
डेजा वू एक राज़ – 13
वैभव हर्षित होते अनिकेत को माला पहनाते है तो वह संकुचित होता कह उठता है – “इसकी क्या जरुरत थी |”
वैभव उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहते है – “यू डिजर्व इट – मेरा बस चलता तो पूरे कैम्ब्रिज के सामने तुम्हे माला पहनाता – आखिर इतनी कामयाब रिसर्च करके लौटे हो – पूछो मत मैं क्या क्या नही करना चाहता |”
वैभव के उत्साह पर पलक और नीतू जहाँ मुस्करा रही थी वही अनिकेत संकोच से भरता हुआ कह उठा – “मुझे बड़ो का आशीर्वाद चाहिए बस |”
“वो है हमेशा ही रहेगा बेटा |”
वैभव अपनी ख़ुशी में लहकते एक बाजु से अनिकेत तो दूसरी बाजु में पलक को लिए चल रहे थे| उनकी अपार ख़ुशी उनके रोम रोम से झलक रही थी| कैब में बैठते ही पलक जल्दी से पूछ उठी –
“माँ – ये झलक कहाँ है – वो तो कह रही थी कि हमे रिसीव करने आएगी |”
“अरे किसकी बात पर यकीन करती हो – उसकी तो पांच मिनट के बाद की बात का भरोसा नही वो तो रचित है जो उसे संभाले है |”
सभी उनकी बात पर मुस्करा देते है|
“तो क्या वो अभी भी बेंगलुरु में है ?”
नीतू जवाब देती हुई कहती है – “नही वो तो असम में है |”
“असम !! वहां क्यों !! क्या रचित की नौकरी अब वहां हो गई !! कब गई !! बताया ही नहीं !!”
पलक की हैरानगी पर उसे शांत करती हुई माँ कहती है – “अरे नही रचित तो अभी भी बेंगलुरु में है – बस वही गई है – जाने क्या नया काम शुरू किया है – कभी किसी की सुनती है !! चलो रूम में चलकर सब कहानी बताती हूँ – पहले तुम अपना हाल बताओ |”
बुक की हुई एसयूवी में बीच की सीट में जहाँ माँ बेटी बैठी अपनी बात कर रही थी वही पीछे बैठे अनिकेत और वैभव बातो में मशगूल थे|
“बहुत अच्छा लगा जो वापस आ गए – डीयू में प्रोफ़ेसर भी हो गए – वैसे कब ज्वाइन करना है कॉलेज |”
“बस एक हफ्ते में |” अनिकेत उत्तर देता है|
“बढ़िया है और आगे का क्या प्लान है ?” वैभव पूछते है|
“वैसे डिपार्टमेंट के साथी प्रोफ़ेसर ने फ़्लैट बुक कर दिया है तो सोचता हूँ तब तक लखनऊ का आश्रम देख आऊं – पता नही फिर फुर्सत मिले न मिले |”
अनिकेत की बात पर वैभव स्वीकृति में सर हिलाते हुए कहते है – “हाँ ये सही है – मैं तो अक्सर देख आता हूँ – तुम्हारे संरक्षण में बहुत अच्छे से चल रहा है आश्रम |”
“मेरा संरक्षण क्या – ये तो पिताजी का आशीर्वाद है कि मैं उनकी आखिरी इच्छा पूरी कर पाया और अगर उसमे आपने सहयोग नही दिया होता तो कैम्ब्रिज में बैठे हुए मैं ये सब कैसे कर पाता !”
