Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 15

फ़्लैट को देखकर आने के बाद माँ के साथ पलक उन्ही के रूम में थी| अनिकेत अभी वापस नही आया था इससे उसे अपने रूम में जाने का मन ही नही किया|

“लगता है किसी जरुरी काम में फसा है इसलिए अभी तक नही आया अनिकेत –|”

वैभव की बात पर नीतू समर्थन में सर हिलाती हुई कहती है – “हाँ मुझे भी यही लगता है – अब तो लंच का भी समय हो रहा है – पलक |” वे पलक का हाथ स्पर्श करती उसका ध्यान अपनी ओर करती है जो उनसे अन्यत्र देखती कुछ उदास हो चली थी – “ऐसे समय तुम्हे समय पर खाना खाने पर ध्यान देना चाहिए – बेटा हो सकता है इतने समय बाद अपने दोस्त से मिलने में उसे समय का ध्यान न रहा हो और हो सकता है वह लंच करके ही आए इससे अब हमे भी लंच कर लेना चाहिए –|”

“पर मेरा कही जाने का मन नही है माँ |” पलक उदासी से कहती है|

इसपर वैभव उसके पास आकर उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहते है – “तो कोई बात नही – मैं यही रूम सर्विस ले लेता हूँ तब हम साथ में बैठकर खाएँगे |”

इस पर हलकी मुस्कान से मुस्कराती पलक हाँ में सर हिला देती है| ये देख वैभव अब बेड के दूसरे कोने पर रखे फोन की ओर बढ़ जाते है|

पलक अब अपनी माँ के पास ही सरक कर बैठ जाती है|

“वैसे पलक – वो फ़्लैट तो बहुत अच्छा है इतनी अच्छी लोकेशन और वेल फर्निश और उसमे दो तरफ बालकनी भी है – जल्दी कहाँ ऐसा मिलता है – हमने तो एक नज़र में उसे पसंद कर लिया और मुझे यकीन है अनिकेत को भी ये देखते पसंद आने वाला है |” पलक मुस्कराती हुई माँ की ओर देख रही थी जो अब कुछ सोचती हुई कहने लगी – “पर एक बात नही समझ आई कि इसका किराया भी कुछ ज्यादा नही फिर क्यों दस साल से ये खाली पड़ा था ?”

माँ की बात पर पलक लेटे लेटे ही कहती है – “क्योंकि उसकी ओनर अमेरिका में  रहती है और काफी समय से वे यहाँ शिफ्ट होने की सोच रहे थे पर जब लास्टली नही शिफ्ट हो पाए तो इसे रेंट पर लगा दिया |”

“ओह – चलो ये तो बहुत ही अच्छा है – तभी तो घर बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे बस अभी आ जाओ रहने उसमे – एक तरह से कहा जाए तो ये घर तुम्हारा ही वेट कर रहा था – हैं न !” कहती हुई माँ हँस दी तो पलक के चेहरे पर भी मुस्कान खिल उठी|

पलक का सर सहलाती हुई कहती रही – “आज ही फ़ाइनल कर लेते तो कल ही पूजा रखा लेते फिर शाम तक लखनऊ लौट जाते हम – चलो अनिकेत को आने दो फिर बताना तब वैसा ही हम लौटने का प्रोग्राम बनाएँगे |” माँ सर सहलाती रही और पलक अपनी सोच की दुनिया में विचरण करती रही|

लंच करके पलक अपने रूम में आराम करने चली गई| शाम के चार बजते बजते बेहद थका हुआ रूम में वापस आता है| एक तरह से जॉन को लेकर वह मानसिक रूप से परेशान था पर पलक की नज़रो के सामने आने से पहले वह अपनी परेशानी अपने चेहरे की मुस्कान के पीछे छिपा लेता है|

“ओह आप आ गए – बहुत देर लगा दी -|” अपने बगल में बैठते अनिकेत की ओर वह झुकती हुई कहती है तो अनिकेत भी उसे अपनी बांह के बीच संभालता हुआ बस हाँ में सर हिला देता है|

