Kahanikacarvan

एक राज़ रूहानी सफ़र का – 5

जैसलमेर की ठंडी रात में बैंच पर ऑंखें मूंदे जतिन बैठा था जिसके बगल में बैठा वैभव अभी अभी कॉफ़ी लाया था|

“भईया कॉफ़ी ठंडी हो रही है |” वह कॉफ़ी का कप फिर जतिन की तरफ बढ़ाता हुआ कहता है|

“किस मुसीबत में मेरी वज़ह से निधि फंस गई|”

“ऐसा क्यों कह रहे है आप – होनी को कौन टाल सका है – वैसे उस दिन हुआ क्या था?”

कप अपने हाथ में लेता हुआ जतिन वैभव की ओर मुड़ता हुआ कहता है – “सब ठीक था हम सैंड ड्युन्स से वापस लौट रहे थे – रास्ता पूरा सुनसान था – मैं रात की ठंडी का आनंद लेते कार आराम से चला रहा था तभी किन्ही दो अजनबियों ने हमसे लिफ्ट मांगी और बताया कि उनमें से किसी एक को चलते वक़्त गिरने से चोट लग गई – मैंने विश्वास कर लिया और उन्हें अपनी कार में लिफ्ट दे दी |”

“बिना जाने क्यों लिफ्ट दी आपने !!” वैभव कह उठा|

“क्योंकि ऐसा वैसा कुछ विचार आया ही नहीं मेरे मन में – मेरा यहाँ के लोगों के साथ बहुत अच्छा अनुभव रहा – यहाँ के लोग सच में बहुत अच्छे है पर नहीं ये लोग कहीं बाहर से आए थे और आखिर निधि का डर सच्चा हो गया – पीछे से उन लोगों ने हमें बेहोश कर दिया और जब मुझे होश आया तो मैं सड़क के किनारे पड़ा था और चारोंओर बस अँधेरा था – ये तो गनीमत मानों मेरा मोबाईल मेरे पास था जिससे मैंने झट से पुलिस की सहायता ली और दूसरी अच्छी बात ये रही कि निधि का मोबाईल उस कार में ही था जिससे तुरंत उसको ट्रैक करते हम कुछ ही घंटों में उन तक पहुँच गए |”

“भाभी कुलधरा के गाँव कैसे पहुंची !!”

“हम जहाँ ट्रैक करके पहुंचे वो कुलधरा के पास की जगह थी जहाँ मेरी कार का एक्सीडेंट हो गया था और हमे वही दोनों अजनबी मरे हुए मिले तब हम आगे बढ़े तो रेत पर बेहोश हालत में निधि मिली शायद उनसे भाग आई थी निधि – वो तो शुक्र है उसके साथ कुछ बुरा नही हुआ नहीं तो मैं खुद को कभी माफ़ नही कर पाता |” कहते कहते अब वह वैभव के चेहरे की ओर देखता हुआ कहता है – “देखा जाए तो सब तुम्हारी वज़ह से हुआ|” कप नीचे रखता हुआ जतिन कहता है|

वैभव चौंकते हुए कह उठा – “अब मैंने क्या किया ?”

“तुम्ही तो थे जिसने जैसलमेर सुझाया – अच्छा खासा मैंने गोवा का प्लान किया था – न यहाँ आते न ऐसा कुछ होता |”

वैभव का उतरा मुंह देखता हुआ जतिन कहता है – “ये सब जो तुम इधर उधर घूमने के शौक़ीन हो न इसी कारण हुआ – तुम पिछले साल यही घूमने आए थे न – अभी भी कहता हुआ ये सब आदते छोड़ो और इस बार पीओ की तैयारी पर ध्यान दो तो मेरी तरह तुम्हारी लाइफ भी सेट हो जाएगी|”

वैभव अपने भाई की बात पर चिढ़ते हुए बोल उठा – “अब भईया घूमने का पढाई से क्या ताल्लुक है|”

