Kahanikacarvan

एक राज़ अनुगामी कथा – 20

कमरे में आती पलक झलक पर टूट ही पड़ी| पर इसके विपरीत झलक की हँसी ही नही रुकी|

“देखा मेरे पास हमेशा सेफ प्लान रहता है |” अपनी गर्दन उचकाती झलक बोली |

“तू और तेरा झूठ एक दिन देखना बुरी फसेगी तब देखूंगी तेरा सेफ प्लान – हुह |” गुस्से में तुनकती पलक कमरे से निकल गई पीछे झलक दांत दिखाती हंसती हुई उसे चिढ़ाती रही|

कॉल बेल की आवाज पर पलक दरवाजा खोलती है तो बस उसकी हैरान ऑंखें हवा में टंगी रह जाती है और मुंह खुला का खुला|

“मेरा भूत नही ये मैं ही हूँ |” कहती हूँ दरवाजे के पार खड़ी अनामिका झट से पलक के गले लग जाती है तब जाकर उसे होश आता है|

“अनु तू अचानक कैसे !!” पलक के चेहरे पर अकस्मात् ख़ुशी उभर आई|

“अच्छा तो अचानक नही आ सकती – पापा भी साथ है|” अपनी ख़ुशी दबाती धीमे स्वर में बोली|

पलक अब उससे नज़र हटाकर उसके पीछे देखती है वाकई उसके पापा उसकी नज़रों की सीध में खड़े उनको मिलता देख मुस्करा रहे थे| ये देख पलक जल्दी से उन्हें आदरपूर्वक अन्दर आने का निमंत्रण देती अनामिका के साथ अन्दर चल देती है| मुख्य बैठक में उन्हें बैठाकर अपने पापा को बुलाने चल देती है| तब तक आवाज सुन झलक भी दौडती वहां आ पहुंची| उनको उछलकर मिलते देख तो उनके पापा को हँसी ही आ गई|

अनामिका के पिता वैभव को देख आगे बढ़कर उनसे हाथ मिलाते अनामिका की शादी का कार्ड देते हुए निमंत्रण देते है| तब तक झलक अनामिका का हाथ पकड़े अपने कमरे तक ले आती है| दोनों हँसती हंसती दोहरी होती बेड पर पीठ के बल गिर पड़ती है|

“अब देखती हूँ कि तुम दोनों कैसे नही आती राजस्थान – रूद्र जी भी तुम्हें ख़ास निमंत्रण देने वाले थे|” कहती हुई पल में अनामिका अपने हाथ में पकडे मोबाईल से झट से एक वीडियो कॉल मिला लेती है|

उधर से रूद्र स्क्रीन में दिखते ही झलक को देख हाथ जोड़ कर अभिवादन करते है साथ ही उसके साथ बगल में दिखता नवल भी हौले से मुस्करा कर पूछता है – “जोड़ी तो अधूरी दिख रही है |” उसका कहना भर था कि हाथ में ट्रे लिए हुए पलक कमरे में आती है अब स्क्रीन में उसकी पीठ चमकती है, नवल खामोश होकर स्क्रीन में बालों के घनेरे बादलों का जमघट देखता रहा, जिसपर झलक झट से अनामिका से मोबाईल लेती फोन काट देती है|

“ये क्या !!” अनामिका अवाक् रह जाती है|

“ये जो तुम्हारे सो कॉल राजकुमार है उनकी ये मटर जैसी ऑंखें निकाल लुंगी किसी दिन – देखना |”

झलक की बात सुन अनामिका कसकर हँस पड़ी तो पलक माजरा जानने वही बैठ गई|

“मैं समझ भी नही पाई और तूने कॉल लगा दी – खाली ही बैठे रहते है क्या ?” अनामिका की हँसी से खीजती मुंह बनाती हुई बोली|

“अरे उन्होंने ही बोला था कि जब पहुँचूँ तो बात करा दूँ तुमसे और तुमने फोन ही काट दिया |”

