Kahanikacarvan

एक राज़ अनुगामी कथा – 5

रूद्र और नवल के जाने तक कैसे भी करके खुद को वहां खड़ा कर पाई पर उनके जाते झलक एकदम से अनामिका की ओर पलटती गुस्से में देखती हुई बोली – “तू बड़ी दुष्ट है – एक पल में हम सखियों को भूल उनकी साइड खड़ी हो गई |”

ये सुन अनामिका के होंठ मुस्कान से हलके से फैलते झलक के रूठे चेहरे को देखते हुए कहते है – “अच्छा जी छुपाया तो मुझसे गया कि तुम दोनों नवल जी से कब मिली – हूं – बताओ |”

“उसका तो नाम मत लो – मेरा तो खून खौल जाता है |” झलक का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, वह गुस्से में हाथ मलती हुई कह रही थी – “अभी ये हमारे लखनऊ में होता न तो….तो |”

“तो क्या गुंडों से पिटवाती |”

कसकर हँसते हुए अनामिका ने कहा तो पलक को भी धीरे से हँसी आ गई जिससे चिढ़ती हुई झलक उन्ही पर बरस पड़ी |

“तुम देखना मैं उस तुम्हारे सो कॉल राजकुमार को छोड़ने वाली नहीं हूँ |” गुस्से में फुन्कारती वह बिस्तर पर धम से बैठ गई, इस पर दोनों को उसकी हालत पर हंसी आ गई|

“अरे बाप रे पलक तू इस लखनऊ की गुंडी को संभाल – मैं चलती हूँ – शाम को मिलते है |”

अनामिका हँसती हुई झट से वहां से निकल गई, उसके जाते पलक धीरे से झलक के बगल में बैठती हुई उसके कंधे पर हाथ रखती हुई कहने लगी –

“अब गुस्सा छोड़ और शाम की तैयारी कर न – वरना इस राजमहल में हमी सबसे बेकार लगेगी – अच्छा तू लाल वाला लहंगा पहनेगी या पीच वाला !”

तैयारी के नाम पर झलक का गुस्सा थोडा कम हुआ तो उसका ध्यान शाम को पहने जाने वाली ड्रेस पर चला गया| हमेशा ही दोनों अपने कपड़े अदल बदल कर पहनती थी, उनके बीच कुछ भेद था ही नही जो पलक का था वो सहज ही झलक का हो जाता और जो झलक का होता उसे पलक कभी भी अपना लेती| अभी भी अपने बैग से दो अच्छे लहंगे लाने पर अब वे तय कर रही थी कि वे कौन-सा लहंगा पहनेगी?

“मैं लाल वाला पहनूंगी |” हमेशा की तरह झलक अपना चयन पहले कर लेती और पलक को सब मंजूर रहता| कहती हुई झलक गुस्सा भूलकर अब आदमकद शीशे के सामने खड़ी लाल रंग वाला लहंगा खुद पर लगा लगाकर मटक रही थी, ये देख पलक को उसपर हँसी आ गई|

उस राजमहल जैसे होटल में ख़ास मेहमान होने का दोनों को मज़ा आ रहा था, थोड़ी थोड़ी देर में चाय नाश्ता सजा संवरा उनके सामने लग जाता तो कभी एक पुकार पर अर्दली सर झुकाकर उनका हुक्म सुनने लगता, वे तो ख़ुशी से चहक ही पड़ी|

शाम को पलक झट से तैयार हो गई और हमेशा की तरह देर तक तैयार होती झलक कभी पूरी चूड़ी पहनती तो कभी आधी आधी दोनों कलाई में कर लेती तो कभी साथ लाई सारी एअरिंग पहन डालती पर बहुत देर संतुष्ट नही हुई तो पलक ने गुस्से में उसे जल्दी तैयार होने का कहकर बाहर अनामिका को देखने निकल गई| पीच रंग के लहंगे पर गुलाबी चुन्नी को एक तरफ से लिए अपने कमर तक के बालों को किलिप से कंधे के दूसरी ओर कर रखा था, अपने सादे रूप में भी पलक बेहद सुन्दर लग रही थी, असल में पलक झलक से ज्यादा खिली रंगत की थी और हमेशा ही सादगी में रहती थी| वह सदा की तरह गले में एक लोकेट वाली चेन पहने थी और कानों में मोती के बुँदे पर आज कानों में रिंग सी सुनहरी एअरिंग पहने थी तो दोनों हाथों में चूड़ी डाले पलक गैलरी से होती अनामिका के कमरे की ओर जा रही थी| उस वक़्त शायद सभी तैयारी में ऐसे मशगूल थे कि उसे कोई नज़र ही नहीं आया| गैलरी से गुज़रते अकस्मात् उसकी नज़र दीवार की खिड़की पर चली गई, उस खिड़की के पार निचली मंजिल का खुला सजा संवरा प्रांगण दिख रहा था, जहाँ बहुत से लोग राजस्थानी स्थानीय कपड़ों में जैसे डांस के इंतजार में हलके हलके झूम रहे थे, तो सारंगी की मधुर तान उस पल सुन पलक के कदम वही ठहरे रह गए, वह तो बुत बनी बस अपलक देखती रह गई| तभी उस ढलती दुपहरी का एक गर्म भबका उसकी देह को जैसे उदोलित कर देता है जिससे चिहुंककर वह अपने अगल बगल देखने लगती है| पल भर के रोमांच से उसमे एक अज़ब सी सिरहन दौड़ जाती है| तभी उसके कंधे पर किसी हाथ का भार महसूस होता है, वह पलटकर देखती है तो देखती रह जाती है| उसकी नज़रों के सामने जो थी उस पल उससे वह नज़रे नही हटा पाई, सादे सपाट चेहरे पर राजस्थानी लहरिया चुन्नी लगभग माथे तक लिए थी, बस उसकी आधी कजरारी आँखों और बड़ी सी नथ पर उसका ध्यान अटका रह गया|