पलक आगे कहती है – “पता है फ़्लैट बहुत ही गजब का है – मुझे क्या माँ और पापा को भी एक नज़र में भा गया और अगर आप देखते न तो आप भी उसके लिए इंकार नही कर पाते पर आपने उसे देखा ही कहाँ – माँ तो कह रही थी अगर आज फ़ाइनल कर लेते तो कल ही उसमे पूजा रखा लेती – मेरा कितना मन था कि हम अपना घर साथ में देखकर पसंद करे |”

“तो कोई बात नहीं अभी देख लेते है |”

अनिकेत की बात पर एकदम से उत्साहित होकर उठकर बैठती हुई पूछती है – “क्या सच में – आप अभी देखेंगे !!” फिर अनिकेत का चेहरा ध्यान से देखती हुई थोड़ा उदासी से कहती है – “नही अभी तो आप बाहर से आए है थके होंगे – कल चलते है |”

“ऐसी कोई बात नही – मैं अभी भी चल सकता हूँ बस तुम चलना चाहो |”

“अरे मैं तो उड़ के पहुँच जाऊं वहां |”

पलक की बात पर अनिकेत हलके से मुस्करा देता है|

अगले ही पल दोनों साथ में फ़्लैट देखने पहुँच जाते है| फ़्लैट वाकई बहुत एक अच्छी लोकेशन में था| चाभी उन्हें सोसाइटी से मिल जाती है जिससे वे दोनों सहजता से फ़्लैट के अन्दर आ जाते है| फ़्लैट वेल फर्निश था जिसकी खूबसूरती और बनावट को देखकर कोई भी इसे इंकार नही कर सकता था| पलक को हर एक रूम को पूरे उत्साह से देखने के बाद नाचती हुई कह उठी –

“कैसा लगा ?”

“तुम्हे पसंद है तो मुझे भी पसंद है|”

अनिकेत के सपाट शब्दों से पलक का उत्साह ठंडा हो गया और वह अनिकेत का चेहरा ध्यान से देखती हुई फिर पूछ उठी –

“मतलब आपको पसंद नही आया !”

“मैंने ऐसा तो नही कहा |”

कहता हुआ अनिकेत खिड़की की ओर मुंह किए दूर तक के नज़ारे पर निगाह टिका देता है| पलक को उस पल कुछ अजीब सा लगा जिससे वह तुरंत ही अनिकेत के सामने आती हुई पूछ उठी –

“कोई और बात है क्या !!”

पलक अनिकेत के चेहरे पर आए हाव भाव पर नज़र टिकाए थी तो अनिकेत की नज़र पलक से इतर बाहर की ओर थी मानो वह पलक की ओर न देखकर अपनी बात कहने का हौसला कर रहा हो|

“मैं कल गोवा जा रहा हूँ |”

“क्या !! अचानक से गोवा और सिर्फ आप – क्यों !!”

“जॉन को खोजने |”

छोटे छोटे उत्तर से पलक कुछ ज्यादा ही परेशान हो उठी जिससे वह अनिकेत को लगभग हिलाते हुए पूछने लगी – “बात क्या है ठीक से बताए – मैं समझ नही पा रही |”

इससे अनिकेत पलक को पूरे दिन का घटनाक्रम सिलसिलेवार बता देता है जिसे सुनते अब पलक के चेहरे पर अजीब भाव उतर आते है|

“इसलिए मेरा गोवा जाना बहुत जरुरी है – |”

“क्या सच में आपको ऐसा लगता है कि जॉन खो गया है – मतलब ये बात सुनने में बड़ी अजीब सी लगती है क्योंकि उसका तो काम ही ऐसा है जिससे वह आम लोगो से दूरी बनाकर रहता है – फिर कोई और संभावना भी तो हो सकती है|”

“पर मेरा मन कह रहा है कि जॉन किसी बड़ी मुसीबत में है और ऐसे वक़्त मैं हाथ पर हाथ धरे नही बैठा रह सकता |”

“ठीक है फिर मुझे क्या करना है वो भी आप बता दे |”

