
डेजा वू एक राज़ – 18
मयंक के प्रश्न पर अनिकेत की चुप्पी पर वह भी शांत हो जाता है| फिर अनिकेत कुछ समय बाद उसी बीच पर उससे मिलने को कहकर मयंक को जाने देता है| उनके पास बस यही आखिरी सूत्र था कि वे अपनी खोज फिर से उसी बीच से शुरू करे|
निश्चित समय पर अनिकेत बोम्बोलिम बीच पर मयंक के बताए स्थान पर पहुँच रहा था| वहां पहुंचते वह देखता है कि वह उसका वहां पहले से ही इंतजार कर रहा है|
“क्या मुझे देर हो गई आने में ?” अनिकेत संकोच से पूछता है|
जिसपर मयंक त्वरित उत्तर देता है – “ओह नो नो सर मैं ही पहले आ गया – आई लव बीच |” वह हवा में उमंग से हाथ घुमाता हुआ कहता है|
“तो अब हमे अपनी ख़ोज कहाँ से शुरू करनी चाहिए ?” अनिकेत बीच पर चारों ओर नज़र घुमाकर पूछता है|
बीच हर वक़्त लोगो से गुलजार ही रहता| इस वक़्त में हर तरह का व्यक्ति वहां मौजूद था| मयंक भी चारों ओर देखता हुआ कहता है – “मेरे हिसाब से यहाँ के कुछ स्टाल में पूछताछ करते है – आपके पास आपके दोस्त की पिक तो होगी न – तो बस वही दिखाकर लोगो से पूछते है – शायद किसी से कुछ पता चल जाए|”
अनिकेत उसकी बात पर हामी में सर हिलाता अपने मोबाईल से उसकी तस्वीर निकालकर साथ में आगे बढ़ जाता है|
एक स्टाल पर मोबाईल की तस्वीर दिखाता हुआ मयंक पूछता है जिसपर वह अपने काम को करते करते न में सर हिला देता है| इस तरह दोनों साथ में कई स्टाल और लोगो को तस्वीर दिखाते है पर उन्हें कुछ ख़ास पता नहीं चलता| दोपहर के बढ़ते समय में अब वे किसी स्थान पर बैठते हुए मयंक से कहता है – “सर यहाँ तो कुछ नही पता चला – अब आगे का क्या प्लान है ?”
अनिकेत गहरा श्वांस खींचता हुआ कहता है – “हाँ ये तो तय है कि जब तक कुछ और क्लू नही मिल जाता इस तरह ढूंढने से कोई फायदा नही होगा |”
“हाँ सर आप सही कह रहे है – |”
अब अनिकेत उठता हुआ कहता है – “तो थैंक्स मयंक जो तुमने मुझे इतना समय दिया |”
“क्या बात करते है सर – आपके संग रहने के लिए मैं कोई भी कीमत दे सकता हूँ – अच्छा सर अब क्या करेंगे आप – मेरा मतलब लंच तो करेंगे ही – तो मैं आपको एक बढ़िया जगह ले चलता हूँ – एकदम झकास लंच मिलता है|”
मयंक के उत्साह पर अनिकेत मुस्कराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहता है – “एक्चुली मैं प्योर वेजी हूँ तो मैं अपने हिसाब से देख लूँगा|”
अनिकेत की बात पर वह सोचते हुए अपने मुंह को गोल गोल किए कहता है – “कोई बात नही मैं आपको एक वेज रेस्टोरेंट ले चलता हूँ – चलिए सर -|”
मयंक की गर्मजोशी से अनिकेत फिर इंकार नही कर पाता और वे साथ में वहां से निकलने लगते है| मयंक यहाँ से भली भांति परिचित था ये तो अनिकेत समझ चुका था| जाने किन किन रास्तो से गुजारते हुए वह उसे लिए जा रहा था| तभी अचानक चलते अनिकेत की नज़र बोम्बोलिम गोवा हॉस्पिटल पर दौड़ जाती है|
“ये…?” अनिकेत उसकी ओर नज़र उठाकर आश्चर्य से पूछता है|
“ये गोवा का मेडिकल हॉस्पिटल है – क्यों क्या हुआ सर ?”