“लाडो – जब दोपहर से संध्या मिलती हो तो अकेले न घूमण चाहिए |” कहकर वह वापस मुड़कर चली गई| पलक बस देखती रह गई|

फिर उससे आगे नही बढ़ा गया और वह वापस झलक को देखने कमरे की ओर आ जाती है| झलक अभी भी तैयार हो रही थी ये देख पलक अपना सिर पकड़ लेती है|

उस एक पल जिसका सबकी बेसब्र आँखों को इंतजार था, जिसके लिए दोनों भागकर राजस्थान आई थी बस वो पल उनकी आँखों के सामने था, वह महल का ही हिस्सा था जहाँ मंगनी की रस्म की तैयारी चल रही थी| उस पल वहां की सजावट पर उनकी ऑंखें ठहरी ही रह गई, चारोंओर शानोशौकत राजसी ठाट बाट पसरी फैली थी, दोनों उस वैभव को ऑंखें फाडे बस देखती रह गई, कतारबद्ध एक से वस्त्र में खड़े कारिंदे हाथों में छतरी लिए राजसी परिवार की अगुवानी कर रहे थे| पलक झलक तबसे अनामिका से मिलना चाह रही थी पर अभी इंतजार करती स्टेज के सामने बैठी सुसज्जित स्टेज को देख रही थी जहाँ एक तरफ पूजा की तैयारी चल रही थी|

तभी सारंगी की तान का सुर बदला और सबका ध्यान द्वार के सजावटी मुहाने की ओर दौड़ गया जहाँ से आगे आगे संगीत की तान छेड़ते और नृत्य करते रंग बिरंगे राजस्थानी वस्त्रों में स्त्री पुरुष के एक जत्थे के पीछे फूलो की चुन्नी के नीचे जो थी उसपर बरबस ही सबकी नजर टिकी रह गई, उसके आधे ढके चेहरे को भी पलक झलक पहचान जाती है, अनामिका जो बिलकुल ही बदली रूप में उनकी नज़रों के सामने थी| उसके हौले हौले उठते क़दमों से झिलमिलाते उसके कुंदन और रत्नों के जेवर सबकी आँखों में चमत्कृत हो उठते| उसके अगल बगल लहरिया पगड़ी और लहरिया चुन्नी में राजसी ठाट की पूरी शान हमकदम हो उठी थी| नजाकत से चलती अनामिका की बाजु में बंधे लूम मानों हौले हौले नृत्य करते हुए आगे बढ़ रहे थे|

वे मुस्कराती हुई देखती है कि अनामिका को पूजा के स्थान पर ले जाया जा रहा था|

“झलक जी |”

पुकार पर पलटकर देखती है तो सामने सोम था जिसे देख झलक शरारत से धीरे से मुस्करा दी|

वह भी शरमाया सा धीरे धीरे कह रहा था – “बाई सा की ओर से संदेसा है – |”

“अच्छा तो क्या !!”

