Kahanikacarvan

डेजा वू एक राज़ – 17

“जी !!” मयंक अनिकेत के प्रश्न पर औचक उसकी ओर देखता उधेड़बुन में पड़ गया कि इसका क्या जवाब दे|

पर अनिकेत अपनी सहजता से कहने लगा – “यही सोचकर कर रहे होगे न कोर्स कि कोई पैरानार्मल एक्टिविटी देखूंगा – यही न !”

“सर और क्या होता है इसमें ?”

“जिम्मेदारी |”

अनिकेत के दो टूक उत्तर से वह बस खामोश देखता रहा जिससे अनिकेत अपनी बात कहने लगा – “किसी भी काम को करने का मनुष्य का इंटेंशन क्या होता यही उस काम की वास्तविकता तय करता है – औलौकिक शक्तियों को लेकर हर व्यक्ति के अन्दर बहुत उत्सुकता रहती है – लोग आज भी भूतों की रहस्यमयी दुनिया की हैरतअंगेज बातों को जानना चाहते हैं और इसी जिज्ञासा में वे अपने और उन रूहों के बीच के परदे को कभी अज्ञानता वश तो कभी जानकर हटा देते है और तभी शुरू होती है बहुत बड़ी मुश्किल |”

मयंक ख़ामोशी से अनिकेत की बात सुन रहा था और अब अनिकेत उठकर टहलते हुए अपनी बात कहने लगा – “यही बात मैंने जॉन से भी कही थी पर उसने मेरी बात नही मानी और एक ऐसा सोफ्टवेअर तैयार कर लिया जिससे रूहे संपर्क करके मदद मांग सकती है और मुझे डर है उसके गुम होने के पीछे कही ये कारण न हो !”

“ऐसा सोफ्टवेअर कुछ गलत तो नही है – ?” मयंक तुरंत पूछ बैठता है|

“हाँ गलत है क्योंकि पुराणों के अनुसार मृत्यु के पश्चात मुक्ति होनी चाहिए – आत्मा किसी भी कारण से शरीर छोड़े उसके बाद बस उसे मुक्ति मिलनी चाहिए न कि किसी भी तरह से उनकी दुनिया में दखल देना चाहिए|”

“तो आप के हिसाब से क्या उस दुनिया में कोई दखल हुआ है?” मयंक त्वरित प्रश्न पूछता है|

“अभी तो नही कह सकता पर जो मैं तुमसे कहना चाहता हूँ उस जिम्मेदारी को समझो और उनकी दुनिया में दखल देने की बिलकुल कोशिश कभी मत करना |”

इससे पहले कि अनिकेत की बात पर मयंक कुछ प्रतिक्रिया करता तभी दरवाजे पर दस्तख हुई जिससे दोनों का ध्यान दरवाजे की ओर गया| दरवाजा खोलने अनिकेत उठता है| दरवाजे के पार इंस्पेक्टर था जो दरवाजा खुलते सीधे अंदर आ जाता है|

सुबह का अभिवादन कर इन्स्पेक्टर अपनी बात कहना शुरू करता है – “मोबाईल की लास्ट लोकेशन बोम्बोलिम बीच है जिसके पास ये होटल है |”

“ओह तो इसका मतलब वह आखिरी बार इस बीच पर मौजूद था |”

इन्स्पेक्टर हामी में सर हिलाता हुआ कहता है – “आज से अख़बार में उनकी तस्वीर भी जारी कर दी जाएगी – आई होप इससे कुछ दिशा निर्देश मिले |”

अनिकेत को लगा कि इन्स्पेक्टर की बात खत्म हो गई जिससे वह उसकी ओर से मुड़ गया तब इन्स्पेक्टर उसे टोकता हुआ कहता है – “मैंने आपसे अपने पर्सनल काम की बात कही थी |”

ये सुनते अनिकेत उसकी तरफ गौर से देखता हुआ कहता है – “हाँ कहिए |”

इस पर इन्स्पेक्टर अब अपनी घूमती निगाह मयंक की ओर करता है जिससे समझते हुए वह तुरंत खड़ा होता हुआ कहता है – “सर मैं बालकनी में हूँ |”

बिना किसी की हाँ की प्रतीक्षा करे मयंक कमरे की बालकनी की ओर चल देता है| उसके जाते अनिकेत बैठते हुए उस इन्स्पेक्टर को भी बैठने का इशारा करता हुआ कहता है – “कहिए – मैं आपकी किस तरह से सहायता कर सक्ता हूँ ?”