“लगूर कहीं के – मैं बात नही करती लगूर से |” झलक मुंह बनाए बोल उठी|

“वैसे क्या खूब सरप्राइज दिया तूने आज अचानक और बहुत अच्छा भी लगा तुम्हारा आना |” पलक अनामिका को मुस्करा करा देखती हुई कह उठी|

“ये सब तुम दोनों को अपनी शादी में बुलाने के लिए किया है अब तो राजस्थान आना ही पड़ेगा |” अनामिका खिलखिला कर कह उठी|

तभी उन्हें पुकारती आवाज गूंजी इससे अनामिका आखिरी बार विनती से उनकी ओर देखती दोनों संग बाहर निकल जाती है|

दरवाजे की ओर खड़े वैभव अनामिका के पिता को विदा कर रहे थे फिर दोनों सखियों संग गले लगती अनामिका भी बाहर चल देती है| उनको बाहर तक हर्षपूर्ण विदाई देकर अब सब अन्दर आ जाते है| मुख्य कमरे में आते वैभव फिर एकबार शादी का कार्ड हाथ में थामे बैठ जाते है| जिससे पलक और झलक का ध्यान सीधा उनकी तरफ मुड़ जाता है|

“तुम्हारी दोस्त की शादी राजस्थान में है पर…राजस्थान कैसे जाने दूँ तुम्हें !!” वे अतिशय भाव में अभी भी कार्ड की ओर देख रहे थे|

“पर पापा वो हमारी बहुत अच्छी वाली दोस्त है |” धीरे से झलक बोल उठी|

ये सुन वे निगाह उठाकर अब उनकी ओर देखते है जहाँ ढेर निवेदन उतर आए थे|

“अब कैसे कहूँ कि मैं क्यों तुम्हें राजस्थान नही जाने दे रहा |”

पापा की बात सुन दोनों की निगाह के प्रश्न और गहरे हो आए जिससे हैरान परेशान वे चुपचाप खड़ी रही|

“मैं समझ रहा हूँ कि वो तुम्हारी बहुत गहरी दोस्त है और मुझे उसकी शादी में भेजने पर एतराज़ भी नही पर कुछ बातें न चाहते हुए भी करनी पड़ती है उनकी मज़बूरी आखिर कैसे कहूँ मैं…|”

उस पल वैभव के हाव भाव में अजीब सी बेचैनी उतर आई जिसे देख पलक झट से उसके पैरों के पास बैठती सर उठाकर पापा की ओर देखती हुई कहती है – “पापा आप जो चाहते है हम वही करेंगे – आप बेफिक्र रहिए और रही बात ये बताने कि ऐसा आप क्यों कर रहे है तो मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि वो राज़ आप बताना चाहे तभी बताईए नाकि आपको बताना पड़े तब..|” कहती अपनी निश्छल मुस्कान वही छोड़ती पलक उठती हुई टेबल पर से बर्तन समेटने लगती है|

अगले ही पल उसे अपनी हैरान नज़रों से जाते हुए वैभव और झलक देखते रह गए|

पलक को लेकर वैभव और नीतू की जो चिंता थी उसे अंपने अन्दर जब्त किए वे किसी तरह से एक एक दिन बीतने के साथ पुजारी जी का इंतजार करने लगे और अपने कहेअनुसार ठीक अमावस्या से तीन दिन पहले पंडित जी आ पहुंचे| औपचारिकता निभाकर वे उन्हें आदरपूर्वक आसन में बैठाते है|

“जजमान आज से तीन दिन बाद की अमावास्या की दोपहर को ये पहली मूल शांति की पूजा होगी – कुछ सामानों की आवश्कता होगी वो इस लिस्ट में है आप पहले से उसकी व्यवस्था कर लीजिएगा |” कहते हुए कागज पकड़ाते हुए आगे कहते रहे – “अब सारी दुर्भावना अपने मन से निकाल कर बस ईश्वर का ध्यान कीजिए |”कहते हुए हाथ जोड़े वे उठ जाते है|