“है क्यों नहीं – खैर छोड़ो अब ये रात बीते तो कल यहाँ से निकले किसी तरह से|” कहते हुए जतिन उबासी लेता अपने पैर बैंच पर फैला लेता है ये देख वैभव दोनों कप उठाता डस्टबिन की तरफ बढ़ जाता है|

नींद दोनों की आँखों में नही थी लेकिन जहाँ जतिन ऑंखें बंद किए पड़ा था वही वैभव गलियारे के कोने में खड़ा कोई फोन मिलाता है, उधर से नीतू निधि की छोटी बहन फोन उठाती है| फिर दोनों अपनी प्यार भरी दुनिया में खोते हुए बात करने लगते है|

वैभव कहा रहा था – “काश ये सब नहीं होता – क्या सोचा था कि भाभी आएगी तो फिर हम दोनों के लिए रास्ता साफ़ हो जाएगा|”

वो पीछे की खनकती आवाज़ सुन रहा था कि एकाएक फोन से घरघर की आवाज़ हुई और “मन्ने आपण  घर से न जाणा सा” (मुझे अपने घर से नहीं जाना) आवाज़ गूंजी जैसे दूर कही से आती हुई आवाज़ हो|

वैभव चौंक गया| ये नीतू की आवाज़ तो नहीं थी|

“हेलो हेलो -|” वैभव पुकारता है|

“हाँ नीतू !!!”

जबकि नीतू आराम से कह रही थी – “अरे हाँ कहाँ चले गए – मुझे लगा फोन कट गया|”

नीतू सहज थी पर वैभव के चेहरे की हवाइयां उडी हुई थी, वह धीरे से नीतू से पूछता है – “तुम्हेँ राजस्थानी आती है क्या !!”

“क्या !! मजाक कर रहे हो क्या – पता है न पापा की लास्ट पोस्टिंग राजस्थान होने से बस कुछ सालों पहले ही तो हम यहाँ आए – पर तुमने ये क्यों पूछा !!”

नीतू पूछ रही थी और वैभव की आंखे डर से चौड़ी हुई जा रही थी और मन में प्रश्न चल रहा था कि फिर वो आवाज किसकी थी ?

***

वैभव के लिए उस आवाज़ को बता पाना और भुला पाना दोनों दुश्वार हो गया…पूरी रात जैसे तैसे कटने के बाद सुबह उसकी नीद लगी तो जतिन ने उसे उठा दिया…

“उठो चलना नहीं है क्या..?”

वैभव हडबडा कर उठता अपने भाई का चेहरा देखता रह जाता है जो उसे बता रहा था – “मैं एम्बुलेंस की व्यवस्था करने जा रहा हूँ – तुम यही रुकना |’”

जतिन के जाते वैभव गुजरी रात की बात सिलसिलेवार तरीके से याद करता है तो उसके कानो में फिर वही आवाज़ जैसे कौंध उठती है जिससे घबरा कर वह अपने आस पास देखने लगता है पर उस गलियारे में अभी उसके सिवा वहां कोई नहीं था| वह उठकर अपनी भाभी के वार्ड तक आता है और कांच से अन्दर की ओर झांकता है, उसे वहां शांत भाव से लेटी हुई वह दिखती है| फिर वह गहरा श्वास छोड़ता बैंच पर आकर बैठ जाता है| तभी जतिन का फोन आता है जो उसे बता रहा था कि अभी तक एम्बुलेंस की व्यवस्था नही हो पाई है, ये सुनते जैसे वैभव के मन का डर का आकार और भी विस्तार हो जाता है| वह झट से अपने भाई के पास पहुँच कर देखता है कि हॉस्पिटल के बाहर खड़ा जतिन जाने किससे उलझ रहा था|

“भाई सा मैं बोलूं हूँ कि मन्ने जाणे में के आफत है पर पता नही क्यों गड्डी स्टार्ट न हो रही – जैसे चक्का जाम हो गया हो|”

