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एक राज़  अनुगामी कथा  – 34

जाने की तैयारीयों के साथ वे अगले ही पल उदयपुर भी पहुँच गई जहाँ आदर्श उनका इंतजार कर रहा था, ये सब पलक झलक के लिए किसी सपने जैसा था आखिर ये बिन मांगी आज़ादी थी|

“आ गई फिर तुम दोनों मेरी जान खाने |”

“और क्या अबकी अच्छे से प्लेट में रखकर खाएँगे |” जीभ दिखाती हुई झलक बोली|

“आखिर हमारे भईया शेफ जो है |” कहती हुई पलक झलक आपस में ताली मारती हुई खिलखिला उठी|

“हाँ मेरे रिसोर्ट में इस पर स्पर्शल ऑफर भी है |” कहकर आदर्श भी कसकर हँस पड़ा|

“हाँ बताओ कहाँ जाना क्योंकि मुझे भी जैसलमेर जाना है |”

“क्यों !!”

“अरे कैटरिंग का एक बड़ा ऑर्डर मिला है – उसी के हिसाब से तुम लोगों को छोडूंगा |”

“कोई सोनार हवेली है वही जाना है |” झलक जल्दी से बोली|

“यहाँ तो ढेरों हवेली है नाम पता सब ठीक से बताओ|”

आदर्श की बात सुन दोनों एकदूसरे का मुंह देखती कार्ड मांगने लगी, पलक बैग खंगालने लगी तो झलक उस पर बरस पड़ी कि उसी को दिया था रखने को| दोनों को उलझता देख आदर्श उनपर झुंझला उठा|

“अब बस ये मत कहना कि कार्ड भूल गई |” इस पर दोनों को हाँ में सर हिलाते देख आदर्श अपना सर पकड़कर बैठता बोल उठा – “अब पूरे राजस्थान में अनामिका अनामिका करती फिरना |”

“वो फोन भी नहीं उठा रही पर मैंने मेसेज कर दिया है वो एड्रेस भेज देगी |” मुंह लटकाती हुई झलक बोली|

“कोई बात नहीं तब तक आज रिसोर्ट का ख़ास लंच तुमलोगों का इंतजार कर रहा है |” अचानक आई आवाज से वे साथ में उस दिशा की ओर देखते है जहाँ से शर्लिन आती हुई दिख रही थी – “आफ्टर आल हमारी चीफ गेस्ट जो हो |”

दोनों दांत दिखाती हँस रही थी जबकि आदर्श की नज़रे उन्हें घूर रही थी| शाम होते होते अनामिका का मेसेज भी आगया जिसे लिए भागती हुई वे आदर्श के पास पहुंची|

“सोमेश्वर प्रताप सिंह चौहान की सोनार हवेली जाना है तुम्हे !!”

“हाँ – यही तो लिखा है|”

जो बात आदर्श आश्चर्यचकित होकर पूछ रहा था उसे हलके से झलक कह रही थी|

“पता है ये वहां का कितना बड़ा राजवंश है !!”

इसपर दोनों मुंह खोले उसकी ओर देख रही थी|

“पता है मुझे भी यही जाना है बाराती के लिए मिष्ठान पैक कराने का ऑर्डर मिला है मुझे और मेरे जैसे जाने कितने कैटर्स को उनके यहाँ का ऑर्डर मिला होगा और तुम वहां की मेहमान हो – वाह |”

ये सुन झलक भौंह उचकाकर गर्दन हिलाती है, इसपर आदर्श को हँसी आ जाती है|

“हाँ हाँ मैडम साहिबा – अब ऐसा करो मेरा काम दो दिन बाद शादी वाले दिन है तो ऐसा करो आज रात ही तुम्हें जैसलमेर पहुंचा देता हूँ – मुझे कुछ काम भी है तो जाओ तैयारी करो |”

