Kahanikacarvan

एक राज़  अनुगामी कथा  – 38

शौर्य का कुलधरा जाने का बिलकुल मन नही था उधर नवल उसकी बात से थोडा उदास हो चला था लेकिन किसी तरह से अपनी उदासीनता को अपनी मुस्कान के भीतर छुपाए रहा|

“हमे अनिकेत जी का थोड़ा इंतजार कर लेना चाहिए |” पलक ने नवल की ओर देखते इल्तिजा के स्वर में बोला|

“देखिए दोपहर ढल रही है और आपको कुलधरा जाना है तो हम निकलते है पीछे से वे भी आ जाएँगे |” नवल शायद अनिकेत के साथ जाना भी नही चाहता था|

“हाँ सही है न – हम चलते है – वे पीछे से आते रहेंगे और फिर तुझे ही तो जाना है उस सो कॉल कुलधरा जैसे गाँव में |” झलक की बात सुन पलक के हाव भाव में चिढन सी आ गई बल्कि बाकी सभी ने हामी भरी और साथ में कुलधरा की ओर निकल चले|

अबकी कार नवल चला रहा था और साथ में शौर्य बैठा था तो पीछे पलक और झलक बैठी थी| वे रास्ता भर देखती रही कि कुलधरा जाने वाला रास्ता भी कितना सुनसान सा था मानों किसी को वहां जाना ही न हो पर ज्यो ज्यो वे कुलधरा गाँव की ओर जाते जा रहे थे उनके बगल से विपरीत दिशा से कोई टूरिस्ट गाडी निकल जाती, इसका मतलब था कि वे सब वहां से वापिस लौट रहे थे| जहाँ वहां पहुँचने की अजब बेचैनी थी पलक के चेहरे पर वही झलक रास्ता देखती उब रही थी, चारोंओर बस रेत ही रेत थी| खेर, करील, खेजड़ी के पेड़ देख उसे कोई उत्सुकता नही थी कि आगे क्या हो सकता है| उन सबके बीच ख़ामोशी बनी हुई थी पर अन्दर चल रहे एसी में हल्का हल्का संगीत चल रहा था जिससे उनपर बाहर की गर्म माहौल का लेशमात्र असर नही था|

दूर से ही कुलधरा लिखा गेट नज़र आया और गाड़ी उसके अन्दर चल दी| गाड़ी रोक कर नवल पलक की ओर गर्दन घुमाता हुआ कहता है – “यही है कुलधरा गाँव और यही से खंडर के सिवा कुछ नही दिख रहा – क्या अब भी आपको अन्दर जाना है ?”

नवल को लगा शायद उन भग्नावशेष को देख पलक का अन्दर जाने का मन नही करेगा पर वह तुरंत ही कार से उतर कर आगे खड़ी होकर उसे गौर से देखने लगी, ये देख झलक अपने सर पर हाथ मारती बोल उठी – “अब ये बिना देखे तो यहाँ से नही जाने वाली |”

“हमे भी यही लगता है |” झलक के स्वर में स्वर मिलाता शौर्य बोलकर मुस्करा दिया|

पलक उन सबको अनसुना करती अभी भी उनके विपरीत देख रही थी| शाम होने जा रही थी और धीरे धीरे सभी वहां से जाते हुए दिख रहे थे ये देख झलक शरारत से मुस्कराती हुई बोल उठी –

“ऐसा करते है इसे भूतों के पास छोड़कर हम सब चलते है |”

उसकी बात पर सबके होंठों पर हँसी थिरक आती है|

“वैसे अगर रेत में ही समय बिताना है तो यहाँ से बेहतर आपको हम अपने सैंड डीयून्स के कैम्प ले चलते और कसम से वहां का माहौल और कलबेरियन डांस देख आपका मन झूम उठता |”

