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एक राज़  अनुगामी कथा  – 31

घर लौटकर आने तक उसके दिमाग में अनिकेत के आखिरी शब्द गूंजते रहे…क्या सच में उसे एक और प्रयास करना चाहिए !! आखिर वो कौन स्त्री है जिसका साया उसे अपने आस पास महसूस होता है !! क्या सच में राजस्थान से उसका कोई रिश्ता है !! आखिर ये उलझन सुलझने के बजाये और क्यों उलझती जा रही है !! उफ्फ !! गहरी सांस छोड़ती पलक देखती है कि झलक मोबाईल हाथ में लिए बोलती बोलती उसकी ओर ही आ रही थी|

“माँ से बात की अभी किसी ढाबे में रुके है – मैं तो कब से मिला रही थी पर नेटवर्क ही नही मिल रहा था |” पलक रसोई में खड़ी आटा गूँथ रही थी और झलक उसके पास खड़ी उसे बता रही थी – “मामी जी अभी भी बहुत परेशान है – माँ ने बताया कि बड़ी मुश्किल से कुछ खाया है उन्होंने – ये आदर्श भईया ऐसा कैसे कर सकते है – मुझे तो विश्वास ही नही होता – पलक तुझे नही लगता कि कही ये वोही लड़की तो नही जिसे उस रात हम हयात में मिले थे !!”

झलक कुछ पल रूककर पलक की ओर देखती है जो अभी भी आटा गूंथने में लगी थी|

“पलक !!” वह कुछ तेज आवाज में उसे पुकारती है जिससे उसकी तन्द्रा टूटते वह चौंक जाती है|

“कहाँ खोई है – आटा ही गूँथ रही है या दिमाग मथ रही है !!”

ये सुन वाकई उसे होश आता है कि वह बहुत देर से आटा गूँथ रही है|

“अच्छा बताया नही – आज क्या हुआ और आज क्या ज्ञान दिया तुम्हारे पंडित जी ने ?”

हौले से हँसती झलक बोली जिससे नल में हाथ धोते धोते पलक चिढ़ती हुई बोल उठी – “ये क्या हमेशा तुम्हारे पंडित जी – एक नाम है अनिकेत नही बुलाया जाता तुझसे |”

“ओहो – बुरा लगा !” दुबारा झलक हँस पड़ी|

इस पर पलक कुछ न बोलती हुई गैस पर तवा रखती है|

“अच्छा ठीक है तो अनिकेत जी ने आज क्या बताया और उस झबरीले भालू से वो क्या कहते है लिसिड ड्रीमिंग – उससे क्या पता चला ?”

“लुसिड ड्रीमिंग कहते है उसको |”

“बताया क्या ये तो बता ?”

अबकी अपनी बात कहती पलक उसकी ओर मुड़ती हुई अपनी बात कहती है –

“जॉन ने बताया कि जिस जगह का मैं सपना देखती हूँ वो पूरी तरह से राजस्थान ही है, रेतीली बलुई जगह और वह साया कोई स्त्री का है जो चुन्नी ओढ़े दिखी और वहां कुछ टूटे भग्नावशेष भी है पर ठेक ठीक कौन सी जगह है नही पता चला – झल्लो कुछ तो रिश्ता है मेरा राजस्थान से – सपना पूरी तरह से यही संकेत कर रहा है पर क्या ये फिर अधूरा रह गया -|”

“तो पूरा कैसे होगा – क्या फिर जाना पड़ेगा ?”

झलक पलक के चेहरे पर अपना सारा ध्यान लगा देती है जहाँ अजीब सी उलझन के भाव मौजूद थे|

“नही जाना मुझे|” कहती  हुई पलक रसोई से बाहर चली जाती है|

“अरे चली जा न – क्या मेरे कहने की वजह से नही जा रही !!”

झलक देखती है कि पलक उसकी बात अनसुनी करती अब जा चुकी थी|

‘अजीब है – बोल तो रही हूँ फिर भी नही जाना – क्या पंडित जी को फोन मिलाना चाहिए मुझे !!’ खुद से ही बातें करती झलक सोच ही रही थी कि फोन घनघना कर बज उठा, रिंग आते झलक अपने हाथ में पकडे मोबाईल की स्क्रीन देखती हुई एकदम से उछल ही पड़ी – ‘बड़ी लम्बी उम्र है इनकी – नाम लिया शैतान हाजिर |’ खुद में ही हँसती हुई झलक झट से मोबाईल उठकर कान से लगा लेती है|

“हाय अनिकेत जी कैसे है आप ?” उधर से शायद मुस्करा कर अभिवादन का जवाब दिया गया जिस पर झलक खुलकर हँसती है|

“हाँ बताया उसने लेकिन वह अभी भी परेशान है – आप कुछ समझाईए – नही अभी तो नही आ सकती हूँ – आप आ जाइए – नही पापा किसी काम से बाहर गए है –  अरे तो कोई बात नही आप आ जाए – पलक को आप सामने समझाएँगे तो शायद उसे ठीक लगे – ओके |” अपनी बात करके फोन काट देती है|

अगले कुछ समय बाद ही अनिकेत आखिर आ जाता है| घर में उनके सिवा कोई नही है ये जानने के बाद हिचकिचाते हुए वह उनसे मिलता है| उसकी हिचकिचाहट पर झलक को हँसी आ रही थी जिसपर पलक उसे आंख दिखाती है| झलक देखती है कि अनिकेत के हाथ में कोई किताब थी जिसे वह उत्सुकता से देख रही थी|

