Kahanikacarvan

जब मैं मौन रहती हूँ….कविताएँ

कविता 

*तुम्हारी याद …..कविता

तुम जंगल जंगल फिरो

मैं भी आती हूँ

पीछे तुम्हारे

तुम जिस सूखे दरख़्त के पास

रुकोगे,

वहां मेरा इंतजार

जरूर छोड़ देना

संभव है

मेरी देह

तुम्हारे क़दमों का

साथ न दे सके

पर

उन झरते पत्तों की

हर कसमसाहट में

नमी के अंश सी

मेरी याद

परछाई की तरह

सदा साथ रहेगी तुम्हारे ||

*ख्वाब सा..कविता

बुनती हूँ स्वेटर
या बुनती  कोई ख्वाब नया
एक एक फंदे 
बढ़ाते घटाते
बनते मेरे ख्वाब जैसे
टूटती उम्मीदों  से
कुछ गिरते है फंदे
डालते नए आकार से
कभी सवँरते  सपने
नए रंगो से जुड़ते 
रेशे रेशे होते है सपने 
बंद होती सलाई से
कभी कंठ में कसते  सपने
फिर पूरा होते
न जचँने पर
उधेड़ती हूँ

एक नए सपने की
चाह लिए ||

*सवाल कैनवास पर….कविता

चित्रकार की कल्पना 
कैनवास पर फ़ैल जाती है 
फिर दिखती कहीं 
उदास औरत की उदास देह 
सर्वस्य समर्पण पर भी 
चिथरों में समेटे कहीं 
दिखती उसकी चिथरी देह 
बार बार वो उकेरता है औरत 
बार बार दिखाता है उसकी 
उन्मुक्त देह की लकीरे 
अब भी उदास है 
कैनवास पर भी औरत 
और बिलखती पूछती है 
‘आदमी की देह को भी 
उघारों न’ ||

*स्वीकृति…..कविता

तुम्हारी ‘हाँ’ ‘हूँ’ के आगे भी

समझ लेती थी

अनकही तुम्हारी

तुम्हारे मौन को भी

जाने कैसे पढ़ पाती थी मैं

तुम्हारे बिन कहे कुछ भी

मैं सब समझ जाती थी

और बुनती जाती थी

तुम्हारे अनदेखे,

बिन शक्ल के

अन्दर के आदिम को

जो जाग जाता था कभी भी

और चुसे शब्दों में

बता देता था सीमाएँ मेरी ||

*मेरी एकांकी…..कविता

यूँ मुझसे

बात करते करते

कब

मेरी बाहों से सरकते

तुम,

नींद की

आगोश में

चले जाते हो

और मैं,

युही जाने कब तक

बुनती रहती हूँ

उलहानों,शिकायतों और

किस्सों के

ताने बाने

फिर

एक ऊब की चादर

ओढ़ कर

मैं भी सो जाती हूँ,

सुबह चादर की झाड़न में

झड़ते है

कुछ हल्के,भारी

पलों के तिनके

फिर

देर शाम तक चुनती

रहती हूँ

अपनी एकाकी||

*साथ – साथ…..कविता

कितनी देर तक
रहते है हम साथ साथ
करते है तमाम बातें
लोगों की, बच्चों की
और दुनिया की
पर कितना करते है हम
हमारी बातें,
जंगल की ज़मीन सी
ढकी हमारे मन की परतें
जाने पिछली बार कब 
किस बात से उघड़ी थी
कब दूधिया चाँद
पर साथ साथ गई थी 
नज़र हमारी
रोज़ हॅसते चेहरे हमारे
कम बिन बात पर 
देख एक दूसरे को मुस्कराए थे,
ये गुप्त एकाकी 
जाने कब 
हमारी मन की सुरंगे बन गई 
और खोए हुए हम 
दुनिया में रहे सबसे 
व्यस्त इंसान ||

* तुम और मैं…..कविता

यूँ बात गुज़री है

दिलों के रास्ते से 
हम साथ चलेंगे

करेंगे ढ़ेरों बातें
तुम न कोई उम्मीद रखना

न हम वादा करते है

तुमसे
न शिकायत होगी हमारे बीच

न कॉफी के कप टकराएंगे
तुम मंद मंद हवा से

बहना,

हम झौकों सा

झुलाएंगे
जब मिलने की आस हो जाए

तुम घने पेड़ का पत्ता हो जाना
इल्म न हो हम पर कोई

तो चलो

हम तुम एक किताब का

पहला आखिरी पन्ना हो जाते है||

*मैं जब बोलती नहीं….कविता

जब मैं कुछ नहीं बोलती

तब

मैं सबसे ज्यादा बोलती हूँ

तब मैं अपने आप से मिलती हूँ

देर तक बैठती हूँ

संग अपने

सारे शिकवे गिले

हँसी फुहार

सब हो जाता है

यूँही बैठे बैठे

जब मैं कुछ नही बोलती

तब मैं

मैं होती हूँ और कुछ नहीं रहती ||

@अर्चना ठाकुर

One thought on “जब मैं मौन रहती हूँ….कविताएँ

  1. Wowwww.. speechless…. Wonderful all are awesome… Meri akaaki aur sath sath to mujhe apni situation hi lagi .. aur jab main kuch nhi bolti .. kab se main main hi hona chahti hu…😮😯😯😯😲

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