Kahanikacarvan

एक राज़  अनुगामी कथा  – 4

“खम्मा घणी बाई सा |”

एक दम से दोनों की साथ में नज़रे आवाज़ की ओर मुड़ी तो देखती है एक राजस्थानी साफा बांधें घनी मुछों से आधा चेहरा ढंके कोई प्रौढ़ उनकी ओर अदब से झुकता हुआ पूछ रहा था – “आप ही पलक जी और झलक जी है !!”

दोनों मौन ही स्वीकृति में हाँ में सर हिलाती है तो वह मुस्कराता हुआ कहता है – “अनामिका जी ने ही आपको लिवाने हमे भेजा है – आप आईए म्हारे संग |” कहता हुआ उनका बैग लेने अपने पीछे खड़े अन्य व्यक्ति को इशारे से हुक्म देता है जिसपर वह सर झुकाते झलक के हाथ से उसका बैग ले लेता है|

अब उनके पीछे पीछे स्टेशन से निकलते उन दोनों के खिले चेहरे उस गुलाबी नगरी की ओर अपने कदम बढ़ा देती है| एक शानदार कार से वे क्षण भर में ही किसी महलनुमा चमचमाते होटल के बाहर खड़ी एक नज़र भर उसे देखती है तो देखती रह जाती है| उनकी नज़रों के सामने एक भव्य गुलाबी महल चमकती लड़ियों से सुसज्जित था, जिसपर से एक पल को भी उनकी नज़र नही हट रही थी, वे दलान पर खड़ी बरबस ही उसे निहार ही रही थी कि अपने बदन की थरथराहट से वे चौंकी अनु साथ में उन दोनों के गले लगी खड़ी जैसे झूम सी गई थी – “तुम दोनों को देखकर मैं बता नहीं सकती कि कितनी ख़ुशी हुई!”

वे दोनों भी अब उसको सामने देख उससे भरपूर ख़ुशी से गले मिली अब तीनों साथ में अन्दर की ओर प्रवेश करती है|

“तुम दोनों को लेने स्टेशन आ जाती पर क्या करती मुझे जाने से मना कर दिया गया पर तुम दोनों को कोई दिक्कत तो नहीं हुई न !!”

अनामिका साथ साथ चलती उन पर से अपनी नज़र नही हटा पा रही थी और वे दोनों उस होटल की साज सज्जा से| पूरी तरह से रजवाड़ों की शान को अपने अन्दर समेटे आधुनिकता का हल्का घूंघट खींचे वह होटल तन कर अतीत और वर्तमान साथ में संजोए शान से खड़ा था|

“अरे नही – बड़े आराम से सोती हुई आई हम |”

“अच्छा यहाँ हम इंतजार में सारी रात जागते रहे और महारानियाँ सोती हुई आई |” इस पर तीनों खिलखिलाकर हंस पड़ी|

वे तीनों रिसेप्शन से होती हुई अब लिफ्ट के सामने खड़ी थी – “पता है ये होटल पहले असली का महल था |”

“हाँ वो तो देखकर ही लग रहा है पर तुमने कभी बताया नही कि तुम्हारे पास ऐसा कोई महल भी है !!” हैरान ऑंखें चहुँओर घुमाती हुई पलक बस इतना ही कह पाई|

“अरे ये मेरा ससुराल है – असल में रूद्र जी के घर में प्रथा है कि उनके घर के शुभ काम उनके ननिहाल से शुरू होते है तो ये रूद्र जी का ननिहाल है|”

“ओहो रूद्र जी – कब मिला रही है उनसे हमे |” मुस्कराती झलक अनामिका की चिकोटी काटती है तो वह चिहुँकते हुए शरमा जाती है|

आधी रात होने से कुछ एक आध कार्मचारियों के दिखने के अलावा वहां कोई आता जाता नही दिख रहा था इसलिए आराम से बातें करती करती वे अब लिफ्ट से तीसरी मंजिल में आती अब गलियारे में चलती चलती बातें कर रही थी|

“देख तेरे लिए कितनी परेशानी उठाकर हम आई है – पूरी एक रात की नींद खराब की है याद रखना |” झलक ऐठती हुई बोली|

“हाँ हाँ याद रहेगा – हम राजपूत अनामिका आपसे वादा करती है कि एक दिन आपके लिए दो रातें जागकर इसे पूरा करेंगे |” अनामिका शपथ लेने के लहजे में बोली तो तीनों की समवेत हंसी छूट गई जिससे उस पल के सूने गलियारे नींद से जागते हवाओं की शक्ल में वहां दौड़ गए|

