Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 12

“अगर मैं आपसे कहूँ कि हमारी दुनिया और हमारी दुनिया से परे एक और दुनिया है जिसे सिर्फ हम इन्टरनल आई से देख सकते है – यू वोंट बिलीव बट आई टेल द ट्रुथ – ये है तीसरा नेत्र जिसे साइंटिस्ट पिनियल ग्लैंड के रूप में जानते है योग में आज्ञा चक्र तो अध्यात्म में शिवा नेत्रा कहते  है – माना गया है कि इंसानी दैनिक जीवन और स्पिरिचुअल जीवन के बीच उन्हें जोड़ने का काम यही ग्रंथि करती है – इस ग्रंथि से ही सेरोटोनिन से निकला हुआ मेलाटोनिन हॉर्मोन निकलता है और यही हॉर्मोन हमारे निद्रा, स्वप्न और क्रियाओं को प्रभावित करता है – योग और ध्यान से इसी ग्रंथि को जाग्रत किया जाता है – जब ये एक्टिव होती है तो हमे आन्तरिक ख़ुशी का अनुभव होता है – ऐसा लगता है जैसे हम किसी और दुनिया में पहुँच चुके है – अब सवाल उठता है कि इसका अस्तित्व है तो कहाँ ?? – इसे तीसरा नेत्र कहना एक तरह से सही भी है क्योंकि ये हमारी आँखों के बीच के हिस्से में अन्दर की ओर स्थित होती है – देखिए यह जो हमारा ब्रेन के दोनों हेमिस्फीयर हैं इन दोनों हेमिस्फीयर के ठीक बीच में इस दरार में जो खाली जगह आप देख रहे हैं इसी  के बीच में ही बिल्कुल मिडलाइन में ही हमारा तीसरा नेत्र जिसे पीनियल ग्लैंड कहते हैं वह मौजूद है – आप इसकी लोकेशन ब्रेन में देख सकते है और ये दिखने वाली आँखों के बंद होने के बाद अपना काम करती है – पर ये कोई नया आइडिया या थ्योरी नही है – 17 वी शताब्दी की शुरुआत में फ्रांस के एक फेमस फिलौस्फर  इस पीनियल ग्लैंड से बहुत ज्यादा फेसिनेट थे इनका मानना था कि अगर इस पीनियल ग्लैंड के बारे में हम मनुष्यों को पूरी की पूरी जानकारी हो जाए तो हम ब्रेन के सारे के सारे एक्टिविटी को समझ सकते हैं – वे ये भी मानते थे कि पीनियल ग्लैंड के अंदर ही हमारी आत्मा का वास होता है इसलिए उन्होंने इसे थर्ड आई कहना शुरू कर दिया लेकिन इसका ये अर्थ नही कि तीसरे नेत्र की थ्योरी यही शुरू हुई बल्कि हिन्दू मेथोलॉजी के वर्षो से है – इसे प्रूफ करने के लिए मैं अपने कुछ रिसर्च पेपर और आकड़े आपको दिखाता हूँ…..|”

“ओहो तुम फिर से ये सुन रही हो |”

आवाज सुनते पलक तुरंत लैपटॉप में चल रहे वीडियो को पौज़ करके अपने पीछे देखती है जहाँ वाशरूम से नहाकर तौलिए से सर पोछते पोछते हुए अनिकेत आ रहा था| पलक बेड पर अर्ध लेटी लैपटॉप पर चल रहे स्क्रीन की ओर देखती हुई कहती है – “क्या करूँ आपने इतना अच्छा लेक्चर दिया कि मन करता है बार बार सुनती रहूँ – सच में आपके ज्ञान का तो कोई पार नही |”

“हस्बैंड की इतनी तारीफ करना भी अच्छी बात नहीं – कही दिमाग सांतवे आसमान में पहुँच गया तो !” अनिकेत अब पलक के बगल में बैठता हुआ कहता है|

“यही तो खासियत है मेरे हस्बैंड जी में उनका दिमाग कभी सांतवे आसमान में पहुँचता ही नहीं बल्कि जमीन पर पैर टिका कर आसमान छूने की काबिलियत है उनमे |” कहती हुई पलक उसके कंधे से सटती हुई बोली|

“ये तो आज के हिसाब से कुछ ज्यादा ही तारीफ हो गई |”

“क्या करे आप है ही इस तारीफ के काबिल और मैं क्या सारा कैम्बिज आपका मुरीद है – देखा न कैसे आपको बड़े से बड़ा पैकेज दे रहे है पर आप है कि आपको अपने देश वापस लौटकर वही के बच्चो को पढाना है |”

“तो क्या मेरा फैसला ठीक नही है ?” अनिकेत अब पलक की ओर गौर से देखने लगा|

“नही अनिकेत आप कभी गलत हो ही नही सकते बल्कि ऐसे ऑफर को ठुकराकर आगे बढ़ने का हौसला करना साधारण बात नही – तभी तो आप बहुत ख़ास है |” कहती हुई पलक अनिकेत की बाँहों से लिपटती हुई कहती है|