पलक के शब्द सीधे अनिकेत के दिल पर लग जाते है जिससे उसे पलक की मनस्थिति का साफ़ अंदाजा हो जाता है| वह पलक के पास आता उसका चेहरा अपनी हथेली के बीच भरता हुआ उसे गौर से देखता हुआ कहता है – “तुम्हारी नाराज़गी जायज है – पता है ये वक़्त हमारा था पर इस वक़्त जॉन को मेरी मदद की जरुरत है पर मैं कैसे ख़ामोशी से अपनी दुनिया में खुश रह सकता हूँ – उससे मेरा दिल का रिश्ता है |”

“और मुझसे !!” वह भरी आँखों से उसकी ओर देखती है|

“जन्मो का |” कहता हुआ वह उसकी पलके चूम लेता है|

अब पलक को अपने सीने से लगाए लगाए अनिकेत कहता रहा – “कुछ वक़्त परीक्षा लेते है मनुष्य की और ये लम्हा भी ऐसा ही है – जॉन का मेरे सिवा कोई नही है – तुम इसी से अंदाजा लगाओ कि उसके छह दिन से गुमशुदा होने के बाद भी किसी ने उसे खोजने की कोशिश नही की और अगर मैं भी शांत बैठ गया तो सोचो क्या होगा !!”

“ठीक है |”

“अभी तो मैंने दस दिन की छुट्टी ली है – उम्मीद है इस वक़्त में मैं उसका पता लगा लूँगा इसलिए मैं चाहता हूँ कि अभी तुम लखनऊ में रहो और जब तक मैं लौटूंगा तुम सबसे मिलना और बहुत खुश रहना |”

“वाह सजा भी आपकी और मियाद भी आपकी -|”

पलक की बात पर मुस्कराते हुए अनिकेत उसे और अपनी बाँहों में समा लेता है|

अब सब कुछ तय हो गया था| फ़्लैट को बुक करके पलक अपनी मम्मी पापा के साथ लौटने को तैयार हो गई थी तो वही अनिकेत गोवा जाने की तैयारी में लग गया था|

पलक को अनिकेत ने सब कुछ बता दिया था सिवाए इसके कि उसे कुछ अच्छा न होने का भय हो रहा था इस बात को वह उसे नही बता पाया लेकिन ये भी सच था कि उम्मीदे और अच्छी भावना कभी कभी बुरे वक़्त पर भारी गुजरती है| अनिकेत गोवा आते सबसे पहले उस पुलिस स्टेशन पहुंचता है जिसका जिक्र इंस्पेक्टर शेखावत ने किया था| इससे उसे ज्यादा कुछ उस पुलिस वाले को नही बताना पड़ा वह उसे तुरंत ही उस होटल में अपने साथ ले गया जहाँ जॉन ठहरा हुआ था| मेनेजर पुलिस के साथ अनिकेत को अपनी ओर घूरते देख शालीनता से कहता है –

“सर माफ़ करिए हमे वो रूम खाली करना पड़ा क्योंकि एक तो वैसे भी पिछले पांच दिन का रेट नही मिला और सिर्फ सामान होने से वह कमरा हम किसी और को भी नही दे पा रहे थे |”

इन्स्पेक्टर को इस बात पर गुस्सा आ रहा था पर किसी तरह से अपना गुस्सा जब्त करता हुआ कहता है – “मना किया था पर तुम सालो सब पैसे के भूखे हो और उसका सामान कहाँ है वो बेच तो नही दिया कही !”