“ओह गॉड अचानक ये हवा कैसी !!” पलक हवा से सिहरती खुद को अपने में समेटती हुई बोली|

“लगता है हमारी हंसी से यहाँ के भूत जाग गए |” झलक हंसती हुई बोली तो पलक का चेहरा यूँ सहम गया मानों सच में कोई भूत देख लिया हो|

ये देख अनामिका हंसती हुई पलक की बांह पकड़ती हुई बोली – “डर मत – मैंने यहाँ के भूतों को छुट्टी में ये कहकर भेज दिया कि हमारी पलक भूतों के नाम से भी डरती है तो जरा बाद में आना|”

इसपर अनमिका और झलक साथ में ताली मारती फिर हंस पड़ी तो पलक मुंह बनाकर खड़ी हो गई|

“बाई सा !” एक पुकार पर वे तीनों नज़रे एक साथ आवाज की दिशा में उठती है, वे अपने सामने से किसी नौजवान को आता हुआ देख रही थी जो भरपूर नज़र उन दोनों पर रखता हुआ अनामिका को पुकारता तेजी से उनकी तरफ आ रहा था|

“सोम भाई सा – ये मेरी सहेलियां पलक और झलक है – अभी जिनके बारे में मैं बता रही थी वही |” अनामिका सहज कह गई और झलक यूँ देखती हुई अनामिका से कह उठी – “अच्छा पीठ पीछे अपने भाइयों से हमारे चर्चे भी होते है |”

“तू भी न |” कहती हुई अनामिका झलक की शैतान नज़रों को देखती चिकोटी काटती हुई धीरे से बोली|

“नमस्ते – |” वह अब झलक पर अपनी नज़रे गड़ाए था जो दिलकश अदा से उसे देखे जा रही थी|

“ये मेरे ममेरे भाई सोम है इंजिनियरिंग कर रहे है |” कहती हुई अनामिका देखती है कि सोम की नज़रे बस झलक पर टिकी थी और झलक भी मुस्कराती हुई उसे देख रही थी तो जल्दी से अपने भाई का बाजु पकड़ती हुई बोल पड़ी – “भाई सा – याद आया माँ सा आपको ढूंढ रही थी – जाइए जल्दी |’ उसे लगभग धक्का देती हुई वापस भेज देती है और वह भी अब मुंह लटकाए चला जाता है|

उसके आते झलक खिलखिला कर हंस पड़ी ये देख अनामिका बोल पड़ी – “तू भी न – देख तो ऐसे रही थी जैसे सच्चा वाला इश्क हो गया|”

“अरे मेरी जान सच्चे इश्क के इंतजार में ये सब तो रिहर्सल है |” झलक की बात सुन दोनों मुंह खोले एक साथ कहती है – “रिहर्सल !!!”

“हाँ जैसे एग्जाम से पहले हम सैम्पल पेपर सोल्व करते है बस ये भी कुछ कुछ सैम्पल पेपर जैसा ही है – इश्क की प्रैक्टिस |” कहकर हंस पड़ी तो दोनों उसको मारने हाथ उठाती हुई उसकी ओर बढ़ी – “तेरे  दिमाग में कितनी खुराफात भरी है !!”

तीनों हंस रही थी कि किसी और के आने की आहट से अब अनामिका किसी संभ्रांत महिला को आती हुई देखती जल्दी से झलक पलक के कान में ‘रूद्र की माँ सा है’ कहती उनकी तरफ बढ़ जाती है|

वे अपनी गरिमामय मुस्कान से अब झलक और पलक को देखती हुई पूछती है – “ये सुन्दर राजकुमारियां कौन है !!”

