
डेजा वू एक राज़ – 16
अनिकेत जॉन का सारा सामान लेकर अपने होटल के रूम में आ गया था| बाकी सामान उसके जरुरी इक्पुमेंट थे जिन्हें एकबार देख लेने के बाद अब वह उसका लैपटॉप लेकर बैठ गया| काफी देर इधर उधर लैपटॉप में खंगालने के बाद भी उसे जॉन को ढूंढने लायक कोई क्लू हाथ नही लगा तो वह निराशा से कमरे में टहलने लगा| तभी उसका मोबाईल के बजते वह उसकी स्क्रीन में जाना पहचाना नंबर देखते उठा लेता है|
दूसरी तरफ उसके डिपार्टमेंट का प्रोफ़ेसर अनमोल था|
“हाँ सर आपका हालचाल लेने के लिए मिलाया – आप गोवा पहुँच गए – एवरी थिंग इज ऑल राईट सर !”
“हाँ – मुझे शायद यहाँ थोड़ा टाइम लगेगा – गोवा मेरे लिए अननोन प्लेस है न |”
“अरे सर बस इतनी सी बात – वहां गोवा यूनवर्सिटी में मेरा छोटा भाई है वो वहां इंजीनियरिंग कर रहा है – वो आपकी कोई हेल्प कर देगा |”
अनिकेत संकोच से उसे मना करते हुए कहता है – “अरे नही भाई को परेशान करने की जरुरत नहीं है – मैं खुद ही कोई लोकल व्यक्ति खोजता हूँ |”
“कैसी बात करते है सर बल्कि मैं खुद चाहता हूँ कि आपका काम जल्दी निपटे और आप वापस आकर ज्वाइन कर ले – यहाँ आपका नाम सुनने के बाद से बच्चे आपकी क्लास के लिए बहुत क्रेजी हो रहे है – ठीक है सर मैं उसे बोलता हूँ – वो किसी लोकल व्यक्ति से आपको मिला देगा |”
बात खत्म करके अनिकेत फिर से टहलता हुआ सभी पहलुओ को दुबारा से अपने मन में खंगालने लगता है| ये तो तय था कि जॉन यहाँ बेमकसद तो नही आया और पणजी से चालीस किलोमीटर दूर होटल लिया है तो वही कुछ ख़ास होगा !! पर कहाँ !! यही तलाशना है| अचानक कुछ ख्याल आते वह अपनी जेब में कुछ टटोलने लगता है| अब उसके हाथ में उस वही कार्ड था जिसे सुबह उस पुलिसवाले ने दिया था| उसे फोन मिलाते ही वह अपनी बात कहने लगता है –
“जॉन का मोबाईल और उसका पर्स नही है सामान है – जरुर जब वह होटल से निकला होगा तो ये उसके पास रहे होंगे – मैं आपको उसका नंबर सेंड कर रहा हूँ अगर आप उससे उसकी लास्ट लोकेशन सर्च कर सके तो कुछ हेल्प मिल जाएगी क्योंकि पिछले वक़्त से उसका फोन स्विच ऑफ़ बता रहा है|”
“ओके – मैं पता करके कल सुबह आपसे मिलता हूँ |”
इतना सब करने के बाद भी अनिकेत के मन की बेचैनी खत्म नही हुई थी उसके मन की आशंका पल पल गहराती जा रही थी|
पलक लखनऊ वापस आ गई| वही घर वही अपनेपन से भरे पडोसी| ये उसके अपने देश का अपनापन था जहाँ लौटना उसके लिए एक सुखद अनुभव था| सुबह उठते ही वह बिस्तर का चादर फोल्ड करके तकिया सही से लगाकर वाशरूम चली जाती है| कुछ समय बाद जब वापस आती है तो बिस्तर का दृश्य देख चौंक जाती है| जिस बिस्तर को वह अभी ठीक करके गई थी वह फिर से पहले जैसा हो गया था| एकदम से उसे सब कुछ एक भ्रम जैसा लगने लगा कि वाकई उसने बिस्तर ठीक किया भी था या नही| अबूझी सी वह फिर से बिस्तर ठीक करने लगती है| उसे ऐसा लग रहा था जैसे जिस काम को वह पहले कर चुकी है अब फिर से दुबारा उसी काम को कर रही है| बिस्तर फिर से सही करके अब वह तौलिया लेकर नहाने चली जाती है| कुछ समय बाद नहाकर वापस आती है तो उसके हलक से कोई दबी चीख उभर आती है| अबकी एकबार फिर से उसका बिस्तर पहले जैसा ही तितर बितर हो गया था|
