Kahanikacarvan

एक राज़  अनुगामी कथा  – 27

डायरी के पहले पन्ने से ही पता चल गया कि वो डायरी उसके पापा वैभव की थी, वह जल्दी जल्दी उस डायरी के पन्ने पलटने लगी, एक के बाद एक पन्ने पलटती गई और उसकी ऑंखें हैरानगी में फैलती चली गई| पूरी लिखी डायरी अपने अन्दर मानों राज का समंदर समेटी थी जिसकी गहराईयों में पलक डूबने उबरने लगी| सरसरी निगाह से पूरी डायरी देख लेने के बाद वह उचकती हुई झट से तेजी से बाहर की ओर निकल गई| झलक अभी सोई ही थी कि पलक के बुरी तरह से झंझोड़ने से वह हडबडाते हुए उठ बैठी| उठते ही वह पलक पर बरस पड़ी जो अवाक् उसकी ओर देखे जा रही थी|

“कही कोई तूफान आ गया या भूचाल – कोई किसी को ऐसे उठाता है भला !”

“हाँ समझ तूफान और भूचाल एकसाथ ही आ गए|” पलक अब डायरी उसकी आँखों के सामने रखती हुई उसे उसकी ओर देखने का इशारा करती है|

“क्या है ये – हटाओ इसे कितनी धूल है इसमें |”

“अरे पागल ये धूल से नही रहस्य से भरी है – एक बार देख तो |” पलक ने जिस तरह अपनी बात झलक को समझाई उससे अब उसकी ऑंखें भी हैरानगी से फैली रह गई|

“ये पापा की डायरी है – मैं उनकी हैण्डराइटिंग अच्छे से पहचानती हूँ – ये पापा की ही डायरी है और वो भी बीस पच्चीस साल पहले की –|”

आश्चर्य में डूबी झलक अब पूरी डायरी को ऑंखें फाड़े सरसरी निगाह से पूरा देख गई और अब अवाक् पलक की ओर देखती हुई बोली – “है तो पापा की ही डायरी पर ये विश्वास करना मुश्किल हो रहा है कि ये सब पापा ने ही लिखा है – वो पापा जो कभी शायद ही लखनऊ से बाहर भी नही निकले हो वे देश भ्रमण भी कर चुके है|”

“हाँ यही तो मुझे भी हैरान कर गई बात – पापा ने ये डायरी तब लिखी जब उन्होंने नई नई जगह घूमी – पर इस बात पर तो यकीन ही नही हो रहा कि पापा और ट्रैवलिंग !! इम्पोसिबल |”

पलक की बात पर से ध्यान हटाकर अब झलक डायरी पढ़ने लगी थी – नई नई जगह घूमना उसे खोजना कभी ये मेरा शौक मेरे सर चढ़कर बोलेगा सोचा ही नही था….सितम्बर की हलकी ठण्ड और मैं नाथुला की ओर बढ़ रहा हूँ…और वहां से ग्राउंड जीरो जाऊंगा जहाँ बर्फ को अपनी आँखों से देखूंगा यकीन ही नहीं आ रहा…प्रकृति कितनी वैभवशाली है…मानों सौगातों से भरी हुई….

झलक उसे आधा ही छोड़ आगे का पन्ना पलटती है – इस बार बीकानेर जाने का मौका मिला…राजस्थान..उफ़ क्या जगह है…रेतीली…दरदरी और रहस्यों से भरी हुई…उसकी लाल बलुई मिट्टी की छाप कभी मन से नही मिटने वाली..हवेलियों का जाल बिछा है यहाँ…क्या आलिशान है आज भी तो अतीत में इसकी रौनक का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है..यही मुझे सलीम की हवेली से कुलधरा के बारे में पता चला वहां जरुर जाऊंगा…एक श्रापित गाँव..

