
एक राज़ अनुगामी कथा – 7
झलक के इस तरह से देखने से नवल और शौर्य को अपनी अपनी स्थिति का आभास होता है और वे पलक का हाथ छोड़कर उससे थोड़ा हटकर खड़े हो जाते है जिससे पलक लगभग दौड़ती हुई झलक के पास पहुँच गई| तब से धूल अंधड़ से परेशान अब सब अपने अपने कपड़े और शरीर झाड़ने लगे| अभी भी तूफानी बवंडर का असर चारोंओर दिख रहा है| दो गाड़ियों के बीच खड़े वे अपने चारोंओर देखते है कि सड़क के किनारे तने पेड़ की शाखाएँ थोडा झुक गई थी तो कुछ टूटकर गिरी पड़ी थी| कुछ ही पल में सड़क उड़कर आए कचरे से अट सी गई थी| दोनों गाड़ियाँ भी धूल से यूँ नहा गई थी कि उनका वास्तवित रंग तक धूमिल हो चुका था|
“इतने खराब मौसम की चेतावनी भी नही थी – |” शौर्य अपनी शर्ट की उपरी बटने खोलकर शरीर को हिलाकर धूल से खुद को मुक्त करने का प्रयास करता है|
“ऐसा तो इस मौसम में होना आम बात है पर ये कुछ अलग था – हमे पता ही नही चला कि बवंडर हमारे पीछे ही था|” नागेन्द्र जी अपना साफा हवा में हिलाकर झाड़ते हुए फिर आसमान की ओर देखते हुए कहते है जहाँ काले बवंडर सूर्य की लालिमा से धीरे धीरे कमतर होते नज़र आ रहे थे|
“नागेन्द्र जी बवंडर तो साथ था हमारे |”
कहते हुए शरारती आँखों से चुपके से झलक पलक की ओर देखता हुआ नवल धीरे से मुस्कराता है पर खुद को झाड़ने में व्यस्त नागेन्द्र जी और शौर्य का ध्यान उसकी नज़रों पर नही गया पर उसकी नज़र को भांपती झलक उसे घूरती हुई बस बोलने को थी कि पलक ने धीरे से उसकी कलाई पकड़ते उसे आँखों से मना कर दिया, ये देख वह दांत भींचे रह गई|
“अब दुआ है कि तूफान अपने घर चला ही जाए – क्यों नागेन्द्र जी आपको क्या लगता है – हम सुरक्षित तो पहुंचेंगे हमारे घर !!” कहते हुए नवल कुछ ज्यादा ही मुस्कराया जिससे झलक बुरी तरह से चिढ़ रही थी पर मज़बूरी में अपने जबड़े कसे रह गई|
“जी हुकुम अब तो मंजर साफ़ हो गया है – आप चाहे तो वापिस चले जाए हम इन्हें जिम्मेदारी से पहुंचा देंगे|” नागेन्द्र जी अपने कपडे दुरुस्त करते तनकर खड़े होते हुए कहते है|
ये सुन अब शौर्य भी नवल का चेहरा ताकने लगा कि अब वह क्या कहेगा, तो अपनी चिरपरिचित मुस्कान से मुस्कराते हुए नवल कहने लगा – “हाँ मंजर तो साफ़ हो गया तो क्या कहते हो शौर्य क्या हमे वापस जाना चाहिए ?”
