
एक राज़ अनुगामी कथा – 6
कमायाचे की धुन माहौल में धीरे धीरे रस घोलने लगी थी, उसके संग संग बजते घुंघरू सभी को अपनी मोहनी के पाश में जकड़े ले रहे थे इसी सरसता के बीच मंगनी की रस्म अदा कर दी गई| अनामिका हौले से शरमाती नज़र उठाकर रूद्र को देखती है जो तब से सबसे नज़र बचाकर उसी को निहार रहा था तो नज़र मिलते उनकी ऑंखें आपस में खिल उठती है| उनकी छुपी नज़रों को भांपती पलक झलक के चेहरे की उमंग दोहरी हुई जा रही थी| झलक चुपके से अनामिका की कमर के खुले हिस्से में चुटकी काट लेती है जिससे चिहुंककर वह उसकी तरफ आँखें तरेरती हुई देखने लगी, उस पल उसे झलक की शैतानी पर बड़ी तेज गुस्सा आ रहा था कि कितनी मुश्किल से नज़र भरकर देख पाई थी और उसने सारा मज़ा खराब कर दिया ये देख पलक को हँसी आ गई|
मंगनी होते घर के सारे बड़े मेहमानों संग व्यस्त हो गए अब वहां नव जोड़े के साथ पलक, झलक और कुछ दूरी पर खड़े नवल और शौर्य रह गए थे तो सोम भी किसी तरह से उनके बीच जगह बनाए बीच बीच में झलक को नज़र भर देखकर अपने में ही मुस्करा लेता| रूद्र और अनामिका को बैठा देख अनामिका की चचेरी बहनें भी वहीं चली आई, ये सोचकर आई कि कुछ चुहलबाजी करेंगी पर उससे पहले ही रूद्र अपने दोस्तों के बुलावे पर उनके पास चले गए| अब अनामिका को घेरे चारों लड़कियों की बातों का असीम सिलसिला यूँ चल पड़ा कि उनका खिलखिलाना ही नही रुकता था, कभी कभी वे इतनी जोर से खनक उठती कि आस पास वालों का ध्यान बरबस ही उनकी तरफ चल जाता|
“अरे भाई सोम आप यहाँ खड़े क्या कर रहे है ?” सोम जो तब से उन लड़कियों की ओर देखता मुस्काए जा रहा था एकाएक अपना नाम सुनकर आवाज की तरफ पलटता है, ये नवल था जो उसे कह रहा था – “आपकी बाई सा थक गई होंगी थोडा शरबत वरबत पहुंचाईए |”
“जी |” अपने स्वाभाविक भाव से आदर में झुकता हुआ वह कोल्डड्रिंक के लिए इधर उधर देख ही रहा था कि देखता है कि नवल के पीछे ही हाथ में ट्रे लिए एक वेटर खड़ा था|
“चलिए हम भी आपके साथ ये सेवा कार्य करते है|” कहते हुए सोम को आगे कर उसके पीछे पीछे अनामिका की ओर चलने लगता है|
वे अपनी बातों में इतनी मशगूल थी कि उन्होंने बस अपने आगे आती कोल्डड्रिंक के गिलास देखे और ले लिए, झलक ने भी गिलास ले लिया ये देखे बिना कि उसे नवल ने गिलास पकड़ाया था| वे ठहाका लगाती गिलास से एक घूंट भरती है, सब तो सहज रहती है पर झलक एक दम से जीभ निकाले सी सी की आवाज निकालने लगती है|
“ईई – इतनी तीखी क्यों है – कोई मिर्ची डालता है क्या कोल्डड्रिंक में !!”
