
एक राज़ अनुगामी कथा – 29
अनिकेत के ये कहते पलक हर बार उसे थैंक्स कहती और वह भी हर बार उसे टोक देता लेकिन ये पलक का दिल ही जानता था कि इस विपरीत परिस्थिति में सिर्फ इस वक़्त उसे अनिकेत का ही सहारा है| अगले दिन फिर से पलक रात में अनिकेत की सहायता से जॉन से मिलती है और वह वही प्रक्रिया दोहराता है जिसका परिणाम भी वही रहता है, इससे पलक में एक निराशा सी तारी हो जाती है| जॉन चाहता था कि पलक आधी नींद में उठे जबकि वह पूरी नींद की एक प्रक्रिया के बाद उठती जिससे उसे आखिरी का ही याद रहता और वे सब उसके शुरुआत का हिस्सा जान ही नही पाते इससे परेशान वापस आते जैसे वह खुद पर ही नाराज़ हो उठती है इससे पूरा दिन वह खुद से मानों पूछती रही कि आखिर वह खुद को आधी नींद से जगाए कैसे !! परेशान पलक अनिकेत को फोन मिलाती है, इस वक़्त उसके अलावा उसे समझने वाला कोई था ही नही| अनिकेत हर बार की तरह एक बार में ही उसका फोन लेता उसकी बात ध्यान से सुनता हुआ कहता है –
“पता है हमारे मन में ब्रमांड को जानने की क्षमता है लेकिन मन को उस तरह से प्रयोग ही कहाँ कर पाते है – समझो सब कुछ हमारे अन्दर है बस उसे जानने की क्षमता चाहिए –|”
“लेकिन मैं खुद को जगाऊँ कैसे ?”
“मन से तय कर लो कि मुझे ये करना ही है – अपने मन को नियंत्रित करो – ये शरीर का अदृश्य हिस्सा होते हुए भी सबसे ताकतवर है लेकिन एक बार मन पर नियंत्रण हो गया तो मानों जग जीत लिया |”
अनिकेत की प्रोत्साहक बातें पलक मौन सुनती रही, इसे सुनते उसे लगा सच में अब उसे ये करना ही होगा| अनिकेत से बात कर कर लेने के बाद वह मन ही मन ठानती अब शुरुआत से सब सिलसिलेवार याद करती है कि जॉन ने उसे क्या क्या निर्देश दिए थे, वह सब कुछ वही करने का पूरा दिन प्रयास करती है| वह दिन भर खुद को वास्तविक दुनिया में रहने का विश्वास दिलाती बार बार घड़ी में समय देखती क्योकि यही एक चीज जॉन ने उसे बताई थी जिससे वह खुद को सपने से हकीकत में विभक्त कर सकती थी| झलक भी हतप्रभ पलक को ऐसा करते देख परेशान होती हुई बोली –
“क्या कर रही है – तब से देख रही हूँ पागलों की तरह खुद से बात कर रही है – देख मुझे ये ठीक नही लग रहा है अब तुम सब करके देख चुकी न तो छोड़ न ये सब – |” कहती कहती झलक पलक के कानों के पास आती कहती है – “रात में रोज ऐसे अकेले जाना कब तक छुपा रहेगा – किसी दिन पापा को पता चला तो सोच क्या होगा – हम क्या कहेगीं पापा से !!”
झलक की बात से पलक सच में अंतरस हिल गई|
“मैं जानती हूँ ये सब इसलिए आज बस लास्ट ही होगा क्योंकि आज नहीं तो बिलकुल नही |
पलक का सपाट भाव से तना चेहरा झलक देखती रह गई उसे लगा वाकई पलक इसके लिए कितनी प्रतिबद्ध है| उस रात पलक की आँखों में नींद ही नही थी, फिर भी उसे सोना था आते वक़्त उसने अनिकेत से भी ज्यादा बात नही की जैसे आज मन ही मन कुछ ठान कर आई थी| जॉन ने सारी तैयारी कर उसे लेटने को कहा और बताया कि एक आलम की आवाज पर उसे उठना ही है|
पलक हाँ में सर हिलाती काले पर्दों के घेरे के बीच में लेट जाती है| उसे लेटा छोड़कर उस पार दोनों चले गए ताकि घडी पर अपनी नजर बनाए रखे| पलक ने खुद को पूरा दिन मानसिक और शारीरिक रूप से इतना थकाया था कि कब वह नींद की आगोश में समां गई उसे खुद पता नही चला| धीरे धीरे समय बीतने लगा और एक घंटे के बीतते जॉन अलाम घड़ी सेट करने लगता है क्योंकि नब्बे मिनट पूरा होने से पहले उसे जगाना था| अनिकेत अब परदे की ओट से झुककर पलक के चेहरे की ओर देखते हुए अचानक चौंककर जॉन को इशारे से बुलाता हुआ कहता है – “ये क्या हो रहा है पलक को – उसका चेहरा इतना तना क्यों है !!” अब दोनों उसके चेहरे की ओर अपना ध्यान गड़ा देते है, ऐसा करते उनके चेहरों पर भी अजीब भाव चढ़ने उतरने लगते है|
पलक की बंद पलकों के पीछे उसकी आँखों में तेजी से मूवमेंट हो रहा था साथ ही आज उसके चेहरे पर कुछ ज्यादा ही बेचैनी छाई थी| लग रहा था जैसी वह बहुत परेशान हो, ये देख अनिकेत का मन हुआ कि उसे जगा दे पर जॉन उसे ऐसा करने से मना कर देता है| पलक के चेहरे से उसकी छटपटाहट साफ़ झलक रही थी ये देख दोनों अब उसके पास आ जाते है और जॉन सेट अलाम घड़ी को उसके सिरहाने रखता कुछ दूर हो जाता है लेकिन अनिकेत उसके पास ही बैठा उसकी ओर अपना ध्यान लगाए था| उसे बिलकुल समझ नही आ रहा था कि इस वक़्त क्या करे !! क्या जॉन के कहेअनुसार सब्र करते इंतज़ार करे या पलक को इस बेचैनी से निकालने उसे जगा दे !!