“माँ सा – ये मेरी सहेलियां पलक और ये झलक है – आज ही लखनऊ से आई है |” उनसे क्रमशः मिलाती अनामिका किनारे खड़ी हो जाती है|

दोनों मुस्कराती उनको नमस्ते करती है|

“वाह बड़ी गहरी दोस्ती लगती है आपकी – आप दोनों से मिलकर हमे बहुत ख़ुशी हुई -|”

माँ सा द्वारा उन दोनों को निहारती रहने के एकांत को तोड़ती हुई अनामिका बोली –

“माँ सा मैं इन्हें रूम तक छोड़ने जा रही थी|”

“वो सब हमपर छोड़ दीजिए – अब ये हमारी भी मेहमान है |” उसके इतना कहते वे धीरे से आवाज लगाती है और कोई झट से जाने कहाँ से प्रकट हो जाता है|

वे देखती है कि पूर्ण शिष्टाचार से हाथ बंधे उनके समक्ष कोई खड़ा था|

“आप इन दोनों राजकुमारियों के रहने का प्रबंध ख़ास मेहमानों वाले कक्ष में कर दीजिए – अनामिका आप जरा हमारे साथ चले हमे आपसे कुछ जरुरी बात करनी है |”

वे हुक्म को सर झुका कर गृहण करते दोनों का मार्ग प्रशस्त करते आगे आगे चलने लगते है तो अनामिका दोनों को आँखों से बाय करती उनके विपरीत अब माँ सा के पीछे चली गई|

दोनों को जिस कमरे में ठहराया गया उसकी सजावट देख वे दोनों अपने दांतों तले उंगली ही दबा लेती है| सच में रजवाड़ों की शान देख वे उससे प्रभावित हुए बिना न रही|

झलक तो झट से अपनी सैंडिल नचाती हुई फेकती बिस्तर पर गिर सी पड़ती है|

“ये क्या !!’ पलक एक दम से उछल पड़ी – “झलक तूने सैंडिल खिड़की से नीचे फेंक दिया|”

ये सुनते झलक बिजली की फुर्ती से उठ बैठी |

“ये क्या किया तूने – तू हमेशा न कुछ न कुछ बखेड़ा खड़ा करती है – अब मुझे पता नही – मुझे मत बोलना लेने जाने को – तू जाने तेरा काम जाने |” कहती हुई पलक बैग खोलने आराम से बैठ जाती है|

ये देख झलक दौड़ती हुई पलक से पास आती उसका हाथ पकडती हुई गिडगिडाने गई – “पलक प्लीज़ ला दे न – वही एक सैंडल तो है अभी मेरे पास – चल न साथ में -|”

“न |” पलक अपना हाथ खींचती हुई बोली|

“चल न – देख अकेली कमरे में डर जाएगी तू |” पलक की कमजोर नस पकड़ते झलक का काम हो गया और पलक आखिर मन मारे उसके साथ बाहर जाने लगी तो झलक को एक सैंडल में देख चिहुंक पड़ी – “अब एक सैंडल पहने नाचती हुई जाएगी तू !!’

“तो क्या चाहती है – हाथ में लेकर चलूँ – तू चल न बस |”

आखिर दोनों अपने आस पास देखती चुपचाप कमरे से निकलती निचली मंजिल के बरामदे की ओर बढ़ रही थी कि वहां किसी को देख पलक एकदम से झलक को अपनी ओर खींचती हुई उसके कानों में फुसफुसाई – “झलक ये तो वही ट्रेन वाला है – कहीं ये हमारा पीछा करता तो नही आ गया !!”

अब झलक भी उसकी ओर ऑंखें तरेरती हुई बोली – “अभी बताती हूँ इसे !!”

पलक उसे रोकती रह गई और झलक एक सैंडिल में ही लडखडाती हुई उसकी ओर बढ़ गई|

झलक जिस तेवर से अजनबी की ओर बढ़ रही थी उससे बेखबर वह खुले बरामदे के पौधों के झुरमुट के पीछे की ओर से अब जाता हुआ दिख रहा था, झलक के पीछे पीछे पलक को भी आना पड़ रहा था| झलक झट से आगे बढ़ती उसे पुकारती हुई बोल पड़ी – “ए हेलो मिस्टर |”

अचानक झलक की आवाज पर वह चौंककर उसकी ओर देखता वही ठहर जाता है, झलक अब उसकी आँखों की सीध में तनकर कमर में हाथ रखे खड़ी थी और वह उसकी ओर मंद मंद मुस्कराती नज़रों से अब देख रहा था|

“ऐसे हमें क्यों घूर रहे हो – तुम क्या सोचते हो तुम छुपकर हमारा पीछा कर लोगे !”

“पर छुपा तो कोई और है आपके पीछे |” वह झलक के सर की परछाई के पीछे छुपे पलक के चेहरे को देखने आहिस्ते से उसकी ओर झांकता है तो पलक सहम कर दो कदम पीछे हो जाती है|

“देखो कायदे से रहना हो तो यहाँ रहो नही तो इस होटल से बाहर निकलवा दूंगी मैं – |” झलक अभी भी तने चेहरे से उसकी ओर देख रही थी और वह मुस्कराती नज़रे उनकी ओर डाले खड़ा था|

“अच्छा तो ये होटल आपका है !!”

