Kahanikacarvan

एक राज़  अनुगामी कथा  – 22

पूजा करा चुकने के बाद पंडित जी पलक के रक्षा सूत्र बांधते हुए उसके पिता की ओर देखते हुए कहने लगे – “जजमान आज की पूजा तो संपन्न हो गई अब बस राहु सामग्री को आज ही नदी में प्रवाहित करना होगा जो बिटिया को स्वयं अपने हाथ से करना है|”

“ठीक है गोमती तक चले जाएँगे|”

वैभव की बात पर स्वीकृति में सर हिलाते वे उठकर खड़े होते हुए कहते है – “ठीक है अनिकेत आपके साथ जाकर पूजा संपन्न करा देगा – मुझे क्षमा कीजिए आज कुछ जल्दी है मुझे – मैं निकलने की अनुमति चाहूंगा |”

“कोई बात नही पंडित जी |”

पंडित जी वाकई बहुत जल्दी में थे तो आगे का कार्य अनिकेत के सुपुर्द कर वे बाहर निकल गए| अनिकेत गेट तक उन्हें छोड़ने गया| लौटकर वह सारी पूजा समाप्ति कर प्रवाहित करने का सामान लेकर जाने की तैयारी करने लगता है, तब वैभव कार निकालने बाहर चले जाते है| तब से सब कुछ शांति से होते देख झलक को थोड़ी उबाहट होने लगी और माँ की ओर झुकती हुई दबे स्वर में बोली – “माँ ये सब से क्या होगा !”

माँ गुस्से में आंखे दिखाती हुई धीमे से उसे डांटते हुई चुप किया तो मुंह बनाती हुई झलक बोल उठी – “ठीक है पर  बस मुझे कही नही जाना बता दिया|”

अनिकेत ये दृश्य देखता धीरे से मुस्कराते हुए झलक की ओर प्रसाद बढ़ा देता है जिसे लपक कर लेती हुई वह उठकर वहां से चली जाती है|

जब तक अनिकेत और पलक बाहर जाने को तैयार होते है वैभव परेशान से वहां आते हुए कहते है – “कार के पिछले टायर में हवा जाने कैसे कम हो गई – जाएँगे कैसे ?” वह हैरान बारी बारी से सबकी ओर देख डालते है|

“ओह – अब क्या करे !!” नीतू के चेहरे पर भी परेशानी उभर आई|

उन दोनों को परेशान देख अनिकेत थोड़ा हिचकिचाते हुए कहता है – “सांझ होने वाली है और हमे उससे पहले की ये संपन्न करना है – मैं अकेला अपनी बाइक से चला जाता पर पलक जी का जाना जरुरी है|”

इस पर सभी एकदूसरे का चेहरा बारी बारी से देखने लगे|

“तो बेटा तुम्हें हर्ज न हो तो तुम्ही लिवा जाओ उसे |” कहती हुई नीतू सहमति के लिए वैभव की ओर देखती है तो वे भी समय की नजाकत को समझते स्वीकृति में उसकी हाँ में हाँ मिलाते अनिकेत को कहते है|

अगले ही पल अनिकेत पूजा की सामग्री पलक को सौंपकर उसे अपनी बाइक के पीछे बैठाकर निकल जाता है| गेट पर खड़े वे दोनों मौन उन्हें जाता हुआ देखते रहे|

नदी तक पहुंचकर अनिकेत उससे सामग्री छुआ कर पुल तक ले जाता है और वही से प्रवाहित कर उसे पीछे न पलटकर देखने को कहकर बाइक तक आ जाता है|

पलक अपना दुपट्टा समेटती बाइक पर फिर बैठ जाती है| अनिकेत तुरंत ही वापस उसे घर छोड़ देता है| सब इतनी जल्दी होता है कि गेट पर से वैभव और नीतू वहां से हट भी नही पाए थे| पलक को वापस आते देख वे मुस्करा कर अनिकेत को धन्यवाद कहकर उसे जाने देते है|

