
एक राज़ अनुगामी कथा– 9
तानिया और शर्मीला के पास इस समय जाने के सिवा और चारा भी क्या था| वे अपना सा मुंह लिए चली गई तो हेड मैम फिर पलक झलक की ओर ध्यान देती हुई बड़े नर्म स्वर में बोली –
“अब तुम लोग भी जाकर रेस्ट करो बहुत परेशान हो ली |”
मैम की बात सुन दोनों फिर से एकदूसरे का चेहरा देखती है, अब अगर कॉलेज नही गई तो क्या होगा??
मैम अपनी बात कहकर मुड़ने को हुई तो झलक पुकार उठी – “मैम हमारा कॉलेज आज जाना जरुरी है |”
वे दोनों मैम औचक उनका चेहरा देखती रही मानों आँखों से ही पूछ रही हो कि क्यों ??
“आपको मैंने बता दिया और आपने मेरी बात समझ भी ली लेकिन पापा को कैसे समझाउंगी – इतनी देर से हॉस्टल आने पर वे बहुत नाराज़ होंगे क्योंकि आज वे हमारे कॉलेज में फॉर्म में साईन करने आने वाले थे अब अगर हम नहीं गए तो क्या कहेंगे ??” झलक जितना भोला मुंह बना सकती थी उतना आँखों में ढेर सा भोलापन भरती हुई बोली|
“ओह्ह !!”
“एस मैम |”
“तो तुम फोन करके कुछ भी कहकर आज के लिए मना कर दो |”
“पर वे बात समझेंगे बाद में डांटने पहले लगेंगे और फिर मुझसे तो झूठ भी नही बोला जाएगा – |” पलक ये सुन बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबा पाई, झलक अभी भी कह रही थी – “मैम हम चाहे कितनी भी थकी है पर कॉलेज चली जाती है |”
“अरे नहीं नहीं रुको -|”
अब दोनों आशान्वित भाव से उनका चेहरा ताकने लगी|
“चलो ऑफिस से फोन कर लो – |”
आँखों ही आँखों में एकदूसरे को देखती वे हेड मैम के पीछे पीछे चलने लगी| फिर उनके कहने पर टेबल पर रखे टेलीफोन से नंबर मिलाकर वे कुछ कहती उससे पहले झट से रिसीवर उनके हाथों से लेकर मैम ने चट से अपनी बात कहकर उनको बताने लगी कि आज वे कॉलेज न आए क्योंकि हॉस्टल में किसी संस्कृतिक कार्यक्रम में इन दोनों की सहायता के लिए रोक लिया है|
ये सुनते वे मुस्कराकर फोन काटकर उनको जाने को कहती है| दोनों झट से अपने रूम में आकर ही रूकती है| जल्दी से रूम का दरवाजा बंद कर तब से हलक में अटकी सांस गहरे से छोड़ती पलक एकदम से झलक पर टूट पड़ी|
“पागल है तू – एक पल को लगा मुझे फसाकर बस मार ही डाला तूने|”
झलक पलक की हालत पर कसकर हँस पड़ी|
“हाँ हाँ हँस ले – अगर किसी दिन पापा को पता चला तब मैं नही दूंगी तेरा साथ – तब तू जाने और तेरा झूठ |” कहती हुई बैग को टेबल पर रखती बेड पर पीठ के बल गिरती हुई लेट गई|
झलक भी उसके बगल में लेटती हुई बोल उठी – “मेरा झूठ ही बचाता है और जो तू सोचती है कि आराम से तू निकल लेगी तो तू भूल जा – मेरा अच्छा बुरा सब तेरे साथ – समझी|” उसकी तरफ देखने झलक कोहनी के बल सर टिकाती हुई बोली|
“हाँ वो तो झेल ही रही हूँ – जाने कौन सी बकबास ट्रेन में रिजर्वेशन कराया था तूने – ट्रेन ही नहीं आई – सब तेरे कारण |”
“अच्छा जी और जो तूफान आया वो भी मेरे कारण ही होगा – है न !”
“हाँ |”कहकर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ी |
“सच में झल्लो एक ही दिन में कितनी मुसीबत देख ली – बस शुक्र है कि सही सलामत वापस आ गए |” एक दम से ये कहते पलक के ध्यान में नवल और शौर्य का चेहरा घूम गया तो उसके होंठों के किनारे मुस्करा उठे|
अचानक उसको मुस्कराते देखते झलक उसे हौले से हिलाती हुई पूछती है – “क्या !!”
“उन दोनों का चेहरा एक दम सेम टू सेम है न !”
उस पल झलक को बताने के लिए उसे नाम लेने की जरुरत भी नही पड़ी और उसने समझ भी लिया कि वह किसकी बात कर रही है|
“वो सो कॉल राजकुमार !! हाँ एक तो लंगूर है दूसरा भी वही होगा |”
कहकर दोनों फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी| फिर हँसते हँसते रुककर झलक पूछती है –
“अच्छा ये बता उस वक़्त दोनों ने तेरा हाथ क्यों पकड रखा था ?”