वह गिलास एक तरफ रखती हुई मुंह गोल किए किसी तरह से अपने मुंह में साँस भरती सुकून ले रही थी कि उसके कानों में एक आवाज गई|
“अरे ये गुस्ताखी किसने की |” नवल जबरन माथे पर बल लाते हुए झलक की ओर देखता है – “बड़े अजीब लोग होते है जिनका शौक कोल्डड्रिंक में काली मिर्च डालने से पूरा होता है – सोम आप अपनी ख़ास मेहमान के लिए दूसरा गिलास लाइए |” नवल चेहरे पर गंभीर भाव लाते कहता है जिससे सोम तुरंत ही कोल्डड्रिंक लाने चला जाता है|
“लगता है गलती से कोल्डड्रिंक में सूप गिर गया होगा |”
नवल की बात पर अपनी बगले झांकती झलक दांतों तले जीभ दबा लेती है तो बाकी अचरच से उनकी ओर देख रही थी|
नवल अब मंद मंद मुस्करा रहा था जिससे झेंपती झलक पलक के कानों के पास आती धीरे से फुसफुसा कर कहती है – “इसको कैसे पता चला कि ये मेरा काम था ?”
“वो छोड़ – देख वही काली कोल्डड्रिंक है कही अपनी वाली तो नही पकड़ा दी !” पलक भी उतने ही धीरे से फुसफुसा कर जवाब देती है|
“छी जूठी |” ये सोचती झलक अब गुस्से में ऑंखें तरेरती हुई नवल की ओर देखने लगी जो अब अनामिका से बातें करता करता एक बार उसकी ओर देख लेता|
“मैं आती हूँ वाशरूम से – यक – कुल्ला करके ही चैन मिलेगा |” झलक कहती तुरंत चली जाती है|
नवल उसी पल अनामिका से बात करता करता कसकर हँस पड़ा जिसकी खनक से झलक और जलती भुनती चली गई|
“भाभी सा – सुना है आप बहुत अच्छा गाती भी है |”
नवल की बात पर अनामिका हौले से शरमा जाती है|
“तब तो आपकी सुरों की साथी आपकी सखियाँ ही होती होंगी – आखिर आवाज इतनी सुरीली है तो कंठ तो कोकिला ही होगा|” नवल कहता कहता अब पलक की ओर देखता है|
“क्यों नही – इनके बिना तो हमारे कॉलेज का फंक्शन पूरा नही होता |” अनामिका भी उसकी ताल में ताल मिलाती हुई बोली|
“क्या सच में !!” एकदम से उछलते हुए नवल अब पलक के सामने आ गया – “ओहो तब तो आज आपको हम सबको कुछ सुनाना ही पड़ेगा |”
नवल की बात सुन पलक के चेहरे पर बेचारगी के भाव आ गए, वह दयनीय मुद्रा में अनामिका की ओर देखने लगी|
“हाँ तो क्या सुनाने वाली है आप – भाभी सा आप कहेगी लगता है तभी मिस कोकिला का स्वर हमे नसीब होगा |”
ये सुन अनामिका के साथ बाकि भी हँस पड़ी पर पलक की हालत खराब होने लगी|
“सुनाईए – आपको तो गज़ले पसंद है तो कुछ नज़म ही बयाँ कर दीजिए |”
“अरे आपको कैसे पता कि पलक को ग़ज़ल पसंद है ?” आश्चर्य से अनामिका पूछ बैठी|
“हम चील की नज़र रखते है – कुछ भी छुपाना संभव नही हम से |” अबकी तिरछी नज़र से पलक को देखता है|
पलक बेचारी सी खुद को उनके बीच फंसा पा रही थी इसलिए मन ही मन झलक को याद करती हुई बुदबुदाई ‘कहाँ हो झलक जल्दी से आओ|’
“सुनाईए…|”
अब सभी पलक का चेहरा ताकने लगे थे पर पलक बेचारी सी हाथ मलती गाहे बाहे देखती रह गई|
“अब इतना भी क्या सोचना – चलिए कोई नर्सरी राइम ही सुन लेगे आपके सुरीले कंठ से|” नवल ने तरस खाती नज़रों से उसे देखा तो बाकि की हँसी छूट गई| पलक बेचारी सी दूर तक झलक को आँखों से खोजने लगी|