किसी दिन झलक पापा को बताती है कि उनके कॉलेज से मेंटल हेल्थ पर कोई सेमिनार होने वाला है, जो चाहे इसे फीस देकर अटेंड कर सकता है| ये उसका विषय नही था सभी जानते थे कि इसमें झलक को है भी कितना इंटरेस्ट पर वह इस कदर बोर हो चुकी थी कि कॉलेज जाने का एक दिन का मौका वो जाने नही देना चाहती थी| वैभव भी राज़ी हो गए| झलक ने सारा प्रोग्राम फिट कर लिया कि इसी बहाने वह अनामिका के साथ लखनऊ में फिर से घूम पाएगी और लौटने में अगर देर भी हो गई तो अब आदर्श भईया तो है ही वहां फिर किस बात की चिंता|

अगले दिन बिलकुल जाने को तैयार थी दोनों| वैभव भी बाहर निकल कर उन्हें बस स्टैंड तक छोड़ने वाले थे तभी अनिकेत वहां आता है, वे मुस्करा कर उसका स्वागत करते है|

“पिता जी ने प्रसाद भिजवाया है वही देने आया हूँ |” अपने बैग पैक से कोई लाल कपडे में बंधी चीज उनकी ओर बढ़ाते हुए वह कहता है|

“ओह अच्छा ठीक है बेटा |”

“जी जरुर |” वह चलने को ही हुआ कि कोई आवाज से वह वही रुक गया|

“पापा…|” झलक पलक दोनों लगभग दौड़ती हुई वहां आती हुई कह रही थी – “पापा जल्दी करिए – नही तो हमे पहुँचने में लेट हो जाएगी और जितनी देर से सेमिनार पहुंचेंगे उतने पीछे सीट मिलेगी हमे |”

“आप भी सेमिनार जा रही है |”

आवाज सुन अब उनका ध्यान अनिकेत की ओर जाता है तो कुछ पल को उनका ध्यान वही ठहरा रह जाता है| आज वह कुछ अलग दिख रहा था| उसकी छवि आज किसी डैशिंग लड़के से कतई कमतर नही थी| बल्कि हलके चेक की शर्ट, करीने से सधे बाल, वुडलैंड के चुस्त जूते और एक ओर कंधे पर स्काई बैग झूलता उसमे बेहद ख़ास लुक दे रहा था| लड़का जितना सुन्दर था आज उससे कही ज्यादा हैण्डसम दिख रहा था|

“माफ़ कीजिए मैं बीच में बोल पड़ा – असल में मैं भी सेमिनार के लिए यूनिवर्सिटी निकल रहा था|” सबको कुछ पल मौन देख वह संकुचाता हुआ ऑंखें झुकाता हुआ बोलता है|

“अरे तो अच्छी बात है – ये दोनों भी सेमिनार के लिए जा रही है – वही के लिए बस तक छोड़ने जाना है|” पीछे से आती हुई नीतू ज्यों ये कहती है अब सबकी निगाह उन्ही की ओर मुड़ जाती है|

“आप भी सेमिनार जा रहे है !!” झलक ऑंखें फैलाते कहती है|

“मैं कार से जा रहा हूँ – अगर आप लोगों को दिक्कत न हो तो मुझे कोई परेशानी नही होगी – इनफैक्ट रास्ते के लिए कंपनी मिल जाएगी|”

ये सुनकर झलक कदम पीछे करती माँ के कानों में फुसफुसाती है – “माँ पंडित जी तो धासूँ पार्टी निकले – कार भी है |” माँ फिर उसे आँखों से घूरती है तो दांत निपोरती झलक हँस पड़ती है|

वैभव अनिकेत के म्रदुल स्वभाव से काफी प्रभावित थे इसलिए उसके साथ दोनों को जाने देने में उन्हें कोई आपत्ति नही हुई| अनिकेत की चमकती सेंट्रो भी किसी लग्जरी कार से कम नही दिख रही थी| उसका सलीका सभी को आकर्षित कर रहा था| अनिकेत उनके लिए कार का पिछला दरवाजा खोलता है और फिर उनके बैठते दरवाजा बंद कर हाथ जोड़कर नमस्ते कर ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है|