“बस यूँही देखकर लगा जैसे कही देखा देखा है पर कहाँ याद नही |”
अनिकेत के अचरच भाव पर मयंक सहजता से कहता है – “बहुत फेमस है खासकर इसका मेंटल डिपार्टमेंट – शायद नेट पर सर्चिंग के वक़्त दिखा हो – चलिए सर |”
वे साथ अब टैक्सी में बैठकर एक रेस्टोरेंट के लिए निकल गए थे| अनिकेत जहाँ चुपचाप बैठा था वही मयंक चुप न रहते फिर बातो का सिलसिला शुरू करता हुआ कहता है – “सर एक बात तब से मेरे मन में घूम रही है – |” अनिकेत सहमति में आँखों को झपका देता है जिससे वह आगे कहने लगता है – “आपने बताया कि आपके दोस्त ने एक सोफ्टवेयर बनाया है तो क्या आपने उसे खोलकर देखा – हो सकता है उसमे कुछ क्लू मिल जाए – |” बिना सांस लिए मयंक बोलता रहा – “वैसे सर आपको क्या लगता है – क्या आत्माओ ने उनसे संपर्क किया होगा ?”
अनिकेत अजीब तरह से उसे देखने लगता है|
मयंक बिना अनिकेत की ओर ध्यान दिए अपनी बात कहता जा रहा था – “वैसे सर मेरे व्यू पॉइंट की अगर बात करे तो मुझे इस तरह के सोफ्टवेअर पर पूरा विश्वास है|”
“अच्छा !!”
“क्यों आपको नही है क्या सर !! अच्छा अभी आप कौन सा मोबाईल यूज कर रहे है – दिखाईए |” बिना संकोच के वह अनिकेत के हाथ में पकडे मोबाईल को छूते हुए कहता है – “देखिए सर आप लेटेस्ट मोबाईल यूज कर रहे है – अभी इसके यूजर्स बहुत कम होंगे क्योंकि ये लेटेस्ट है क्योंकि इसका वर्जन भी अपडेट है – इसी तरह क्या आपको नही लगता कि आत्माओ का भी लेटेस्ट वर्जन आ गया होगा – अब आत्माए वैसा बिहेव नही करती होंगी जैसा काफी पिछले समय से उनसे अपेक्षा की जाती थी – वो डरावनी ऑंखें, खून, बिखरे बाल, बदबू शरीर वगैरा वगैरा – हो सकता है उनका भी कोई लेटेस्ट वर्जन आ गया हो जो आपको नही पता – अभी भी हो सकता है आपके आस पास कोई आत्मा हो या कुछ समय पहले आपने जिस व्यक्ति से बात की हो वो आत्मा रही हो और ये टैक्सी वाला !! हो सकता ये भी कोई आत्मा हो |” मयंक के ये कहते टैक्सी वाला जिसके कानो तक ये बात पड़ते उसका पैर एकाएक क्लच की जगह ब्रेक पर पड़ जाता है और एक झटके के साथ कार रुक जाती है| दोनों अब चुप होकर उसे देखते है जो सॉरी कहता हुआ फिर से कार स्टार्ट करने लगा था|
अगले कुछ पल में वे किसी रेस्टोरेंट के बाहर से जिसकी ओर इशारा करता हुआ मयंक कहता है – “यहाँ आपको वेज भी बहुत अच्छा मिल जाएगा |” वे साथ में अन्दर आते एक कोने की टेबल पर बैठ जाते है|
उनके बैठते एक गोवन वेटर उनके सामने आता शिष्टाचार में सर झुकाए हुए कहता है – “ देयु बोरो डिस डियम |”
अभिनन्दन करते वेटर की बात पर जहाँ अनिकेत अनबूझा सा उसकी ओर देखने लगा वही मयंक जल्दी से पूछता है – “डीयू बोरो तुम इन्ग्लेज उलैतई ?” (ऐ हेलो क्या तुम्हें इंलिश आती है )
वेटर उसी तरह मुस्कराते हुए कहता है – “यस सर |”
मयंक समझ गया कि उसी की वेशभूषा को देखकर ही वेटर कोंकणी बोलने लगा होगा पर अब उसे इंलिश आती ये सुनिश्चित होते मयंक अनिकेत की ओर देखता हुआ कहने लगा – “सर अब आप इसे अपना आर्डर दे सकते है – मैं अब चलता हूँ – आप जब भी फ्री हो मुझे फोन कर लीजिएगा |”
“तुम भी मुझे ज्वाइन करते तो अच्छा लगता |”
“थैंकू सर आपको ज्वाइन करना तो मेरा सौभाग्य रहता पर मैं एक नंबर का नोंवेजी हूँ और मुझे वही खाकर तृप्ति मिलेगी – वैसे गोवा आने का दूसरा विशेष कारण ये भी है |” अपनी बात पर ही हँसता हुआ मयंक अब उठकर बाहर चल देता है|