तभी माहौल में सारंगी की आवाज कुछ इस तरह गूंजी की सबका ध्यान स्टेज के बगल में मंडली की ओर चला गया, अब वहां कठपुतली का नृत्य आरंभ हो गया| सभी जिज्ञासु नज़रे उसी ओर मुड़ गई|
“लगता है अब यही सुनकर संतोष करना पड़ेगा|” गहरी श्वांस छोड़ते नवल की तिरछी नज़रे अभी भी पलक पर गड़ी थी लेकिन तभी झलक को आते देख पलक दौड़कर उसके पास पहुँच गई| नवल अपनी जगह खड़ा देख रहा था कि दोनों उसे घूरती हुई स्टेज की ओर चली जा रही थी जिससे नवल को बड़ी तेज हँसी आ गई|
कार्यक्रम अपने चरम पर आता अब धीरे धीरे जलपान तक आता समाप्ति की ओर सिमटने लगा था| पलक झलक की ट्रेन रात नौ बजे थी| अनामिका ने उनसे वादा किया हुआ था कि वह उन्हें ट्रेन तक पहुंचा देगी| अब रात के लिए वे कमरे में जल्दी से चेंज कर सामान पैक करने लगी| तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तख होते पलक बढ़कर दरवाजा खोलती है| दरवाजे के पार अनामिका थी, जो अनामिका उन्हें देखती झट से गले लगा लेती थी उसे सामने शांत देख पलक समझ ही रही थी कि उसके पीछे उसे माँ सा नज़र आई|
“आप दोनों आज जा रही है तो हमने सोचा आप से मिलकर खुद ही निमंत्रण दे दे |”
पलक एक किनारे खड़ी उनको अन्दर आते देख रही थी अब झलक भी उसके साथ खड़ी हो गई|
“आपके लिए ये कुछ उपहार है |” उनके कहते एक सेवक एक बड़े थाल में रखे सुनहरे डिब्बे को उनकी ओर बढ़ाती हुई कहती है – “अब आप दोनों को विवाह में भी आना है म्हारे जैसल – |”
“वे दोनों अचकचाती हुई उनकी ओर देखती हुई एक साथ बोली – “जैसल !!!”
“हम विवाह अपने जैसल से ही करेंगे ये तो रूद्र जी की नानी सा का घर है – लीजिए और इसे होस्टल पहुंचकर खोलिएगा |”
“पर इन सब की क्या जरुरत है |” वे अपनी हिचकिचाहट में उपहार की ओर हाथ बढ़ाते बढ़ाते ठहर गई थी|
“इससे आपको हमारी याद रहेगी -|” वे जबरन उपहार उन दोनों की हथेली में रखती हुई अनामिका की ओर देखती हुई कहती है – “आप अपनी सखियों को यही से विदा दे दे – हम इनकी विदाई का इंतजाम करते है|”
माँ सा के आगे वे बस सब सर झुका कर स्वीकार कर लेती है और उनके जाने तक खामोश खड़ी रहती है पर उनके जाते झलक एकदम से अनामिका का कन्धा पकडे कह उठती है –
“अनु तू स्टेशन नही चलेगी हमे छोड़ने ?”
“क्या करूँ जाने का बहुत मन है पर मना कर रखा है कि अभी बहुत मेहमान आए है और ऐसे समय मैं स्टेशन नही जा सकती |” उदासी से अपनी बात कहती है|
“अरे यार…|”
“कोई नही न – तुम दोनों चिंता मत करो वे बहुत बेहतर इंतजाम से तुम दोनों को स्टेशन पहुंचा देंगी – फिर दो दिन बाद मिलते है अपने हॉस्टल में |”
फिर तीनों खिलखिला कर साथ में गले लग जाती है|