“तुम मेरे फैसले पर अपनी हामी भरती हो तो मुझे कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता है -|”

“मैं तो आपके साथ हमेशा हूँ |” दोनों की बाहें एकदूसरे में सिमट आती है|

तभी बैड साइड टेबल पर रखा फोन मेसेज टोन से चमकता है जिससे उसकी ओर ध्यान जाते पलक एकदम से चौंकती हुई कहती है – “हे भगवान – मैं कैसे भूल गई कि अभी हमारी फ्लाइट है |”

पलक के चिंतित स्वर पर अपने नर्म स्वर से कहता है अनिकेत – “डोंट वरी – कुछ मिस नही होगा – अभी बहुत टाइम है – |”

“सच कहूँ तो मैं बहुत ही एक्साइटेड हूँ भारत पहुँचने के लिए -|”

अब उठकर अनिकेत शर्ट पहनते पहनते पलक के उत्साह को देखता हुआ मुस्करा रहा था|

“पापा मम्मी तो हमे रिसीव करने दिल्ली भी पहुँच चुके है – कितना अच्छा लगेगा – सब मिलेंगे – पता नही चला कब ये तीन साल यहाँ गुजर गए |”

“समय कितना भी चुपचाप गुजर जाए पर अपनी निशानियाँ जरुर पीछे छोड़ जाता है -|” अबकी कोट पहनता हुआ अनिकेत पलक की ओर देखता यूँ कहता है कि पलक शरमा जाती है| ये देख अनिकेत फिर पलक के पास बैठता हुआ उसके बालो पर उंगली फेरता हुआ उसका माथा चूमता हुआ कहता है – “कुदरत अब तुम्हारे हाथो में बेहद नायाब तोहफा देने जा आ रही है इसलिए अब इनके साथ साथ अपना ख्याल भी तुम्हे रखना होगा – समझी |” कहते हुए अनिकेत पलक के उदर पर हाथ फिराता हुआ कहता है तो पलक उससे लिपटती हुई कह उठती है –“आप है न सदा मेरे साथ फिर मुझे किस बात की फ़िक्र |”

“मैं तो हूँ ही तुम्हारे साथ पर ऐसे समय घर के बड़ो के साथ रहना ज्यादा बेहतर होता है – वे अनुभवी होते है इसलिए तो मैं चाहता हूँ कि तुम लखनऊ में कुछ महीने रहो तो ज्यादा अच्छा रहेगा |”

“नही |” एकदम से उसके कंधो से हटती हुई पलक कह उठी – “आप को बोल चुकी हूँ न कि आपके बिना मैं कही नही रहूंगी – ये भी कोई बात हुई आप दिल्ली में रहे और मैं लखनऊ में – |”

“ओके ओके – कोई स्ट्रेस मत लो – अभी भारत तो चलो – |”

इस बात पर दोनों आपस में मुस्करा लेते है|

यूके की ठंडी बयार में वे दोनों कैम्ब्रिज से 60 किलोमीटर लन्दन से अपनी भारत जाने वाली फ्लाइट पकड़ते इस देश को अलविदा कहते भारत वाली फ्लाइट में बैठ जाते है| अगले आठ घंटे की नॉन स्टॉप फ्लाइट की लम्बी यात्रा के बाद वे इंद्रा गाँधी इंटरनेश्नल एयरपोर्ट पहुँच जाते है जहाँ उनका स्वागत वे दो जोड़ी निगाहे बेहद बेसब्री से कर रही थी| वैभव और नीतू अपनी बांह में फूलो की माला लिए दोनों का स्वागत करने के लिए व्यग्र हुए जा रहे थे|

अगले कुछ पल में उनकी निगाह आखिर वह नज़ारा अपने सामने देखती है जिसे देखने उनका मन जाने कबसे बेक़रार था| अनिकेत और पलक दोनों उनकी नज़रो के सामने चले आ रहे थे| वे भरपूर नज़र से ओवरकोट अपनी कलाई में डाले डैसिंग अनिकेत को देखते फुले नही समां रहे थे| यूँ तो अनिकेत का उजास रंग और ऊँची काठी अपने आप में भरपुर आकर्षण थी पर विदेशी हवा में ये रंगत और तबियत कुछ और निखर आई थी|

आते ही अनिकेत सीधे दोनों के पैरो की ओर झुकता है तो वैभव उसे कंधे से पकडे अपने गले से ही लगा लेते है तो पलक अपनी माँ की बाँहों के बीच बच्ची सी समा जाती है| कुछ पल जैसे समय वही ठहरा उन्हें उनके वहां होने का अहसास देता रहा और वे यूँही खड़े रहे|

क्रमशः…..

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