“आपको जलपान करा दूँ फिर उनके पास ले चलना है |”

“ओह |” कहकर दोनों कसकर खिलखिला उठी जिससे खड़े खड़े सोम शरमा उठा|

गार्डननुमा विस्तृत दालान में कुछ कुछ दूरी पर गोल मेज मय चार कुर्सी सहित सजी थी जिनके मध्य में रखे गुलदस्ते में लगी गुलाब की एक सुर्ख कली मानों अकेले ही माहौल में रूमानियत भरने के काबिल थी| वे वहां न बैठकर खड़ी अपने आस पास का नज़ारा देख रही थी|

सोम खासतौर पर उनके लिए ड्रिंक मंगा कर उन्हें लेने का आदरपूर्ण आग्रह करता है| वे भी झट से अपनी अपनी पसंद का झलक काला वाला और पलक सफ़ेद वाला लेकर सोम की ओर इशारा करती है| वह भी उनके पास से शायद जाने के मूड में नहीं था तो झट से वह भी एक ड्रिंक लिए उनके साथ खड़ा हो जाता है|

“खुबसूरत है ऑंखें तेरी….|”

अचानक कोई आवाज तेजी से उनका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करती है तो वे आवाज की दिशा की ओर देखती है तो बस उनकी ऑंखें फटी की फटी रह जाती है| स्टेज के दाहिने हिस्से में निचली बैठक में वाद्य यंत्रों के साथ बैठे लोगों के सामने माइक थामे नवल था जो उन्ही की ओर देखता हुआ महफ़िल जमा रहा था, ये देखते झलक गिलास पकड़े कड़े तेवर से उसकी ओर देखती है|

“दिल में इक लहर सी उठी है अभी…कोई ताज़ा हवा चली है अभी….भरी महफ़िल में जी नही लगता…जाने किस चीज़ की कमी है अभी….|”

“बदतमीज |”

झलक को भुनभुनाते देख पलक हौले से मुस्कराती हुई बोली – “क्या हुआ झलक – कितनी अच्छी शायरी तो सुना रहे है – भलेही कही से चेपी हुई है|”

“तू उधर मत देख – तुझे बहन वाला वास्ता – |”

“अच्छा ठीक है न देखूं और कान भी बंद कर लूँ क्या..|” पलक झलक के गुस्से से भरे चेहरे को देखती मुस्करा रही थी|

“और इस महफ़िल की शान हमारे प्यारे भाई सा और प्यारी भाभी सा के कदम पड़ते इस महफ़िल में चार चाँद लग चुके है…..तो इश्क वालों जरा नज़रे तो घुमा लो हम कातिल नही तुम्हारे दिल के…रखा है बस संभाल के दिल आपका..|”

वाह वाह वाह वाह की आवाज से वो माहौल जितना सराबोर हो उठा पलक उतने ही गुस्से में दांत भींचे उसकी ओर देखने लगी|

“बड़ी नाजुक है ये मंजिल….मोहब्बत का सफ़र है….धड़क आहिस्ता से ऐ दिल…मोहब्बत का सफ़र है…..कोई सुन ले न ये किस्सा…बहुत डर लगता है….मगर डर से क्या हासिल…मोहब्बत का सफ़र है…बताना भी नही आसान….छुपाना भी कठिन…..खुदाया किस कदर मुश्किल….मोहब्बत का सफ़र है……|” कहते कहते नवल अब शायरी गाने लगे तो सारी महफ़िल दम साधे बस सुनने लग गई|

“ये सो कॉल राजकुमार कुछ भी गाता रहेगा और मैं सुनती रहूंगी – हुअ |” झलक मुंह बनाती हुई अब उसकी ओर से पीठ करती है तो उसकी नज़र सोम की तरफ जाती है जो तन्मय होकर उस गायन का आनन्द ले रहा था, उसको देखते हुए झलक को कुछ सूझता है तो जल्दी से अपने चेहरे के हाव भाव बदलती उसे पुकारती हुई कहती है – “कितना अच्छा गाते है न !”

झलक के बदले स्वर सुनते पलक उसकी ओर देखती हुई उसके चेहरे पर ऐसे भाव आ जाते है मानों शांत समंदर में अब प्रलय आने वाली हो|

“जी |” वह अपने स्वभाववश आदर से सहमति देता है|

“बेचारे तब से गा रहे है – आपको खुद उन्हें ड्रिंक पहुंचानी चाहिए – आखिर जीजा जी के भाई है वे |” किसी समझदार की तरह उसे समझाती हुई कहती है – “रुकिए – मैं लाती हूँ |” कहती हुई झलक बिना उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार किए कोल्डड्रिंक की टेबल की ओर बढ़ जाती है|

पलक के चेहरे के हाव भाव में घबराहट उतर आई थी उसे पता था कि जरुर झलक को कुछ सूझा है नही तो वह खुद नही जाती पर क्या कर सकती थी सिवाय इंतजार के|

सोम का ध्यान फिर नवल की ओर था|

“लीजिए – ये देकर आइए अपने नवल सा को |” आखिरी शब्द पर जोर देती वह कुछ ज्यादा ही मुस्कराई|

सोम बड़े अदब से काली कोल्डड्रिंक का गिलास लिए अब नवल की ओर बढ़ गया था, उसे जाता देख पलक झट से झलक के पास आती उसके कान में फुसफुसाती हुई पूछती है – “क्या करने वाली है तू ?”