“एक आप ही है जिसे देख मुझे कुछ उम्मीद बंधी है |”

इन्स्पेक्टर की बात पर अनिकेत हैरान नज़रो से उसे देखता रहा|

इन्स्पेक्टर कहने लगा – “असल में मैं आपसे परालौकिक सहायता चाहता हूँ |”

“मुझसे !!”

“जी आपके दोस्त जॉन के सामान से ये पता चल गया कि वह यही काम करता था और आपके बारे में इन्स्पेक्टर शेखावत से पता चला तो क्या आप मेरी सहायता करेंगे ?”

इन्स्पेक्टर की बात पर अनिकेत अनबूझा सा उसकी ओर देखने लगा|

“आपको ये सुनकर बहुत अजीब लग रहा होगा पर मैं आपको अपनी जिंदगी की कहानी सुनाता हूँ – मेरे माता पिता के आकस्मिक मौत के बाद घर पर मैं और मेरी छोटी बहन बस अकेले रह गए अब सारी समस्याओ से बड़ी थी कमाकर घर लाने और अपनी बहन के ध्यान रखने की – उस समय मैं ग्रेजुएशन कर रहा था और मेरी बहन मुझे बस दो साल छोटी थी – फिर एसआई के सेलेक्शन के बाद मैं पुलिस ट्रेनिंग के लिए चला गया अब घर पर मेरी बहन अकेली रह गई – वह बहुत ही शांत और अपनी ही दुनिया में गुम रहने वाली लड़की बन चुकी थी – फिर एक दिन जब मैं अपनी ट्रेनिंग पूरी करके वापस आया तब मालूम पडा मेरी बहन को अचानक समुद्र किनारे सबने मरा पाया – आप समझ नही सकते उस वक़्त मेरे ऊपर क्या हालात गुजरे – मुझे तो ये भी पता नही चल पाया कि उसकी मौत कैसे हुई तब मैंने अपनी तरफ से उसकी मौत की गुत्थी सुलझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसके अकेले रहने की वजह से कोई उसके बारे में कुछ नही जानता था – तब ही मैंने डिसाइड कर लिया कि मैं किसी भी तरह से उसकी आत्मा से सम्पर्क करके उसकी मौत का कारण जानूंगा – बस तभी से ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश थी और ऐसे में आप मुझे मिले – प्लीज़ मुझे निराश मत करिएगा – मेरी भावनाओ को समझिए |”

इन्स्पेक्टर की बात सुनते अनिकेत के चेहरे पर कई तरह के भाव उतर आए पर वह बोला कुछ नही इससे उसकी चुप्पी देख इन्स्पेक्टर आगे कहता है – “कोई बात नही आप आराम से इसपर सोच लीजिए – मैं फिर आपसे मिलता हूँ |”

कहता हुआ वह तुरंत की बाहर की ओर रुख कर गया| उसके जाते दरवाजे के बंद होने की आवाज से मयंक अब उस कमरे में आता हुआ अनिकेत की ओर देखता है| वह यूँ उसका चेहरा गौर से देख रहा था मानो उसका चेहरा देखते हुए उसके मन के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हो|

“सर !!”

मयंक अनिकेत के सामने बैठता हुआ उसे आवाज लगाकर उसका ध्यान अपनी ओर करता है|

“अब आप क्या करेंगे !! क्या उनकी मदद करने आप अपने विचारो के विपरीत जाएँगे !!”

मयंक के प्रश्न पर अब अनिकेत उसे यूँ घूरने लगा था मानो बिन शब्दों के ही उससे ये पूछ रहा हो कि वह तो बाहर था !!

अनिकेत की बात समझता हुआ मयंक झिझकता हुआ कहता है – “सॉरी सर – अपने आप को सुनने से मैं रोक नही पाया और अब मैं वाकई जानना चाहता हूँ कि अब आप क्या करेंगे इस बारे में ?”

क्रमशः…..

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