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एक राज़  अनुगामी कथा  – 23

झलक अजीब निगाह से सभी को देख रही थी क्योंकि उस वक़्त सबके चेहरों में कुछ अलग ही भाव नज़र आ रहे थे| इससे झलक त्योरियां चढ़ाए पलक के बगल में आकर बैठ जाती है|

नवल शरारत से उसकी तरफ देखता हुआ कहता है – “कहिए तो फिर कुछ सुना देते है !”

“वाह वाह क्यों नहीं |” अनामिका झट से बोली तो सब हँसते हुए उसकी ओर देखने लगे, झलक होंठ भीचे देख रही थी पर इस सबको नज़रन्दाज करते नवल पलके बंद किए सुनाने लगा – 

“बड़ी मुद्दतों लोग मिले है हमसे…

बड़ी मुद्दत लोग मिले है हमसे…

क्या पता इंतजार किया होगा..

बड़ी मुद्दतों लोग मिले है हमसे..

क्या पता इंतजार किया होगा..

रो रो कर बर्तन धोते…

क्या पता घर आंगन भी धो दिया होगा…||”

नवल की शायरी सुनते महफ़िल में हँसी का फुव्वारा छूट गया, सब हँसते हँसते झलक की ओर देखने लगे तो वो तब से गुस्से में मुंह बनाती उठती हुई बोली – “आप लोग ही ट्रक के पीछे लिखी शायरी का मजा ले – मैं तो चली पिंजरे के बंद जानवर देखने बहुत देख लिए खुले लंगूर |” जानकर आखिरी वाक्य नवल को देखती हुई खत्म करती होंठों के किनारे फैलाती चलने लगती है|

“अरे बाबा हम भी आते है |” पीछे से अनामिका लपकी तो सभी हँसते हुए उठकर साथ चलने लगे|

सभी काफी देर पिंजरा दर पिंजरा देखते रहे, खूबसूरत पक्षियों को देखते झलक का मूड अब ठीक हो गया था| बहुत थक जाने पर ई रिक्शा पर भी सब बैठे, इस बीच पलक के आस पास बने रहने की अनिकेत भरसक कोशिश करता, एक पल तो ऐसा आया जब ई रिक्शा में आगे अनामिका रूद्र बैठे तो सबसे पीछे नज़ारे देखने झलक जा बैठी पर उससे पहले बीच में पलक बैठी उसे बुलाती रही पर झलक नही आई इससे पलक के अगल बगल अनिकेत और नवल बैठ गए तो शौर्य सबसे पीछे अपनी पसंद की जगह बैठा रहा| इसी हँसते मुस्कराते पल में कब शाम गहराने लगी पता ही नहीं चला| बीच में किसी खाने पीने की जगह पर अपने अपने उदरस्य पूर्ति करते अब वे कही और जाने का प्लान करने लगे इससे पलक झट से बोल पड़ी –

“बहुत देर हो चुकी है – फिर कभी लखनऊ घूम लेंगे अब चलना चाहिए |”

“हाँ अब घर लौटना चाहिए – पलक झलक हम तुम्हे छोड़ देंगे|” अनामिका भी हाँ में हाँ मिलाती बोली|

अब तक अनिकेत और शौर्य में अच्छी खासी दोस्ती हो चुकी थी, असल में उनकी आपसी दिलचस्पियाँ मिलने से वे एकदूसरे से दुबारा मिलने का वादा लेते हाथ मिला रहे थे, बारी बारी से अनिकेत रूद्र और नवल से भी हाथ मिलाता है| नवल हाथ मिलाते हुए कह रहा था-

“अब तो आपको भाई सा की शादी में जैसलमेर आना ही पड़ेगा फिर आपको हम दिखाएँगे म्हारे जैसल का सैंड ड्यून – वादा है आप एक बार देख लेंगे तो जीवन भर नही भूलेंगे|”

“जरुर |” अनिकेत भरपूर मुस्कान से कहता है|

“शादी में आने की तैयारियां अब तुम दोनों भी शुरू कर दो – आना ही है|” अनामिका बेहद मुस्कराती हुई कहती है|