“क्या सच में !!” झलक बच्चों सी खुश होती चहक उठी|

“हाँ वाकई – आपको पता नही म्हारे जैसल विशेषकर सैंड डीयून्स के कैम्प के लिए देश विदेश से लोग आते है जहाँ शाम से जो महफ़िल सजती है तो सारी रात शामियाने में जश्न ही मनाते रहते है सब फिर सुबह का रेत के दरिया में उगता सूरज देखकर ही विदा लेते है – क्यों नवल भाई !” शौर्य अपनी बात के अनुमोदन के लिए नवल की ओर देखता हुआ कहता है तो नवल मुस्करा कर हाँ में सर हिलाता नज़र उठाकर पलक की ओर देखता है जो किसी बुत की तरह खड़ी अभी भी उनके विपरीत देख रही थी|

“वाह तो मुझे तो देखना है वो डांस – अभी इसे पकड़ कर लाती हूँ मैं |”

झलक की बात सुन हँसते हँसते गाड़ी के अन्दर से वे सब पलक को अब आगे बढ़ता देखते है तो नवल अपनी ओर से कार से उतरने लगते है| ये  देख शौर्य नवल की ओर देखता हूँ कहता है – “नवल भाई आप इन्हें जल्दी से ये दिखा दीजिए हम बाहर आपका इंतजार करते है| ये सुन नवल और झलक कार से उतरकर पलक की ओर बढ़ने लगते है तो शौर्य कार पीछे करने लगता है  कि अचानक रेतीला तूफ़ान आ जाता है, वे कुछ समझ ही नहीं पाए और रेतीले तूफान की जद में वे तीनों बुरी तरह से ऐसे घिर गए कि शौर्य अपनी कार में बंद जस का तस बना रह गया| एक ही पल में तेज हवाओ का ऐसा आकस्मिक बवंडर उठा कि शौर्य न अपनी कार को कही हिला पाया न खुद ही कार से उतर पाया| कार के शीशे के पार उसे सिर्फ रेतीला बवंडर नज़र आ रहा था, वह ऑंखें फाड़े उस बवंडर को बस देखता रह गया| चारोंओर लाल रेतीला बालू जैसे ढेरों बादलों में तब्दील हो गया था और वे बादल जैसे हर ओर फ़ैल से गए कि आस पास क्या है कुछ पता नही चल रहा था| शौर्य को कुछ समझ नही आ रहा था कि अचानक ऐसा रेतीला तूफान कैसे आ गया और अगर वह उसे देखकर ही उसकी भयावहता को महसूस कर पा रहा है तो पलक झलक और नवल का क्या हुआ होगा !! कैसे  होंगे वे !! ये सोच सोच कर उसकी रूह कांप गई| वह किसी बुत की तरह उस बवंडर को देखता रहा| लगभग पंद्रह मिनट के बवंडर ने शौर्य को कुछ सोचने समझने और करने का मौका ही नहीं दिया, और ज्योंही बवंडर कुछ शांत होता दिखा शौर्य तुरंत कार से उतरकर बाहर आकर उन्हें आवाज लगाता अपने चारों ओर देखने लगा| अभी भी उस तूफान का आसार साफ़ दिख रहा था लगभग बचे हुए सभी लोग बाहर की ओर भाग जैसे रहे थे, शौर्य उन सबमे बेचैन होकर उन्हें ढूंढने लगा पर उन तीनों का कहीं अता पता नहीं था| वह देख रहा था कि जाने कितने लोग अपने शरीर से रेत झांड़ते हुए तितर बितर नज़र आ रहे थे पर उनमे वे नहीं तो आखिर है कहाँ !! वह परेशान अन्दर की ओर जाने लगा तो किसी ने उसे टोकते हुए बोला – “भाईलो आज मौसम ठीक न लागे तो अपना घर जाओ |”

शौर्य उलझी नज़र से उसकी ओर देखता है वह कोई पर्यटक जैसा लग रहा था पर राजस्थानी साफा पहने था|