ये सुन दोनों झटपट भागती हुई चली गई|

पलक को तो बस जैसलमेर पहुँचने की ललक थी जिससे उसकी आँखों से नींद ही उड़ गई थी| सारी रात उन्हें कार में बितानी थी, आदर्श ने लम्बा रास्ता होने से ड्राईवर हायर कर लिया था ताकि रास्ते का कोई तनाव न रहे| आधी रात होते वे मौसम में कुछ ठंडक बढ़ गई जिससे दोनों को नींद आ गई, आदर्श भी कुछ ऊँघने लगा था लेकिन ड्राईवर अकेला बोर न हो जिससे आदर्श धीरे से रेडिओ लगाकर उससे बातें करने लगता है| आंख खुलते पलक खुद को रेतीले रेगिस्तान में अकेला पाती है, वह डरी सहमी अपने चारोंओर देखती बुरी तरह घबरा जाती है, जहाँ उसकी नजर जाती बस रेत ही रेत नजर आती तभी वीरान टीलों के बीच किसी को जाता देख वह उसकी ओर तेजी से आवाज देती हुई भागती है, वह जितनी तेज उस ओर बढ़ रही थी वह साया उससे और दूर होता जा रहा था पर पलक भागती रही कि तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया, वह पलटकर अपने पीछे जिसे देखती है तो पापा कर चिल्ला पड़ी…अचानक धक्के से वह तेजी से आगे की ओर झुक गई|

“पलक…|” आदर्श तुरंत पलक की ओर देखता उसे संभालता है जो कार के अचानक ब्रेक लगने से आगे की ओर झुक गई थी, कार बीच रास्ते पर खड़ी कर सब पलक की त्रस्त हालत देख रहे थे| वह घबराई सी आंख खोले सबको देखती समझ गई कि उसने ये सब सपना देखा था|

“क्या हुआ पलक !!” अबकी झलक उसका हाथ थामे उसका चेहरा ताक रही थी|

पलक समझ चुकी थी कि उसने ये सपना देखा है पर इस वक़्त वह अपना सपना बताने की हालत में नहीं थी तो सबको टालती हुई जबरन मुस्करा दी|

“ओह पापा की ज्यादा ही याद आ रही है – हाँ भई पापा की ओर से इतना बड़ा गिफ्ट जो मिला |”

सब आदर्श की बात पर मुस्करा दिए, अब फिर उनकी यात्रा शुरू हो गई| सुबह के सात बजे ही आदर्श ने उन्हें सोनार हवेली तक पहुंचा दिया| वे सभी दूर से ही उस सोने सी दमकती सोनार हवेली को देखते आ रहे थे जिसकी भव्यता उस थार मरुस्थल में बेहद सुन्दर जान पड़ रही थी| चारोंओर शादी के इंतजाम देखते ही बन रहे थे| पर दोनों की निगाह को तो बस अनु का इंतज़ार था| अनामिका भी जैसे उन्ही का इंतजार कर रही थी, उनके आते अर्दली तुरंत ही उसके पास ले गया जिससे आदर्श उन दोनों को वही छोड़कर वापस चला गया| मिलते ही तीनों सखियाँ कितनी देर गले मिलती खिलखिलाई ये वहां खड़ी और भी मेहमान महिलाऐं आंचल के पीछे से देखती मुस्करा पड़ी|

“आ गई न हम – देख लो |”

“हाँ हाँ बाबा देख लिया – अब हमारी मेहमाननवाजी का मजा लो समझी|” सखिया एकदूसरे के साथ से भरपूर मुस्कान से मुस्करा उठी|

फिर मेहमान कमरे में आते दोनों बेदम होती आलिशान बिस्तर पर गिर सी पड़ी| इतना भव्य आलीशान माहौल उन्होंने पहले कभी नही देखा था और ऐसा नज़ारा देख उनका चेहरा खिल उठा था| फ्रेश होकर दुबारा अनामिका के पास जाने के लिए पलक तैयार होती होती झलक से कह रही थी – “झल्लो एक बात बताऊँ |”

हांमी भरती झलक भी तैयार होती रही|

“मुझे यहाँ आकर बड़ा अजीब फील हो रहा है पता नही कैसा पर अजीब सा लग रहा है..|”

“अरे लगेगा न इतनी बड़ी हवेली है एकदम राजसी टाइप |”

“और पता है कल रात मैंने जो सपना देखा था और जिसे मैंने पापा बोला वो हमारे पापा नही थे |”

“तो !!” झलक चौंककर उसकी ओर देखती है|

“वो वही है जिन्होंने पिछले सपने में मुझे बचाया था पर झल्लो वो कौन है और कहाँ देखा है मैंने उन्हें !!”

दोनों औचक एकदूसरे की निगाह में देखती रही|

क्रमशः……………….

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