“हम नहीं आ पाएँगे |” झलक झट से ज्योंही ये बोली सभी की आश्चर्य मिश्रित नज़रे उसी पर ठहर गई|

“क्यों !!” अनामिका उदास भाव से देखती हुई पूछती है|

“बताया था न अनु पापा नही आने दें रहे |”

“आप कहे तो हम सिफारिश कर दे |”

बीच में तपाक से नवल बोला तो झलक मुंह बिचकाती हुई बोल उठी – “इतने बुरे दिन नहीं आए कि आपकी सिफारिश ले – वो तो मेरे पापा को राजस्थान ही पसंद नही है|”

झलक को इस तरह बोलते देख पलक उसे टोकने उसकी बाजु दबाती हुई उसे रोकती इशारा करती है पर एक बार को शुरू हुई झलक भला कहाँ रुकने वाली थी !

“राजस्थान नही पसंद पर क्यों !!” रूद्र के भावों में भी आश्चर्य उतर आता है|

“पता नही – बस उन्होंने राजस्थान जाने से मना किया है वो तो पिछली बार अनु के खातिर उन्हें बिना बताए चली आई थी हम|”

“तो एकबार और सही |” मौका देख नवल फिर बोल पड़ा|

इससे पहले कि नवल के संग झलक बातों में उलझती पलक बात घुमाने बीच में बोल पड़ी – “अरे छोड़ न झलक जब टाइम आएगा तब पापा को मना लेंगे अभी चलते है नहीं तो घर पहुँचते रात हो जाएगी – पता है न लखनऊ का ट्रैफिक |”

सब हाँ में हाँ मिलाते अब जू से बाहर निकलने लगते है| रूद्र पलक और झलक को उनके घर छोड़ने को तैयार था पर अनिकेत मौका देखते उन्हें अपने साथ ले जाने की पेशकश करता है जिसे वे इंकार भी नही कर पाते आखिर उनको बाराबंकी ही पहुंचना था, फिर अंतिम विदा लेती सखियाँ गले मिलती अपने अपने रास्ते मुड़ जाती है|

उनके जाते किसी एकांत में पलक झलक से नाराज़ होती कहने लगी – “पागल है क्या –  किसी के भी सामने कुछ भी बोलने लगती है – ये सब कहने की क्या जरुरत थी कि पापा राजस्थान नही जाने दे रहे वो भी सबके सामने |”

“हाँ तो क्या हुआ – अनु तो जानती है न |”

“हाँ अनु की बात अगल है वो हमारी बेस्ट फ्रेंड है पर बाकी सब !!”

“हाँ तो क्या !! कौन सा कोई बहुत बड़ा सीक्रेट खोल दिला मैंने – पापा और तुम फालतू का सीक्रेट बनाए है इसे और वैसे भी कहने से प्रॉब्लम सोल्व होती है – मन में रखे रहने से कुछ नही होने वाला – समझी बुद्धू |” उसके सर को अपनी तर्जनी से धकेलती झलक अनिकेत की ओर देखने लगती है तो पार्किंग से कार लाकर अब उनकी तरफ बढ़ रहा था|

“आइए |”

उसके बुलाते वे दोनों उसकी ओर बढ़ जाती है|

अनिकेत कार ड्राइव कर रहा था तो पीछे की सीट पर पलक और झलक बैठी थी| झलक कुछ पल तो खिड़की के पार देखती रही पर जल्दी ही ठंडी हवा का झोंका लगते वह थकान से सो गई लेकिन पलक की आँखों में नीद नही थी वह कुछ सोच रही थी, अनिकेत ये बात व्यू मिरर से देखता हुआ समझ रहा था|

“आप कुछ सोच रही है – क्या मैं आपसे आपकी परेशानी पूछ सकता हूँ ?” वह सामने के शीशे के साथ साथ व्यू मिरर पर भी नज़र जमाए था|

“नही तो |”

“खैर आपकी मर्जी – मैं तो बस ये कहना चाह रहा था कि चिंता की लकीरे आपके चेहरे पर अच्छी नही लगती |”

“क्या पूजा के बाद से मेरे साथ जो हो रहा है वो सब ठीक हो जाएगा |” तपाक से पलक बोल तो गई पर अगले ही पल उसे लगने लगा कि शायद उसे ये नहीं कहना चाहिए था|

