
एक राज़ अनुगामी कथा – 40
“अनिकेत जी आप हमे बस बता दीजिए कि पलक जी को ढूँढना कैसे है हम उन्हें ढूंढने के लिए सेना खड़ी कर देंगे कुछ भी हो पलक जी को हम ढूंढ कर लाएँगे ही -|” नवल आगे आते पूरे जोश से बोलते हुए अब शौर्य की ओर देखते हुए कहता है – “शौर्य भाई – हमारे ख्याल से आपको सोनमहल लौट जाना चाहिए क्योंकि हम सब यहाँ है तो माँ सा और अनामिका भाभी सा को हम सबकी फ़िक्र हो रही होगी – अगर आप लौट जाएंगे तो वहां आप सब संभाल लेंगे |”
“ठीक कह रहे है नवल जी – झलक की माँ भी अनामिका के पास है – आप पहुँच जाएँगे तो उनकी चिंता कम होगी |”
“फिर आप सब यहाँ !”
“आप निश्चिन्त रहिए यहाँ सब ठीक हो जाएगा – आप बस जल्दी से महल के लिए निकले |” जल्दी से नवल कहते है|
“ठीक है – पर आप को जैसे ही हमारी जरुरत पड़े आप हमे बता दीजिएगा – हम तैयार रहेंगे |” कहकर शौर्य तुरंत बाहर निकल गए| सभी उसको बाहर जाता हुआ देख रहे थे लेकिन झलक के देखने में अलग ही अहसास था शायद उस पल शौर्य का पलक को लेकर चिंता करना उसे अच्छा लगा था|
“अब आप बताईए अनिकेत जी हमे करना क्या है ?”
नवल की उत्सुकता पर अनिकेत अपने चिंतित स्वर में बोला – “आप जो सब आसान इतना आसान समझ रहे ही वो इतना आसान है नही – मुझे तो ये भी नही पता कि वो ऐसा राज़ है क्या जो पलक को सपने में आता था |” कहता हुआ अनिकेत वैभव की ओर देखता है|
“और वो सारा राज़ इस डायरी में लिखा है इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम इसे पढो और बताओ कि अब हमे क्या करना है – मेरा तो दिमाग ही काम नही कर रहा |” वे डायरी अनिकेत की ओर बढ़ाते हुए अपना सर पकडे बैठ जाते है, उनको परेशान हालत में देखती झलक उनके पास बैठती उनको सँभालने लगती है|
अनिकेत जल्दी से डायरी लेता उसके पन्ने पलटने लगता है, डायरी में तारीख के साथ छोटे छोटे नोट जैसा लिखा था जैसे कोई सन्देश की तरह बताया गया हो| वह पन्ने दर पन्ने पलटता हुआ जोर से बोलता हुआ पढता रहा|
नवम्बर राजस्थान की तपन में ठंडी और मेरे मन में ढ़ेर सवालों की आग जल रही थी, जो मेरे साथ है वो निधि तो नही है और वो जो भी है वो निधि की जगह नही ले सकती| मैं खुश हूँ कि हम माता पिता बनने वाले है और ये हमारे नए जीवन की शुरुआत होगी, पर एक सच जिसे सिर्फ मैं समझ रहा हूँ उसे मैं कैसे किसी को बताऊँ, आखिर कल तक इस पर मुझे भी विश्वास नही था लेकिन सच झुठलाने पर झूठ नही बन जाता और इस वक़्त यही सच है कि निधि को मैं धीरे धीरे खो रहा हूँ…
जनवरी हम वापस उदयपुर आ गए पर निधि की तबियत अजीब सी होती जा रही है, रात होते जैसे वह किसी अनजान निद्रा में चली जाती है, मैं कुछ समझ नही पा रहा, पर मैं सब जानकर रहूँगा|
जून की गर्मी में भी मैं घंटों लाइब्रेरी में समय बिता रहा हूँ और धीरे धीरे जिन किताबो के संपर्क में मैं आया मेरा दिमाग ही चकरा गया, क्या ये सच में होता है…अब सब मेरी समझ में आ रहा है|
जिस रात निधि कुलधरा में खोई तब उस श्रापित रात में उसका बचना नामुमकिन था पर हम सबको लगा वह जीवित है पर ये हमरा भ्रम था और इस बात को जान लेने के बाद मैं ये सच परिवार वालों को भी नही बता सकता कि वह जिस निधि के साथ है वो बीते हुए समय की है देखा जाए तो ये उसकी छाया मात्र है| लेकिन मेरी बात पर कोई विश्वास नही करेगा, मेरे लिए भी ये जानना अविश्वसनीय था| जिस शाम हम कुलधरा में जाकर निधि को खोज रहे थे, तब उस रेतीले तूफान में फंसते हुए हम अनायास ही समय के पार चले गए जो वर्महोल था एक तरह से ब्रम्हांड के डाईमेंशन के आर पार जाने वाला टनल पर अपनी मर्जी से कोई उस तक नही पहुँच सकता| जब निधि खोई थी हम उसे बीते वक़्त से लिवाकर लाए थे इसलिए उसे अपने हॉस्पिटल वाला समय याद ही नही था, पर उसके शरीर में तो उसकी छाया और असल निधि का अंतर्द्वंद हो रहा था|
एक तरह से बीते समय की निधि जो असल निधि थी और वर्तमान की निधि जो मात्र छाया थी उनके बीच का संघर्ष था| वो कोई अज्ञात आत्मा थी जो निधि के शरीर में प्रवेश कर अपनी अधूरी इच्छा तृप्त करना चाहती थी, उसे प्रेम चाहिए था सच्चा प्रेम जो मुझे निधि से था इसलिए जब मैं निधि के पास होता उसकी फ़िक्र करता उसका ख्याल रखता तब वह मेरे प्रति आकर्षित रहती, पर जब मैं निधि को नाम लेकर पुकारता उसे संबोधित करते प्रेम जताता वह सुप्तावस्था में चली जाती, असल में ये समय के पार की यात्रा थी, निधि दो समय के भवर के बीच फंस चुकी थी और मैं सब जान लेने के बाद भी कुछ नही कर पा रहा बस हर एक दिन निधि को गुम होता हुआ देख रहा था, मेरे हाथ में कुछ भी नही था|
ये आत्मा का संघर्ष था जो अन्दर से अनजाने में निधि भी कर रही थी, क्योंकि समय के पार का समय असल समय से कई गुना तेज बीतता है इस तरह से निधि अपनी असल उम्र जल्दी ही पार कर लेगी और….. मुझे पता है अब मैं निधि को खो चुका हूँ और जल्द ही वह समय के भवर में खो जाने वाली है, कुलधरा का श्राप निधि को नही छोड़ने वाला, मैं सब जानने के बाद भी कुछ नही कर पा रहा लेकिन निधि नही तो मैं भी नही शायद यही नियति हम लिखवा कर लाए थे|
समय के साथ मैं एक बेटी का पिता बना पर निधि को आखिर मैंने हमेशा के लिए खो दिया, मैं उसे नही बचा पाया, लेकिन डर लगता है कहीं वह छाया मेरी बेटी को भी अपनी जद में न ले ले इसलिए आजसे हमेशा के लिए इस राजस्थान को छोड़ दूंगा मैं, पर क्या इससे ये श्राप खत्म हो जाएगा….!!
अनिकेत डायरी पढ़ चुका था, वह अब ख़ामोशी से सर उठाकर सबके चेहरों के सन्नाटे देख रहा था| उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके आखिरी शब्द वहां गूंज रहे थे…..
क्रमशः………………….
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