“हाँ बस ऐसा ही समझो |”

“ओहो तब तो हमे माफ़ करे अब हम ख्याल रखेंगे इसका |”

उसके चेहरे पर टिकी मुस्कान से अब झलक असहज हो उठी फिर जल्दी ही उसे ख्याल आया कि वह तो यहाँ अपनी सैंडिल ढूंढने आई थी ये सोच वह अगले ही पल अपने आस पास देखने लगती है, पलक भी झलक की परेशानी समझती अपने आस पास देखने लगती है, उनकी खोजती आँखों को अब वह अजनबी देखता हुआ धीरे से पौधों के पीछे से हाथ में लिए कुछ उनकी नज़रो के परिदृश्य में रखता हुआ पूछता है – “कहीं आपकी खुबसूरत आँखों को इसकी तलाश तो नहीं !!”

आवाज पर दोनों एक साथ अपने सामने देखती है चौंकती हुई एक साथ बोल पड़ती है – “ये हमारी सैंडिल है -|”

वह उन दोनों के बढे हाथों को नज़रअंदाज करता उस सैंडिल को हवा में नचाता हुआ कहता रहा – “हमे तो आसमान से गिरती हुई मिली |”

अब गुस्से में तेजी से आगे बढती झलक उसके हाथों से झटके से उस सैंडिल को अपनी ओर खींचती गुस्से में पैर पटकती हुई वापस जाने लगती है, उसके आगे आगे अब पलक भी जा रही थी पर अपनी मुस्कान से वह आंखे उन दोनों पर से न हटते हुए कह रही थी – “वैसी आसमान से बारिश होती तो देखी थी पर सैंडिल पहली बार गिरती हुई देखी |” कहता हुआ वह जानकर आवाज करता हुआ हंस पड़ा और मन ही मन खीजी हुई झलक और पलक और तेज क़दमों से वहां से वापस चली गई|

चलते चलते ही झलक सैंडिल पहनती हुई अब दोनों जितने तेज कदम से आ सकती थी अपने कमरे में वापस आ जाती है| आते ही दोनों धम से बिस्तर के पैताने बैठती हुई अब एक दूसरे की ओर देखती हुई खिलखिला कर हंस पड़ती है|

अनामिका को भी अपनी सहेलियों के बिना कहाँ चैन था, वह माँ सा के कमरे से निकलती सीधी फिर से अपनी सहेलियों के बीच आती खिलखिला रही थी| वह दोनों के कंधो पर झूलती उन्हें अपनी तैयारियां बता रही थी|

“जो खरीदना था सब यहाँ बैठे बैठे मिल गया पर मुझे बाज़ार नही जाने दिया गया|”

ये सुन दोनों की आश्चर्य में पड़ी ऑंखें उसकी ओर घूम गई|

“यहाँ का नियम है और क्यों !! पता है अभी न जैसे मेरी कोई ट्रेनिग चल रही है – ये नहीं करना, वो नही करना – सबके सामने तेज तेज हंस बोल नही सकती – यहाँ सब के सब हम करके बात करते है और मुझसे पूछते है कि मैं ऐसे क्यों बात करती हूँ !! अब तो लगता है मेरे अच्छे वाले दिन चले गए – कितना बंधन है यहाँ – जो भी करो पर महल के अन्दर ही रहो |” दोनों हैरान उसकी सुन रही थी और अनामिका धाराप्रवाह कहे जा रही थी – “यार अपनी गन्जिंग को कितना मिस किया मैंने – कितना मज़ा आता जब हजरतगंज की हर शॉप में बेमतलब पहुँचते और बोलते भैया जरा ये वाला सूट तो दिखाना – अच्छा वो दूसरा दिखाओ फिर आराम से सब छोड़ छाड़ आगे बढ़ जाती |”

“क्या सच में तू मार्किट नही जा सकती अब !!” पलक ऐसे हैरान होती हुई पूछती है मानों अब वे इसके बिना कैसे जिएंगी|