उनके जाते गेट पर दोनों खड़े अब मुस्करा कर एकदूसरे की ओर देखते है|

कार सड़क पर अपनी रफ़्तार से चली जा रही थी| व्यू मिरर से अनिकेत पीछे देखता है कि झलक अपने मोबाईल में लगी थी जबकि पलक खुली खिड़की के पार एकटक देख रही थी| खिड़की से आती हवा से उसके खुले बाल हवा में लहरहा रहे थे| लहराते बाल कभी उसके चेहरे पर लिपट जाते जिससे पलक उन्हें समेटती एक ओर कंधे पर रख लेती| कभी बालों में उंगलिया घुमाती उनको मरोड़ती कही खो जाती| ऐसा करते हर बार उसके सलोने चेहरे पर थोड़ी नाराजगी के भाव आ जाते जो शायद बालों या हवा के लिए होते, ये सोचता अनिकेत हलकी मुस्कान से उसे बार बार बीच में ताक लेता| यूँही आँखों आँखों में कब वक़्त गुजर गया और वे विश्वविद्यालय पहुँच गए| कॉलेज के गेट पर ही उतरती झलक अनितेक को थैंक्यू बोलती झट से कॉल लगाने लगती है| पलक भी अपनी ओर से उतरती अनिकेत को शुक्रिया कहती है जिससे वह अपनी भरपूर मुस्कान से आभार व्यक्त करता कुछ पल उसे देखता रहा, हलके आसमानी रंग के कुर्ते में पलक की उजली काया गजब की निखर आई थी, अनिकेत उसे देख रहा था तो पलक का ध्यान अपने आस पास था| तभी अनामिका की आवाज सुन दोनों उसकी ओर मुड़ जाती है| जिससे अनिकेत वहां से चुपचाप चला जाता है|

अनामिका आते दोनों के एकसाथ गले लग जाती है| इतने दिन बाद तीनों सखियों मिली थी तो उसके बातों का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था| फिर जल्दी से सेमीनार के लिए चल देती है| उनका लेक्चर में कम एकदूसरे से गप्पे लगाने में ध्यान ज्यादा था| एक के बाद एक लेक्चर होते और वे अपनी सरसरी निगाह से उधर देख लेती| तभी पलक की उड़ती नज़र ने महसूस किया कि उसने स्टेज पर कोई जाना पहचाना चेहरे देखा, वे तब अवाक् रह गई जब स्टेज पर अनिकेत को अपना रिसर्च पेपर पढ़ते देखा| ये देख दोनों दातों तले उंगली ही दबा लेती है| जिसे एक सिंपल पंडित ही समझ रही थी उसका एक के बाद एक बदला हुआ रूप देख वे दंग रह गई| सेमीनार खत्म होते वे तीनों बाहर की ओर आती घूमने का प्रोग्राम बनाने लगती है|

“खम्मा घणी भाभी सा |”

आवाज सुन एकदम से तीनों की निगाह एक साथ जिस पर जाती है वे तीनों अपनी अपनी जगह से चिहुंक पड़ती है|

उन तीनों की हैरत से फैली ऑंखें अब देखती है कि उनके सामने नवल हाथ जोड़े खड़ा था|

इससे पहले की अनामिका कुछ रियक्ट करती उसे नवल के पीछे से रूद्र आते दिखे तो अनामिका के चेहरे पर अलग ही चमक फ़ैल गई|

“कैसी है आप ?” रूद्र अनामिका के बिलकुल सामने आते उसकी आँखों में झांकते हुए पूछ रहे थे|

अनामिका के लिए ये सरप्राइज था ये उसकी हैरत में फैली आंखे बता रही थी| मारे ख़ुशी के उसके मुंह से एक भी शब्द नही फूटे पर उसके पीछे खड़ी झलक उसके कानों के पास फुसफुसाती हुई बोल उठी – “रूद्र जी अपने साथ लंगूर को क्यों ले आए|”

ये सुन उसे चुप रहने का इशारा करती उसका हाथ झटकती हुई अनामिका अब सामने देखती मुस्करा रही थी|