इसी के साथ माँ सा ने वाकई उन दोनों के स्टेशन जाने का इंतजाम बुगडी लग्जरी कार से किया तो उनके चेहरे ख़ुशी से दमक उठे| उनके ख़ास आदमी नागेन्द्र जी खुद उन दोनों को स्टेशन पहुँचाने आए| स्टेशन आने तक उन्हें कुछ नही करना पड़ा कोई उनका सामान पकडे था तो कोई उनके आगे आआगे चलता उनके लिए जगह बनाता जाता और साथ साथ पीछे पीछे नागेन्द्र जी थे, वे तो राजसी विदाई से फूली नही समा रही थी| उन्हें कहना ही नहीं पड़ा और एक कारिन्दा झट से उनका टिकट लिए ट्रेन पता करने चला गया| वे अभी ठीक से जगह बनाकर खड़ी भी नही हो पाई थी कि पता चला कि ट्रेन के आगामी स्टेशन पर इंजन फेल होने से ट्रेन कैंसिल कर दी गई, ये सुनते दोनों के चेहरे का रंग ही उड़ गया| अब वे डर से एकदूसरे का चेहरा ताकने लगी कि अगर कल तक वे नहीं पहुंची तो जरुर पापा को सब पता चल जाएगा फिर तो कोई फ़रिश्ता भी उनकी जान नहीं बचा पाएगा|
वे लगभग रुआंसी सी एक दूसरें को देख रही थी तो नागेन्द्र जी झट से आगे आते कहते है – “ये ट्रेन तो न आएगी बाई सा – अब अगली ट्रेन तो ग्यारह बजे है |”
“ग्यारह – मतलब अगर हम उस ट्रेन से भी जाएँगे तो दोपहर का दो तो बज ही जाएगा – अब क्या होगा झलक – हमे तो दस बजे तक हॉस्टल पहुँचाना था |” पलक अपनी उदास आँखों से देखती है कि झलक के चेहरे का भी रंग उड़ा हुआ है|
दोनों आपस में एक दूसरें को देखती खड़ी थी कि उन्हें पता भी न चला कि उतनी देर में उनकी बात सुन नागेन्द्र जी ने फोन पर बात कर उनको रोड के रास्ते से उनके हॉस्टल पहुँचाने का इंतजाम भी कर लिया| ये सुनते उनकी आँखों में फिर से चमक कौंध गई|
अब बुगडी लग्जरी में सवार लखनऊ की ओर उनकी यात्रा प्रारंभ हो गई| पीछे की सीट पर आराम से वे दोनों पसरी थी तो ड्राईवर के साथ खुद नागेन्द्र जी बैठे थे| रास्तों में आगे बढ़ती अभी कुछ किलोमीटर ही चली थी कि हाइवे आने से पूर्व कार एकदम से रोक दी जाती है| वे शंकित सी नागेन्द्र जी ओर देखती हुई कारण पूछती है तो वे उन्हें आराम से बैठने का हौसला देते कार से बाहर उतरकर देखते है|
और जल्द ही उनका संशय साक्षात् हो जाता है, ये असीम आश्चर्य था कि कार के दो टायर एक साथ पंचर हो गए थे|
“अब !!!” वे हैरान एकदूसरे को देखती है|
“आप बेफिर्क रहिए – हम आपको सुरक्षित कल सुबह तक किसी भी हालत में आपके गंतव्य तक पहुंचा देंगे |” वे बड़े अदब से कहते उनको भरोसा देते किसी से फोन पर बात करने लगते है| वे कार के अन्दर बैठी बैठी बाहर का नज़ारा देख रही थी कि नागेन्द्र जी फोन करके चुपचाप कार के बाहर किसी द्वार रक्षक की तरह कार के बाहर खड़े थे| बाहर गहन अँधेरे के कारण ज्यादा कुछ समझ नही आ रहा था बस कलाई की घडी देखती वे समय को तेजी से बीतता हुआ देख रही थी| सिवाय इंतजार के उनके हाथ में कुछ था ही नहीं|
इंतजार करते उस ठंडी पुरवाई में वे एक दूसरें का हाथ थामे कब झपकी ले गई उन्हें पता ही नही चला| फिर कार के हौले से धक्के से उनकी नींद उचटी तो कई आवाजे कानों में पड़ी| एक आवाज पर तो वे चौंककर ही बैठ गई, ये आवाज नवल की थी वे आखिर कैसे भूल सकती थी| अब दोनों अँधेरे में ऑंखें फाडे इधर उधर देखने लगी कि नागेन्द्र जी की आवाज सुनी|
