
एक राज़ अनुगामी कथा – 32
रेतीला रेगिस्तान चारोंओर जहाँ नज़र जाती बस रेत ही रेत नज़र आती| आसमान जैसे जमीं को छूता हुआ सा प्रतीत हो रहा था| पीली सुनहरी रेत के ढेरों टीलों के बीच सड़क पर पैदल चलती पलक खुद को महसूस कर रही थी, उसे रेत की तपन महसूस हो रही थी पर पैरों तले अजीब ठंडक का अहसास था, वह बस चली जा रही थी…पैदल चलते अचानक उसे लगा उसके सामने किसी कार का एक्सीडेंट हुआ है और कोई सड़क पर पड़ा है, वह उसका चेहरा देखना चाहती थी लेकिन उसका चेहरा सड़क की ओर था जिससे वह उसका चेहरा नही देख पाई लेकिन उस पल उसके शरीर में दर्द उभर आया…वह बहुत कोशिश करने लगी ताकि चेहरा देख सके कि उसे लगा उसके पैर कहीं धसते जा रहे है अचानक वह रेत के टीले के बीच खुद को महसूस करती है, वह नज़रे घुमाकर अपने आस पास देखने की कोशिश करती है पर सब धुंधला दिखाई दे रहा है कि एकाएक वहां आवाजों का शोर बढ़ने लगा और बहुत सारे लोगों की मौजूदगी का उसे अहसास होने लगा..वह उन्हें पलटकर देखना चाहती थी पर कोई दिखाई नही दिया बस उसे अहसास होता रहा कि वहां बहुत सारे लोग है जिनसे उसे दूर जाना चाहिए…वह भागने लगी..तेज बहुत तेज…लेकिन उसके पैर रेत में धंसने लगे…शोर बढ़ता जा रहा था…वह डर कर कांपने लगी…वह जोर से चिल्लाना चाहती थी पर उसके गले से कोई आवाज नही फूटी…अब शोर उसे अपने बहुत पास आता हुआ महसूस होने लगा…वह ढेरों चेहरे थे पर उसमे से ऑंखें नाक मुंह सब गायब थे…वे सारे सपाट चेहरे अब उसे रौंदने ही वाले थे कि कोई मजबूत हाथ उसे एक ओर खींच लेता है…वह घबराई उसे अपने साथ महसूस करती है…अब एक सुकून सा उसके दिल में उतरने लगा था…अब उसका हाथ पकडे वह टीले पार कर रही थी…जिसके साथ वह थी उसे पलटकर देखती है जिससे उस पल वह मुस्करा उठती है….रेत पर चलते अचानक उसका एक पैर धंसने लगता है जिससे वह हाथ उसके हाथ से छूट जाता है और वह बड़ी जोर से बिलखने लगती है….हाफती दौड़ती वह अब किसी मिटटी का बड़ा सा द्वार पार करती टूटी फूटी दीवारों को पार कर रही थी….वहां असंख्य घर मौजूद थे….उसकी नज़रे कुछ चीजे वहां महसूस करती है जैसे हल, लकड़ी का खिलौना..वहां कई सारे घर थे जिनके पार निकलते वह फिर सुनहरी रेत तक आ जाती है जहाँ कोई प्रतिध्वनि उसके कानों से टकराती है वह नज़र घुमाकर देखती है वहां कोई मंदिर था..सुन्दर नक्काशी किया पर अन्दर झाँकने पर उसे कोई मूर्ति नज़र नही आती….वह उस ओर आगे बढ़ ही रही थी कि कोई कमरा उसकी नज़रों के परिदृश्य में आता है जहाँ बस किताबे ही किताबे थी…वह उस कमरे को महसूस करती किसी अलमारी के पीछे हाथ डालकर कुछ निकालने का प्रयास ही कर रही थी कि अनिकेत नजर आता है उसके पीछे बंद घड़ी उसके पीछे कोई काला साया देखती वह डरकर चिल्ला पड़ती है…
हकीकत में वह झटके से ऑंखें खोलती है, पसीने से लतफत वह गहरी गहरी साँसे लेती अपने सामने अवाक् खड़ी झलक को देखती है जो ऑंखें फाड़े पलक को देख रही थी जिससे उस पल तेजी से उसके गले लग जाती है| झलक कुछ नही समझ पा रही थी बस उसकी पीठ पर हाथ फेरती उसे गले से लगाए रही|
