
एक राज़ अनुगामी कथा – 21
“इतनी भीड़ में आपको नहीं जाना चाहिए था|” उसकी आवाज के साथ उसके गले की गुठली यूँ हिली कि पलक को हलके से हँसी आ गई| वह शायद ये समझ नही पाया इसलिए वह भी उसकी मुस्कान पर धीरे से मुस्करा उठा|
भीड़ धीरे धीरे एक तरफ को जाने लगी जिससे उनके आस पास से लोग कम होने लगे थे| पलक के दोनों हाथों में अभी भी शोपिंग बैग थे जिन्हें संभालती अब वह अपने आस पास देखने लगी, ऐसा करते एक अनजाना सा डर उसके हाव भाव में तारी होने लगा था| झलक से बिछुड़ जाना और संपर्क के लिए कोई मोबाईल न होने से डर की कुछ बुँदे उसकी पलकों पर जमा होने लगी थी| पलक के सामने खड़े शख्स का चेहरा अभी भी अँधेरे में डूबा था पर पलक का उजला चेहरा लैम्पोस्ट की रौशनी में दमक रहा था जिससे वह आसानी से देख पा रहा था कि उसकी हलकी भूरी आँखों के चमकीले सितारे खारे समंदर में डूब रहे थे|
“आप परेशान है – क्या मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ ?”
आवाज सुनकर एक बार फिर से पलक का ध्यान उस शख्स की ओर जाता है|
“मेरी बहन भी मेरे साथ थी पर भीड़ की वजह से मुझसे अलग हो गई और अब उससे कांटेक्ट करने के लिए मेरे पास कोई मोबाईल भी नही है|” पलक रुआंसी होती हुई कह उठी|
“अगर आपको नंबर याद है तो मैं अपना मोबाईल देता हूँ – आप कॉल कर लीजिए|” कहते हुए वह अपनी पॉकेट से मोबाईल निकालकर उसकी आँखों के सामने करता है|
इससे पल में पलक खुश होती झट से मोबाईल लेती कॉल करती है| अनजान नंबर देख झलक पहली बार तो कॉल नही उठाती पर दुबारा बजने पर फोन उठा लेती है| अब उधर से पलक की आवाज सुन खुश हो जाती है| अब तक आदर्श झलक के पास तक पहुँच चुका था, पलक का फोन सुनते वह झलक के हाथ से फोन लेता जल्दी से कहता है – “तुम कहाँ हो – अच्छा मैं आता हूँ – तुम वही रहना |” कहता झट से फोन काटकर झलक को साथ लिए आगे बढ़ जाता है|
“थैंक्स – मैं तो बहुत डर गई थी|” पलक फोन वापिस करती कृतज हो उठी|
“अरे कोई बात नही – अगर आप चाहे तो जबतक आपकी बहन नही आती है मैं आपके संग यही खड़ा रहता हूँ|”
ये सुन पलक हौले से मुस्करा देती है असल में वह खुद भी यही चाहती थी क्योंकि अकेले खड़े रहने में उसे डर लग रहा था, अब वह सुकून की सांस लेती अपने आस पास देखती है कि अब काफी हद तक लोगों की भीड़ वहां से छट चुकी थी| वे दोनों ख़ामोशी से वही खड़े थे, उनके बीच कोई ख़ास वार्तालाप नही हुई फिर भी उनके मौन बार बार मुस्कानों का लिहाफ ओढ़े एकदूसरे को देख मुस्करा देते है| तभी पलक की नज़र सामने सड़क पर जाती है जहाँ से झलक और आदर्श उनकी ओर बढे आ रहे थे| उसकी ख़ुशी देख उस शख्स का ध्यान उनकी ओर जाता है|
“अच्छा आपकी बहन आ गई – चलिए मेरी जिम्मेदारी खत्म हुई अब मैं चलता हूँ|”
“थैंक्स जो आपने किया उसके लिए थैंक्स |” अपनी भरपूर मुस्कान से वह उस अजनबी की ओर देखती है जो अब उनके विपरीत चलने लगा था ऐसा करते अब उसका चेहरा उजाले में स्पष्ट हो उठा| उजला साफ़ रंग जैसा लड़कियों का खिला रंग होता है पर उस लड़के पर खूब फब रहा था ये उजास| हलके घुंघराले कुछ कंधे तक आते बाल और देखने में एकदम कसरती जिस्म| वह अनजान चेहरा अब अपनी मुस्कान छोड़ता झलक के आने से पहले वहां से निकल गया था|
आते ही आदर्श पहले दोनों को अच्छे से डांटता है आखिर उन्ही की वजह से उसका समय भी बर्बाद हुआ और उल्टा उनके पापा से डांट खाने का अवसर बना| जिसपर झलक अपनी मुस्कान छोड़ती कह रही थी – “सॉरी बोला न भईया और फिर देखा जाए तो गलती पलक की है क्यों वह पीछे रह गई!’
