Kahanikacarvan

एक राज़ रूहानी सफ़र का – 2

निधि बुरी तरह से घबराई और डरी हुई थी, वह किसी तरह से सामने नजर उठाकर देख पाई जहाँ उसके पति की कार से वहीँ दो अजनबी नशे में झूमते एक दूसरे से टकराते आपस में कुछ कहते हुए चले आ रहे थे| जतिन कहाँ है !! क्या हुआ होगा उसके साथ !! ये सोचकर उसका कलेजा कांप उठा| हर एक पल बीतते उसके अन्दर का डर और विस्तार होने लगा| उस पल उसका जी हुआ कि मौका देख उसे वहां से निकल जाना चाहिए पर अपने पति का ख्याल आते उसने सोचा कि उसे सुनना चाहिए ताकि जतिन का कुछ पता चल सके| उसने आवाज की ओर ध्यान लगा दिया|

“अबे तू मुझे धक्का क्यों दे रहा है बे|”

“मैं नहीं तू दे रहा है धक्का – मुझसे ज्यादा पी है तूने|” दोनों शराब में चूर एकदूसरे को धक्कामुक्की करते चल रहे थे|

फिर एक गन्दी गाली दे कर कहता है – “मुझे पता है तुझे साले किस बात की जल्दी है|”

ये कहते दोनों की भद्दी हंसी उस पल वातावरण में गूंज उठती है जिससे एक हूक निधि के दिल में भी उग आती है उसपल उसके पैर थरथरा जाते है|

“पर यार जैसलमेर टूर अपना बढ़िया हो गया लेकिन ये जगह कौन सी लाया है तू ?” एक शराबी अपनी लड़खड़ाती नजर इधर उधर घुमाते हुए पूछता है|

“पता नहीं अपन ने उधर बोर्ड पर कुछ लिखा देखा था|” दूसरा अपने पीछे की ओर इशारा करता हुआ कहता है|

कहते कहते सोचने की मुद्रा में अपना सर खुजाते हुए कहता है – “कल.. नहीं दारू पता नहीं साला कोई गाँव है कुल…|” फिर झींकते हुए – “चल साले क्या रखा है नाम में – चाहे जो गाँव हो या जंगल हम तो मनाएँगे मंगल |” कहता हुआ एकबार फिर कसकर हँस पड़ता है|

निधि ने जो सुना उससे उसके पैरों तले जैसे जमी ही खिसक गई| यहाँ आने से पहले उसने जैसलमेर टूर की अच्छे से जानकारी ली थी उसमें एक जानकारी जिसपर वह जतिन से और चिपकती हुई बोली थी|

“जतिन पता है वहां एक भुतहा गाँव भी है नाम है कुलधरा गाँव, श्रापित है हम वहां नहीं जाएँगे – पक्का न !!”

“क्यों डर लगता है ?” जतिन भी उसे अपनी बाहों में लेता हुआ पूछता है|

इसपर निधि बड़ी मासूमियत से हाँ में सर हिला देती है|

“और अगर मैं तुम्हे वहां अकेला छोड़ दूँ तो !!” ये कहकर देर तक जतिन की हँसी की खनक उसने अपने आस पास महसूस की थी| पर इस वक़्त ये सोचकर कि वह यहाँ उसी कुलधरा के गाँव में फंसी है सोचते ही जैसे उसकी चेतना गुम होने लगी| उसके सामने एक तरफ कुआँ तो एक तरफ खाई थी|

***

निधि ने थूक की गटकन से अपना सूखा गला तर किया| इससे पहले कि वो कुछ सोच पाती कि उन अजनबियों की तेज़ आवाज़ उस वातावरण को चीर गई|

“वाह लड़की अभी तक बंधी है…. आजा|” एक शराबी दूसरे को इशारा करता हुआ कहता है – “जा तू उसे खोल, देख हमे देख कैसे छटपटा रही है|”

निधि दीवार की ओट से सुनती अंतरस काँप गई| वह तो यहाँ है तो अंदर कौन बंधा है उसकी जगह !! ये सोचते जैसे डर की सिरहन उसके पूरे देह को हिला गई| वह उलटी दिशा की ओर भागी| जितना दम लगाकर वह भाग सकती थी वह भागने लगी पर थकान और उस पल रेत की वजह से उसके कदम बार बार धीमे हो जाते| भागते भागते उसे उनकी चीख सुनाई पड़ी जिससे डर और दहशत से उसकी चाल और धीमी हो गई और चेतन शुन्य हो कर वो जमीन पर गिर पड़ी|