“बाई सा – अब हम यात्रा करके को तैयार है –|” कहते हुए वे ड्राईवर के बैठते खुद भी उसकी बगल की सीट पर बैठ जाते है|
उनके बैठते आगे की खुली खिड़की से नवल का चेहरा अंदर देखता हुआ कह रहा था – “नागेन्द्र जी आप अवध तक बेख़ौफ़ निकलिए – हम आपके पीछे पीछे रहेंगे – आखिर माँ सा ने हमे इतनी बड़ी जिम्मेदारी जो सौंपी है|” कहकर वह जानकर हँसी की अनावश्यक फुलझड़ी छोड़कर उनकी तरफ एक सरसरी निगाह डालता है जो अभी भी उसे घूर कर देख रही थी|
कार अब अपने रास्ते पर चल दी| फिर से आरामदायक यात्रा प्रारंभ हो गई| वे इस बात से मुस्कराई कि चलो उनका दुश्मन सिर्फ पीछे है उनके साथ नहीं| वे आराम से मुस्कराती हुई रात की खुमारी में फिर डूबने लगी| कार अब एक्सप्रेस को पकड़ने ही वाली थी कि कार की गति धीमी होने लगी, वे अपनी अधखुली आँखों से माजरा समझने लगी कि कार हिचकोले लेती रुक गई|
इससे पहले कि वे कुछ पूछती नागेन्द्र जी जल्दी से गाड़ी से उतर कर अँधेरे में गुम से हो गए| झलक शीशे के बाहर झाँकने पर चारोंओर बस अँधेरा ही पाती है, अभी शायद एक्सप्रेस वे दूर था और वे जयपुर की सरहद से भी नही निकली थी| पलक तो डरकर बाहर भी नही दे रही थी|
“बाई सा जल्दी निकलिए |”
अब उनके कानों से कोई हडबडाती हुई आवाज टकराई और उन दोनों ने बस अक्षरशः पालन किया क्योंकि ये आवाज नागेन्द्र जी की थी| वे दोनों बाहर निकलती ही है कि हवा की तेज गति अपने आस पास महसूस करने लगती है| अँधेरे की मध्यम रौशनी के कतरे में वे बस एक दूसरे को और अपने हाथ थामे नागेन्द्र जी को ही देख पाई|
वो मरुभूमि का तूफानी जलजला था, जो अकसर ही यहाँ आता रहता पर ये उससे कही तेज और भयावह था, उनदोनों ने एक दूसरे को कसकर थामा हुआ था, हवा की गति तेज होती जा रही थी मानों कोई बवंडर था जिसका चक्रवात उन्हें अपने घेरे में जबरन खींचे जा रहा था,आखिर उनका हाथ आपस में छूट गया, हवा और तेज हो उठी| चारोंओर बस धूलि कण का काला बादल छा गया| सब किसी तरह से अपने आप को बचा रहे थे| सर झुकाकर अपना अपना सर घुटनों के बीच डाले वे तूफान से अड़े थे, इसके सिवा उनके पास चारा भी नही था, बवंडर उनके चारोंओर अपना उत्पात मचाता रहा| गर्म हवा सम्पूर्ण शरीर में जहरीले बिच्छू सी सनसनाती दौड़ रही थी| कान सिर्फ हवा की चीर देने वाली आवाज सुन पा रहे थे, उसमे मानवीय चीख पुकार दब कर रह गई थी| जाने कितनी देर तक हवा अपना उत्पात मचाती रही किसी को अहसास भी नही हुआ जब धीरे धीरे आकाश पर छाई घनघोर कालिख पर कुछ भोर के आगमन की लालिमा झलकने लगी तब हवा का बवंडर कुछ शांत पड़ा| एक दम से हवा शांत हुई तो सभी खुद को तो फिर एक दूसरें की ओर देखते है| दो गाड़ियों के बीच झलक खड़ी देखती है कि उसका हाथ कसकर नागेन्द्र जी थामे थे तो उसके सामने खड़ी पलक का एक हाथ नवल तो दूसरा शौर्य थामे खड़े थे|
कहानी जारी रहेगी….आप बताए अब तक की कहानी क्या बता रही है आपको ताकि आपके सवालों के उत्तर लेकर आए कहानी……क्रमशः
Very very😊🤔🤔🤔😊👍👍