जल्दी से अगला पन्ना पलटती है –डाचीगाम श्रीनगर…कितने लोग जानते होगे इस खूबसूरत स्थान को..मुझे भी अचानक पहलगांव से लौटते हुए पता चला तो मैं यहाँ आने से खुद को रोक ही नही पाया…कश्मीर की हसीन वादियों में कोई ऐसा जंगल भी होगा सोचा ही नही था….नायब खूबसूरती का असीम अद्भुत दृश्य…घने पेड़ों के बीच से बहती झेलम नदी का पानी पीकर मानों ह्रदय अमर हो उठा…

अगला पन्ना –कन्याकुमारी सब आते है पर असल खूबसूरती कौन समझ पाता है..रोमांच से भरी कन्याकुमारी की तूफानी लहरे लगता है सदियों तक मेरे मन में हिलोरे लेती रहेंगी..तीन सागरों अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर से घिरा ये सामुद्रिक इलाका एक शांतिपूर्ण गंतव्य है…यहाँ मैं दुबारा फिर जरुर आऊंगा…

अगला पन्ना –पेरियार वन पहुंचकर मैं तो विस्मित हो उठा…केरला का यह सबसे पुराना वन्यजीव अभयारण्य अनेकों जीवो का केवल संरक्षित क्षेत्र ही नही है बल्कि अपनी झील के लिए भी उतना ही प्रसिद्ध है…मैंने बड़ी बोट से एक घंटे की यात्रा की और झील को आधा भी नही घूम पाया…मन तो ऐसा लगा कि कभी इन हरे भरे प्रदेश से लौटू ही नही फिर भी शाम तक लौटना पड़ा….घर से लगातार फोन आ रहे है भईया की शादी तय हो गई है…सड़क से लौटते वक़्त तभी मेरी नज़र पक्षियों के झुरमुट के बीच से गुजरते हाथियों के झुण्ड पर चली गई….यहाँ सड़क पर ऐसा दृश्य दिखना आम बात है…अद्भुत..

अगला पन्ना –किसी करणवश गंगटोक घूमने के बाद मुझे एक दो दिन अतिरिक्त रुकना था वहीँ से होटल वाले ने मुझे कालिम पोंग का सुझाया…मैंने सुना भी नही था पर उस अनछुए स्थान पर पहुंचकर लगा अगर यहाँ नही आया होता तो प्रकृति की नायब खूबसूरती के ऐसे अद्भुत दर्शन छूट जाते मुझसे…जब तक कालिम पोंग में रहा सपाट रास्ता तो भूल ही गया या तो यहाँ चढ़ाई होती या ढलान…बादलों और कोहरे से घिरा ये कालिम पोंग क्या कभी भूल पाउँगा मैं…नीतू संग मैं यही आऊंगा…

अगला पन्ना –चेरापूंजी बादलों की नगरी….कब अचानक बादलो का झुड आकर बरस जाता समझ ही नह आता…अतुल्य भारत ये हिल सबसे ज्यादा बारिश के प्रसिद्ध है..यही से बांग्लादेश की सीमा को देखकर नोख्ला झील की ओर बढ़ा…यहाँ से एशिया के सबसे साफ़ सुथरे गाँव मावल्यओंग गाँव भी गया…जिसे वाकई कोई भी भगवान का बगीचा कहने से गुरेज नही करेगा…

अगला पन्ना –शहर घूमने का मन नही करता फिर भी अबकी मेरे पैर मध्य प्रदेश के शहर इंदौर की ओर मुड़ गए…क्या जगमगाता शहर है…वहां की चकाचौंध से निकलकर उसके बाहरी क्षेत्र की अच्छी खासी हरियाली को भी देखने गया..मन झूम उठा…

अगला पन्ना – जा तो त्रिवेन्द्रमपुरम रहा था पर जाने क्या सूझी कि ट्रेन से रास्ते में ही कोट्टयम केरला का बर्ड सेंचुरी देखने उतर गया…थोडा पैदल फिर लोकल बस से जिस अभयारण्य में पहुंचा मन खुश हो गया…पर बारिश के दिनों मौसम इतना चिपचिपा था कि बैक वाटर के हाउस बोट में रात गुजारनी पड़ी पर क्या पता था ये मेरे जीवन का सबसे मजेदार और बढ़िया दिन रहेगा…पूरी रात खुले आसमान को ताकता रहा मैं….