“क्या हो रहा है आपके साथ !!” लेकिन पलक की बात सुन अब चिंता की लकीरे अनिकेत के चेहरे पर जमावड़ बना ली थी|

“कुछ नही |” पलक फिर खामोश होती दूसरी ओर देखने लगी|

लेकिन अनिकेत का ध्यान उसी पर लगा रहा, जिससे अचानक सामने से क्रॉस करते कुत्ते के कारण वह ब्रेक लगा देता है| जिससे पलक हलके से आगे की ओर झुक जाती है|

“ओह माफ़ कीजिए – वो बात करते करते ध्यान नही दे पाया – आपने तो मुझे चिंता में डाल दिया|”

“सच कहूँ तो मैं कुछ बताना चाहती हूँ |” कही गुम सी पलक कह उठी|

कार को किनारे रोकते हुए अनिकेत उसकी ओर मुड़ता हुआ कहता है – “अगर आपको हर्ज न हो तो आप आगे बैठ जाइए – इससे ड्राइविंग करते करते मैं आपकी बात सुन पाउँगा |”

अनिकेत की बात सहज ही मानती पलक एक नज़र झलक की ओर देखती जो अभी भी सो रही थी आगे की सीट पर आ जाती है, उसके बैठते कार फिर से सड़क पर दौड़ने लगती है|

अनिकेत एक सरसरी निगाह उसके चेहरे पर डालता उसे बोलने के लिए कहता है|

“सच कहूँ तो मैं खुद ये बात किसी से कहना चाह रही थी पर समझ नही पा रही थी किससे कहूँ क्योंकि हर कोई विश्वास नही करेगा न |”

“मैं करूँगा विश्वास मुझसे कहिए |”

“मुझे कुछ दिनों से एक ही तरह का सपना रोजाना आता है जिससे सुबह बड़ी अजीब सी थकान के साथ उठती हूँ मैं – मुझे ये बात अजीब लगती है और अगर किसी को कहा तो कोई विश्वास नही करेगा या मेरा मजाक बनाएगा – मैंने झलक को भी ये बात नही कही|”

अनिकेत खामोश रहता उसे कहने का अवसर देता है|

“मुझे कुछ अलग सा अजीब महसूस होता है जो समझ नही आता – कैसे कहूँ बड़ा अजीब है लेकिन कुछ तो है जो मेरा साथ अलग सा घट रहा है|”

पलक की बात सुनते रहने के लिए कार की रफ़्तार धीमी किए अनिकेत पलक को देखता हुआ कहता है – “मैं आप पर विश्वास करता हूँ – पूरी बात बताइऐ मुझे |”

“शाम होते कुछ तो अजीब होने लगता है मेरे साथ – समझ नही आ रहा कैसे समझाऊँ मैं |” खुद में ही परेशान होती पलक अचकचाई सी अनिकेत की ओर देखती हुई पूछती है – “मेरा एक दुप्पटा अचानक से  गायब हो गया – आप यकीन करेंगे इस पर !!” कहती हुई पलक कुछ पल तक अनिकेत की ओर देखती रही – “और मेरे कमरे में रखे सामान की दिशा बदल जाती है |”

कार ब्रेक लगते रुक जाती है, बातोंसे कब रास्ता कट गया पता ही नहीं चला, घर आते एक उदास भाव से पलक कार से उतरती हुई कहती है – “पता नही कैसे मैं सब कुछ आपको कह गई प्लीज़ आप पापा को कुछ मत बताईएगा क्योंकि वे बहुत जल्दी परेशान हो जाते है – शुक्रिया कम से कम आपको बताकर कुछ पल के लिए मेरा मन हल्का हो गया|”

“मैंने आपकी बात सुनी भी और समझ भी ली – अगर आप चाहे तो आगे भी आप मुझसे खुलकर अपनी बात कह सकती है -|”