“आपसे सुबह बात हुई तो सोचा आपसे मिल भी ले साथ ही नवल और शौर्य लखनऊ का अपना काम भी निपटा ले |” रूद्र हाथ से पीछे की ओर इशारा करता ही है कि दूर से उन सबको शौर्य आता हुआ दिखाई देता है|

“अरे हम बस आप से ही मिलने आए है |” जल्दी से उनके बीच आता हुआ नवल अब अपनी घूमती नज़र एकसाथ पलक और झलक पर डालता है जो अवाक् अभी तक उनकी तरफ देख रही थी|

“बहुत अच्छा सरप्राइज दिया आपने |” कहती हुई अनामिका के चेहरे पर कुछ अलग ही ह्या की लाली छा गई थी|

अब वे जहाँ खड़े से वहां भीड़ बढ़ने लगी थी शायद सेमीनार पूरी तरह से खत्म हो चुका था जिससे परेशान होकर नवल झट से सुझाव देता है कि हम सबको कही और चलकर बात करनी चाहिए| पलक और झलक जाने को होने लगी तो रूद्र उन्हें कुछ देर अपने साथ रुकने को कहते है इससे वे इंकार न कर सकी| रूद्र सुझाव देता है कि होटल हयात उसके मित्र का है तो वही चलते है, सब तैयार भी हो जाते है पर उसी पल आदर्श भईया का ख्याल आते कि वे तो वही काम करते है ये झलक अनामिका को धीरे से बताती है तो वो बात बनती हुई कहती है|

“आज इतना अच्छा मौसम है तो किसी होटल में जाने के बजाये हमे कहीं खुले पार्क में जाना चाहिए|”

अनामिका का सुझाव सुन रूद्र पूछते है – “तो कहाँ चले – आप ही बताए – पलक जी लखनऊ के बारे में आप ही सुझाव दीजिए|”

इससे पहले की पलक कुछ बोलती अनामिका तपाक से बोल पड़ी – “रूद्र जी क्यों न जू चले !” ये सुन सभी एकदूसरे का चेहरा देखने लगते है तब अनामिका आगे कहती है – “आपने पता नही यहाँ का जू देखा कि नही पर यकीन मानिए इस मौसम में जू से बेहतर कुछ नही होगा – क्यों पलक !”

“कही हमे देर हो गई तो !”

“अरे चलते है |” झलक उछलती हुई बोली|

और अगले ही पल एक शानदार एसयूवी में छहों बैठ चुके थे| रूद्र और अनामिका सबसे आगे बैठे तो बीच के हिस्से में पलक और झलक और पीछे शौर्य और नवल बैठ गए| इस पर बीच में नवल से उनकी नज़र ज्योंही टकराती वे अपना मुंह घुमा लेती| वाजिद अली शाह जू के पार्किंग में उतारकर शौर्य टिकट लेने चला गया|

इंतजार में खड़े सब इधर उधर देख रहे थे, वहां लगे जानवरों के पोस्टर देखती झलक शरारत में नवल की ओर देखकर भी अनदेखी करती हुई बोलती है – “आ तो गए पर देखना किसी को अपनी शक्ल का कोई न मिल जाए |” उसकी तिरछी हँसी से सब समझ गए कि उसका निशाना नवल की ओर है जिससे वह धीरे से हँसता हुआ कहता है – “वैसे मैंने सुना है गिर से कल ही नया शेर आया है – क्या आपको भी खबर है !”