“अरे सर कैसी बात करते है – वो सारा सामान हमने सुरक्षित रखा है – आप चाहे तो अभी ले सकते है |”

“वो तो हम लेंगे ही – |”

“जी सर बिलकुल और सर रेंट की भी कोई बात नहीं – सामान सब सुरक्षित है हमारे पास |”

“लाओ दिखाओ |”

इन्स्पेक्टर के कहते फिर किसी दूसरे होटल कर्मी को इशारे से अपनी तरफ बुला कर उसे उनके साथ जाने को बोलता है|

तब से मेनेजर और पुलिसवाले की वार्तालाप सुनता अनिकेत अब कहता है – “कितना रेंट हुआ बताओ – मैं देता हूँ |” कहता हुआ अनिकेत अपनी जेब से कार्ड निकालकर उसकी ओर बढ़ाता है जिससे मेनेजर अपनी चमकती आँखों से देखता हुआ स्वैप मशीन में उसका कार्ड लगता हुआ कहता रहा –

“वैसे सर इसकी जरुरत नही थी – अब क्या करे सर – प्रोसीजर इज प्रोसीजर |”

स्वैप होते कार्ड वापस लेता अनिकेत अब पुलिस वाले के पीछे चल देता है जहाँ उसे दूसरा होटल कर्मी ले गया था|

होटल के एक छोटे स्टोरनुमा कमरे में एक कोने में जॉन का सारा सामान रखा था| जिसे पहचानते हुए अनिकेत उसे देखने लगता है|

“यही सामान है न आपके दोस्त का !”

“जी – क्या बस यही सामान है !” अनिकेत सारे सामान को देखता हुआ कहता है – “वैसे वह अपना लैपटॉप हमेशा अपने साथ रखता है – वो नही दिख रहा और वहां दिल्ली में उसके रूम में भी नही था|”

अनिकेत अब खड़ा होता हुआ क्रमशा दोनों की ओर देखता है जिसे समझते पुलिसवाला अपने हाथ में पकड़ा डंडा उस कर्मी की ओर नचाता हुआ कहता है – “बस यही सामान है – सोच ले !”

इससे वह कर्मी अपनी घबराहट थूक संग निकलता हुआ उस स्टोर में खड़ी अलमारी की ओर जाकर तुरंत ही वापस आता हुआ कहता है – “ये यहाँ संभाल कर रखा था|”

“कुछ ज्यादा ही संभाल कर रखा था |” अबकी इन्स्पेक्टर उसे घूरता हुआ कहता है  जिससे वह कर्मी घबराहट को छुपाने इधर उधर देखने लगता है|

तबतक लैपटॉप को पहचानते अनिकेत तुरंत ही उसे ओपन कर लेता है जिससे आश्चर्य से पुलिसवाला अनिकेत को देखता रहा|

लैपटॉप को सरसरी दृष्टि से देख अनिकेत इन्स्पेक्टर की ओर मुड़ता हुआ कहता है – “क्या ये सारा सामान मैं अपने साथ ले जा सकता हूँ ?”

“क्यों नही – जब आपको अपने दोस्त का लैपटॉप का पासवर्ड पता है तो और किसी सबूत की क्या जरुरत |”

“थैंक्स इन्स्पेक्टर |”

इसके बाद जॉन का सारा सामान समेटता हुआ अनिकेत पुलिसवाले के साथ बाहर निकल आता है|

बाहर आते इन्स्पेक्टर अनिकेत की ओर देखता हुआ कहता है – “अब आप इसे देखकर समझ लो और फिर कुछ भी क्लू मिलता है तो मुझे आप मेरे नंबर पर बता सकते है|”

कहता हुआ इन्स्पेक्टर अपना कार्ड उसकी ओर बढ़ाता हुआ कहता है तो अनिकेत पूरी कृतज्ञता से कह उठता है – “थैंकस – मुझे लगा नही था कि यहाँ आते मुझे इतनी हेल्प मिल जाएगी |”

इस पर इन्स्पेक्टर मुस्कराते हुए कहता है – “ये बात तो आपने सही कही – पुलिस वालो की तरह मैंने मदद नही की क्योंकि मुझे भी आपकी एक मदद चाहिए थी |”

“मुझसे !!”

“जी आपसे -|”

“किस तरह ही मदद ?”

“बताऊंगा – अभी आप अपने दोस्त की इन्क्वारी करिए फिर मैं जल्दी ही आपसे मिलता हूँ |”

कहता हुआ पुलिसवाला और अनिकेत अपने अपने रास्ते चल देते है|

क्रमशः…..

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