ती है|
“कसम से झलक तेरा जवाब नही – एक पल तो मैं डर गई कि तू हमे फंसा कर खुद निकलने वाली तो नहीं पर तू भी न बड़ी ऊँची चीज है – पता नहीं किसके हाथ लगेगी तू|”
झलक आंख मारती बस हंसी जा रही थी|
“तूने तो झूठी फिल्म की रेखा का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया – |”
दोनों का हंस हंस कर अब पेट दर्द हो चला था|
रात का खाना चुपचाप खा कर वे फिर अपने कमरे में सिमट गई जहाँ सबसे आंख बचा कर अनामिका भी उनसे आ मिली थी|
“झलक की बच्ची – तुझे मेरी आंटी के अलावा कोई नहीं मिला जो तूने उन्हें कैंसर का पेशंट बना दिया|”
“अरे दूसरे मिनट में ठीक भी तो कर दिया |” दबी आवाज़ में हंसती हुई बोली |
“और तुझे कैंसर से भयानक कोई बीमारी नहीं मिली !!”
“अरे यार आज कल ट्रेंड में है न ये बीमारी – |”
“तू भी न |” कह कर एक तकिया उसकी तरफ मारती है तो झलक भी एक तकिया उसकी तरफ फेंकती है| अगले ही पल तीनों एक दूसरे पर तकिया मारती खिलखिलाती वही लेट जाती है|
क्रमशः……
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