अनिकेत की बात पर वे समर्थन में मुस्कराते हुए कहते है – “तुम रिश्तो को निभाना अच्छे से जानते हो अनिकेत – मुझे तुम पर हमेशा गर्व रहा – अपने पिता के बाद उनकी आखिरी इच्छा पूरी करने अपनी सारी सम्पति वृद्ध आश्रम को दान में दे देना बहुत उत्कर्ष सोच को दिखाता है – बहुत कम लोग ही ऐसा कर पाते है|”
एक बार फिर संकोच से भरता वह नीचे देखने लगता है|
वे पहले से ही बुक किए गए होटल के अगल बगल रूम में ठहरे थे| अभी इस वक़्त पलक अपने माता पिता के साथ मौजूद थी तो अनिकेत अन्यत्र रूम में चेंज करने गया था|
“तब से माँ से ही चिपकी हुई हो अरे पापा भी उतना ही याद करते थे जितना माँ |”
कहते हुए वैभव पलक को देखते है जो माँ की गोद में सर रखे लेटी थी| पिता की बात सुन तुरंत उनकी ओर आती हुई कहती है – “ओह पापा आपको तो मैं बहुत याद करती थी|”
“अच्छा आते ही पापा की साइड हो ली|” नीतू की बात पर अब सभी एकसाथ खिलखिलाकर हँस पड़े थे|
वैभव पलक का सर सहलाते हुए कहते रहे – “पलक झलक के बिना तो मेरा घर सूना ही हो गया – क्या कहूँ तुम दोनों को याद करते मन कितना बोझिल हो जाता रहा |”
“पापा..|” आद्र मन से पलक अब पापा के कंधे पर झूल गई थी|
तभी मोबाईल की रिंग बजते उसकी स्क्रीन में देखते उसे उठाती हुई नीतू कहती है – “लो झल्लो का फोन भी आ गया |”
झलक का नाम सुनते पलक फुदकती हुई उनकी ओर लपकी तो माँ उसे टोकती हुई कह उठी – “अरे अरे आराम से – अब बच्चो की तरह फुदकना बंद करो – आराम से आओ |”
माँ की बात पर खुद में शर्माती पलक अब अपनी चाल धीमी करती हुई उनके पास आते मोबाईल लेती हुई चहक उठी – “पहले बोल तू है कहाँ !! कह रही थी रिसीव करने आएगी – झूठी कही की – चल बता अब कब आ रही यहाँ पर ?”
उधर से भी उतने ही उत्साह में आवाज सुनाई पड़ती है – “अरे आउंगी आउंगी – अब सीधे लखनऊ आउंगी – तुम वहां तो पहले पहुँचो और हमारे पंडित जी कैसे है ?”
“प्रोफ़ेसर हो गए है समझी |” टोकती हुई पलक बोल उठी|
“अरे दुनिया के लिए होंगे प्रोफ़ेसर मेरे लिए तो हमेशा पंडित जी ही रहेंगे – वैसे उनके कारनामे तो गजब के है ही क्या गजब का लेक्चर भी देते है – तेरी भेजी क्लिप देखी मैंने – उन अंग्रेजो के क्या चक्के छुडाते हुए एकदम दमदार स्पीच दी वहां |”
इस बात पर दोनों अब खिलखिलाकर हँस दी थी|
“अच्छा अब बता तू है कहाँ और कर क्या रही है आज कल |”
“मैं !! इस वक़्त असम के जंगलो में भटक रही हूँ और अपने ब्लॉग के लिए मसाला इकट्ठा कर रही हूँ |”
“अब ये क्या तेरा नया नाटक है – तूने अपनी नौकरी छोड़ दी क्या ?”
“हाँ और क्या – ये नौकरी वौकरी अपने से न होगी – अरे हम तो आजाद परिंदे है और ये नौकरी किसी पिंजड़े से कम नही थी इसलिए छोड़ दी |”
झलक की बात सुनते पलक अपने माथे पर हाथ मारती हुई कह उठी – “ये नौकरी भी छोड़ दी – कितनी अच्छी थी – तू और तेरे बेकार वाले आइडिया कभी नही बदल सकते|”
“ओहो जिस दिन झलक बदल गई तो समझो झलक झलक नही रही – अच्छा अभी फोन रखती हूँ फिर फुर्सत से बात करती हूँ और हाँ अपने ब्लॉग का लिंक दे रही हूँ देखना – बाय |”
पलक झलक को रोकने अरे ही कहती रह गई और उसने तुरंत ही फोन काट दिया| फिर अपनी माँ की ओर देखती हुई पलक कह उठी – “कितनी अजीब है ये लड़की – ये कभी सुधरेगी भी या नही !”
