
एक राज़ अनुगामी कथा. – 36
अधीर मन बस मन की करना चाहता था और ये हाल पलक का था, वह इस वक़्त बस कुलधरा जाने को बेचैन थी पर नवल ने सबसे पहले गडिसर लेक में बोटिंग का प्रोग्राम बना लिया| गाड़ियाँ मंगवाई गई और अगले कुछ ही पल दो लक्जरी चमकती कार लिए ड्राईवर उनके सामने हाथ जोड़े खड़े थे| नवल बाहर जाने के लिए जब तक अर्दली से अपने सन ग्लासेस मंगवाते है तब तक एक कार में पलक और झलक और आगे की सीट में ड्राईवर के साथ अनिकेत बैठ जाता है| ये देख नवल कुछ तीखी नजर से उसे देखता हुआ दूसरी कार की ओर बढ़ जाता है तो अनामिका का कजिन सोम घूमने का सुनकर नवल और शौर्य के साथ हो लेता है| झलक घूमने को लेकर इतनी व्यग्र थी कि कार में आगे की सीट में बैठने की पलक से रिक्वेस्ट करती हुई अनिकेत से पीछे आने की गुजारिश करती है| इससे पलक जहाँ सकपका गई अनिकेत मनमुताबिक जगह पाकर अंतरस खुश हो बैठा, पलक को झलक की नादानी पर गुस्सा आ रहा था, कभी कभी वह कुछ ज्यादा ही बचपना कर बैठती थी पर हमेशा की तरह उसका कोई बस न चला और झलक आगे जाकर बैठ गई और अनिकेत को उसके बगल में बैठना पड़ा| रास्ते भर झलक शीशे के पार से राजस्थान के नजारे देख देखकर खुश होती रही, असल में पहली बार वे अपने शहर से बाहर निकली थी क्योंकि पिछली बार वे एक दिन में राजस्थान देख भी नही पाई थी पर इस बार का राजस्थान बाहें खोलकर उनका स्वागत कर रहा था| दोपहर का वक़्त था और गाड़ियाँ तेजी से गडिसर लेक की ओर निकल चली थी|
नायाब खूबसूरत गडिसर लेक के विस्तार को देख एकपल को पलक उसी में खो सी गई| वे पहल पहुंचकर नवल का इंतज़ार कर रहे थे| तब तक झलक मोबाईल से तस्वीर उतारने में व्यस्त हो गई, तो साथ साथ चलते अनिकेत और पलक आगे की ओर बढ़ रहे थे, उस पल की खूबसूरती मन में हिलोरे उठाने लगी जिससे अनिकेत का मन हो आया कि आ मौका भी है दस्तूर भी तो क्यों न दिल की बात ही कह दी जाए, ये सोच वह पलक की ओर देखता हुआ कहता है –
“पलक – ये बहुत खूबसूरत जगह है न !”
पलक कुछ न कहती बस मुस्कराते हुए हाँ में सर हिला देती है|
“मैं कुछ कहना चाहता हूँ आपसे |”
वह अनभिग्य सी उसकी ओर देखती है कि किसी आवाज पर उनका एकसाथ ध्यान जाता है| ये नवल था जो तेजी से उनकी ओर आता उन्हें ही पुकार रहा था| उसके पीछे चलता एक अर्दली उन दोनों को दूसरी ओर आने का रास्ता दिखाता है| वे उसके बताए रास्ते पर चलते देखते है कि लेक के कुछ अलग की हिस्से पर आ पहुंचे थे| जहाँ का नज़ारा ही राजसी था, टेबल पर टिके राजसी छाते और करीने से लगी कुर्सियों पर वे साथ में बैठते है| अनिकेत भी पलक के साथ आ बैठा था| उनके बैठते ही अर्दली मेज पर बड़े करीने से कुछ पेय के साथ नास्ता सजा देते है| नवल का ध्यान बस पलक पर था वह चाहता था कि अनिकेत उसे पलक के साथ अकेला छोड़ दे ये साथ बैठा शौर्य समझ रहा था जिससे एक अर्दली को अपने पास बुलाकर कुछ इशारा करता है जिसके अगले ही पल एक अर्दली उनकी ओर सर झुकाए बोटिंग का आग्रह करता है| तो दूसरा अर्दली पलक को आग्रह करता एक पेय पकड़ा देता है|