वह कहता हुआ यूँ हँसा कि झलक का मुंह फिर बन गया और बाकियों की हँसी छूट गई|

“वैसे हम तो सफ़ेद मोर देखेगे – शानदार खूबसूरती है उसमे |” रूद्र अनामिका की ओर देखते होंठों के किनारों से मुस्करा दिए तो अनामिका मुस्कराती पलके झुका लेती है|

तभी प्यास लगने पर पलक झलक से बैग के बारे में पूछती है तो अपने सर पर हाथ मारती वह बताती है कि वह तो कार में रह गया, इस पर पलक उसे घूरती है तो नवल उसे साथ में चलकर बैग लाने को कहता है| अब आगे आगे पलक और पीछे नवल चल रहा था| पलक को इतनी प्यास लगी थी कि वह झट से बैग से बोतल निकालकर वही पीने लगती है उसे भरी दृष्टि से देखता नवल कहता है – “वैसे दुबारा आपसे मिलकर हमे बहुत ख़ुशी हुई – उम्मीद है ये मुलाकात अगली मुलाकात तय करेगी |”

नवल की बात सुनते पलक के गले में पानी का आखिरी घूंट जैसे अटका रह गया, वह हडबडाती उसकी ओर देखती है तो नवल कसकर हँस रहा था|

“भई इसी बहाने हम आपका लखनऊ घूम लेंगे वक़्त आने पर हम आपको अपना राजस्थान घुमा देंगे – जरुर पधारियेगा म्हारे राजस्थान में |”

“अरे पलक जी !!”

आवाज से पलक की दृष्टि पीछे घूमी जहाँ अनिकेत खड़ा था और जो अजीब निगाह से उसे देख रहा था|

वह बिना हिचकिचाहट के उसके पास आते पूछता है तो पलक अपने दोस्तों के संग आना उसे बताती है जिससे वह सहज होता नवल से हाथ मिलाता उन्हें बताता है कि वह यही सीएसआईआर आया था वहां से निकलते अचानक उन्हें देखा तो आ गया, असल में उसके पास भी कुछ शेष समय था ये सुन पलक नवल से पीछा छुड़ाने उसे अपने साथ ज्वाइन करने को कहती है तो वह सहज ही मान जाता है|

अब तीनों पहुंचे तो शौर्य आ चुका था फिर अनिकेत अपनी टिकट लेता अन्दर चलने लगता है| उसे देख झलक से रहा नहीं जाता वह पलक के कानों में फिर फुसफुसाती हुई पूछती है – “ये पंडित जी कहाँ से मिल गए – यहाँ तोता लेने आए है क्या !”

पलक उसके चुटकी काटती उसे चुप करा देती है| साथ साथ चलते अनिकेत से परिचय लेने रूद्र उसे पूछता है तो अनामिका उसका सेमिनार में पेपर पढ़ा जाना बताती है|इससे खुश होते रूद्र बोलते है – “वाह आप तो बड़े स्कोलर है – आपसे मिल कर अच्छा लगा – चलिए इस मुलाकात में कुछ ज्ञान आप हमे भी देंगे |”

अब बातें करते करते वे सभी बैंच पर पसर चुके थे|

“मुझे अपने साथ ज्वाइन कराने के लिए आप सभी को शुक्रिया कहूँगा – असल में पढाई की वजह से अब ज्यादा दोस्ती यारी नही होती पर काफी समय बाद ग्रुप के साथ घूमना अच्छा लग रहा है|”

“ओह वाह आप वैसे क्या पढाई कर रहे है ?”

“रिसर्च चल रहा है मेरा – मेन्टल हेल्थ इन एस्ट्रोलॉजी में |”

ये सुन सभी जिज्ञासु नज़रे उसी की ओर घुमा लेते है|

“एक्सीलेंट पर क्या एस्ट्रोलॉजी का किसी की मेंटल हेल्थ पर असर पड़ता है क्या ?” अब नवल जिज्ञासु हो उठा था|

“हाँ बिलकुल – वैदिक ज्योतिष किसी व्यक्ति के स्वास्थय पर सीधा प्रभाव डालता है – हमारे वायुमंडल में जो कुछ भी होता है जिसे भलेही हम अपनी नज़रों से नही देख पाते पर उसका सीधा प्रभाव हमारे अस्तित्व पर पड़ता है – जैसे जीवन मृत्यु तो हम देख लेते है पर उसके पहले और बाद के समय की हम बात नही करते पर वो हमारे वायुमंडल में रहता है और कई बार हमे प्रभावित भी करता है |”

अब नवल और रुद को उसकी बात में दिलचस्पी होने लगी थी, जिससे वे उसे और पूछने लगे –

“तो एस्ट्रोलॉजी रूहों को मानती है ?”