अलग पन्ना –तिरुपति की पहाड़ियां के शीर्ष में तिरुमाला की पहाड़ी में भगवान वेंकटेश के दर्शन करने गया..इस पवित्र स्थान पहुंचकर मन ईश्वरीय आस्था की ओर सदा के लिए नमस्तक हो गया…

अगला पन्ना –समुद्र देखने की बहुत ज्यादा इच्छा थी तो इस बार अंडमान निकल आया…अगस्त के महीने में भी काफी गर्मी थी लग रहा था सूरज ठीक सर के ऊपर हजारों वॉट के बल्ब की तरह जल रहा है फिर भी मेरी घुमकड़ी को प्रभावित नहीं कर पाया..पूरे सात दिन रूककर मैंने यहाँ का चप्पा चप्पा घूम डाला…चाहे वो सेन्तिज का इलाका देखने की जिद्द हो या राधा नगर बीच की चमकीली सफ़ेद रेत पर पड़े रहने का मजा…

अगला पन्ना –नैनीताल आने का प्रोग्राम अचानक मना…मैं असल में दिल्ली आया था किसी काम से वही से बस यूँही नैनीताल निकल आया पर सितम्बर के महीने में यहाँ की ठण्ड में मुझे अन्दर तक गुदगुदा दिया…झीलों की रानी नैनीताल आकर जैसे मन ठहर सा गया…काजू आकार की झील तो पडाही पर तितली म्यूजियम, गुफा, मंदिर जाने क्या क्या नहीं है यहाँ…शहर का आबाद नैनीताल अपनी एक उंगली से प्रकृति का आंचल भी थामे है….

अगला पन्ना – जा तो उंटी रहा था पर गाइड ने कोडेकनाल तक की टिकट बुक कर दी…फिर उंटी और कुनूर से होता हुआ कोडेकनाल जा पहुंचा और वहां ट्रेकिंग की…घाटियों में उतरता गया मैं…क्या डेयरिंग अनुभव था यहाँ का…

अगला पन्ना – अरुणाचल की सीमा पार कर तिब्बत जाना चाहता था…वही से तैवांग पहले गया…बर्फीली पहाड़ी को देखने का अनुभव बहुत ही रोमाचक रहा..

अगला पन्ना –राजस्थान से कुछ मन ज्यादा ही जुड़ गया इसलिए इस बार जैसलमेर का प्रोग्राम बना लिया…सैंड ड्युन्स को देखने के बाद मन किया कि कुछ नया और हैरतअंगेज देखा जाए…किसी के सुझाने पर मैं कुलधरा आ गया…वाकई इस बार का अनुभव बिलकुल अलग रहा….क्या ऐसा कोई गाँव है जिसे रातों रात खाली कर दिया गया…मैं इस श्रापित गाँव में आकर ऐसा विस्मित हुआ कि तय कर लिया कि अगला स्थान भी कोई नया भुतिया प्लेस ही होगा…लेकिन जैसल को सिर्फ इसीलिए याद नही रखूँगा…यहाँ के रेतीले टीले और उनमे बने कैम्प कुछ पल के लिए मन को रोमांच से भर देते है….मैंने तो भैया भाभी के लिए टिकट भी बुक करा दी यहाँ की….

जैसलमेर पर आकर अगले कुछ पन्ने खाली देख झलक पलक की ओर देखती हुई कहती है –“अब इसके आगे तो कुछ नही लिखा या तो पापा इसके बाद कही नही घूमने गए या किसी और डायरी में लिखा होगा |”

“मुझे तो नही लगता क्योंकि जब इस डायरी में अच्छे खासे पन्ने बचे है तो पापा दूसरी डायरी क्यों बनाएँगे !! ये सब छोड़ झलक ये सोच हमारे पापा ने हमे कभी ये सब क्यों नही बताया कि वे घूमने के शौक़ीन थे बल्कि हम तो यही सोचते रहे है कि पापा कभी लखनऊ से बाहर भी नही निकले |”

“हाँ सच्ची पल्लो – पापा ने आखिर इस बात को राज क्यों रखा इससे भला क्या होगा ??”