“मौसम तो ठीक हो गया लेकिन माँ सा का तो हुकुम था कि इन्हें गंतव्य तक पहुंचाकर ही वापस आए |” कहता हुआ शौर्य अपनी आस्तीन समेटता हुआ कहता है|
अब दोनों ही पलक झलक की ओर देखने लगे जो अपने स्थान में अनमनी सी खड़ी थी कि जाने कैसी अधर में फंस गई वे, वे मन ही मन अफ़सोस कर रही थी कि अपने पापा से बात छुपाने की आखिर सजा मिल रही है कि अभी तक अपने हॉस्टल नही पहुँच पाई ये ग्लानिभाव अब उनके चेहरे के भावों से भी प्रकट होने लगा| ये देख नागेन्द्र जी को लगा कि वे ना पहुँच पाने से परेशान है तो उनकी तरफ अपनी सांत्वना भरी नज़र से देखते हुए आश्वस्त करते हुए कहने लगे –
“आप बिलकुल परेशान न हो बाई सा – हर हाल में हम आपको ग्यारह बजे तक आपके हॉस्टल पहुंचा देंगे|”
‘ग्यारह बजे !! तब तो हमे कॉलेज ही जाना पड़ेगा|’ पलक धीरे से बुदबुदाई|
झलक उसे टोकती हुई बोल उठी –
“पर हम तो धूल से नहा गई है ऐसा करते है पहले हॉस्टल ही चलते है|”
‘पागल है क्या ऐसे हॉस्टल में पहुंचेंगे तो कोई मानेगा कि महज एक घंटे की दूरी से हमारी ये हालत हो गई|’ पलक थोडा झुककर पलक के कानों के पास कहती है पर उनकी बातों की सरगोशी से बाकी तीनों का ध्यान उन्ही पर टिका था|
“कोई परेशानी है क्या बाई सा ?” नागेन्द्र जी उनको देखते पूछ बैठे|
“न नही तो – क्या अब चले |” झलक थोड़ा अचकचा गई थी|
“नागेन्द्र जी हमारा एक होटल हाईवे में भी है – वहां थोडा फ्रेश होने जाना चाहे तो आप ले जा सकते है – कसम से कोई प्रोब्लेम नही होगी आपको|” सबका ध्यान फिर एकबार उस कठोर आवाज की ओर गया, ये शौर्य था जो नागेन्द्र जी को देखता हुआ अपनी बात कह रहा था, नवल भी उसकी हाँ में हाँ मिला रहा था|
पलक अब अपने खुले बालों को हौले से हिलाकर एकतरफ कर रही थी यही वक़्त था जब उसकी नज़र सीधी नवल और शौर्य की ओर चली गई, जिनका ध्यान अभी उसकी तरफ नही था| दो एक जैसे दिखते चेहरे मानो एकदूसरे की कार्बन कॉपी हो, बलिष्ट शरीर से झांकती बाँहों की मछलियाँ, सीधी अकड़ी हुई गर्दन जिसके मुहाने से झलकती सोने की मोटी चेन, लड़कों के हिसाब से काफी खुला हुआ रंग उसपर एक सा चेहरा एक सी ऑंखें पर फिर भी कुछ था जो उनकी पहचान एकदूसरे से जुदा रखता, नवल के चेहरे पर छाई रहने वाली मोहक मुस्कान तो शौर्य के चेहरे पर टिकी बेमियादी कठोरता ही शायद उनदोनों के चेहरे को अलग रखती थी|
“नहीं नहीं हम दोनों ठीक है बस आप जल्दी से हमारे हॉस्टल पहुंचा दीजिए|” झलक जल्दी से अपनी बात कहती हुई उन सबकी तन्द्रा को भंग करती है|
“ठीक है नागेन्द्र जी आप इनको लेकर निकलिए हम आपके पीछे ही रहेंगे |”
नवल के कहते पलक और झलक झट से बिना समय गवाएँ पहली वाली कार में बैठ गई जिसकी ड्राइविंग सीट पर बैठते नागेन्द्र जी ने तुरंत ही रेस बढ़ा दी|