“मैं भी यही चाहता हूँ कि आप ज्यादा परेशान न हो और जल्दी ही इस रहस्य को जान ले – आज मैं उसी बारे में आपसे कहने आया हूँ इसलिए आज रात मैं कुछ अलग करने का साहस कर रहा हूँ बस आपकी रजा मंदी चाहिए |”

“मैं कुछ समझी नही |” संशय से पलक पूछती है|

“ये किताब है ड्रीम योगा – इस किताब में तिबतियन ने बहुत सारे तरीके बताए है जिससे सपनो को नब्बे फीसदी तक जान सकते है – मैं इसे आपके लिए कोशिश करना चाहता हूँ |”

“ये किताब आपने कब पढ़ी ?” झलक अवाक् उस किताब को देखती हुई पूछती है|

“जब से पलक जी ने लुसिड ड्रीमिंग की तभी से मैंने इसे पढ़ना शुरू किया और मुझे इसे पढ़ते हुए अहसास हुआ कि वाकई इससे हम मन की अचेतन दीवार के पार झांक सकते है |”

“कैसे !! और क्या करना होगा मुझे ?” अब पलक को भी जिज्ञासा हो आई|

“सबसे पहले तो ये बता दूँ कि आपको अब कहीं जाने की जरुरत नही बस आज जो भी करना है अपने घर से ही कर सकती है – पलक जी आपको बस दो काम करना है एक आपको रात में दस के आस पास सो जाना है और मन ही मन ये सोचकर तय करना है कि सपने में आपको खुद को चेतन में लाना है ताकि अपना सपना आप समझ सके दूसरा काम ये करना है कि मैं आपके सपने में दिखूंगा क्योंकि जब आप सोएंगी तब मैं भी अपने घर पर उसी समय पर सो जाऊंगा जिससे ठीक एक घंटे बाद की आपकी गहरी नींद में मैं आपके सपने में आ सकूँ बस आप मुझपर यकीन करते मुझे स्वीकार करना होगा सपने में |”

“ये कोई प्रोग्रामिंग है क्या जो पलक आपको किसी फ़ाइल् की तरह एसेप्ट करेगी !!” आश्चर्यजनक होती झलक तुरंत पूछ बैठी|

“हाँ बस आप यही समझ लीजिए – अब सब कुछ इनके सोचने पर ही निर्भर है |”

“अच्छा फिर !!”

“उसके बाद झलक जी आपका काम शुरू होता है – आपको इस बीच ये ध्यान रखना है कि इनकी नींद में कोई खलल न पहुंचे क्योंकि अगर ये आधी नींद उठ गई तो मैं कुछ नही कर सकूँगा – |”

अनिकेत ने अपनी बात इतनी गंभीरता से कही कि दोनों के हाव भाव में कोई अनजाना डर सा दिखाई देने लगा जिसे देखते अनिकेत कहता है – “आप डरिए मत बस खुद पर भरोसा रखिए – सच कितनी भी परतों के पार छुपा हो पर दफन नही हो सकता – समझिए आज की रात हम सबकी परीक्षा की घडी है जिसपर चलते हमे जीतना ही होगा |”

हमेशा की तरह अनिकेत की उत्साहिक बातें अब दोनों के चेहरों पर मुस्कान ले आई|

अनिकेत के आते अब वे रात के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करने लगी| रात नौ बजे ही माँ पापा से बात कर बता दिया कि आज रात वे जल्दी सो जाएंगी ताकि वे उन्हें फिर फोन न कर सके| अनिकेत के कहेअनुसार रात दस बजे के करीब कमरे में एकांत आती पलक सोने का उपक्रम करने लगी| उस पल फिर कोई अनजाना डर उसके चेहरे पर दिखा तो झलक उसे प्यार से गले लगाती हुई कहती है – “पगली डर तो ऐसे रही है जैसे ये लोक ही छोड़ने वाली है – अरे बस तुझे सोना ही तो है बाकी तुम मुझपर छोड़ दो और हाँ सोने के बाद अनिकेत पंडित जी नाम की फाइल को एसेप्ट जरुर कर लेना |” कहकर झलक हँस पड़ी तो पलक को भी हँसी आ गई|

अनिकेत को झलक फोन करके बता देती है कि पलक अब सोने जा रही है भलेही ये बात अलग थी कि उसे अभी भी इस तरह की चीज पर नाममात्र का भी विश्वास नही था फिर भी पलक के लिए वह ये करने को तैयार हो गई| पलक के सोने लायक कमरा बनाकर वह उसे सोने को कहती वही चेअर पर बैठ जाती है और अपनी नज़र घडी पर टिका देती है| करवटे बदलते आखिर सवा दस तक पलक बिना हिले सो जाती है| धीरे धीरे एक घंटा बीतते झलक देखती है कि पलक की बंद पलकों के पार आँखों में कुछ हलचल हो रही थी मानों वह कहीं देख रही हो| उसे ये देख आश्चर्य हो रहा था| उसे ये अजीब भी लगा पर अनोखा नही क्योंकि इससे पहले उसने आखिर किसी को भी सोने के बाद देखा ही कहाँ था !!

सपना शुरू हो चुका था…ये पलक की अचेतन की यात्रा थी…एकदम अनोखी अव्यक्त….

क्रमशः ……………………………………. 

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