“हमारे न मानने से कोई फर्क नही पड़ता जब हमारा अस्तित्व है तो अस्तित्वहीन चीजो का भी अस्तित्व है – जीवन के साथ मृत्यु है तो शरीर के साथ आत्मा भी है जब सकारात्मक उर्जा है तो नकारात्मक उर्जा भी है – मैंने तो पैरानोर्मल एक्टिविटी पर भी काम किया है |”

“वैरी इंटरेस्टिंग |”अब उनकी दिलचस्प नजरे अनिकेत पर टिक गई थी पर तब से उनकी बातों से उबती झलक वाशरूम का बहाना करती चली गई|

“ओहो आप सब ने तो माहौल एकदम से गंभीर बना दिया |” अनामिका की बात सुन बाकियों का ध्यान उसकी तरफ जाता है, पलक भी बोर होती दूसरी ओर देख रही थी|

“ओह माफ़ कीजिए पर क्या करे अनिकेत जी तो बड़े दिलचस्प इन्सान निकले – चलिए अनिकेत जी हम विषय बदल लेते है नहीं तो हमारी अनामिका हमसे नाराज हो जाएगी |” रूद्र अपनी प्यार भरी दृष्टि अनामिका की ओर ले जाते है जिससे सभी के चेहरे मुस्करा उठते है|

“जी कोई बात नहीं – आप से बात कर बहुत अच्छा लगा |”

अनिकेत की सुन शौर्य तुरंत बोल उठा – “मुझे तो आप बड़े दिलचस्प इन्सान लगे – मैं फिर दुबारा आपसे मिलना चाहूँगा |”

“क्यों नही – मेरी खुशनसीबी होगी – ये कार्ड लीजिए – जब चाहे कांटेक्ट कर लीजिएगा |”

कार्ड के आदान प्रदान के बाद अनामिका झट से बोल उठी|

“बिलकुल माहौल को गंभीर बनाने की सजा है कि कुछ हमारे लायक बात कीजिए – तभी हम खुश होंगे |”

“तो ये तो नवल करेंगे – भाई नवल अब आप कुछ धमाकेदार सुना ही डालिए |”

“मैं भाई सा !!”

“बिलकुल – आखिर आपसे बेहतर कौन शायरी सुना सकता है |”

रूद्र की बात सुन सभी आँखों से नवल से इल्तिजा करने लगे तो नवल घूमती दृष्टि से पलक की ओर देखता हुआ कहता है – “वैसे माहौल भी है और दस्तूर भी तो जरुर सुनाऊंगा – एक कविता तो अपनी पिछली रेल यात्रा में लिखी थी मैंने | गला खंगालते नवल ऑंखें बंद किए सुनाने लगता है –                                                    “हरसिंगार तुम्हारी ऑंखें…

देखते सोचता हूँ मैं…

अभी कहाँ लिखी वो कविता..

जिसे सुना सकूँ मैं तुझको….

अभी कहाँ वो शब्द खोज पाया..

कि जता सकूँ खुद को….

चाँद, बादल, हवा सब हलके लगते है..

तुम्हारे शाने में…

मानों ट्रेन की पटरियों पर धधकती मेरी धडकने…

तुम्हे खोजने दूर तक जाना चाहती है…

और छू लेना चाहती है तुमको..

इन्द्रधनुष की तरह मुस्कराते….||

कविता सुनाते आंख खोलते वह पलक की ओर देखता धीरे से मुस्करा देता है|  

“वाह वाह – नवल जी आप तो छुपे रुस्तम निकले|”

अनिकेत की बात सुन नवल सादर सर झुकाते मुस्करा देता है|तभी झलक को आते देख अनामिका बोल उठी – “कहाँ रह गई थी – मिस कर दिया तूने कुछ |”

सभी खिलखिलाते झलक की ओर देख रहे थे और वह अवाक् नज़रों से सभी ओर देखती रह गई|

क्रमशः…..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!