“माँ…माँ|” घबराहट में पलक बिस्तर को घूरती हुई अपनी माँ को आवाज लगाती है|
माँ भी पलक की घबराई आवाज सुनती भरसक भागी भागी आती हुई उससे पूछती है जिससे पलक कुछ न कहती हुई बस बिस्तर की ओर इशारा करने लगती है पर पलक की बात न समझ पाने से वे उसे लगभग झंझोडती हुई पूछती है –
“क्या हुआ पल्लो क्यों चिल्ला रही है – हुआ क्या – क्या बिस्तर पर कोई कीड़ा है क्या ?”
“न न माँ वो -|”
“बता न !”
“यहाँ भूत है |”
पलक के कहते माँ एकदम से सकपकाई सी उसके भयभीत चेहरे को देखने लगी|
“क्या कह रही है ?”
“हाँ माँ – मैं दो बार बिस्तर ठीक कर चुकी हूँ और दोनों बार बिस्तर बार बार बिगड़ जाता है – अब आप ही बताओ ये कैसे हुआ ?” पलक घबराए स्वर में पूछती हुई माँ की ओर देखने लगी|
पर अब माँ एक गहरा श्वांस छोड़ती हुई पूरे कमरे में एक सरसरी दृष्टि दौड़ाती हुई कहती है – “ओहो बिस्तर बिगाड़ने वाला भूत – वो तो हमारा पालतू भूत है -|”
माँ की बात सुनते पलक हैरान माँ को देखने लगी थी तभी एक आवाज कमरे में तेजी से गूंजी –
“मुझे पालतू भूत कहा !!”
पलक अब हैरान आवाज की दिशा में देखती है तो बस देखती रह जाती है|
“अरे पालतू गलती से कह दिया – तुम तो फालतू भूत हो |”
“माँ ..!!” बिस्तर के दूसरी ओर से निकलती झलक अब ठुनकती हुई माँ की ओर आ रही थी|
“और क्या ऐसे कोई डराता है अपनी बहन को – वो भी इस हालत में !” माँ अब झलक को बुरी तरह फटकारती हुई कहने लगी तो झलक झट से माँ का गाल चूमती हुई कहने लगी –
“अरे ये तो बूस्टर डोज है आने वाले के लिए – आखिर भांजे या भांजी को मेरी तरह बहादुर होना है न कि इस डरपुक्की की तरह डरपोक |” अपनी बात कहती हुई झलक पलक को देखती हुई हँस रही थी|
इससे पलक गुस्से में होंठ सिकोड़ती हुई उसपर तकिया उठाकर मारती हुई कहती है – “सच में तू सच्ची वाली भूत ही है – पागल – फालतू में डरा दिया |”
रूठती हुई पलक अब बिस्तर पर बैठ जाती है तो झलक प्यार से उसके कंधो पर झूलती हुई खिलखिलाती हुई कह रही थी – “मुझे लगा इतने समय तक पंडित जी के साथ रहते तू बहादुर हो गई होगी पर तू तो न बिलकुल वैसी ही है |”
“और तू भी वैसी ही है |” कहती हुई पलक उससे दूर हटकर बैठ जाती है|
दोनों बहनों की वही पुरानी तकरार देख माँ मुस्कराती हुई कहने लगी – “अब मनाओ अपनी पल्लो को – मैं चली किचेन – नहीं तो आज सबको जला हुआ ही नाश्ता मिलेगा |”