पलक भी उतनी ही हैरानगी से देखती हुई कह रही थी – “तुमने एक बात और गौर की पापा दो बार राजस्थान गए और आखिरी बार शायद जैसलमेर में कोई कुलधरा गाँव भी गए जहाँ उन्होंने बड़े पापा मम्मी के लिए टिकट भी बुक कराया यही कुछ रहस्य है – उसके बाद पापा क्यों कहीं नही घूमने गए और खुद राजस्थान की इतनी तारीफ करने के बाद आज उसके नाम भर से भी नाराज हो उठते है – आखिर ऐसा विरोधाभास क्यों !!”

अब दोनों कुछ पल मौन मन ही मन ढेरों प्रश्न करती उलझी रही, पलक डायरी लेकर उसे उसके उसी स्थान पर रख आती है|

अगले कुछ समय बाद वैभव और नीतू वापस आ जाते है..उनके आते दोनों दौड़कर उनके पास जाती है…

“ये लो प्रकाश की कुल्फी..|” माँ के द्वारा कोई पैकेट पकड़ाने पर झलक ख़ुशी से उछल ही पड़ती है|

पैकेट खोलते खोलते एकदम से पूछ लेती है – “और आदर्श भैया कैसे है ?”

“तुम्हे कैसे पता कि हम आदर्श से मिलने गए थे |” माँ कनखनी से देखती है तो झलक अपने दाँतों टेल जीभ दबाती हुई खीसे निपोर देती है तो माँ झट से उसके कान पकडती हुई बोलती है – “अच्छा तो छुपकर बड़ों की बात सुनी जाती है |”

“वो तो धोखे से सुन लिया -|” वह अभी भी दांत दिखाती हँस रही थी|

“ठीक है आदर्श – अच्छा ये बताओ तुम दोनों से दिनभर क्या किया – कुछ खाया पिया कि नही कि आलस में पड़ी रही |”

झलक का मन हो रहा था कि अभी ही वो सारे उलझे प्रश्न माँ के सामने रख दे पर पलक के इशारे पर चुप होकर हाँ में सर हिलाती चल देती है|

“झलक मैंने तय कर लिया कि अब मैं इस राजस्थान के रहस्य को जानकर ही रहूंगी |” रात में लेटे लेटे ही पलक जब झलक से ये बोली तो वह चिहुँककर उसकी ओर हैरत से देखती रही|

“हाँ सच में – अब बहुत हो चुका – इस सच को हमे जानना ही होगा कि आखिर क्या है हमारा राजस्थान से रिश्ता |”

“तो क्या करेगी अब तू ?” झलक पलक से पूछती हुई उसकी ओर देखती रही|

“लुसिड ड्रीमिंग |”

“क्या !!!!” ये सुनते झलक बिस्तर पर से उछल ही पड़ी| लेकिन इसके विपरीत पलक शांत भाव से लेटी रही|

अगले दिन वह अनिकेत को फोन करके अपनी मंशा बता देती है इससे एक बार फिर वे जॉन के साथ उसके घर पर खड़े थे| और वह किसी किताब में तल्लीन खड़ा था| पलक चाहती थी की जो होना है जल्दी से हो जाए पर जॉन इसके विपरीत काफी देर से शांत खड़ा था| तो अनिकेत उसे टोकता है जिससे सर उठाकर वह बारी बारी से तीनों को देख डालता है|

“जॉन कुछ तो बोलो अब आगे क्या करना है ?”

“तैयारी – एक लम्बी यात्रा में जाने की |” कहकर फिर वह डेस्क में जैसे कुछ तलाशने लगता है|

क्रमशः………………………

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