अनिकेत की बात पर पलक अनिमिख उसे देखती रही जो किसी कार्ड पर कुछ लिख कर उसकी ओर बढ़ाता हुआ कह रहा था – “जैसे डॉक्टर से रोग नही छुपाना चाहिए वैसे आप यकीन करिए आपने किसी गलत व्यक्ति से अपनी बात शेअर नही की – मैं और भी पूरी बात जानना चाहूँगा – आप जब चाहे मुझे इस नंबर पर मिला सकती है – ये मेरा पर्सनल नंबर है |”

पलक कार्ड लेती धन्यवाद् कहती अब पीछे की ओर देखती है जहाँ झलक सच में गहरी नींद सो चुकी थी, पूरे दिन की मस्ती से उसमे बेहद थकान हावी थी पलक अब उसकी ओर आती उसे हलके से हिलाती उठाती हुई कह रही थी – “उठ न झल्लो – घर आ गया |”

पलक के झंझोड़ने से झलक हडबडा कर उठती एक बार को पलक को तो अगली नज़र अनिकेत को देखती दांत दिखाती झेंपती हुई मुस्करा देती है|

फिर दोनों साथ में दुबारा धन्यवाद कहती घर की ओर चल देती है|

घर पर उनका इंतजार ही हो रहा था, घर पहुँचते झलक की ढेरों किस्सों की पोटली सी खुल जाती है, वह तो रस्ते में सो चुकी थी इससे वह पूरी तरह से उत्साह से भरी रही जबकि अब पलक पर थकान हावी होने लगी थी, वह सबको कहती कमरे में सोने चल देती है|

सुबह उठते पलक को अहसास होता है कि आज सच में उसमे कुछ सुकून सा है शायद बहुत दिन से मन की दबी बात अनिकेत को कह कर उसका मन हल्का हो गया था|

झलक अभी भी सो रही थी, पलक उसे झंझोड़कर है पर गधे घोड़े बेचकर सोई झलक जरा भी नही सनकी| फिर कुछ ध्यान आते गद्दे के नीचे हाथ डालकर अनिकेत का लिया कार्ड निकालती वह मोबाईल लिए छत पर चल देती है|

एक पल को उसका मन संकुचा गया कि क्या इतनी सुबह फोन मिलाना चाहिए, कुछ हिचकिचाहट सी थी फिर भी वह ये तय कर फोन मिला लेती है कि सिर्फ एकबार मिलाएगी अगर उठ गया फोन तोही बात करेगी नहीं तो नही मिलाएगी दुबारा, ये तय करती वह जल्दी से नंबर डायल कर कानों से सटाए फोन की लम्बी लम्बी रिंग सुनने लगती है| देर तक लम्बी लम्बी रिंग जाती रहती है इससे एक मायूसी सी उसके हाव भाव में ठहर जाती है| पर आखिरी रिंग जाते फोन उठा लिया जाता है उधर से संशय भरी आवाज सुन ज्योंही पलक हेलो कहती है उसकी आवाज पहचानता अनिकेत की आवाज चहक उठती है|

“माफ़ कीजिए अपरिचित नंबर लगा था इसीलिए जल्दी नही उठा सका – |” ये कहते कुछ पल अनिकेत यूँ मौन देता है मानों मन ही मन कह रहा हो कि अगली बार तो एक रिंग में ही उठा लेगा वह|

“कोई बात नही – मैंने ही बहुत सुबह मिला लिया |” संकुचाती हुई पलक धीरे से बोली|

“अरे ऐसा क्यों कहती है बल्कि सुबह सुबह इतनी मधुर आवाज तो मुझे किसी प्रार्थना की तरह लग रही है – बताईए अब आप कैसी है ?”

“अच्छी हूँ और यही बताने आपको फोन मिलाया – वाकई मन की बात आपसे करके कल इतने सुकून की नींद आई कि आपको बता नहीं सकती|”

“मुझे ये सुनकर अच्छा लगा कि मैं किसी के काम तो आया – आप का जब जी करे बात करके मन हल्का कर लीजिएगा और यकीन मानिए ये मुझे अच्छा लगेगा |”

इस पर पलक कुछ नही कहती पर बीच के मौन में वह बस हलके से मुस्करा देती है| तभी माँ की आवाज आते वह अनिकेत को बाय कहती झट से छत से नीचे उतर जाती है|

———–क्रमशः

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