जिस पर जतिन कहने लगा – “तो मैं बोल रहा हूँ न दूसरी ले चलो – दो तो है यहाँ |”

“काई बात करे हो भाई सा एक तो यहाँ इमर्जेसी पर रहणी है न – दूसरी पता न क्यों ख़राब हो गई – पहले कभी ऐसा न हुआ |”

जतिन उसकी बात पर बुरा सा मुंह बनाता अब कही और फोन लगाने लगता है| कुछ दूर खड़ा वैभव सारा नज़ारा देख रहा था, इससे उसके मन में अज़ब ही हलचल मची थी| वही खड़े खड़े जतिन जाने कितने हॉस्पिटल में फोन लगा डालता है पर कही से भी एम्बुलेंस की व्यवस्था होती नही दिखती इससे जतिन की झुंझलाहट बढ़ जाती है तब वैभव उसके पास आते हुए कहता है –

“भईया क्यों न हम कुछ दिन यही रुक जाए !!”

“क्या बात करते हो – क्यों रुकेगे हम यहाँ ?” जतिन एकदम से बरस पड़ा|

वैभव समझाना तो चाहता था कुछ तो है जो उन्हें यहाँ से नहीं जाने दे रहा वह ये समझ रहा था पर जतिन से कह पाने की हिम्मत नहीं कर पाया तब अपनी बात घुमाते हुए उसे कुछ दिन के लिए रुकने के लिए मनाने लगता है|

“कैसी बात कर रहे हो हम कब तक होटल में रुकेगे ?”

“होटल नही – मेरा एक दोस्त है प्रमोद उसका फ्लैट यहाँ पर है – मैं पिछली बार उसी के साथ रुका था – मैं सब एरेंजमेंट कर लूँगा – आप भरोसा रखो |”

जतिन उसे रोकता रह गया पर वैभव हवा के झोंके सा वहां से झट से निकल गया| फिर ही जतिन यहाँ किसी तरह से और नही रुकना चाहता था| ये ठानते अब वह एक टूर बुकिंग वाले के यहाँ फ़ोन कर एक मिनी बस का इतंजाम करने फोन करता है| वहां बात पक्की हो जाती है और वह आधे घंटे के अन्दर ही आने का वायदा करता है जिससे संतुष्ट होता जतिन अब राहत की साँस लेता हॉस्पिटल के अन्दर चल देता है|

वह तेज़ कदमो से अन्दर आता है| वह अभी निधि के वार्ड तक पहुँचने ही वाला था कि उसके वार्ड के अन्दर उसे हलचल होती महसूस होती है जिससे वह वहां लगभग दौड़ता हुआ आता है| उसकी नज़रे वार्ड की देहरी पर ही खड़े खड़े देखती है कि नर्स उसकी पत्नी निधि की ओर झुकी हुई थी और निधि बेड पर पड़ी पड़ी तेज़ तेज़ सांसे ले रही थी| ये देखते जैसे उसके पैरो तले जमीं ही सरक गई, वह घबराया हुआ उस ओर आता है| नर्स किसी तरह से उसे सँभालने की कोशिश कर रही थी पर उससे बावजूद निधि की देह बेचैन हुई जा रही थी| फिर जतिन को आँखों से वही ठहरने को कहती डॉक्टर को बुलाने बाहर की ओर भागती है| जतिन बेबस सा ये दृश्य देख रहा था कि निधि की हार्ट रेट सीधी लकीर सा उसके जीवन से लगातार सरकती जा रही थी और वह बेबस सा कुछ नहीं कर पा रहा था| उसका मन रुआंसा हो उठा कि अभी सब कुछ सामान्य से कैसे ये सब हो गया ? उसने तो निधि की जिम्मेदारी ली थी अब वह सबको आखिर क्या जवाब देगा…अभी तो उनकी दुनिया ठीक से शुरू भी नही हुई फिर कैसे ईश्वर उनके साथ ऐसी निर्ममता कर बैठा !!!

क्रमशः……..

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