फिर अगले पल की पलक उससे अलग होकर अपने आस पास देखने लगती है, इससे पहले कि झलक कुछ समझती पलक कोई डायरी उठाकर उसपर कुछ लिखने लगी थी| झलक काफी देर तक पलक को तल्लीनता से लिखती हुई देखती रही जब पलक ने खुद डायरी रख दी तब वह अनबुझी सी उसके पास आकर बैठती है, वह पलक का क्लांत चेहरा देखती रही, पलक भी खुद को धीरे धीरे सामान्य करती अब उसकी ओर देखती हुई कह रही थी –
“बहुत डर लगा पर झल्लो आज मैंने बहुत आगे तक देखा |”
“क्या देखा ?” हैरान नज़रों से झलक पूछती है|
“समझा नही पाऊँगी इसीलिए जो देखा सब लिख दिया शायद अनिकेत जी या जॉन ही ये सपना समझा पाए |” कहती हुई पलक उस पल अपनी वक्र दृष्टि से कमरे को देखती हुई घडी की ओर देखती है रात के ढाई बज रहे थे, ये देख पलक चौंक जाती है – “ढाई बज रहे है – पता नही क्यों इसी समय मेरी आंख खुलती है |”
“पलक ये बता तूने अनिकेत जी को देखा सपने में !”
झलक की बात सुन पलक का ध्यान फिर एक बार अपने सपने की ओर जाता है जिसे याद करते एकदम से वह चौंक जाती है|
“हाँ देखा था पर कोई और भी था – कोई बहुत जाना पहचाना – जिसे देखते मैं पहचान लूंगी |”
“कौन !!”
“पता नही पर देखते पहचान लूंगी |”
दोनों बात कर ही रही थी कि मोबाईल घनघना कर बज उठा, अचानक नीरव कमरे में उस आहट से दोनों एक साथ चौंक जाती है, फिर मोबाईल उठाकर स्क्रीन में अनिकेत का नंबर देखकर झलक पलक की ओर फोन बढ़ा देती है|
उधर से अनिकेत जो कहता है उसपर पलक बस उसे कल मिलने का तय करके फोन रख देती है|
सुबह माँ के फोन से दोनों की नींद टूटती है वे बताती है कि वे सब उदयपुर पहुँच चुकी है अब आदर्श के पते पर पहुँचने वाली है..और वे सब ठीक है बस वे दोनों अपना ख्याल रखे| माँ से बात कर दोनों अनिकेत के मिलने निकल पड़ी थी|
वे सब उदयपुर की सीमा में प्रवेश कर आदर्श के बताए पते की ओर चल दिए थे, जहाँ आदर्श की माँ और परेशान दिखाई दे रही थी वही बाकि के चेहरों पर भी बारह बजे हुए थे…आने वाला वक़्त सबके सामने कौन सी चुनौती लेकर आया था ये सोच सभी हतप्रभ थे| वे सब जहाँ रुकते है वे सामने की ओर बड़ा सा प्रांगण था जिसे कुछ लोग फूलों से सजा रहे थे, अन्दर आते वे चारोंओर तैयारीयों को होता हुआ देखते धडकते दिल के साथ एक एक कदम अन्दर की ओर बढ़ाते है| आदर्श की माँ की ऑंखें तो बस यूँ हो उठी मानों अभी झरने सी बह निकलेंगी तो पिता के चेहरे के भाव और सख्त हो उठे थे| वे सब अन्दर आते सामने एकाएक आते आदर्श को देख वही थमे रह गए, आदर्श भी चौंक गया वह उनका वहां होना शायद उम्मीद ही नही कर पाया पर अगले ही पल उनकी ओर मुस्कराते हुए बढ़ता है|
झलक के सर के ऊपर से गुजरने वाली चीजे थी फिर भी वह पलक के साथ जॉन से मिलने पहुंची| अनिकेत वहां पहले से ही मौजूद था| वे सब एक साथ मौजूद यूँ एकदूसरे के सामने थे मानों सबके चेहरों पर सवालों के असंख्य ज्वालामुखी मौजूद थे जो छूते बस फट ही पड़ते| पलक जॉन की नज़रों के सामने वो डायरी कर देती है जिसे पढ़ने के बाद जॉन के चेहरे पर कुछ बदल जाता है| वह दुबारा उस पन्ने को देखता हुआ कहता है –
“आपका सपना पूरी तरह से कुछ संकेत कर रहा है पर मैं इसे तभी समझा पाउँगा जब कुछ सवालों के जवाब मिल जाएँगे |”
“कैसे सवाल ?” हैरान पलक उनकी आँखों में देखती पूछ उठी|
“आपके परिवार में किसी की आकस्मिक मृत्यु हुई ?”