“तुझे भी तो पीछे देखना चाहिए था बस नाक उठाए आगे बढ़ती गई |”
“तो क्या करती मैं भीड़ में|”
दोनों को उलझता देख आदर्श उनके बीच में जल्दी से आता हुआ बोला – “अरे बस करो – अब झगड़ा करके मेरा दिमाग मत खाओ – घर भी छोड़ना है तुम लोगों को – भूख लगी है !!”
आदर्श की बात सुन दोनों खुश होती हामी में सर हिलाती है|
“तो चलो हयात में खिलाता हूँ और हाँ फूफा जी को कोई ये सब बात मत बताना वरना मेरी क्लास लग जाएगी कि तुम लोगों को अकेला क्यों छोड़ा – अब चलो जल्दी से |”
तीनों जल्दी से एक साथ वहां से निकलते है, रास्ते वे अपने पापा को फोन कर आश्वस्त करती है कि वे ठीक है और आदर्श भईया उन्हें डिनर कराकर घर भी छोड़ देंगें| हयात पहुंचकर आदर्श दोनों को किनारे की टेबल पर बैठाकर नॉन एंटर ज़ोन में चला जाता है| कुछ देर बाद उनकी टेबल पर उनका मनपसंद खाना होता है जिसे देखती वे चहक उठी थी| खाना खत्म कर वे लॉबी में आदर्श का इंतजार करने लगती है| कुछ देर बाद वह किसी लड़की के साथ वहां आ रहा था, जिसे दोनों देखती मुस्कराती हुई आपस में खुसुर पुसुर करने लगती है| आते ही आदर्श झलक के कान पकड़ते हुए धीरे से उसकी तरफ झुकता हुआ बोलता है – “ज्यादा दिमाग में खिचड़ी पकाने की जरुरत नही है – हम साथ में काम करते है |”
“आह – ओके ओके कोई खिचड़ी नही पका रही|”
आदर्श के कान छोड़ते अपने कान मलती हुई झलक देखती है कि वह अब उनकी तरफ आ गई थी और आते आदर्श की तरफ मुस्कराती हुई देखती उन दोनों को हेलो बोलती हुई कह रही थी – “योर्स सिस्टर्स सो क्यूट – डोन्ट वरी आदर्श आई कैन मेनेज – तुम आराम से जाओ और जिस टाइम भी वापस आना मुझे कॉल करना – बाय टेक केयर |”
“ओह थैंक्स शर्लिन –|” दोनों आपस में हाथ मिलाते एकदूसरे के विपरीत चल देते है|
कार में बैठते झलक एकदम से हँस पड़ती है जिससे दोनों का ध्यान उसपर जाता है|
“क्या !!!” पलक और आदर्श दोनों उससे पूछते है|
“खिचड़ी नही ये तो दलिया है |”
इस बात से आदर्श की हालत पर दोनों समवेत भाव से हँस पड़ी थी|
रात के दस बज गए थे उन्हें घर पहुँचते पहुँचते पर माँ पापा की इंतजार से आँख नही लगी थी| आदर्श दोनों को घर पहुंचा कर तुरंत ही वापस चला गया| पहुँचते ही ढेरों गप्पे लगाती झलक खिलखिलाती घर में आ जाती है|
अगले दिन ही पूजा होनी थी और सभी तैयारी कर चुकने के बाद नीतू वैभव के पास आती हुई कह रही थी – “सुनो – पंडित जी का फोन आया क्या !”