तभी अचानक से पलक उठकर बैठ जाती है कि दोनों हैरान उसको देखते रहते है| वह बुरी तरह से हाफ रही थी मानो मीलो दूर से भाग कर आई हो, पसीने से तर उसके चेहरे पर घबराहट और उलझन के मिले जुले भाव थे| उसके जागते अनिकेत अब पलक की ओर बढ़ने लगा तो जॉन उसे पीछे की ओर खींचता हुआ खुद आगे आता बिना कुछ बोले ही पलक की ओर कागज और पेन बढ़ा देता है जिसे पलक भी लेती उसमे कुछ लिखने लगती है| तभी सेट अलाम बजने को हुई तो जॉन उसे बंद करता पलक की ओर देखने लगता है जो अभी भी लगातार कागज पर लिख रही थी|
लिखने के बाद कागज जॉन की ओर बढ़ाती वह कुछ पूछना चाहती थी पर बीतते समय से उसे घर जाने की इच्छा बलवती हो उठी तो अनिकेत उसे लिए जल्दी से बाहर निकल गया|
उस पल रास्ते भर अज़ब सी ख़ामोशी दोनों के बीच पसरी रही, लगा रहा था जैसे वह कुछ कहने की स्थिति में है ही नही| अनिकेत उसे घर के पास छोड़कर वापस चला गया| पलक तुरंत ही घर के अंदर आने पीछे के दरवाजे की ओर जाने लगी पर उसे लगा आज मुख्य गेट खुला है तो वो चुपचाप उससे अन्दर आ गई| अन्दर आते अचानक उसे लगा कि घर से आवाजे आ रही है और उस आवाज की ओर ध्यान लगाते उसकी आँखों को विश्वास नही आया कि मुख्य कमरे में रौशनी जल रही होगी| ये देखते घबराहट के मारे पलक के पसीने छूटने लगे, आखिर इतनी रात से वापसी पर क्या कहेगी वह !! मन में सारे डर समेटी वह सर झुकाए मुख्य कमरे की ओर बढ़ने लगी कि कोई हाथ उसे पीछे की ओर खींच लेता है वह हडबडा कर पलटकर देखती है कि वह झलक थी और उसे चुप रहने का इशारा करती अपने साथ पीछे की ओर चलने को कहती है|
कमरे में आते पलक पर बरस ही पड़ती है झलक – “पागल थी जो आगे कमरे की ओर जाने लगी – !!” पलक बस अवाक् उसकी ओर देखती उसे सुन रही थी – “क्या कहती पापा से कि आधी रात कहाँ से आ रही है – बस तेरा बहुत हो गया नाटक अब कल से तू कहीं नही जाएगी कह दिया मैंने – तू तो उधर चली जाती है और इधर जागते सारी रात मुझे यहाँ पहरा देना पड़ता है|”
पलक बस ख़ामोशी से सर झुका लेती है ये देख झलक उसके पास आती धीरे से कहती है – “तुझे पता भी है यहाँ क्या हंगामा मचा है – मामा मामी आए है – घर के सारे बड़े बहुत परेशान है |” ये सुनते पलक हतप्रभता से उसकी ओर देखने लगी|
“सब आदर्श भईया की वज़ह से परेशान है – पता है उन्होंने घर में बिना बताए किसी से शादी कर ली और उदयपुर चले गए – इसी कारण मामा मामी यहाँ आए है और लग रहा है सब उनसे बहुत नाराज़ भी है|”
अब दोनों के चेहरों पर एक सी उलझन के भाव समां गए थे| उस कमरे में जा नहीं सकती थी इससे अपने कमरे में उकडू बैठी दोनों अपने में उलझी बैठी रही| कुछ देर बाद उनके कमरे का दरवाजा खटका तो दोनों लेटने का उपक्रम करती कुछ रुककर दरवाजा खोलती है| दरवाजे के पार माँ खड़ी जल्दी जल्दी कह रही थी –
“तुम दोनों जाग गई – अच्छा हमे अभी ही उदयपुर के लिए निकलना होगा – अब तुम्हें क्या बताऊँ – तुम्हारी मामी बहुत ही परेशान है और उधर आदर्श फोन नही उठा रहा इसलिए हमे अभी उनके साथ निकलना होगा – क्या तुम दोनों दो तीन दिन अकेली रह लोगी !!” वे इतनी परेशान थी कि लग रही थी जैसे ये प्रश्न उनसे नही बल्कि खुद से पूछ रही थी| माँ की ऐसी हालत देख दोनों उनके पास आती कहती है –
“आप हमारी ओर से बिलकुल भी परेशान मत होहिए – आप को इस समय वाकई मामी जी के साथ साथ रहना चाहिए |”
उनके सांत्वना भरे शब्द से माँ नम आँखों से देखती बिन कहे वापस चल देती है| माँ के जाते वे दोनों भी साथ में बाहर आती माँ के जाने की तैयारी करने लगती है|
क्रमशः…………