वाकई जमीं पर जहाज चला कर पहुंचे हो उस रफ़्तार से नागेन्द्र जी ने ग्यारह से पहले ही उन्हें हॉस्टल पहुंचा दिया| ये देख वे दोनों ख़ुशी से उछल ही पड़ी| पर दूसरे ही पल पलक को हैड मैम की जलती आँखों की याद आते उसके पसीने छूटने लगे| कार से उतरने से पहले वह सामान समेटती झलक को हिलाती हुई धीरे से बोली – ‘झल्लो – आ तो गए पर बताएँगे क्या |’
“पहले अन्दर चल तो |” कहती हुई झलक बैग लिए जल्दी से बाहर आती हुई पहले से बाहर खड़े नागेन्द्र जी के पास आती हुई कहती है – “थैंकयू सो मच अंकल – आप माँ सा को भी हमारी ओर से धन्यवाद कह दीजिएगा|”
वे हौले से झुककर हाथ जोड़े हुए कहते है – “आपको सुरक्षित पहुँचाना हमारा फर्ज था बाई सा – अब हमे विदा दीजिए |” कहते हुए वे ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलने लगते है|
वे दोनों भी मुस्कराकर उनको विदा देती हॉस्टल के गेट की ओर बढ़ जाती है ये देखे बिना कि उनसे दूर खड़ा नवल अभी भी उनकी ओर देख रहा था, उनके आँखों से ओझल होते वे दोनों गाड़ियाँ अब पीछे की ओर मुड़ गई थी|
दोनों अपनी आँखों से चौकसी करती हुई मुख्य गेट के छोटे गेट से अन्दर की ओर प्रवेश करती है| चौकीदार उनको देखकर अपने पपीतेनुमा मुंह से मुस्कराकर जैसे आने वाले खतरे के लिए खतरे वाली घंटी बजा रहा था| वे भी मरी मरी मुस्कान समेटती दबे पैर प्रांगण से आगे बढ़ाती रूम की ओर बढ़ने लगी, तभी गैलरी की ओर से आने की आहट सुन झलक पलक का हाथ पकडे जल्दी से दीवार से सटकर खड़ी हो गई| पलक के तो डर से पसीना छूट गया| वे अपनी छुपी आँखों से देखती है कि मेट्रन मैम सीधी वही चली आ रही थी|
‘अब क्या होगा झल्लो ?’ पलक घबराकर बुदबुदाई तो झलक उसे चुप रहने का इशारा करने लगी|
“अरे देखो यहाँ कौन छुपा है ?”
आवाज सुनते दोनों एकसाथ आवाज की दिशा की ओर देखती है तो बस गश्त खाकर गिरती गिरती बची| तानिया और शर्मीला तैयार खड़ी उन्हें ही घूर रही थी| वे शायद कॉलेज जाने को बस निकलने ही वाली थी| पलक की तो बस रुलाई ही फूट गई| झलक किसी तरह से उसकी कलाई पकडे उसे चुप रहने का इशारा करती उन दोनों को घूर ही रही थी कि पीछे से एक और आवाज ने उनके दिमाग को दूसरा झटका दिया|
“यहाँ क्या शोर मचा रखा है ?”
“कुछ नही मैम – हम तो कॉलेज के लिए निकल रही थी फिर सामने ये दोनों दिख गई|” मेट्रन मैम को जबरन अपनी ओर बुलाती उंगली से पलक झलक की ओर इशारा करती हुई कहती रही – “ये तो हमेशा घर से सात बजे ही आ जाती थी आज बाराबंकी से आने में इनकी कैसे ऐसी हालत हो गई जैसे मीलों दूर से आई हो |” तिरछी मुस्कान से मुस्कराती वे कह रही थी और दोनों किसी अपराधी की तरह खड़ी रह गई| मेट्रन मैम भी अब अपनी तनी हुई भौं से उनकी तरफ आती उन दोनों को ऊपर से नीचे देख रही थी| पलक तो डरकर अपनी ऑंखें ही बंद कर लेती है| जैसे जिबह तक पहुँच चुका बकरा हार मान लिया हो…….
क्रमशः…………….जारी रहेगी कहानी में देखे क्या होगा बेचारी झलक पलक का..??
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