पलक अब माँ के पास आ गई थी| नीतू पलक का हाथ पकड़े पकड़े कहने लगी – “एक तरह से देखा जाए बेटियां कभी न बदले यही एक माँ की चाह होती है |”
माँ की बात पर पलक हैरानगी से उन्हें देखने लगी तो वे आगे कह उठी – “समय लड़कियों को बहुत बदल देता है – मैं भी शादी से पहले कैसी थी और जिम्मेदारी पड़ते कैसी हो गई – हर लड़की इस दौर से गुजरती है – ये बदलाव हमारे वास्तविक अस्तित्व पर ग्रहण की तरह होता है जिसके नीचे हमारी स्वछंदता दब कर रह जाती है पर जब झलक को देखती हूँ तो मन को बहुत सुकून मिलता है वो आज भी वैसी है इसलिए मुझे वो सबसे सुखी नज़र आती है क्योंकि उस पर वक़्त का कोई आवरण नही चढ़ा और ये कटु सत्य ही है |”
“तो क्या मैं सुखी नही माँ !!” पलक उदासी से पूछ उठी|
“अरे नही नही – तू तो बहुत खुश है पर बहुत बदल डाला है तूने खुद को – अनिकेत के साथ साथ रहने की वजह से कोई नौकरी नही की – क्या चाहती है कभी मुझे भी पता नही चलने दिया – खुद को कितनी सहजता से बदल डालती है लड़कियाँ पर लड़की का स्वछन्द होना कभी कभी मुझे बहुत भाता है भलेहि समाज इसे किसी भी नज़र से देखे |”
“अब मैं क्या कहूँ – आखिर जो माँ करती है वही बेटी करती है |” अपनी माँ सी गोद में सर रखती हुई पलक कहती है|
माँ हौले हौले उसके बालों पर उंगली फेरती हुई कहती है – “तभी तो झलक हम सबसे अलग है|”
पलक इधर उधर नज़र घुमाती हुई पूछती है – “अरे पापा कहाँ गए ?”
“अनिकेत के पास गए है उसे बुलाने – बहुत संकोची है न – खुद नही आएगा यहाँ |”
दोनों गहरा उच्छ्वास खींचती हलके से मुस्करा लेती है|
रात का खाना साथ में लेने के वे दोनों अपने रूम में चले जाते है|
अगले दिन की सुबह में आँख खुलते ही पलक की नज़र सामने तैयार हो रहे अनिकेत पर जाती है तो एकाएक चौंककर उठकर बैठती हुई पूछ पड़ती है – “इतनी सुबह कहाँ जा रहे है ?”
अनिकेत सीने के बटन लगाते लगाते पलक की ओर मुड़ता हुआ कहता है – “जॉन से मिलने – बोल रहा था रिसीव करने आऊँगा – न लेने आया और न ही फोन उठा रहा है देखता हूँ कहाँ है !”
इस पर हलकी मुस्कान से पलक कह उठती है – “तो जल्दी आ जाएँगे न वापस – याद है न हमे फ्लैट देखने भी जाना है – |”
“हाँ याद है |” अब जेबों में जरुरी सामान रखता हुआ कहता है|
“ठीक है – मैं आपका इंतजार करुँगी – माँ कह रही थी अगर फ़्लैट पसंद आ गया तो पूजा करा कर वे वापस जाएंगी |”
“ठीक है मैं आता हूँ |”
अपनी अपनी मुस्कान से एकदूसरे को विदा देते है| अनिकेत के जाते पलक तुरंत मोबाईल उठाकर देखने लगती है| तभी उसकी नज़र झलक के भेजे लिंक पर जाती है जिसमें उसका ब्लॉग था| अब झलक का ब्लॉग ओपन करके उसे देखने पलक और आराम से लेट जाती है|
अनिकेत को जॉन का फ्लैट पता था वह उसी एड्रेस पर जाने की कैब बुक करके पहुँच जाता है| अगले ही कुछ पल में वह जॉन के फ्लैट के बाहर था पर ये देखकर अवाक् रह गया कि उसके फ्लैट का दरवाजा पूरा खुला हुआ था| कोई अवरोध न देखकर अनिकेत सहजता से अंदर चला आता है पर सामने के कमरे में ही उसकी नज़र जिसपर गई उसे देख उसकी आंखे हैरानगी से फैलकर चौड़ी हो गई| उसकी नजरो के सामने कई पुलिस वाले उस कमरे मे मौजूद थे| आखिर जॉन के फ़्लैट में ये पुलिसवाले क्यों है !! और जॉन कहाँ है !! क्या कुछ बुरा हुआ है उसके साथ !! मन में घबराहट लिए अनिकेत तेजी से इन्स्पेक्टर के पास पहुँच जाता है|
क्रमशः…….