“और क्या बहुत जिद्द की तो एक बड़ी से शॉप में ले गए जहाँ बस देखो और चुपचाप ले लो नो मस्ती मारी – हाय वो दिन भी क्या दिन थे – बाज़ार में जब हम तीनों बेमतलब में घूमती रहती |” एक गहरी आह छोड़ती हुई अनामिका अब बिस्तर पर अपनी देह छोड़ती हुई उनकी ओर देखती है जो अब उसके आस पास लेटती अपनी अपनी नज़रे ऊपर छत की ओर जमा देती है|

“यार ये साधारण लड़की को राजकुमारी बना देंगे |” अनामिका फिर गहरा उच्छवास छोड़ती है|

“पर अनु तुम्हारी माँ सा ने हमें क्यों राजकुमारी बोला ??” झलक अपनी आश्चर्य में डूबी ऑंखें तिरछी करती पूछती है|

“अरे वो तो उनका बात करने का तरीका है – यही तो हर बात से लेकर काम तक सब तरीके से करना पड़ता है – यहाँ तक कि रूद्र जी से भी नही मिल सकती अभी हम |”

रूद्र का नाम आते तीनों की ऑंखें शरारत से चमक उठी|

“अच्छा सच बता तू अभी तक नही मिली उनसे !!”

झलक उसकी चिकोटी लेती बोल पड़ी तो अनामिका एक आंख दबाती धीरे से उनके कानों में फुसफुसाती हुई बोली – “नियम तो ऐसा ही था पर हमने कभी कोई नियम माना है क्या – चुपके से मिल भी लिया और ये सौगात भी मिल गई मुझे |” कहती हुई अपनी कुर्ती के सीने से कोई चमकता लॉकेट निकालती उनकी आँखों के सामने दिखाती हुई मुस्करा पड़ी|

दोनों की नज़रे अब एक साथ अनामिका के लॉकेट की ओर जाती उसे निहारती रही, आर के इनीशियल का लॉकेट अपनी चमक से कुछ ज्यादा ही उनकी आँखों में चमक रहा था|

“अच्छा तो चल हमें भी मिलवा उनसे |”

“तुम लोगों को !!” अचानक अनामिका की ऑंखें परेशान हो उठी|

“इतनी दूर से कितना तीन पांच करते हम यहाँ आए है तो तेरे वो हमसे मिलेंगे भी नही तो जा हम वापस चली जाएँगे |”

“ओहो नखरा दिखाने की जरुरत नही – चल तेरे लिए फिर एक और मुलाकात कर लेंगे |” जबरन बेचारी चेहरा बनाती अनामिका बोली तो दोनों उसकी चिकोटी लेती उसकी ओर झुक गई – “अच्छा सिर्फ हमारे लिए |” अगले ही पल तीनों की हंसी से वो कमरा गुलजार हो उठा|

सच में अनामिका ने जाने किसे फोन करके शरमाते हुए अपनी दिल की कही और बस अगले कुछ क्षण में कोई दस्तक हुई उनके कमरे के बाहर तो तीनों चौंककर एक दूसरें की निगाह की ओर देखती हुई धीरे से मुस्कराई|

“चलो मुलाकात नही करनी क्या !!”

दोनों अब हैरान अनामिका को दरवाजे की ओर बढ़ता हुआ देखती रही| दरवाज़ा खोलकर वह किनारे खड़ी होकर पलक और झलक को इशारे से दरवाजे की ओर देखने को कहती है| दोनों की हैरान नज़रों के सामने सच में जैसे कोई राजकुमार की ठाठ में उनकी ओर आता हुआ उन्हें दिख रहा था| दोनों सकपकाती खड़ी हो गई|

“स्वागत है आपका – कभी हम आपको कभी अपने दीवाने आम को देखते है – माई सेल्फ रूद्र प्रताप सिंह चौहान |” वह अपनी भरपूर मुस्कान से उनके सामने आता खड़ा था और दोनों हैरान उसकी ओर देखती हडबडाहट में कह उठी – “मैं पलक – नही ये पलक मैं झलक |”

वह उन तीनों की सकपकाहट देख बिन आवाज के हंस पड़ा तो अनामिका उनके बीच आती कह उठी|

“लो मिलवा दिया न रूद्र जी से |”

“हाँ |” दोनों साथ में बस यही कह पाई|

“हमे भी आपसे मिलकर अत्यंत हर्ष हुआ – अनामिका जी से हमे पता चला कि कितनी मुश्किल से आप हमारी मंगनी में आई तो वाकई अब हम आपके कर्जदार हो गए पर अभी ये कर्ज हम उधार में रखेंगे – समय आने पर इसे सूद समेत चुकाएँगे|” रूद्र सलीके से अपने दिल पर हाथ रखते कहते है तो ये देख तीनों मुस्करा पड़ती है|