“चलिए अनिकेत जी आपको आज इस बेहतरीन लेक की अद्भुत सैर कराते है|”
अनिकेत मुस्करा कर उठते हुए पलक की ओर देखता है वह भी उठना चाहती थी पर शौर्य जल्दी से बोल उठा – “अरे आप इसका आराम से जायका लीजिए हम आगे चलकर आपका इंतज़ार करते है – नवल भाई आप ले आइएगा पलक जी को|”
अनिकेत के लिए अब जाना मुश्किल हो रहा था पर क्या करता कुछ कह न सका और पलक और नवल को छोड़कर सभी आगे बढ़ गए| पलक तब से जान रही थी कि नवल उसी की ओर देख रहा था और अब उसके साथ अकेले रुकने से वह असहज भी हो रही थी पर करती क्या उसे रुकना पड़ा, वह जानकर उसकी ओर नही देखती लेकिन नवल के चेहरे पर गहरी मुस्कान समा गई थी| लड़कियों की सहज प्रकृति होती है कि वे जिन आँखों की ओर नही भी देखती उन आँखों के भीतर का भी जान लेती है| नवल की ऑंखें उसे लगातार असहज कर रही थी जिससे वह अपना ड्रिंक जल्दी खत्म करती उठकर खड़ी होती हुई कहती है – “चलिए – अब हम भी चले !”
“जैसा आप का हुक्म |” अपने अंदाज में कहता वह धीरे से मुस्कराया|
पलक उनके जाने वाले रास्ते की ओर बढ़ गई, थोडा आगे बढ़ी ही थी कि वह देखती है कि किनारों पर बड़ी सुन्दर राजसी तरीके से सजी कई बोट लगी थी, जिसमे से एक में अनिकेत के साथ सोम को बैठाकर शौर्य दूसरी बोट की ओर बढ़ता है| अब तक पलक भी वहां आ गई थी, वह देखती है दूसरी बोट ज्यादा ही अलग और सजीली थी जिसे देख झलक उछल ही पड़ी तो शौर्य उसे देखता हुआ कहता है – “ये लेक का हमारा अपना हिस्सा है – मतलब कि राजपरिवार का और यहाँ से हमारी अपनी राजसी बोट चलती है -|” वह बताता रहता है – “लेक इतनी बड़ी है कि इसका एक हिस्सा सामान्य जनता के लिए भी है जहाँ कोई भी टिकट लेकर सवारी कर सकता है लेकिन जो हमारी ओर का हिस्से से जो नज़ारा दिखता है हम शपथ खाते है कि वो नज़ारा किसी सामान्य के नसीब में नही |” एक गर्वीली मुस्कान से शौर्य कहता झलक की ओर देखता हुआ पूछता है – “आप चाहे तो हमारे साथ उस नज़ारे का लुफ्त उठा सकती है|”
झलक भी ख़ुशी से हाँ कहती उसकी ओर बढ़ जाती है पलक उसे रोककर उसके साथ जाना चाहती थी लेकिन झलक ने कब किसी की सुनी थी जो अब सुनती|
अब नवल और पलक ही रह गए तो कोई चारा ही नही बचा और उन्हें साथ में बोटिंग में जाना पड़ा| जिस बोट में पलक बैठी थी वह भी कम राजसी ठाठ बाँट वाली नही थी, उसमे दो सुन्दर की बैठक के बीच गोल बॉक्स नुमा मेज पर कुछ खाने पीने के आइटम रखे थे| अब वे साथ में बोटिंग करते लेक में उतर आए थे| पलक अपने चारोंओर देखती है पर उसे न शौर्य की बोट ही नजर आ रही थी और न अनिकेत की और परेशान होती वह नवल की ओर देखती हुई पूछती है – “वे सब कहाँ गए ?”
“आप परेशान न होए – हमारे हिस्से की लेक इतनी बड़ी है कि सभी को अपना एकांत मिलता है |” ये कहते हुए कुछ गहरा सा समंदर नवल की आँखों में उतर आया था जिसे हैरान पलक देखती रही| तभी कोई अदृश्य झोंका पलक के तन बदन में सिरहन सा दौड़ गया|
क्रमशः……………
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