“जादू – |” हवा में चुटकी बजाती वह तिरछी मुस्कान से मुस्कराती हुई उतने ही धीमे स्वर में कहती है – “इस महान गायक की आवाज को थोडा आराम मिल जाए वही दवा डाली है – थोड़ी सी काली मिर्च |”

“क्या…!!!” पलक अवाक् उसकी मुस्कान देखती रह गई |

“अब देखना मजा |”

“पागल है तू – और तुझे ये काली मिर्च मिली कहाँ ?”

“सूप वाली टेबल में |” पलक के होश उड़े थे पर झलक तो भरपूर मुस्कान से अब स्टेज की ओर देख रही थी|

सोम गिलास नवल के सामने की टेबल में रखकर वापिस आ जाता है तो झलक का मुंह उतर जाता है |

“ये तो बिलकुल नक्कारा निकला |”

“यूँ महफ़िल में समां गुलाब हुआ….हमारी तकदीर को उनकी ओर से ये उपहार मिला….चलो डूब जाए झील सी आँखों में….कौन जाने ऐसा हंसी पल आखिरी बार हुआ….|”

“बकवास…|” झलक अभी भी भुनभुना रही थी और पलक को उसके गुस्से पर हँसी आ रही थी|

“चलिए बाई सा आपको बुला रही है |” सोम अब उन दोनों से निवेदन करता हुआ खड़ा था|

आखिर दोनों अनामिका की ओर बढ़ जाती है| पूजा खत्म हो चुकी थी और रस्म शुरू होने वाली थी, अब दोनों अनामिका के अगल बगल बैठी सामने की ओर देखती आपस में फुसफुसा रही थी|

“अनु आज तो तू बस धमाल ही लग रही है|”

“तो तुम भी कौन सी कम लग रही हो – तब से देख रही हूँ नवल जी का ध्यान नही हट रहा तुमसे |” अनामिका भी झलक के जवाब में बिना चेहरे के भाव बदले धीरे से कहती है|

“तू भी न इस सो कॉल राजकुमार के साईड रहेगी तो तेरी मेरी कट्टी|” झलक रूठती हुई थोडा पीछे हो जाती है तो अनामिका बिना हिले धीरे से उसका हाथ पकड़ लेती है|

सब अब स्टेज पर आकर अनामिका के ऊपर सगुन का चावल डालकर चले जा रहे थे जिससे दोनों अनामिका से थोडा पीछे हट जाती है| अब उनका ध्यान आस पास घूम जाता है अचानक पलक झलक का हाथ पकड़कर हिलाती हुई कहती है – “झलक ये देख वो |” पलक नवल की ओर ध्यान दिलाती है तो दोनों अचरच से उस ओर देखती रही कि अभी सुनहरी शेरवानी पहने नवल कथई शेरवानी में नज़र आ रहा था|

“ज्यादा हीरो बन रहा है – लग तो दोनों शेरवानी में लंगूर ही रहा है न|” बिना होंठ हिलाए झलक पलक की ओर देखती धीरे से फुसफुसाई और अनामिका की ओर ध्यान देने लगी कि एकाएक फिर उनका ध्यान सामने की ओर जाता है तो दोनों यूँ उछल पड़ी मानों करंट छू लिया हो |

“ये फिर से सुनहरी शेरवानी में आ गया – हो क्या रहा है – कोई एक ही पार्टी में यूँ कपडे बदलता है क्या !!”

“ज्यादा पैसा है तो दिखाना भी चाहिए |”

कहकर दोनों आपस में फुसफुसा कर मुंह दाबे हँस पड़ी |

तब से उनकी बात सुनती बगल में बैठी अनामिका बिना उनकी ओर देखे उनकी ओर हौले से झुकती हुई बोली – “सरप्राइज है तुम दोनों के लिए – सामने जरा ध्यान से देखो – ये एक नही दो है – जुड़वाँ भाई – दूसरे शौर्य प्रताप सिंह चौहान है|” कहते हुए अनामिका को उनकी हालत का जायजा था जिससे उसे बड़ी तेज हँसी आ रही थी पर किसी तरह से अपनी हँसी को दबाए वह सामने देखती रही|

इधर दोनों को काटों तो खून नहीं बस मुंह खोले सच में वे अब ध्यान से देखती है कि एक ही चेहरा बिलकुल अक्स सा दो अलग अलग शेरवानी में उनके सामने था|

“हे भगवान् – एक ही काफी नही था क्या जो भगवान ने बाय वन गेट वन फ्री दे दिया |”

पलक और झलक अभी भी मरी मरी हालत से सामने देख रही थी और उनकी नज़रों के सामने नवल काली और शौर्य सफ़ेद कोल्डड्रिंक लिए खड़े रूद्र को गिलास उठाकर चिअर्स कर रहे थे|

क्रमशः……………..

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