“नही – लाओ मैं लगाता हूँ |” कहते हुए वे जैसे ही फोन की तरफ बढ़ते है उसी वक़्त फोन बज उठता है| उधर से पंडित जी आवाज सुनते उनका अभिवादन करते हुए वैभव उनकी बात सुन रहे थे|
“मुझे किसी करणवश थोड़ी देर हो जाएगी पर आप चिंता न करे पूजा में कोई विघ्न नही आएगा आप बिटिया को हल्दी से स्नान करने का बोलकर उससे काला रंग का वस्त्र छोड़कर कोई भी रंग का वस्त्र पहनकर तैयार हो जाने को कहिएगा – मैं अपने बेटे हो भेजता हूँ तब तक वो सारी तैयारी करा लेगा|”
इससे वैभव में मन में संशय दौड़ गया – “आप आएँगे तो न !!”
“हाँ हाँ जजमान क्यों नही – वैसे मेरा बेटा भी पूजा करा सकता है |” इस बात पर दूसरी ओर से एक लम्बी ख़ामोशी से वे अर्थ समझते हुए कहते है – “आप उम्र से ज्ञान को मत तौलिए – वह लखनऊ विश्वविद्यालय से ज्योतिषी में विशारद है – वह मेरा बेटा है इसलिए नही कह रहा वह वाकई ग्रहों का गहन ज्ञान रखता है, और आपकी बेटी की कुंडली देखकर उसी ने मुझे सब बताया तभी गाँव से लौटकर मैंने आपको इस पूजा के बारे में बताया – |”
“ओह्ह – अच्छा |” संकुचाते हुए वैभव सिर्फ इतना ही कह पाए|
“कोई बात नही – उस दिन मंदिर में भी जो कुछ मैंने आपको बताया सब मेरे बेटे का ही ज्ञान था असल में नक्षत्र ज्ञान पूरी तरह से वैज्ञानिक ज्ञान है पर आम लोग इसे ऐसे कतई नही देखते वे तो किसी उम्रदराज पंडित के मुंह से ही सुनकर इस पर विश्वास कर पाते है – इसमें आपकी कोई भूल नही – मनुष्य का स्वाभाविक स्वभाव है – मेरा बेटा अनिकेत आ जाएगा पीछे से मैं भी आता हूँ – जी – ईश्वरीय कृपा आप पर बनी रहे|”
फोन काटकर वैभव तब से वही खड़ी नीतू को अक्षरशः कह सुनाते है और उसकी भी यही प्रतिक्रिया होती है| आखिर एक नौजवान को प्रकाण्ड पंडित के रूप में देखने का उनका ये पहला अनुभव था|
नीतू पंडित के कहेअनुसार पलक को निर्देश देकर पूजा स्थल में आकर फिर से सारा सामान देखने लगती है| कुछ क्षण बाद घर की डोर बैल बजते पलक आगे बढ़कर दरवाजा खोलती है| नीतू कमरे से ही आवाज देकर उसे अन्दर बुलाने का निर्देश दे देती है|
दरवाजा खुला तो उस पार अनिकेत था, जिसकी लम्बी चौड़ी कद काठी पर हल्का नारंगी कुरता तो माथे के बीचो बीच चन्दन का टीका लगा था| एक पल को ऐसे सुन्दर नौजवान को पंडित के रूप में देखकर पलक को हलके से हंसी आ गई| तो सामने खड़ा वह नौजवान भी धीरे से मुस्करा दिया|
“मुझे नही पता था कि मुझे आपके ही घर आना है |”
ये सुनते पलक होठों को सिकोड़ती उसके गले की हिलती गुठली को देखती याद करती एकदम से चिहुक पड़ती है – “अरे आप तो वही है जो लखनऊ में मिले थे |”
“जी |” वह फिर से मुस्कराकर हामी भरता है|
“क्या अन्दर आऊ !”
“ओह माफ़ कीजिए – आइए |” संकुचाती हुई वह उसे अन्दर आने का रास्ता देती उसे पूजा स्थल तक ले जाती है|
वाकई फिर सब हैरान होकर देखते रहे कि कितनी सतर्कता और ध्यान से अनिकेत पूजा की व्यवस्था कर रहा था| पलक और झलक वहां बैठी मुंह खोले देखती रही| बीच बीच में वह नज़र उठाकर पलक को देख लेता और फिर मन्त्रों के उचारण से नज़र घुमाकर अन्यत्र सामग्री रखने लगता |
……………………क्रमशः…