“वैसे अभी तो हम नवल जी के एहसानमंद है जिनकी मदद से ये मुमकिन हुआ |” अनामिका अपनी भरपूर मुस्कान से पलक और झलक को देखती हुई कहती है|

दोनों अब इस नाम को सुन प्रश्नात्मक मुद्रा में उसकी ओर देखती है तो अनामिका जल्दी से कहती है – “नवल जी रूद्र जी के छोटे चचेरे भाई सा है |”

रूद्र उन दोनों की आश्चर्य से डूबी आँखों को समझता हुआ कहता है – “चलिए उनसे भी हम आपको मिलवा देते है |” इतना कहने भर से वे अपनी पॉकेट की गिरफ्त से मोबाईल निकालते झट से एक कॉल लगाता ही है कि कोई चेहरा दूसरे क्षण ही प्रकट हो जाता है जिसे सामने देख पलक और झलक साथ में उछल पड़ती है|

“तुम !!!”

वे दोनों आश्चर्य से उस अजनबी को देख रही थी तो अनामिका और रूद्र उन तीनों को|

“तुम दोनों जानती हो इन्हें ?”

“बिलकुल नही – ऐसे फालतू लोगों को हम बिलकुल नही जानती जो लड़कियों को देखते उन्हें घूरने लगते है |” झलक की चिढ़ती हुई आवाज सुनकर भी वह अपनी चिरपरिचित मुस्कान से मुस्करा रहा था|

“इतने खूबसूरत चेहरे सामने दिखेंगे तो नज़रे तो गुस्ताख होंगी ही |” वह अंदाज़ में हलके से झुकते हुए कहता है तो रूद्र धीरे से मुस्करा देता है|

‘अच्छा जी – मुझे बताया भी नही |’

अब अनामिका धीरे से पलक की ओर झुकती हुई पूछती है तो पलक भी धीरे से फुसफुसाती हुई कहती है – ‘ट्रेन में मिला था अचानक और फिर इस होटल में भी और हमे कुछ नही पता|’

“चलो इस अजनबी से हम ही मिलवा देते है – ये है रूद्र जी के छोटे भाई सा नवल प्रताप सिंह चौहान और नवल जी ये है मेरी प्यारी सखियाँ पलक और झलक |”

“जी आपसे मिलकर हमें हार्दिक हर्ष हुआ राजकुमारी जी |” वह अदब से झुकता हुआ यूँ बोला कि झलक की आँखों में और गुस्सा चढ़ आया|

“हम कोई राजकुमारी वुमारी नही है |” तुनकती हुई झलक बोल उठी|

“तो अवध की नवाब है आप !!”

नवल की शरारती ऑंखें अब पलक और झलक के इर्दगिर्द घूमती हुई कह रही थी तो अनामिका और रूद्र किसी तरह से अपनी हंसी दबाए हुए खड़े थे|

“पलक जी आपका शुक्रिया की खाकसार को आपने अपनी ट्रेन में कुछ पल पनाह दी और झलक जी अब आप हमे नाराज़ होकर इस राजमहल से बाहर तो नही निकलवा देंगी !!” वह कसकर बिन आवाज के हंस पड़ा तो दोनों घिघियाती हुई बगले झांकती रह गई|

“अरे भाई नवल आप हमारी अनामिका की ख़ास मेहमानों को यूँ तंग मत करिए कही ज्यादा डर गई तो शादी में नहीं आ पाएंगी |” अबकी रूद्र भी चुटकी लेने से नही चूका तो अनामिका को भी हंसी आ गई|

“हम तो क्षमा मांग रहे है भाई सा – वैसे तो हम तो ऐसे खूबसूरत चेहरों के लिए महल ही क्या दुनिया छोड़ सकते है|”

ये सुन पलक और झलक की आवाज उनके गले में ही अटकी रह गई, वे अपने चारों ओर यूँ देखने लगी कि मौका मिला तो तुरंत वहां से भाग जाएंगी |

उनकी हालत देख अनामिका धीरे से झलक के कानों के पास आती फुसफुसाई – ‘आखिर सेर को सवा सेर मिल ही गया |’

क्रमशः…………………..

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