अब उनको विदा कर वैभव और नीतू अन्दर आते है, नीतू अपनी प्रश्नात्मक नज़रे पति की ओर डालती हुई पूछती है – “आपको ईश्वर की ओर निष्ठा करते देख अच्छा लगा|”

“ये निष्ठा नही मज़बूरी है – मैं पलक के लिए कुछ भी कर सकता हूँ – अगर मंदिर की सीमा भी लांघनी पड़ी तो वो भी करूँगा |”

कहते हुए वैभव के चेहरे पर अनजाना दर्द उभर आया, जिसे नीतू भलीभांति जानती थी और समझती भी इससे अपना सहानभूति भरा हाथ उनके हाथ पर रखती हुई कह उठी –

“वक़्त भी कैसी करवट लेता है – एक वो दिन थे जब आपके कदम हर दिन मंदिर की चौखट पर ठहरे रहते थे और आज उसे लांघने में कसम की बाधा आन पड़ी|”

“हालातों ने हमे ज्यादा कुछ सोचने समझने ही कहाँ दिया – जिस ईश्वर पर भईया का असीम विश्वास था जिसपर अपने अंत तक उन्होंने निष्ठां बनाए रखा उसी ने उनका साथ नही दिया – उनकी मृत्यु सामान्य कतई नही थी तो कैसे वो हादसा मैं भूल जाऊँगा – कैसे भूल जाऊं कि नन्ही पलक को भाभी अपने अंत समय तक देख भी न पाई – ये मेरे सर चढ़ा गुनाह ही है न वे मेरे कहने पर राजस्थान जाते न ये सब कुछ होता |”

“कब तक यही सोचते रहेंगे – जो कुछ हुआ उसे होना ही था – आखिर कब तक पश्ताताप की आग में खुद को जलाते रहेंगे – |”  नीतू अपने पति के दर्द से खुद भी सुलग उठी थी|

“यही सच है |” कहकर वे तेजी से वहां से निकल गए और नीतू परेशान वही खड़ी रह गई|

झलक तब से पलक को अपने साथ मार्किट जाने के लिए मना रही थी आखिर इस शर्त पर पलक तैयार हुई कि वह दूकान दूकान घूमने के बजाये मॉल चलेगी ये सुन फालतू घूमने का मन छोड़कर हाँ कर देती है झलक| तभी घर पर वैभव और नीतू की हताश दुनिया में आदर्श की ओर से एक खुशखबरी ने उनके चेहरे पर मुस्कान ला दी| आदर्श ने फोन करके बताया कि लखनऊ के हयात पांच सितारा होटल में आदर्श को शेफ की नौकरी मिल गई| पलक झलक भी ख़ुशी से झूम उठी| उसकी पहली नौकरी पर अब दोनों उससे पार्टी का मन बनाने लगती है, तब आदर्श उन्हें लखनऊ आने का निमंत्रण देता है| तब पापा को मनाती दोनों कहती है कि सुबह लखनऊ के लिए निकलकर आदर्श भईया से भी मिल लेंगी साथ ही उनकी शोपिंग भी हो जाएगी और शाम तक आदर्श खुद उन्हें वापस घर छोड़ जाएगा| उनकी जिद्द के आगे वैभव उन्हें जाने देते है|