अनिकेत भी उसे मुस्कराते हुए जाते देख रहा था| वह उसे अजीब और मजेदार व्यक्ति लगा था|
रात होने जा रही थी पर न झलक बोलते बोलते थकी थी और न पलक सुनते सुनते| कितना कुछ आपस में बाँटना था उन्हें| माँ एक दो बार टोक कर भी गई कि रात हो रही है सो क्यों नही जाती बाते तो अगले दिन भी हो सकती है पर आज तो उन दोनों की आँखों में नींद का कतरा नही था| आज एक लम्हे में सारा वक़्त दोहरा लेना चाहती थी| होस्टल की मस्ती, झलक का झूठ, तानिया ग्रुप से पंगे और कुछ राजस्थान की डरावनी यादें जिन्हें सिरे से दोनों झटकती अपनी बातों का दौर जारी रखे रही कि कैसे आदर्श भईया को फोन मिलाकर तंग करना है, उनके रेस्टोरेंट में ऑर्डर देना है और हाँ शर्लिन भाभी से मिलकर ढेरो शिकायत करनी है कि कितनी जल्दबाजी में उन दोनों से शादी कर ली कि न पलक यूके से आ पाई और न झलक बेंगलुरु से| इस बात पर दोनों साथ में हाथ मिलाती आपस में खिलखिला पड़ी थी|
काफी देर इसी मस्ती में झलक एक से बढ़कर एक किस्से सुनाती रही जिसे सुनते आखिर कब पलक सो गई उसे भी पता भी नही चला| उसे सोता देख झलक प्यार से निहारती उसे ठीक से ओढाकर अपना टैब लेकर बैठ जाती है|
“क्या कर रही है झल्लो !!” एक उंघती हुई आवाज सुनती झलक अपने बगल में देखती है कि चादर से सर निकाले पलक अधखुली आँखों से उसे देखती हुई कह रही थी – “पता ही नही चला कब मेरी आँख लग गई पर तू जागी हुई क्या कर रही है ?”
“अपने ब्लॉग में वर्क कर रही हूँ |”
दीवार घड़ी की ओर एक सरसरी दृष्टि दौड़ाती हुई कहती है – “छोड़ दे न – अब आधी रात हो रही है – सो जा न|”
“बस थोड़ा रुक न|” झलक उसकी ओर बिना देखे हुए कहती है|
इससे पलक अब सरकती हुई टेक लगाकर बैठती हुई कहती है – “क्यों भूतो की तरह जाग रही है और ऐसा क्या है तेरे इस ब्लॉग में ?”
“तूने देखा ?”
“हाँ देखा – मुझे तो बड़ा अजीब लगा – क्या नाम है तेरे ब्लॉग का – फ्री सोल – क्या मतलब है इसका ?” पलक उबासी लेती हुई कहती है|
“उन्मुक्त आत्मा |”
झलक के कहते पलक थोड़े चिढ़े स्वर में कहती है – “हाँ हाँ ट्रांसलेशन नही पूछ रही – जानना चाहती हूँ कि क्या करना चाहती है इस ब्लॉग से ?”
“खोए हुए अकेले लोगो की खोज |” त्वरित उत्तर देती झलक अभी भी टैब पर उंगलियाँ फेर रही थी|
“खोए हुए अकेले लोग !!”
अभी झलक इसका जवाब देने ही वाली थी कि दरवाजे के पीछे से माँ की आवाज उन्हें सुनाई देती है शायद वे किसी कारण से वहां से गुजरी और आवाज सुनती हुई उन्हें पुकारती हुई कहती है – “क्या तुम दोनों अभी भी जाग रही हो ?”
“अरे बाप रे मम्मी – तुझे कल सब बताउंगी – अभी सो जाते है –|”
माँ की आवाज सुनते झलक तुरंत टैब बंद करती हुई उसे पलटकर साइड टेबल पर रखती हुई तुरंत बिस्तर पर फिसलती हुई चादर ओढ़ लेती है| पलक भी लेटती हुई चादर ओढ़ लेती है| ऐसा करते उन दोनों की हलकी हँसी बस वे ही सुन पाई| आखिर उन्हें शादी से पहली की मस्ती याद आ गई जब ऐसे रतजगे पर उन्हें कितनी डांट मिलती थी माँ की|
माँ चेक करने सच में कमरा खोलकर देखती है पर कमरे में नीरव शांति पाते फिर चुपचाप से दरवाजा उड़का कर चली जाती है|
शाम से रात तक अनिकेत कोई भी क्लू नही ढूंढ पाया जिससे परेशान सा वह जल्दी ही सोने चला गया |वह कमरे की नीरव एकांत में चुपचाप सो रहा था पर आधी रात उसे नही पता चला कि टेबल पर रखे जॉन के लैपटॉप की स्क्रीन एक बार फिर चमक उठी थी|
क्रमशः…….