माँ दोनों को छोड़कर जा चुकी थी|
अनिकेत ने भी उसी बीच के आस पास ही होटल लिया था जहाँ जॉन पहले रुका था जिससे अलसुबह ही वह बीच की ओर पैदल निकल गया| काफी देर इधर उधर भटकने और जॉन की तस्वीर लोगों को दिखाने के बाद भी जब उसे कुछ हाथ नही लगा तो वह वापस रूम में आ जाता है| वह वापस आते देखता है कि उसके रूम के बाहर कोई खड़ा था जिसे संशय से देखता अनिकेत उसे पुकारता है| वह कोई नौजवान था और अनिकेत की आवाज पर पलटता हुआ उसे देख अपनी भरपूर मुस्कान से मुस्कराता हुआ कहता है – “प्रोफ़ेसर अनिकेत !! मैं मयंक – डॉक्टर अनुमोल का छोटा भाई |”
“ओह – कम इनसाइड |” कहता हुआ अनिकेत उसे कमरे के अन्दर ले चलता है|
“थैंक्स सर – मैं काफी देर से आपका इंतज़ार कर रहा था –|”
मयंक की बात सुन अनिकेत उसे बैठने का इशारा करता हुआ कहता है – “ओह सॉरी मुझे पता नही था कि तुम आ रहे हो नहीं तो बीच पर नही जाता |”
“अरे सर आप सॉरी मत बोलिए – मैं ही अपनी एक्साईटमेंट में बहुत सुबह सुबह भागा चला आया |”
इस पर अनिकेत आश्चर्य से उसे गौर से देखता हुआ मुंह गोल करता हुआ ओह कहता है| अनिकेत उसे ध्यान से देखता है गेहुए रंगत का बेहद स्मार्ट सा कोई चौबीस पच्चीस की उम्र का लड़का था| बोली साफ उत्तर भारत की थी पर दिखने में बिलकुल गोवन स्टाइल| लम्बे बिखरे बाल और बेल बूटे वाली शर्ट और शौर्ट्स में वह बिलकुल बिंदास नज़र आ रहा था| साथ ही बेहद बातूनी भी अनिकेत चुपचाप उसे देख रहा था जबकि वह अब लगातार बोले जा रहा था –
“भईया से मालूम पड़ा आप आए है तो बता नही सकता ये जानते मेरे एक्साईटमेंट का लेबल कितना बढ़ गया – मेरा बस चलता तो कल रात को जब मालूम पड़ा तो रात में ही आ जाता पर अच्छा नही लगता न सर |”
“ओह तो तुम मुझे जानते हो – !!”
“क्यों नही सर आपकी लाइन का ही हूँ मैं भी |”
“मेरी लाइन मतलब !! तुम तो शायद इंजीनियरिंग कर रहे हो न !” अनिकेत पूछता है|
“वो तो भईया को बताने के लिए – असल में मैं आपकी तरह पैरासाइकोलोजी में पीजी कर रहा हूँ |”
“अच्छा !!”
“हाँ सर – वो क्या है भईया नही चाहते थे कि मैं इस फिल्ड में आऊं इसलिए तो उनसे झूठ बोलकर गोवा आया ताकि यहाँ से मैं इस पर पीजी कर सकूँ – प्लीज आप उन्हें मत बताईगा – तभी तो आपका नाम सुनते तो बस मन को लगा कि मेरी लौटरी ही लग गई|”
इस पर अनिकेत बस धीरे से मुस्करा देता है|
“अब आप बताए – आपको गोवा में किस तरह की मदद चाहिए – मैं यहाँ के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ – बताए सर मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?”
अनिकेत गौर से उसे देखता हुआ कुर्सी की पुश्त से पीठ सटाऐ हुए कहता है – “कभी असल के भूत से सामना हुआ है तुम्हारा ?”
अनिकेत के प्रश्न पर मयंक एकदम से शांत होता उसे देखता रहता है|
क्रमशः……..