“हमारे अपने खो गए है इस तूफान में उन्हें ढूंढे बिना न जा सकेंगे हम |” कहकर शौर्य अपने कदम तेज कर देता है तो पीछे से उसे उसी की आवाज पीछा करती सुनाई देती है –

“आपणी जान की पहले खैर मनाओ |” कहकर वह बाहर की ओर निकल गया|

रेतीले तूफान की वजह से जगह जगह रेत के ढेर से बन गए थे उन्हें किसी तरह पार करता शौर्य आगे बढ़ ही रहा था कि उसकी नजर रेत के ढेर पर जाती है, वह किसी का हाथ था| वह दौड़कर उस रेत को हटाता है तो नवल और वही बगल के रेत के नीचे झलक मिल जाती है| शौर्य जल्दी से नवल को अपना सहारा देकर कार की ओर बढ़ता है फिर झलक को तो वह अपनी गोद में उठाकर कार में लेटा देता है वे दोनों बेहोश थे जिससे कुछ भी बता पाने की स्थिति में नही थे| शौर्य दुबारा उस स्थान पर गया और आस पास की और रेत को खंगाला पर पलक का कुछ पता न चला| शौर्य को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे एक तरफ वे दोनों मिल गए तो पलक लापता थी, उसे छोड़ कर कैसे जाए पर इस वक़्त नवल और झलक को देखना भी जरुरी है| आखिर शौर्य ने तय किया कि वह पहले कैम्प तक उन दोनों को छोड़ आएगा फिर पलक की खोज के लिए अपने लोगों को भेजेगा|

ये सोच शौर्य कार स्टार्ट कर तुरंत उस कुलधरा से दूर सैंड ड्युन्स के कैम्प की ओर निकल लिया|

शौर्य अभी वापस लौट ही रहा था कि अनिकेत को लाती हुई कार उसे दिखी जिसे पहचानकर वह हाथ से इशारा कर उन्हें भी अपने पीछे चलने ला इशारा करता है| अगले ही कुछ पल में वे सभी सैंड डीयून्स के कैम्प में पहुँच चुके थे| ये उनका अपना कैंप था जिससे उसकी कार को आता देख कारिंदे उसकी ओर दौड़े आते है| अब दोनों कार के रुकते शौर्य तेजी से कार से उतरता है और कारिंदों को झलक और नवल को सँभालने का आदेश देता है, तब तक उसके पीछे ही रुकी कार से अनिकेत भी उतरकर उसकी ओर आता हुआ देखता है| जल्द ही उसे पता चलता है कि पलक तो वहां है ही नहीं तो वह सकपकाया हुआ सा शौर्य से पूछता है –

“पलक कहाँ है और इन्हें क्या हुआ ?”

“कुछ नही बस रेतीले तूफान में फंसने से ये बेहोश हो गए है – आप फ़िक्र का करे हम अभी उन्हें खोजने के लिए अपने करिदों को भेजते है |”

“मतलब – कहाँ भेजते है – किसे खोजने – क्या पलक को – आखिर हुआ क्या है आप बताए तो|”

अनिकेत के बेचैनी देख शौर्य उसे शांत करने उसके कंधे  पर हाथ रखते उसे सिलसिलेवार सब कह सुनाता है जिसे सुनते अनिकेत बेकल होता बिफर ही पड़ा – “ओह ये क्या हो गया – पलक को अकेला कैसे छोड़ दिया आपने – आपको भी पता है शाम के बाद वहां कोई नही रुकता फिर !!”

“देखिए उस वक़्त हमे पहले इन्हें सुरक्षित पहुँचाना था !”

“मैं इसी वक़्त जा रहा हूँ पलक को ढूंढने |” सख्त स्वर में कहता अनिकेत अपने कंधे तक झूल आए बालों को झटके से पीछे झटकता छोटी बनाता हुआ बोला तो शौर्य से अब कुछ कहते न बना|

क्रमशः………..

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