वह असहाय सी रेतीली जमीन पर पड़ी थी कि अचानक उसने महसूस किया वहां कुछ ही देर में ढेर सारी हलचल बढ़ गई है, उसने पलट कर देखा तो लोगों का जत्था उसकी ओर बढ़ा आ रहा था| उसने रेत में सने हाथो को कपड़े में पोछ कर अपनी आँखों को मलते हुए उस ओर देखा तो उसकी सारी देह जैसे ठंडी हो गई| उस पल न उसका शरीर वहां से हिला न चेतना|

वो जत्था लगातार उसकी ओर बढ़ा आ रहा था और वह चाह कर भी वहां से हिल नहीं पा रही थी| उसने गौर से देखा वो सब गाँव वाले लग रहे थे, आगे आगे आदमी, बच्चे, औरते और सब के सब सामानों को अपने कन्धों पर उठाए थे| निधि चाह कर भी वहां से टस से मस नहीं हो पा रही थी| उसके हलक में जैसे चीख दब के रह गई थी| निधि अपनी तेज़ होती सांसो से बस उस ओर देखे जा रही थी| जत्था अब उसके नजदीक आ गया| उस पल निधि कस कर चीखना चाहती थी पर आवाज़ जैसे उसके हलक में ही सूख गई| उस पल जैसे उसकी साँस गले में अटक सी गई, जत्था उसके शरीर को पार करता निकल गया| निधि सिर्फ हवा की गर्मी को महसूस करती रह गई जैसे कोमा में पड़ी आंखे खोले अपने जीवन को वेंटिलेटर में चलता देख रही हो|

एक पल में ही जत्था उसके पार जाते उस रेतीली जमी में गायब सा हो गया| इसके अगले ही पल वेंटिलेटर से जैसे बाहर आ गई निधि और उठ कर खड़ी हो गई और बेतहाशा भागने लगी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कहाँ किस ओर वह जाए बस बेतहाशा भागे जा रही थी| कि उसे लगा जैसे वह किसी चीज़ से टकराई है| एक आह के साथ उसने देखा उसके सामने पल भर में वहां कोई गाँव सा दिखाई दिया| जहाँ सभी लोग थे आदमी, औरते, बच्चे| ये देख  उस पल उसके अन्दर के डर को कुछ राहत हुई| उसने देखा अपने घर के बाहर एक औरत अपने दुधमुहे बच्चे को स्तनपान करा रही है| उसने उसके पास जाकर एक साँस में अपनी गाथा कहने लगी –

“वो मैं न – यहाँ फंस गई हूँ – प्लीज़ मेरी हेल्प करिए…|”

कहते हुए वह लगातार उस औरत से अपनी कह रही थी पर ये क्या उस औरत ने एक बार भी उसकी तरफ नहीं देखा| अगले ही पल निधि की सांसे थमी की थमी रह गई| तभी उस औरत ने उसकी ओर देखा| निधि ने देखा उसका पूरा सपाट चेहरा और आँखों की जगह सफ़ेद गोली जैसे टकी थी| काटो तो खून नहीं वह चिल्ला पड़ी| उसके सामने पूरा निर्जीव लोगों का बसा बसाया गाँव था| सब तरह के लोग अपने काम में तल्लीन उसे दिख रहे थे लेकिन किसी का भी ध्यान उसकी ओर नहीं था| फिर उसे याद नहीं कि कितनी तेज गति से वह वहां से भागी कि उसने पीछे पलट कर भी नहीं देखा| उन बिन चेहरे वाले लोगों के बीच से गुज़रते वह लगातार चीखती रही और भागती रही| उसे इसके अवाला कुछ नहीं सूझ रहा था| उसकी चेतना जैसे शून्य हो चली थी| बस बेतहाशा बस भागी जा रही थी| रेत पर पैर कभी किसी कंकाल से टकरा जाता कभी वह किसी टूटी दीवार से टकरा जाती| उसके शरीर में जगह जगह चोटों के निशान पड़ गए थे पर डर और दहशत से उसकी चेतना गुम होती जा रही थी| फिर सहसा एक तेज धक्के से वह किसी गेंद सी रेत में लुढ़क गई|

फिर दूर कोई रौशनी उसकी ओर बढ़ती हुई आती है निधि तो बेहोश पड़ी थी पर रौशनी उसकी ओर आती रही फिर एक कराह के साथ उसने अंतिम बार आँख खोली सामने कुछ धुंधले चेहरे दिखे और वह फिर बेहोश हो गई|

क्रमशः…………

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