“मुझे क्या पता – उस वक़्त तो तूफान इतना तेज था कि लग रहा था जैसे मैं उड़ ही जाउंगी वो तो इनका हाथ पकडे मैं किसी तरह से खुद को सम्भाल पाई |” कहते हुए पलक सब कुछ याद करने लगी, ऐसा करते उसके बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई|
आज का दिन उनका अच्छा ही गुजरा, जल्दी से खा पीकर वे सोने की तैयारी करने लगी| हॉस्टल के प्रत्येक रूम में दो की जगह थी, पलक झलक बहने होने से एक ही रूम को शेअर करती थी| और बाकियों की तरह दो अलग अलग बेड करने के बजाये दोनों ने अपना अपना बेड जोड़कर डबल बना लिया था, अब अच्छे से दोनों फैलकर उसमें लेटती| पलक तो डरकर हमेशा झलक का हाथ पकड़कर ही सोती| बिस्तर सही कर झलक जल्दी से बिस्तर पर लगभग कूदती हुई बोली – “बाई गॉड आज अपना ये बिस्तर किसी स्वर्ग से कम नही लग रहा – एक रात ट्रेन में आधा सोई तो दूसरी रात गाड़ी में अधकचरी सोई अब तो चैन से फैलकर सोना है बस |”
झलक भी मुस्कराती हुई लेट गई| सच में दोनों इतनी थकी थी कि बिस्तर पर आती ही गहरी नींद की आगोश में चली गई| धीरे धीरे रात गहराने लगी| दोनों ही गहरी नींद में सो रही थी कि अचानक एक चीख के साथ पलक उठ बैठी| उसकी आवाज सुन झलक की भी नींद एकदम से उचट गई| वह अपलक पलक को देखती है जो घबराहट से पसीना पसीना होती गहरी गहरी सांसे ले रही थी मानों मीलों दूर से भागकर आई हो|
“क्या हुआ तुझे ?” झलक उसके कंधे पर अपनी बांह फैलाती हुई उसे लगभग झंझोड़ती हुई पूछ रही थी – “बोल न क्या हुआ – क्या कोई डरावना सपना देखा ?” झलक उसके कम्पन से हौले से कांप गई थी|
पलक डरी डरी आँखों से उसे देखने लगी| फिर जैसे जबरन खुद को चेतन में लाती हुई उसकी तरफ मुड़ती हुई अपनी कपकपाती आवाज में कहती है –
“मुझे नही पता बस लगा कोई मेरे बहुत पास है |”
झलक अजीब नजरो से उसे देखने लगी थी|
“मतलब कोई ऐसा कि मैं डर जाऊ – झलक सच में बहुत डर लग रहा था|” पलक घबराकर उसके दोनों हाथ पकड़ती हुई बोली|
“ओहो तो कोई सपना देखा होगा – यहाँ तेरे मेरे सिवा कौन है ?”
“नहीं सच में एक बार को मैंने आंख भी खोली तब कोई परछाई थी बहुत लम्बी |” वह अभी भी कांपती कांपती कह रही थी|
पलक की बात सुन वो चारोंओर एक बार को नज़र घुमती हुई फिर उसकी तरफ देखती हुई अपना हाथ छुड़ाती उसका हाथ पकड़ती हुई बोली – “कुछ नही है – होता है अकसर कि सपना भी सच्चा लगता है – चलो अब सो जाओ और मुझे भी सोने दो – फालतू में डरती रहती है – अब सो जा न – देख एक बज रहे है – अब डर लगे तो डरियों पर मुझे मत जगाईयों – समझी |” उसका हाथ झटके से छोड़ती चादर तान झलक फिर से लेट जाती है|
लेकिन पलक इतना डर गई थी कि अब नींद का एक भी कतरा उसकी आँखों में नहीं था| पर कर भी क्या सकती थी| एक बार को खुली खिड़की का हिलता पर्दा भी उसे भयावह लग रहा था| अब झलक को भी नही उठा सकती थी तो कुछ सोच तकिया के पास हाथ से टटोलकर एक रेडियों पा लेती है| और सर्च पर लगाकर उसकी आवाज धीमी करती अपने कानों के पास रख लेती है| एक बार सर्च खाली जाने पर वह दुबारा सर्च पर डालती है अब कोई स्टेशन लगते कोई संगीत का स्वर शुरू हो जाता है पलक को अच्छा लगता है तो कानों के बहुत नजदीक रेडियों रखकर वह ऑंखें बंद कर लेती है, अब गीत शुरू हो चुका था…. “आखियाँ सु आसूणा म्हारे नित बरसे………|”
सुनते सुनते पलक नींद में कब चली गई उसे पता ही नही चला| सुबह उसे कसकर झिंझोड़कर झलक उठाती हुई कह रही थी – “उठ न पल्लो – आज कैसी कुंभकर्ण की नींद सो रही है – |”
झलक के हिलाने से वाकई वह गहरी नींद से उठकर अब उसकी ओर देखती है|
“जल्दी से तैयार हो जा – मुझे लेट नही होना |” कहते कहते झलक कपड़ो के ढेर में से अपने लिए आज पहने जाने वाले कपड़े का चुनाव कर रही थी| उसका ध्यान ही नहीं गया कि पलक खोई खोई सी उससे कुछ कह रही थी –
“पता है कल कोई गाना सुनते हुए नींद आ गई – पता नही कुछ समझ नही आई भाषा – शायद कोई स्थानीय चैंनल लगा होगा – देखती हूँ कौन सा था |” कहती हुई पलक रेडियों को उठाकर उसका स्टेशन चेक करती हुई एकाएक चौंक जाती है – “रात में तो कोई स्टेशन लगा था और मैंने छुआ भी नही फिर सब जीरो स्टेशन क्यों दिखा रहा है|” अपने में ही बुदबुदाती पलक हैरान थी जबकि झलक बार बार सूट को अपने शरीर पर लगा लगाकर तय नही कर पा रही थी कि वह आज कौन सा सूट पहने….!
क्रमशः…………….जारी रहेगी कहानी……
Very 😃😄😁😁😁😆😆😲😲😲