बस से उतरते वैभव कार लिए उनका इंतजार कर रहा था वहां से हयात होटल तक का सफ़र उन्हें खुश कर गया| फिर आदर्श ढेर हिदायत देते उन्हें मार्किट करने जाने देता है| दोनों हज़रत गंज के मॉल से शोपिंग करती अमीनाबाद आ पहुंची| सन्डे का दिन होने से वहां अपार भीड़ मौजूद थी लेकिन अपनी घुमकड़ी के आगे झलक कहाँ किसी की सुनने वाली थी| प्रकाश कुल्फी खाने की जिद्द लिए वे गड़बड़ झाला मार्किट में जबरन घूमती रही आखिर काफी देर बाद उन्हें कुल्फी मिल ही गई| कुल्फी देख दोनों बच्चों सा उछल पड़ी| फिर वहां से निकलते देखते देखते शाम होने लगी तब जाकर दोनों झटपट वहां से निकलने लगी| मार्किट से निकलती दोनों किताबो वाली गली पार कर केसरबाग के लिए ई रिक्शा खोजने लगी| पर अचानक भीड़ का समंदर सा उमड़ आया शायद कोई झूलुस को उस ओर से मोड़ दिया गया जिससे ढेर सारे लोग पैदल वहां से निकलने लगे| अब न ई रिक्शा वालों के लिए कोई जगह थी न ऑटो मिल पा रहा था, वे दोनों ये देख परेशान हो उठी| लोगों की भीड़ में कई बाइक कार भी फंस चुकी थी जिससे पैदल वाले कैसे कैसे करके उन्हें लांघते वहां से निकलने लगे| इसी सब में कब अँधेरा घिर आया वे समझ भी नही पाई अब डर कर दोनों एकदूसरे को देखने लगी| भीड़ इतनी थी कि सामान लिए दोनों आगे पीछे चलने लगी| मोबाईल झलक के पास था पर भीड़ की वजह से न वह उसे उठा पाई और न मिला पाई बस किसी तरह से रास्ता निकलकर केसरबाग के लिए ऑटो तलाशने लगी| पलक उसके पीछे पीछे चल रही थी| आगे निकलते कुछ भीड़ कम होते झलक झट से एक ऑटो को रोकती उसमे बैठ जाती है पर पीछे पलटते डर से उसके पसीने छूट जाते है, पलक तो उसे नज़र ही नही आ रही थी| वह वही थमी रह गई जिससे ऑटो वाला झुंझला उठा| झलक समझ नही पाई आखिर भीड़ में पलक कहाँ चली गई इधर अँधेरा बढ़ता जा रहा था| झलक को कुछ समझ नही आया तो किनारे खड़ी होकर वह मोबाईल निकाल कर आदर्श को फोन करने लगती है| फोन लगते आदर्श उल्टा उसपर नाराज़ हो उठता है, वह कब से उसे खुद फोन मिला रहा था, उसके पापा भी वहां से चिंता कर रहे थे जिसे शांत करने आदर्श बोल चुका था कि वे फ़िक्र न करे दोनों उसी के साथ है और इधर दोनों उसका फोन उठा ही नहीं रही थी| झलक का रोना सुनकर आदर्श उसे वही रुकने का बोलकर खुद वहां के लिए निकल पड़ता है|

झलक बार बार सुबकती हुई अपने पीछे की भीड़ की तरफ देखती और निराश हो उठती| पलक कही नज़र नही आ रही थी|

आदर्श किसी तरह से झलक को ढूंढकर अब पलक को खोजने लगा था|

“आप ठीक तो है|” आंख उठाकर पलक उस परछाई की ओर देखती है| फिर सिलसिलेवार वह याद करती है कि उस भीड़ में वह बस दब ही जाती अगर ये शख्स उसे किनारे की ओर खींच न लेता| वह उसकी ओर ध्यान से देखने का प्रयास करती है पर उसका चेहरा स्पष्ट नही होता| उसके पीछे से आती तेज रौशनी से उसका चेहरा छुप गया था| बस कंधे से कुछ ऊपर उसके लम्बे बाल उसकी चौड़ी कद काठी और आवाज से वह उसका होना महसूस कर पा रही थी| चेहरा न दिख पाने पर भी वह साफ़ महसूस कर पा रही थी कि उस अनजान शख्स की ऑंखें लगातार उसी को देख रही थी|

———–क्रमशः…………………….आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में..

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