कुछ पल सोचते पलक झलक के चेहरे की ओर देखती कहती है – “ठीक से नही पता शायद नही |”
“क्या आप या आपके परिवार से कोई जैसलमेर गया है ?”
“जैसलमेर – नही !!” चौंकती हुई पलक फिर न में सर हिला देती है|
इस न से जैसे जॉन उलझ सा गया था कि तभी झलक बीच में बोल उठी – “एक मिनट – जैसलमेर राजस्थान है न – और कुछ वहां फेमस है |” सोचती हुई झलक बोलती है – “ऐसा कुछ जो डरावना हो |”
“कुलधरा का श्रापित गाँव !!” जॉन तुरंत बोल उठा जिससे बाकि के चेहरों पर अजीब भाव समा गए|
“हाँ यही कुछ – पलक भूल गई पापा की डायरी में इसी का जिक्र था !”
“हाँ – सही कहा |”
“क्या आपके परिवार से वहां कोई गया तो उसका वहां से कोई तो सम्बन्ध है – वो जगह बुला रही है |”
जॉन ने आखिरी शब्द यूँ कहा कि सबके चेहरों की एकसाथ हवाइयां उड़ गई|
एक बड़े सजावटी कमरे में मौजूद सभी उस कमरे में हवन की तैयारी होते देख रहे थे| आदर्श उन सबके सामने बैठा उन्हें पानी पीता देख रहा था, वे सब हैरान थे पर अब नाराज़ बिलकुल नही दिख रहे थे|
“तुमने ऐसा क्यों किया – पता है हम सब कितना परेशान होते यहाँ आए और पलक झलक को अकेला भी छोड़कर आए है – ये सोचा तुमने |”
“मुझे लगा आप उन्हें भी साथ लाएँगे |”
आदर्श की बात सुन वैभव अजीब निगाह से उसे देखते कहते है – “तुम्हारी वजह से हम यहाँ आए नही तो पता है…|” कहते कहते रुकते वे उसे घूरने लगते है|
“मुझे माफ़ कीजिए पर क्या करता पापा कुछ सुनने को तैयार नही थे लेकिन अच्छा लगा आप सबको मेरी फ़िक्र है इसके लिए सच में मैं आपसे माफ़ी मांगता हूँ |” कहता हुआ आदर्श हाथ जोड़ लेता है| तभी उस हॉल में एक लड़की आती उन सबको हाथ जोड़कर नमस्ते करती है|
“असल में गलती मेरी है – मैं ही चाहती थी कि आप सबके आशीर्वाद के बिना ये न हो – आदर्श ने बताया था कि आप सभी कितना प्यार करते है उसे और आज देख भी लिया तो फिर आप सबके प्यार और आशीर्वाद के बिना कोई शुभ काम कैसे हो सकता है – |”
वे सभी उस लड़की को गौर से देख रहे थे जो आकर आदर्श के बगल में खड़ी थी|
“मेरा सपना कब आदर्श का सपना बन गया ये हम खुद नही समझ पाए – असल में ये रेस्टोरेंट कम लॉज खोलना मेरे लिए आदर्श के बिना संभव ही नहीं था पर जब आदर्श ने बताया कि आप सभी उसका शेफ बनना महज दो पल का खुमार मान रहे है जबकि वो उसका सपना है तब आप सबका यहाँ आना असंभव था इसीलिए ये सब नाटक रचाना पड़ा और आज आप सबके शुभ हाथों से इसका उद्घाटन होना है |” कहती हुई वह आदर्श की ओर देखती मुस्करा उठी|
क्रमशः………..
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